Wonderful world of agricultural useful organisms, the basis of good and advanced agriculture
सूक्ष्मजीवों का संसार अनदेखा, विस्मयकारी और अद्भुत हैं। नग्न आँखों से नजर न आने वाले ये जीव धरती पर जीवन की निरंतरता को बनाये रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि ये सूक्ष्मजीव कृषि के क्षेत्र में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार कि जैव-रासायनिक प्रकियाओं में सहभागी बनकर फसलों के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
ये सूक्ष्म जीव विभिन्न प्रकार के एंटीबायोटिक्स का स्त्राव कर अन्य रोगकारक जीवों की वृद्धि को या तो रोक देते हैं या फिर उनको मार देते है। दूसरे कुछ सूक्ष्मजीव पौधे की मिट्टी में से पोषक तत्व ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ा कर उनके विकास और वृद्धि में सहायक सिद्ध होते हैं।
कुछ सूक्ष्म जीव पर्यावरण में उपस्थित महत्वपूर्ण पोषक तत्वों जैसे की नाइट्रोजन को विभिन प्रकियाओं द्वारा पौधों के उपयोग के लिए उपलब्ध करवाते हैं। कुछ सूक्ष्म जीव सल्फर, फॉस्फेट तथा जिंक जैसे सूक्ष्म तत्वों को घुलित अवस्थ में बदल देते हैं जो बाद में पौधे द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। कुछ सूक्ष्म जीव वृद्धि हार्मोन्स जैसे की ऑक्सिन और साइटोकिनिंस का निर्माण करके पौधे की अंकुरण, वृद्धि एवं उत्पादन की क्षमता को प्रभावित करते हैं।
नवीन वैज्ञानिक शोधों में ये भी पाया गया है की कुछ सूक्ष्मजीव कठिन पर्यावरण परिस्थितियों जैसे की सूखा, लवणता,अत्यधिक गर्मी, कोहरा से फसलों को होने वाली हानि को कम करके पौधों के जीवित रहने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसके आलावा कुछ सूक्ष्म जीव मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्म जीवों की जनसँख्या को बढ़ा देते हैं और हानिकारक सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को कम कर के मिट्टी के स्वास्थ्य को उत्तम बनाते हैं। कुछ सूक्ष्म जीव हानिकारक रसायनो के अपघटन में सहायक होते हैं जो पर्यावरण को होने वाले अनेक नुकसानों को रोक देते हैं। आइये हम कुछ सूक्ष्म जीवों का उलेख करते हैं जिनका उपयोग कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीवों के रूप में किया जाता रहा है।
जैव उर्वरक:
जैव उर्वरक ऐसे पदार्थ होते हैं जिन में कृषि उपयोगी सूक्ष्म जीव शामिल होते हैं जो उर्वरक की भांति मिट्टी में आवश्यक तत्वों की कमी को पूरा करते हैं और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ा कर फसली पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं। कुछ बैक्टीरिया की प्रजातियां जैसे कि बेसिलस, सूडोमोनास आदि पौधे की वृद्धि के लिए सहायक हॉर्मोन्स के निर्माण करती है।
इसके अलावा वे मिटटी में पाए जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे लोहा, जिंक,फोस्फोरस तथा सल्फर आदि पोषक तत्वों को घुलित अवस्था में बदल कर पौधे के लिए उपलब्ध करवाते हैं। उदाहरण के तौर पर राइजोबियम, माइकोराइजा तथा नॉस्टॉकए अनाबिनाए अजोल्ला नील हरित शैवाल जैव उर्वरकों की भांति उपयोग में लाये जाते हैं।
राइजोबियम मुख्यतः फलीदार जैसे की दाल के पौधों की जड़ों में पाया जाने वाला यह सूक्ष्म जीव वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन के जैव स्थिरीकरण करता है। पौधे इस स्थिरीकृत नाइट्रोजन को ही अपने उपयोग में लाते जो उनकी वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। राइजोबियम की विभिन्न प्रजातिओं का जैविक उर्वरकों के रूप में तरल या सूखे बायो फार्मूलेशन के रूप में किया जाता है। ये बायो फार्मूलेशन रासायनिक उर्वरकों जैसे यूरिया के ऊपर किसानों की निर्भरता को कम करने में सहायक हैं।
प्रतिरोधी कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव:
कुछ कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ऐसे पदार्थों का स्त्राव करते हैं जो अन्य सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को कम कर देते या फिर उन्हें मार देते हैं। ऐसे सूक्ष्म जीवों को जैव प्रतिरोधी कहा जाता है। एंटी बायोटिक अदि के निर्माण करके पौधों को दूसरे हानिकारक जीवों से रक्षा करते हैं।
ये सूक्ष्म जीव ‘सिडेरोफोर्स’ नाम के तत्व उत्पन्न करके मिटटी में उपस्थित लोहे जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों को दूसरे हानिकारक सूक्ष्म जीवों के प्रयोग में नहीं आने देते जिस से उनकी वृद्धि नहीं हो पाती है। इस तरह फसली पौधों की वृद्धि की लिए एक उचित परिवेश के निमार्ण कृषि उपयोगी सूक्ष्म जीवों द्वारा कर लिया जाता है।
कृषि उपयोगी सूक्ष्म जीवों को रोगजनक सूक्ष्म जीवों के प्रतिरोधी के रूप में इस्तेमाल करके फसलों को अनेक रोगों से बचाया जा सकता है। ट्राइकोडर्मा, बेसिलस, सूडोमोनास अदि कुछ सूक्ष्म जीवों को फसलों से होने वाले रोगों से बचने में प्रयोग किया जाता है।
ट्राइकोडर्माः ट्राइकोडर्मा एक फफूंद है जो फसलों को नुकसान करने वाली हानिकारक फफूंदों जैसे की फ्युजेरियम, को नियंत्रित करने में उपयोग में लाया जाता है। इस फफूंद के उपयोग हानिकारक जीवों जैसे निमाटोड को नियंत्रित करने में भी लाभकारी पाया गया है।
कीट प्रबंधन में कृषि उपयोगी सूक्ष्म जीव: कुछ सूक्ष्म जीव कीट पतंगों के ऊपर परभक्षी की तरह रह सकते हैं जबकि कुछ ऐसे पदार्थों के निर्माण करते हैं जो कीटों की मृत्यु के कारण बन सकते हैं। अतः ऐसे सूक्ष्म जीवों के उपयोग से फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले हानिकारक कीटों के प्रबंधन में किया जा सकता है। बीयूवेरिया बेसिआना (फफूंद) एवं बैसिलस थुरिंजेंसिस (बैक्टीरिया) का उपयोग कृषि कीट प्रबंधन में मुख्यतः किया जाता है।
बीयूवेरिया बेसिआना: यह एक कीटभक्षी फफूंद है जिसका उपयोग फसलों को नुकसान करने वाले कीटों को नियंत्रित करने में किया जा सकता है। यह फफूंद कीटों के ऊपर उगकर धीरे धीरे उनके शरीर से पोषण ग्रहण करती है और अंत में उनकी मृत्यु के कारण बनती है। इस तरह की कीटभक्षी फफूंद रासायनिक कीटनाशियों पर हमारी निर्भरता को कम कर सकती है तथा पर्यावरण को होने वाले नुकसानों से भी बचा सकती है।
बेसिलस थुरिंजेंसिस: यह मिट्टी में पाया जाने वाला एक बैक्टीरिया है जो “क्राई प्रोटीन्स” का निर्माण करता है। यह प्रोटीन्स कीटों के पाचन तंत्र की विशेष परिस्थितयों में टॉक्सिन्स के रूप में सक्रीय होकर कीटों की मृत्यु के कारण बनते हैं। वर्तमान में जैव प्रद्योगिकी का उपयोग करके कपास तथा मक्का आदि कुछ फसलों के ‘ट्रांसजेनिक’ पौधों में इस बैक्टीरिया के प्रोटीन्स को निर्मित करने वाले जीन्स को डाला गया है जिसके कारण ये फसलें कीटों से सुरक्षित रहती हैं इस तरह से रासानिक कीटनाशकों के कृषि में उपयोग तथा उनके पारिस्थितिकी तंत्र पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।
फसलों में अजैविक अवसाद प्रबंधन में कृषि उपयोगी सूक्ष्म जीवों के उपयोग:
सूक्ष्म जीव सिर्फ रोग कारक जीवों से ही नहीं अपितु पौधे पर आने वाले अजैविक अवसादों जैसे कि सूखे, जल की कमी, अधिक तापमान, कोहरा, पाला मार जाना तथा अत्यधिक लवणता में भी पौधे की रक्षा करते हैं।
सूडोमोनास, बेसिलस, पेनीबेसिलस अदि बैक्टीरिया पर शोध करने पर ये पता चला है की ये बैक्टीरिया पौधे में जल की उचित मात्रा तथा कुछ ‘ओस्मोप्रोटेक्टेंट’ का निमार्ण करते हैं जो पौधे को सूखे लवणता और दूसरे अजैविक अवसादों में जीवित रखने में सहायक होते हैं।
कुछ सूक्ष्म जीव पौधों की जड़ों की सतह पर ‘बायोफिल्म’ का निमार्ण करके नमी को बनाये रखते हैं। अतः स्पष्ट रूप से सूक्ष्मजीव पौधे को इन विपरीत पर्यावरण परिस्थियों में भी जीवित रहने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सूक्ष्मजीवों का यह संसार अत्यंत विस्मयकारी है और हम अभी भी इसे पूरी तरह समझ और उपयोग नहीं कर पाए हैं। ये सूक्ष्मजीव पारिस्थितिकी तंत्र को बिना नुकसान पहुंचाए कृषि में आने वाले रोगों के निदान, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने के साथ-साथ पोषक तत्व प्रबंधन एवं सूखे तथा लवणता जैसी समस्याओं से भी फसलों की रक्षा करने की क्षमता रखते हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घातक रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर निर्भरता को भी इन सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके कम किया जा सकता है। नवीन वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके हमें इन सूक्ष्म जीवों के संसार को समझना होगा ताकि इनकी अपार क्षमताओं का उपयोग कृषि के क्षेत्र में किया जा सके, जो मानव और पर्यावरण दोनों के लिए हितकारी सिद्ध होगी।
Authors
सुरिंद्र पॉल1 एम आशाज्योति 2 एवं ज्योत्सना तिलगाम1
1भा. कृ. अनु. प.-राष्ट्रीयकृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो .मऊनाथ भंजन .२७५१०३. उत्तर प्रदेश
2भा. कृ. अनु. प.- केंद्रीय कृषिवानिकी अनुसन्धान संस्थानए झाँसी .२८४००३.उत्तर प्रदेश
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