Nutritious and healthy coarse grains are super food cereals

भारत में 60 के दशक के पहले तक कदन्न अनाज की खेती की परम्परा थी। कहा जाता है कि हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से कदन्न अनाज का उत्पादन कर रहे हैं। भारतीय हिंदू परंपरा में यजुर्वेद में कदन्न अनाज का जिक्र मिलता है। 50 साल पहले तक मध्य और दक्षिण भारत के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में मोटे अनाज की खूब पैदावार होती थी।

एक अनुमान के मुताबिक देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में कदन्न अनाज की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी। कदन्न अनाज को मोटा अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं।

आज भी भारत में कुछ क्षेत्रों में कदन्न फसलों में ज्वार (सोरघम), बाजरा (पर्ल मिलेट), रागी (फिंगर मिलेट), कंगनी (फॉक्सटेल मिलेट), कुटकी (लिटिल मिलेट), चीना (प्रोसो मिलेट), कोदो (कोडोमिलेट), सांवां (बार्नयार्ड मिलेट) तथा भूराशीर्ष कदन्न (ब्राउनटॉप मिलेट) आदि की खेती की जाती है।  

कदन्न प्रमुख खाद्य फसलों के अंतर्गत आते हैं तथा देश के विविध कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में इनकी खेती की जाती है। ये विशेषकर बारानी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा आधारित खेती के लिए उपयुक्त है। बहुत ही कम निवेश के साथ इनकी खेती की जा सकती है।

ये फसलें जलवायु अनुकूल, कठोर परिस्थितियों में जीवनक्षम तथा बारानी फसलें हैं, जो कि खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में अत्यधिक योगदान देती हैं। सामान्यतः कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इनकी खेती किए जाने के कारण टिकाऊ कृषिे एवं खाद्य सुरक्षा में इनका अत्यधिक महत्व है।

आज से लगभग तीन दशक पूर्व हमारे खाने की परंपरा बिल्कुल अलग थी। हम कदन्न/ मोटा अनाज खाने वाले लोग थे। लेकिन, 1960 के दशक में आयी हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और कदन्न अनाज को खुद से दूर कर दिया।

जिस अनाज को हमारी कई पीढियां खाते आ रही थी, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में मांग है। केंद्र सरकार भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल देना शुरू कर दी है। भारत सरकार द्वारा इन्हें पौष्टिक अनाज/न्यूट्री सिरियल्स की संज्ञा दी गई है।

भारत में उगायी जाने वाली प्रमुख कदन्न (सुपर फूड) फसलें/न्यूट्री सिरियल्स

ज्वार -

ज्वार दुनिया भर में उगाया जाने वाला पांचवां सबसे महत्वपूर्ण अनाज है। यह फाइबर से भरपूर वजन कम करने और कब्ज को दूर करके पाचनक्रिया को दुरुस्त रखने के लिए ज्वार बढ़िया ऑप्शन है। इसमें मौजूद कैल्शियम हड्डियों की मजबूती देने का काम करता है, जबकि कॉपर और आयरन शरीर में रेड ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ाने और खून की कमी यानी अनीमिया को दूर करने में सहायक होते हैं।

गर्भवती महिलाओं और डिलिवरी के बाद के दिनों के लिए इसका सेवन फायदेमंद है। इसके अलावा इसमें पोटैशियम और फॉस्फोरस की भी अच्छी मात्रा होती है। ज्वार का उपयोग बेबी फूड बनाने में भी होता है। ज्वार मुख्यतः बच्चों के भोजन में इस्तेमाल किया जाने वाला अनाज है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लौह तत्व मुख्य रूप से जाए जाते हैं।

यह अनाज पाचन में हल्का होता है। पोषक तत्वों से भरपूर इस अनाज को देहाती भोजन में रोटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

बाजरा-

बाजरा उत्तर भारत में, विशेषकर ठंड में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें प्रोटीन, लौह तत्व, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट आदि अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें कुछ मात्रा में कैरोटीन (विटामिन ए) भी पाया जाता है। प्रोटीन से भरपूर बाजरा हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है। फाइबर की अधिकता के कारण यह पाचनक्रिया में सहायक होता है और वजन कम करने में भी मदद मिलती है।

इसमें मौजूद कैरोटीन हमारी आंखों के लिए फायदेमंद होता है। इसमें एण्टी-ऑक्सिडेंट्स की भी अच्छी मात्रा होती है, जो नींद लाने और पीरियड्स के दर्द को कम करने में मदद करते हैं। यह कैंसररोधी भी है व कोलेस्टेरॉल के लेवल को रोकने में मदद करता है. अफ्रीका मूल के इस अनाज में अमीनो एसिड, कैल्शियम, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम और विटामिन बी 6, सी, ई जैसे कई विटामिन और मिनरल्स की भरपूर मात्रा पाई जाती है।

प्रति 100 ग्राम बाजरे में लगभग 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है. कैरोटीन हमारी आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है।बाजरे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके सेवन से कैंसर वाले टॉक्सिन नहीं बनते हैं। बाजरे में कुछ अल्प मात्रा में पाइटिक एसिड, पोलीफिनोल, जैसे कुछ पोषण विरोधी तत्व भी होते हैं। बाजरे को पानी में भिगोकर, अंकुरित करके, माल्टिंग की विधि द्वारा इन पोषा विरोधी तत्वों को कम किया जा सकता है।

मक्का

मक्के की रोटी और साबुत भुने मक्के यानी कॉर्न से लगभग सभी लोग वाकिफ होंगे। विटामिन ए और फॉलिक एसिड से भरपूर मक्का दिल के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसमें कई तरह के एण्टी-ऑक्सिडेंट्स मौजूद होते हैं, जो कैंसर सेल्स से लड़कर हमें सुरक्षित रखने में मदद करते हैं.

पके हुए मक्के में एण्टी-ऑक्सिडेंट्स की मात्रा 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यह खराब कोलेस्टेरॉल को कंट्रोल करता है। गर्भवती महिलाओं को अपनी डायट में मक्का शामिल करना चाहिए।

यह खून की कमी को दूर करके गर्भ में पल रहे बच्चे को सेहतमंद रखने का काम करता है। हालांकि वजन कम करने की कोशिश में लगे लोगों इससे परहेज करना चाहिए, क्योंकि यह वजन बढ़ाने में मददगार है। इसमें कार्बोहाइड्रेट व कैलोरी अधिक मात्रा में पाई जाती है।

रागी - रागी (मड़ुआ)

भारतीय मूल का उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है। इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है। इसमें कैल्शियम की मात्रा अन्य अनाजों की अपेक्षा ज्यादा होती है। प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। कैल्शियम हमारी हड्डियों को मजबूत रखने तथा मांसपेशियों को ताकतवर बनाने में मदद करता है। प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है।

रागी में लौह तत्व भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो रक्त का मुख्य घटक है। रागी के आटे से हम रोटी, चिल्ला, इडली बना सकते हैं। रागी की खीर भी बनती है। छोटे बच्चों को (विशेषकर दो वर्ष से छोटे) पारंपरिक तौर पर रागी की लप्सी बनाकर खिलाई जाती है। मधुमेह के रोगियों के लिए वह ज्यादा लाभदायक होता है। इसमें मौजूद एण्टी-ऑक्सिडेंट्स नींद की परेशानी और डिप्रेशन से निकलने में भी मदद करते हैं.

कोदो -

इसे प्राचीन अन्न भी कहा जाता है। कोदो में कुछ मात्रा में वसा तथा प्रोटीन भी होता है। इसका ‘ग्लाइसेमिक इंडेक्स’ कम होने के कारण मधुमेह के रोगियों को चावल के स्थान पर उपयोग करने के लिए कहा जाता है। इसकी फसल मुख्यतः छत्तीसगढ़ में होती है। वहां के वनवासियों का यह मुख्य भोजन है।

जौ -

पोषक तत्वों से भरपूर जौ (बार्ले) हमारी शरीर को कई बीमारियों से बचाने का काम करता है। जौ में गेहूं की अपेक्षा अधिक प्रोटीन व फाइबर मौजूद होता है, जिससे वजन कम करने, डायबिटीज कंट्रोल करने, ब्लडप्रेशर को संतुलित करने में मदद मिलती है। इसमें रेशे, एंटी ऑक्सीडेंट एवं मैग्नीशियम अच्छी मात्रा में होता है। इस कारण कब्ज और मोटापे से परेशानी लोगों को जौ का इस्तेमाल करना चाहिए।

जौ में आठ तरह के अमीनो एसिड पाए जाते हैं, जो शरीर में इंसुलिन के निर्माण में मदद करते हैं। दिल संबंधित बीमारियों के लिए भी जौ का सेवन फायदेमंद होता है। यह हमारे शरीर में एण्टी-ऑक्सिडेंट्स की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है। इसमें कोलेस्टेरॉल को कम करने वाले गुण भी पाए जाते हैं।

इसके अलावा जौ में आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम, कैल्शियम जैसे कई महत्वपूर्ण मिनरल्स मौजूद होते हैं, जो हमारी सेहत के लिए जरूरी पोषकतत्व होते हैं। जौ में अन्य अनाजों की अपेक्षा सबसे ज्यादा मात्रा में अल्कोहल पाया जाता है। इस कारण वह एक डाईयूरेटिक है। इसलिए उच्च रक्तचाप वालों के लिए यह लाभदायक होता है। इसका सेवन दलिया, रोटी और खिचड़ी के रूप में किया जाता है।

शोध दर्शाते हैं कि कदन्न पोषण से भरपूर आहार हैं तथा ये स्वास्थ्य को बढ़ावा प्रदान करने वाले फाइटो रसायनों के सुरक्षात्मक प्रभाव के कारण असंक्रामक (गैर-संचारी) रोगों जैसे-मधुमेह, कैंसर तथा हृदय धमनी रोग के प्रति संभाव्य सुरक्षा प्रदान करते हैं।

कदन्नों के अंतर्गत सबसे ज्यादा क्षेत्र में बाजरे की और इसके बाद ज्वार, रागी व अन्य लघु कदन्नों की खेती की जाती है। इन फसलों की खाद्य व चारा, दोनों प्रयोजनों के लिए खेती की जाती है। इन अनाजों का अधिकांश भाग घरेलू स्तर पर प्रयुक्त किया जाता है तथा शेष भाग कुक्कुट आहार, खाद्य प्रसंस्करण एवं अल्कोहल हेतु औद्योगिक रूप में प्रयुक्त होता है।

इन अनाजों की कुछ मात्रा बीज पक्षियों के दाने तथा प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों के रूप में निर्यात भी की जाती है। दुनिया के अत्यधिक वंचित क्षेत्रों को एक महत्वपूर्ण उप-उत्पाद के रूप में कदन्नों से चारा प्राप्त होता है, जो कि पशुओं के लिए पोषण से भरपूर होता है।

पौष्टिक गुणों से भरपूर कदन्न अनाज: कदन्नों को पौष्टिक धान्य भी कहा जाता है, ये खाद्य तथा पोषण सुरक्षा में काफी योगदान करते हैं। कदन्न फसलें सीमांत (शुष्क) पर्यावरण में अच्छा प्रदर्शन करती हैं तथा ज्यादा सूक्ष्म पोषक तत्वों एवं कम रसाइसेमिक सूचकांक के साथ पौष्टिक गुणों में श्रेष्ठ होती हैं।

कदन्न जलवायु लचीली फसलें भी हैं। इनमें अद्वितीय पौष्टिक गुण विशेषकर जटिल कार्बोहाइड्रेट, पथ्य रेशे की प्रचुरता के साथ-साथ पौष्टिक-औषधीय गुणयुक्त विशिष्ट फिनॉलिक योगिक तथा फाइटो रसायन भी पाए जाते हैं। कदन्न भारत में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए आवश्यक आयरन, जिंक, कैल्शियम तथा अन्य पोषक तत्वों के प्राकृतिक स्रोत भी हैं।

सरणीा .1ः गेहूँ ,चावल की तुलना में कदन्न अनाजों का पोषक मान (प्रति 100 ग्राम

कदन्न अनाज प्रोटीन (ग्राम) कार्बो हाइड्रेट (ग्राम) वसा (ग्राम) ऊर्जा (किलो कैलारी) रेशा (ग्राम) कैल्शियम (मि.ग्रा.) फास्फोरस (मि.ग्रा.) मैग्नीशियम (मि.ग्रा.) जिंक (मि.ग्रा.) आयरन (मि.ग्रा.) थायमिन (मि.ग्रा.) राइबो फ्लेविन (मि.ग्रा.) नियासिन (मि.ग्रा.)

फोलिक अम्ल (मा.ग्रा.)

ज्वार 09.97 67.68 1.73 334 10.2 27.6 274 133 1.9 3.9 0.35 0.14 2.1 39.4
बाजरा 10.96 61.78 5.43 347 11.5 27.4 289 124 2.7 6.4 0.25 0.20 0.9 36.1
रागी 07.16 66.82 1.92 320 11.2 364.0 210 146 2.5 4.6 0.37 0.17 1.3 34.7
कोदो 08.92 66.19 2.55 331 06.4 15.3 101 122 1.6 2.3 0.29 0.20 1.5 39.5
चीना 12.50 70.40 1.10 341 - 14.0 206 153 1.4 0.8 0.41 0.28 4.5 -
कगंनी 12.30 60.10 4.30 331 - 31.0 188 81 2.4 2.8 0.59 0.11 3.2 15.0
कुटकी 8.92 65.55 3.89 346 7.7 16.1 130 91 1.8 1.2 0.26 0.05 1.3 36.2
सांवां 06.20 65.55 2.20 307 - 20.0 280 82 3.0 5.0 0.33 0.10 4.2 -
गेहूँ 10.59 64.72 1.47 321 11.2 39.4 315 125 2.8 3.9 0.46 0.15 2.7 30.1
चावल 07.94 78.24 0.52 356 02.8 07.5 96 19 1.2 0.6 0.05 0.05 1.7 9.32

स्रोत -न्यूट्रीटिव वैलयू ऑफ इंडियन फूड्स- डा. सी. गोपालन, राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद (2018)

सेहत के लिए कितना फायदेमंद है कदन्न अनाज:

ऽ ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज में पौष्टिकता की भरमार होती है। रागी डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता
ऽ ज्वार दुनिया में उगाया जाने वाला 5वां महत्वपूर्ण अनाज है। ये आधे अरब लोगों का मुख्य आहार है। आज ज्वार का ज्यादातर उपयोग शराब उद्योग, डबलरोटी के उत्पादन के लिए हो रहा है।
ऽ कदन्न रेशे का मुख्य स्रोत है तथा परिष्कृत अनाज में केवल भ्रूणपोष की अपेक्षा इनमें बीजाणु (जर्म), भ्रूणपोष इंडोस्पर्म तथा चोकर (ब्रॉन) में पाए जाते हैं। इसके अलावा साबुत अनाज या आंशिक रूप से कदन्न कई विटामिनों, खनिजों तथा फाइटो-रसायनों के मुख्य स्रोत होते हैं, जिनमें प्रति-कैंसर गुण पाए जाते हैं।
ऽ ग्लूटेन संवेदी लोगों को गेहूं के आटे का सेवन नहीं करने की सलाह दी जाती है और कदन्न, ग्लूटेनरहित होने के कारण ऐसेलोगों हेतु सुरक्षित अनाज है। सीलिएक रोगियों के लिए ग्लूटेन मुक्त आहार वैकल्पिक नहीं है, बल्कि इसे आवश्यक पोषण चिकित्सा माना गया है
ऽ टाइप-2 मधुमेह रोगियों के लिए कदन्न, चावल का अच्छा विकल्प है। कदन्नों में मौजूद रेशे की उच्च मात्रा पाचन को धीमा करती है तथा रक्त प्रवाह में शर्करा को धीमी गति से छोड़ती है। ये मधुमेह रोगियों को रक्त शर्करा की खतरनाक स्थितियों-ग्लूकोसोरिया से बचाने में सहायता करते हैं। कदन्न विटामिन ‘बी‘ का भी अच्छा स्रोत है, शरीर द्वारा कार्बोहाइड्रेट के पाचन के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
ऽ शारीरिक भार (मोटापा) कम करने तथा समग्र स्वास्थ्य हेतु गेहूं के आटे, सफेद चावल या पैक किए हुए स्नैक्स के स्थान पर कंदन अथवा अन्य साबुत अनाज खाने की सलाह दी जाती है। कदन्नों में रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं तथा इनमें चिपचिपाहट, जल धारण, जल अवोषण जैसी अनुपम भौतिक तथा रसायनिक विशेषताएं होती हैं, ये शारीरिक क्रिया व्यवहार को निर्धारित करती हैं।
ऽ गठिया के रोगी दवा के बिना शोथ (इनफ्लमेशन) का प्रबंधन कर सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए शोथ को नियंत्रित करने व उसकी रोकथाम करने में कदन्न प्रकृति का दिया हुआ वरदान है। कदन्नों में इस रोग के निवारण हेतु सक्षम ग्लूटेनमुक्त प्रोटीन पाया जाता है।
ऽ कदन्न, माइग्रेन व हृदयाघात के प्रभाव को कम करने में सक्षम मैग्नीशियम के बहुत अच्छे स्रोत हैं। कदन्नों में कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक फाइटिक अम्लयुक्त फाइटो रसायन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इनमें उपस्थित टैनिन भी कोलेस्ट्रॉल कम करने में लाभदायक है।
ऽ कदन्न किण्वन योग्य कार्बोहाइड्रेट (प्रतिरोधी स्टार्च) के समृद्ध स्रोत हैं, जिनका आतों के जीवाणुओं द्वारा लघु-शृंखला वसीय अम्लों में परिवर्तन किया जाता है और ये पेट के कैंसर से रक्षा करने में सहायता करते हैं। ज्वार में उपस्थित 3-डिऑक्सी एथॉक्सिनिन (3-डीएक्सए) के संबंध में यह माना जाता है कि ये पेट की कैंसर कोशिकाओं के प्रसार की रोकथाम करते हैं। यह पाया गया कि कदन्न कैंसर की शुरुआत व प्रसार की रोकथाम में प्रभावी हो सकते हैं।
ऽ कदन्नों में रेशे बहुतायत से पाए जाते हैं तथा इनका सेवन कब्ज को कम करता है। प्रतिदिन लगभग दो से तीन बार साबुत अनाज /कदन्न तथा करीब पांच बार फल व सब्जियों का सेवन करके पर्याप्त पथ्य रेशे प्राप्त किए जा सकते हैं।
ऽ पशुओं के प्रोटीन में संतृप्त वसा अम्ल उच्च मात्रा में पाए जाते हैं, जबकि कदन्न वसा-मुक्त प्रोटीन प्रदान करते हैं। इनमें उपस्थित अमीनो अम्ल एवं ट्रिप्टोफेन भूख को नियमित करते हैं, जिससे मोटापे का नियंत्रण होता है।

कदन्न अनाजों की ऊपज को पुनर्जीवित करने की आवश्यकताः

पोषण सुरक्षा हेतु:

कदन्न अनाज गेहूंँ और चावल की तुलना में सस्ते होने के साथ-साथ उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन तथा आयरन आदि की उपस्थिति के चलते पोषण हेतु बेहतर आहार होते हैं। मोटे अनाजों में कैल्शियम और मैग्नीशियम की प्रचुरता होती है। जैसे- रागी में सभी खाद्यान्नों की तुलना में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। इसमें लोहे की उच्च मात्रा महिलाओं की प्रजनन आयु और शिशुओं में एनीमिया के उच्च प्रसार को रोकने में सक्षम है।

कुपोषण भारत की गम्भीरतम समस्याओं में एक है फिर भी इस समस्या पर सबसे कम ध्यान दिया गया है। राष्ट्रीय परिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51प्रतिशत) अविकसित और सामान्य से कम वजन (49 प्रतिशत) के हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 14 अक्टूबर 2021 तक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। देश में कुल 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं।

एक अनुमान के अनुसार चालीस प्रतिशत छोटे बच्चों (स्कूल जाने के पूर्व) में आयरन की कमी के कारण रक्तहीनता (एनीमिक) से प्रभावित हैं। इसके अलावा विटामिन ‘ए‘ की कमी के कारण प्रतिवर्ष 250 से 500 बच्चों के अंधे हो जाने का अनुमान है। बाजरा तथा अन्य कदन्न के उपभोग से विश्व से रक्तहीनता की समस्या को प्रभावी रूप से दूर किया जा सकता है। रागी, कैल्शियम (300-350 मि.ग्रा. 1100 ग्राम) का प्रमुख स्रोत है तथा अन्य लघु कदन्न फॉस्फोरस व आयरन के अच्छे स्रोत हैं। इनमें लेसीथिन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है, जो तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करने हेतु उत्तम होती है। इनमें नियासिन, बी तथा फॉलिक अम्ल एवं कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम तथा जिंक की उच्च मात्रा पाई जाती है।

जलवायु अनुकूलन हेतु:

ये कठोर एवं सूखा प्रतिरोधी फसलें हैं जिनका वृद्धि काल (70-100 दिन) गेहूंँ या चावल (120-150 दिन ) की फसल की तुलना में कम होता है, इसके अलावा मोटे अनाजों (350-500मिमी) को गेहूंँ या चावल (600-1,200मिमी) की फसल की तुलना में कम जल की आवश्यकता होती है। ये गर्म तथा शुष्क जलवायु में जीवन निर्वाह करने में सक्षम हैं तथा जलवायु परिवर्तन का सामना करने में महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे।

कृषकों के आर्थिकी लिए उत्तमः

इनसे कृषकों की उपज में तीन गुना वृद्धि हो सकती है। इनके विविध उपयोग (खाद्य, चारा, ईंधन) हैं तथा सामान्यतः सूखे के समय जोखिम प्रबंधन नीति के अंतर्गत ये फसलें ही किसानों का साथ देंगी।
व्यवसाय/उद्यमिता के लिए उत्तमः भाकृअनुप-भारतीय कदन्न अनुसंधान के संस्थान ने कदन्नों पर कई खाद्य हे प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं तथा कई स्टार्टअप एवं उद्यमी इन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से कदन्नों के प्रचार-प्रसार एवं अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने में संलग्न हैं।

उपभोक्ता के लिए उत्तमः

कदन्न हमारी पोषण तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं (आयरन, जिंक, फॉलिक अम्ल, कैल्शियम तथा अन्य की कमी) को दूर करने में सहायता कर सकते हैं।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में सहायकः कदन्नों के अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं। अध्ययनों से यह सिद्ध होता है कि कदन्नों के सेवन से हृदय रोगों का खतरा कम होता है, मधुमेह की रोकथाम होती है, पाचनतंत्र अच्छा होता है, कैंसर का खतरा कम होता है, शरीर विषैले पदार्थों से मुक्त होता है, ऊर्जा का स्तर बढ़ता है तथा मांसपेशियां व तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है। इसके अलावा मेटाबॉलिक सिंड्रोम, पार्किंसन्स रोग जैसे कई अपक्षयी रोगों की रोकथाम होती है।

वर्तमान समय में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा तथा जीवनशैली संबंधी रोगों का सामना करने हेतु कदन्न अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। आज विविध प्रकार के प्रसंस्करण हेतु उपयुक्त कदन्नों की कई किस्में उपलब्ध हैं। इसके अलावा कदन्नों के स्वास्थ्य लाभ संबंधी वैज्ञानिक आंकड़े भी मौजूद हैं। हम दैनिक आहार में पौष्टिकता से भरपूर कदन्नों को शामिल करके जीवनशैली संबंधी रोगों/विकारों का सामना करने के लिए अपनी प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ा सकते हैं। अतः आज कदन्नों का उपयोग वैकल्पिक नहीं, बल्कि आवश्यक खाद्य के रूप में करने की आवश्यकता है।

कदन्न/ मोटे अनाज की खेती की मांगः

मोटे अनाज कभी गरीबी के प्रतीक माने जाते थे. लेकिन, सेहत को लेकर बढ़ती चिंता ने लोगों का ध्यान इस ओर खींचा है। अब यह अमीरों की पसंद बन गया है। स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा होने की वजह से ही मोटे अनाजों (ब्वंतेम ळतंपदे) ने गेहूं की हैसियत कम कर दी हैै। केंद्र सरकार मोटे अनाज की खेती पर जोर दे रही है, क्योंकि बढ़ती आबादी के लिए पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराने में यही अनाज सक्षम हो सकते हैं।

कदन्न अनाज पोषण सुरक्षा का सबसे बेहतरीन साधन है। सरकार इसके पोषक गुणों को देखते हुए इसे मिड डे मील स्कीम और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी शामिल कर रही है। पीएम श्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘मोटे अनाज की मांग पहले ही दुनिया में बहुत अधिक थी, अब कोरोना (ब्वतवदं) के बाद ये इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में बहुत प्रसिद्ध हो चुका है।

अप्रैल 2018 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा मोटे अनाजों को उनके ‘‘उच्च पोषक मूल्य‘‘ और ‘‘मधुमेह विरोधी गुणों‘‘ के कारण ‘‘पोषक तत्त्वों‘‘ के रूप में घोषित किया गया था। वर्ष 2018 को नेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (छंजपवदंस ल्मंत व िडपससमजे) के रूप में मनाया गया। खाद्य और कृषि संगठन ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने को मंजूरी दी है, ताकि दुनिया भर में इन पोषक अनाजों को थाली में वापसी के लिए जागरूकता बढ़ाई जा सके।

वेसे तो प्रत्येक व्यक्ति के सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार में मोटे अनाज का होना जरूरी है, लेकिन गर्भवती महिला व उनके शिशुओं के लिए बेहद जरूरी होता है। आहार विशेषज्ञों की माने तो गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान महिलाओं में कैल्शियम की कमी होने से बच्चों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान अपर्याप्त कैल्शियम लेने से मां का स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। इस दौरान मां की हड्डियों के कैल्शियम का इस्तेमाल भ्रूण के विकास और दुग्ध के निर्माण में होने लगता है। कैल्शियम की कमी के कारण माँ की संचरण प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है और उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा होती है।

मोटे अनाज के सेवन से माँ व शिशुओं की सेहत बेहतर बनी रहती है। आहार में कदन्न अनाजांें को शामिल करके कुपोषण की रोकथाम की जा सकती है। बेबी फूड बनाने में भी कदन्न अनाजांें का इस्तेमाल होता है। बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने में कदन्न अनाजांें अहम भूमिका निभा सकता है।


Authors:

डा. फूलकुमारी1 एवं डा. मो. मुस्तफा2

1विषय वस्तु विशेेषज्ञ (गृहविज्ञान) , 2 वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष,

कृषि विज्ञान केन्द्र, कुरारा, हमीरपुर, प्रसार निदेशालय,

बाँदा कृषि एवं प्रौद्य®गिक विश्वविद्यालय बाँदा (उ०प्र०)

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