Seed Production Techniques of Sorghum and Millet

ज्वार की बीज उत्पादन तकनीक

ज्वार दुनिया में पाँचवें नम्बर का खाद्यान है  ज्वार को 55 प्रतिशत रोटी व दलिया के रूप में तथा पौधे को जानवरों के खाने के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। अमेरिका में 33 प्रतिशत ज्वार दाने को जानवरों के खाद्यान के रूप में प्रयोग किया जाता है।

भारत वर्ष में 1970 में 9 मि. टन ज्वार पैदा होती थी जो 1980 में बढ़कर 12 मि. टन पहुँच गई तथा 1990 में इतनी ही पैदावार स्थिर रही जो 2006 तक स्थिर रही लेकिन इसका क्षेत्रफल काफी कम हो गया। क्षेत्रफल कम होने के बावजूद पैदावार में कमी न आने का कारण उन्नत किस्में व तकनीकी रही।

भारत में ज्वार 8.7 मि.है. क्षेत्रफल में जिसमें 3.9 मि.है. खरीफ में तथा 4.8 मि.है. रबी मौसम में उगाई जाती है। दुनिया में ज्वार के अन्तर्गत, कुल क्षेत्रफल का 20 प्रतिशत क्षेत्र भारत में आता है। खरीफ के मौसम में उत्पादकता 1345 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा रबी में 480 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर होती है। अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का योगदान 0.7 मि.है. से बढ़कर 6.5 मि.है. हो गया है। इसके बावजूद 80 मि.टन हरे चारे की तथा 660 मि.टन सूखे चारे की कमी प्रति वर्ष रहती है।


ज्वार की कि‍स्‍म पूसा चरी - 9 की  उंचाई 15 से 16 फुट

ज्वार, पूसा चरी - 9, उंचाई 15 से 16 फुट

विकसित तकनीकि एवं इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जिससे बीज रिप्लेसमेंट को 15-20 प्रतिशत से आगे बढा़या जा सके। तभी उत्पादन व उत्पादकता दोनों को बढ़ाया जा सकेगा। किसान नई किस्मों का बीज स्वयं के लिये बना सके यही उद्देश्य इस लेख में दिया गया है।

बीज उत्पादन तकनीकि

बीज उत्पादन हेतु, दक्षता, पुष्पज्ञान एवं लक्षण का ज्ञान आवश्यक है। निम्न बातों का ध्यान रखें तो उत्तम बीज का उत्पादन किया जा सकता है।

खेत का चुनाव: ताकि तैयारी समय से हो सके

किस्म का चुनाव: अपने क्षेत्र के अनुसार

बीज की गुणवत्ता : आधार बीज या प्रमाणित बीज

बीजोपचार : कैपटान या कैपटाफ 2 ग्रा. प्रति किग्रा. बीज

बुआई का समय: जून के उत्तरार्ध या जुलाई के आरम्भ मे

बीज की दर: 12 से 15 किग्रा. प्रति हेक्टेयर

खाद: नेत्रजन 75 से 80 किग्रा. आधी मात्रा बुआई से पहले तथा आधी पहले पानी के बाद फास्फोरस 30-40 किग्रा. बुआई पर पोटाश 25-30 किग्रा. बुआई पर

सिंचाई: बुआई के बाद जमाव आने के 20-25 दिन बाद पहला पानी दें तथा दूसरा पानी आवश्यकता पड़ने पर या फूल आने पर दें।

पृथक्करण दूरी प्रजनक बीज हेतु दूसरे खेत से 400 मी. तथा प्रमाणित बीज के लिए 200 मी. की दूरी अवश्य रखें। लाईन से लाईन की दूरी 40-50 से.मी. रखें।

खरपतवार नियन्त्रण: खरपतवार से बचाव करने हेत बुआई से पहले 0.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर एट्राजिन स्प्रे करें। इन्टर कल्चर के द्वारा भी खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है।

मुख्य बीमारियाँ:

मधुमिता (शूगरी डिसीज़): फूल आने की अवस्था से पहले (बूट लीफ स्टेज) पर 0.2 प्रतिशत जीरम का पाँच दिन के अन्तराल पर दो बार स्प्रे करने से इस बीमारी से बचाव हो जाता है।

हनी डयू: बाली में यदि हनी डयू दिखाई दे तो उसे बाहर निकाल कर नष्ट कर दें। 

पत्ती पर धब्बे (लीफ स्पाट): डाइथेन जेड-78 0.2 प्रतिशत का दो बार15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करने से बचाव हो जाता है।

मुख्य कीट

तना छेदक : प्रभावित पौधे को बाहर निकाल दें तथा एण्डोसल्फान या कार्बेरिल का 4 प्रतिशत का घोल बनाकर जमाव के 20 दिन बाद 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।

तना मक्खी : बीज को 5 प्रतिशत कार्बोफ्यूरान से उपचारित कर बोने से यह मक्खी नहीं लगती है। फोरेट दानेदार 1.5 ग्रा. प्रति वर्गमीटर के हिसाब से डालने से भी बचाव हो जाता है।

सिट्टे की मक्खी : कार्बेरिल डस्ट 20 किग्रा. प्रति है. से बचाव किया जा सकता है।

दीमक : यदि खेत लम्बे समय से सूखे से प्रभावित है 25 किग्रा. सल्फर प्रति है. बचाव हेतु डालें।

चेपा : मेलाथियान 50 मिली. 50 ली. पानी प्रति है. स्प्रे करने से चेपा का नियन्त्रण हो जाता है। 

चूहा : फूल आने की अवस्था में जिंक फास्फाईड की गोली अवश्य डालें ताकि चूहों से बचाव किया जा सके।

रोगिंग (अवाँछित पौधे निकालना) 

परागकण झड़ने से पहले किसी भी किस्म के अवाँछित पौधे निकाल देने चाहिए। गुणों के आधार पर उनकी पहचान की जा सकती है। बीमारी ग्रस्त पौधे भी अवश्य निकाल दें। किसी पौधे को शक के आधार पर बिल्कुल न छोड़ें।

कटाई एवं गहाई 

फसल अच्छी तरफ पकने पर ही काटें। बीमारी ग्रस्त पौधे निकल गये हों यह सुनिश्चित कर लें। कटाई के बाद एक सप्ताह तक फसल को फर्श पर सुखायें। उसके बाद थ्रेशर से गहाई करें। स्टोर करने से पहले बीज में नमी ज्यादा न हो।

पैदावार 

18-20 कु. प्रति है.

किस्मे 

पूसा चरी - 6-एक काट पूसा चरी - 9-एक से दो सम्भव पूसा चरी - 23-दो काट पूसा चरी - 615-एक काट पूसा चरी -1003-एक से दो सम्भव

बाजरे की बीज उत्पादन तकनीकि 

बाजरे के उत्पादन में भारत का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत में 9.3 मि.है. क्षेत्रफल में बाजरे का उत्पादन किया जाता है। जिससे 8.3 मि. टन उत्पादन होता है। 1980 के बाद क्षेत्रफल में गिरावट आई है तथा उत्पादन व उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई है। हाईब्रिड बाजरे का क्षेत्रफल 3.0 मि.है.है। बाजरा एशिया तथा अफ्रीका में खाद्य व चारा फसल है जबकि अमेरिका में केवल चारे के रूप में उगाई जाती है। बाजरे का उत्पादन बढ़ाने के लिये संकर तकनीकि मील का पत्थर साबित हो सकती है।

बाजरे की उपलब्धता टिलरींग, वृद्धि, हरा तथा सूखा चारा, रेटूनीग तथा सूखे को सहन करने की क्षमता के कारण इसको जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। दाने के अलावा इसकी कड़वी का प्रयोग किया जाता है। इतना सब हेाने के बावजूद बाजरे का उत्पादन कम क्यों है? इसके लिये अच्छी किस्म का बीज उपलब्ध न होना, उन्नत तकनीकि की जानकारी न होना, किसानों द्वारा अपना बीज न बनाना तथा बाजरे की खेती कम उपजाऊ जमीन पर करना मुख्य कारण है।


Millet crop in field

बाजरे का खेत 

बाजरा का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीकि अपनाने की आवश्यकता है जिसमें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

बीज उत्पादन तकनीकि

भूमि का चुनाव : ताकि तैयारी समय से हो सके

किस्म का चुनाव : अपने क्षेत्र के अनुसार

बीज की गुणवत्ता : आधार बीज या प्रमाणित बीज

बीज का उपचार : कैपटान या कैपटाफ 2ग्रा.प्रति किग्रा.बीज

बुआई का समय : बीज उत्पादन हेतु जुलाई मध्य सबसे उपयुक्त समय है।

बुआई के तरीके : 1. सीधी बुआई 2. रौपाई

बीज की दर :

सामान्‍य किस्‍म सीधी बुआई 2.5 किग्रा.प्रति है
संकर किस्‍म सीधी बुआई ए लाईन - 1.5 किग्रा.प्रति है ब लाईन - 0.450 किग्रा.प्रति है.
संकर किस्‍म रौपाई ए लाईन - 400-600ग्रा.प्रति है ब लाईन - 200-300 ग्रा.प्रति है.

पौध औसत: 2 : 4 (नर : मादा)

पौधे व लाईन में अन्तराल: पौधे से पौधा - 15 सेमी. लाईन से लाईन - 60 सेमी.

खाद की मात्रा: 100 किग्रा. नेत्रजन आधी मात्रा बुआई के समय आधी पहले पानी के बाद प्रति है.
60 किग्रा. फास्फोरस बुआई के समय
40 किग्रा. पोटाश बुआई के समय

सिंचाई: आवश्यकतानुसार पहली सिंचाई जमाव के 20 से 25 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई बाली आने के समय यदि आवश्यक हो

अलगाव दूरी : आधार व प्रजनक बीज -1000 मी.

 प्रमाणित बीज हेतु-400 मी.

खरपतवार नियन्त्रण: बुआई से पहले एट्राजिन 0.5किग्रा.प्रति है.
निराई गुड़ाई

संकर बीज उत्पादन तकनीकि

संकर बीज उत्पादन हेतु लाईन ए मादा जो नर स्ट्राईल होती है का क्रास लाईन ब नर जो नर फरटाईल होती है से कराया जाता है। इस तरह से हमारा लाईन ए मादा का बीज तैयार किया जाता है। संकर बीज उत्पादन में इसे लाईन ए का मेन्टीनेंस कहते हैं तथा संकर बाजरा बीज उत्पादन में मादा लाईन की तरह ही इसका उपयोग करते हैं। नर लाईन का बीज अलग से उगाया जाता है जो अलग किस्म होती है।

संकर बीज उत्पादन में नर की दो लाईन व मादा की चार लाइनें लगाते हैं तथा खेत के चारों तरफ भी चार लाईने नर की लगाई जाती हैं ताकि मादा को अच्छी मात्रा में पराग कण मिलता रहे। जिससे संकर बीज उत्पादन भरपूर हो सके।

उदाहरण के तौर पर बाजरा की संकर किस्म पूसा-23 का बीज उत्पादन करने हेतु हमें पहले 841 ए का बीज उत्पादन करना होगा फिर इसे नर डी- 23 से क्रास कराना होगा तब पूसा-23 संकर बीज उत्पादन होगा।

बाजरे की कि‍स्‍म पूसा-23 का संकर बीज उत्‍पादन


पूसा-23 का संकर बीज उत्‍पादन

बीमारियाँ व उनका नियन्त्रण

रस्ट या जंग
सितम्बर में इस बीमारी के आने की संभावना अधिक होती है जब तापक्रम उदार हो।
♦ लक्षण लाल रंग के पुस्टयूल पत्ती के दोनों सतह पर दिखाई देते हैं तथा पत्तियाँ समय से पहले सूख जाती हैं।
♦ नियन्त्रण खरपतवार नियन्त्रण तथा रस्ट प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

अरगट

इस बीमारी से 70प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। बीज भी सक्रंमित हो जाता है।
♦ लक्षण कवक पहले फूल को सक्रंमित करके अंडाश्य में लाल रंग का चिपचिपा पदार्थ जिसे हनी डयू कहते हैं पत्तियों पर टपक जाता है। जिससे लम्बी गाढ़े रंग की रचनायें बनती हैं। जो बाद में काली हो जाती हैं।
♦ नियंत्रण स्क्लेरेसिया मिट्टी एवं बीज में उपस्थित होते हैं जो उपयुक्त वातावरण मिलने पर विकसित हो जाते हैं।

डाऊनी मिल्डयू

पौधा नीचे से पीला पड़ जाता है। 
अलैंगिक रचनायें बन जाती हैं वृद्धि रूक जाती है तथा बाली न आकर पत्ती जैसी रचनायें बन जाती हैं।

साँस्कृतिक नियंत्रण : गहरी जुताई ,  सक्रंमित बीज को अलग करना
रासायनिक नियंत्रण: एक उपयोगी तथा किफायती कवकनाशी का उपयोग तथा कवक प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।

खरपतवार नियन्त्रण: सैन्क्रस सिलियरिंस व पैनिकम एन्टीडोटेल नामक खरपतवार पोषित करते हैं इन्हें अवश्य निकाल दें।

बाजरे के कीट एवं उनका उपचार

दीमक: यदि खेत असिंचित है तो 25किग्रा.गन्धकप्रति है. अवश्य प्रयोग करें।

एफिड चेपा: 50 मिली. मेलाथियान 50ली. पानी में स्प्रे करें।

चूहा: चूहा मारने की गोलियाँ जिंक फास्फाईड बाली आने पर अवश्य खेत में डालें।

रोगिंग 

परागकण झड़ने से पहले अवाँछित पिछली फसल के दूसरी किस्म के तथा रोग ग्रस्त पौधे अवश्य निकाल दें। गुणों के आधार पर इन्हें दूर से पहचाना जा सकता है।

कटाई एवं गहाई

  • कटाई से पहले सुनिश्चित कर लें कि फसल पूरी तरह पक गई है
  • अवाँछित पौधे रोगग्रस्त पौधे निकाल दिये गये हैं।
  • ए लाईन के मेन्टेनस में प्रयुक्त ब लाईन को काटकर अलग कर लें तब ए लाईन की अलग से कटाई कर बीज निकालें।
  • संकर बीज उत्पादन हेतु प्रयुक्त नर लाईन को निकाल कर दूर कर दें तब मादा लाईन को बीज हेतु कटाई करें जो संकर बीज होता है।
  • फर्श पर सावधानी पूर्वक नर व मादा लाईनों को अलग सुखाये तब बीज निकालें।
  • थ्रैशर की सफाई सुनिश्चित करें।
  • बीज को भंडारण के समय परख लें ताकि नमी 10प्रतिशत से अधिक न हो।

बीज की उपज: 20 कु.है.

किस्में: डी-23, संकर ,  पूसा - 605 ( एम एस 841 ए X पी पी एम आई - 69),  पूसा - 322 (एम एस 841ए X पी पी एम आई - 301),  पूसा - 23 (एम एस 841ए X डी-23 )


Authors:
डा. राजकुमार, प्रशांत बाबू एच एवं सुरेश राणा
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन, करनाल -132001