विश्व के वन उपवन में अनगिनत पेड पैाधे और वनस्पतियां उत्पन्न होती है। ग्वारपाठा भी ऐसी ही एक वनैौषधि है। प्राचीन काल में ग्वारपाठा धृतकुमारी के नाम से जाने वाला एक कांटेदार पौधा है। आयुर्वेद में इसे धृतकुमारी की उपाधि मिली हुई है तथा महाराजा का स्थान दिया गया है। औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी भी कहा गया है। ग्वारपाठा की 200 से अधिक जातियां पायी जाती है जो रसोन कुल (Liliaceae Family) की वनस्पति है और इसका उदगम स्थल उत्तरी अफ्रीका माना जाता है। एलोवेरा सेहत से भरी खूबियों के साथ ही विटमिन, मिनरल्स, अमीनो एसिड और एंजाइम्स जैसी कई खूबियों से भरपूर होता है। इस कारण यह एक पौधा कई तरह की बीमारियों को ठीक करने में मददगार होता है। औषधीय जड़ी-बूटी के रूप में उपयोग किए जाने के कारण, यह शरीर को अंदर से पोषण देता है - यह पोषक तत्वों से भरपूर है, पाचन में सुधार करने में सहायक है और यहां तक कि प्रतिरक्षा को भी बढ़ाता है।
एलोवेरा की खेती:
भारत के सभी हिस्सों में एलोवेरा की खेती की जाती है। मुख्य तौर पर मुंबई, गुजरात और दक्षिण भारत में इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती बलुई और अच्छी तरह से सूखी जमीन पर की जाती है। एलोवेरा की खेती के लिए उष्ण जलवायु अच्छी रहती है। इसकी खेती आमतौर पर शुष्क क्षेत्र में न्यूनतम वर्षा और गर्म आर्द्र क्षेत्र में सफलतापूर्वक की जाती है। यह पौधा अत्यधिक ठंड की स्थिति के प्रति बहुत संवेदनशील है।
बात करें इसके लिए मिट्टी या भूमि की तो इसकी खेती रेतीली से लेकर दोमट मिट्टी तक विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। रेतीली मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी होती है। इसके अलावा अच्छी काली मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। इसकी बिजाई 6-8' के पौध द्वारा किया जाना चाहिए। इसकी बिजाई 3-4 महीने पुराने चार-पांच पत्तों वाले कंदो के द्वारा की जाती है। एक एकड़ भूमि के लिए करीब 5000 से 10000 कदों/सकर्स की जरूरत होती है।
पौध की संख्या भूमि की उर्वरता तथा पौध से पौध की दूरी एवं कतार से कतार की दूरी पर निर्भर करता है। एलोवेरा की खेती को बंजर जमीन में भी उगाया जा सकता है. हालांकि फसल से ज्यादा जैल या गूदा इकट्ठा करने के लिये समय-समय पर सिंचाई करना बेहद जरूरी है. एलोवेरा के कंदों यानी जड़ों की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है|
भारत में ग्वारपाठा के नाम से मशहूर एलोवेरा की खेती के साथ-साथ प्रसंस्करण को बढ़ावा दिया जा रहा है. बाजार में एलोवेरा से बने जैल, जूस और कैप्सूल आदि की काफी मांग है. ऐसे में किसान इसकी खेती के साथ-साथ इसकी प्रसंस्करण यूनिट लगाकर दोगुना आमदनी अर्जित कर सकते हैं. जहां एलोवेरा से कई उत्पाद बनाये जाते हैं|
कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट हो या फिर आयुर्वेदिक दवा, एलोवेरा का इस्तेमाल खूब होता है. इसी वजह से आज हर्बल व कॉस्मेटिक उत्पाद व दवाएं बनाने वाली कंपनियां इसे काफी खरीदती हैं. यदि एलोवेरा की व्यवसायिक खेती की जाए तो इससे अच्छी कमाई की जा सकती है|
एलोवेरा की कई किस्में हैं, जिसमें इंडिगो सबसे आम है जोकि आमतौर पर शहरों में लोगों के घरों में देखने को मिल जाता है. लेकिन इसकी एलोवेरा बारबाडेंसिस किस्म किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है. इसकी पत्तियां बड़ी होती हैं और इसमें से ज्यादा जेल निकलता है. इसके अतिरिक्त कई और भी किस्में हैं जिनकी खेतों किसानों के द्वारा की जाती है| रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में इसे व्यापक तौर पर उगाया जाता है।ग्वारपाठा या एलोवेरा के पौधे 2 से 3 फुट ऊंचे होते है।
जड के ऊपर कंद से पत्ते निकलते है जो एक फीट तक लंबे होते है। पत्ते शुरू मे अधिक चौडे होते है और ऊपर की ओर पतले हो जाते है। एलोवेरा के पत्ते के आगे का भाग नुकीला होता है। इसके किनारों पर हल्के कांटे होते हैं। पत्तों के भीतर की ओर सफेद निशान होते है।
पत्तों के अंदर घी की तरह चमकदार गूदा होता है।जब पौधे पुराने हो जाते हैं तो उनमे लंबे आकार का पुष्प निकलता है। इस पर लाल व पीले रंग के फूल आतें हैं।
फरवरी- मार्च के माह में पौधों पर फूल निकलते हैं। इसके पत्तो को काटने पर पीले रंग का तरल द्रव निकलता है । जो शीतल होने पर जम जाता है। इस तरल द्रव को कुमारीसार (एलुवा) कहा जाता है। भारत के अलग.अलग प्रदेशों में एलोवेरा की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। परंतु मुख्यतया दो प्रजातियों का चिकित्सा में विशेष तौर पर प्रयोग किया जाता है जो ये हैं.- Aloe vera धृतकुमारी और Aloe abyssinica (पीतपुष्प कुमारी)|
अन्य भाषाओं में एलोवेरा के कई नाम है :
अन्य भाषाओं में एलोवेरा को कई नामों से जाना जाता है जैसे हिन्दी – घीकुआँर, ग्वारपाठा, घीग्वार अँग्रेजी – एलो वेरा (Aloe vera), कॉमन एलो (Common aloe), बारबडोस एलो (Barbados aloe), मुसब्बार (Musabbar), कॉमन इण्डियन एलो (Common Indian aloe) संस्कृत – कुमारी, गृहकन्या, कन्या, घृतकुमारी कन्नड – लोलिसर (Lolisar), गुजराती – कुंवार (Kunwar), कड़वी कुंवर (Kadvi kunvar), तमिल – कत्तालै (Kattale), अंगनी (Angani), अंगिनी (Angini),तेलगु – कलबन्द (Kalband), एट्टाकलाबन्द (Ettakalaband) बंगाली – घृतकुमारी (Ghritkumari),नेपाली – घ्यूकुमारी (Giukumari),पंजाबी – कोगर (Kogar), कोरवा (Korwa),मलयालम – छोट्ठ कथलाइ (Chotthu kathalai),मराठी – कोरफड (Korphad), कोराफण्टा (Koraphanta),अरबी – तसाबार अलसी (Tasabrar alsi), मुसब्बर (Musabbar),परसियान् – दरखते सिब्र (Darkhate sibre), दरख्तेसिन (arkhteesinn)
ग्वारपाठा में विद्यमान पोषक तत्व
पोषक तत्व |
मिली ग्राम प्रति औंस |
पोषक तत्व |
मिली ग्राम प्रति औंस |
ग्लूटानिक अम्ल |
1.04 |
फास्फोरस |
0.90 |
ग्लाइसिन |
0.41 |
ग्लाइसिन |
0.05 |
लइसिन |
1.21 |
लइसिन |
0.10 |
अमिनो अम्ल |
7.10 |
अमिनो अम्ल |
0.10 |
हिस्टिडाइन |
0.41 |
हिस्टिडाइन |
5.21 |
वैलीन |
0.41 |
वैलीन |
0.80 |
टाइरोसिन |
0.41 |
टाइरोसिन |
1.01 |
थ्रियोनीन |
1.81 |
थ्रियोनीन |
0.81 |
आइसो ल्यूसिन |
0.41 |
आइसो ल्यूसिन |
0.50 |
कैल्शियम |
14.32 |
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कैसे काम करती है एलोवेरा ?
हमारे शरीर में कुल 22 अमीनों अम्लों होतें है जबकि ग्वारपाठा में 20 अमीनों अम्ल विद्यमान होतें है। इन अमीनों अम्लों की उपस्थिति से शरीर में कोशिकाओ एंव ऊतकों का निर्माण होता है। ग्वारपाठा के सेवन से रक्त में मिले कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है। एलोवेरा जूस में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम, क्रोमियम जैसे खनिज और विटामिन ए, ई, सी, ई और विटामिन बी-12 जैसे विटामिन की मात्रा अधिक पायी जाती है। ग्वारपाठा में विद्यमान कार्बेनिक अम्ल शरीर को हानिकारक तत्वों से सुरक्षित रखते है।
एलोवेरा का उपयोग शीर्ष रूप से भी किया जा सकता है, यानी इसके जेल का उपयोग किसी की त्वचा, विशेष रूप से चेहरे और बालों को निखारने के लिए किया जा सकता है। एलोवेरा जेल में विटामिन सी और ई, बीटा-कैरोटीन भरपूर मात्रा में होता है। इसलिए इसमें एंटी-एजिंग गुण होते हैं। इसमें रोगाणुरोधी गुण भी होते हैं और यह सूजन-रोधी है।
यह त्वचा के दाग-धब्बों को मिटाने और उम्र की रेखाओं को कम करने में भी मदद करता है। इसके अतिरिक्त, यह शरीर में कोलेजन के उत्पादन और त्वचा की लोच को बढ़ाने में मदद करता है।एलोवेरा जूस में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम, क्रोमियम जैसे खनिज और विटामिन ई, विटामिन सी और विटामिन बी-12 जैसे विटामिन की मात्रा अधिक पायी जाती है।
एलोवेरा में घावों को भरने वाले गुण होते हैं और त्वचा पर हल्की खरोंच या कटने पर इसको लगाने से यह प्रभावित हिस्से में खून के प्रवाह को बढ़ाकर घावों को भर देती है। इसमें पाए जाने वाले एंटी-बैक्टीरियल गुणों के कारण यह त्वचा की सूजन को कम करती है साथ ही बैक्टीरिया या वायरस को बढ़ने से रोकती है।
ग्वारपाठा या एलोवेरा का उपयोग
विशेषज्ञों ने अनेक परिक्षणों द्वारा ज्ञात किया है कि ग्वारपाठे का गूदा यदि लंबे समय तक सेवन में लाया जाये तो शारीरिक शक्ति विकसित होती है। मनुष्य दीर्घकाल तक स्वस्थ व निरोग रहता है । आयुर्वेद के अनुसार एलोवेरा स्निग्ध, पिश्चिल और शीत होता है। इसलिए पित्त दोष से जुड़ी त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज में यह बहुत उपयोगी है
एलोवेरा में कई तरह के औषधीय गुण होने के कारण यह त्वचा की देखभाल के अलावा घावों को भरने में और बालों की देखभाल में भी मदद करती है। आमतौर पर एलोवेरा के जूस, पत्तियों के रस और पत्तियों के गूदे का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। इसे बाज़ार से खरीदने की बजाय आप अपने घर पर ही एलोवेरा का पौधा लगा सकते हैं।
एलोवेरा में पाए जाने वाला एंथ्राकिनोन एक प्राकृतिक लैक्सेटिव की तरह काम करता है और आंतों में पानी की मात्रा बढ़ा देता है। जिससे मलत्याग करने में आसानी रहती है। पेट से जुड़ी कई समस्याओं में एलोवेरा का सेवन करना लाभकारी होता है। अधिकांश लोग एलोवेरा का इस्तेमाल सिर्फ त्वचा संबंधी समस्याओं के लिए ज्यादा करते हैं लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि आप इसका इस्तेमाल वजन कम करने, बाल बढ़ाने या कब्ज़ दूर करने जैसी अन्य समस्याओं में भी कर सकते हैं। इसके प्रमुख उपयोग निम्न है-
- शरीर में रक्त का अभाव होने से शारीरिक निर्बलता बढती है। शरीर मे कैल्शिम की कमी से नाखुनों का वर्ण सफेद दिखाई देने लगता है। ग्वारपाठे का गुदा खाने तथा रस के सेवन करने से शरीर मे कैल्शिम की आपूर्ति होती है। शरीर मे कैल्शिम बढने से रक्त व्रद्धि होने पर नाखुनों की लालिमा बडती है।
- एलोवेरा की हेल्थ प्रॉपर्टीज बॉडी में पनपनेवाली कैंसर सेल्स को डिऐक्टिवेट करती हैं। एलोवेरा में एमडिन, एलॉइन, एंथ्रेसिन होते हैं, ये बॉडी में मॉलेक्यूल्स के साथ मिलकर, कैंसर की कोशिकाएं पनपने की संभावना होती है, उस पार्ट में मॉलेक्यूल्स के ऐक्टिवेशन और इनऐक्टिवेशन का काम करती हैं। यानी उन मॉलेक्यूल्स और सेल्स को पनपने से रोकते हैं, जो भविष्य में कैंसर का कारण बन सकते हैं।
- ग्वारपाठा के रस में कपडे का टुकडा भिगोकर जले अंग पर लगाने जलन और पीडा कम हो जाती है। जलने से पडे फफोले भी ग्वारपाठा के रस की वजह से नहीं पडते है।ग्वारपाठा का पत्ता काटकर छिलका उतारकर उसका ताजा गूदा निकालकर गूदे को जले हुए भाग पर 30 मिनट तक लगाने से जलन और पीडा नष्ट होती है। इससे जख्म भी नहीं बनते है।
- ग्वारपाठा के 10 ग्राम रस मे हल्दी का 5 ग्राम चूर्ण मिलाकर मस्तक पर लेप करने से सिरदर्द का निवारण होता है।
- ताजे ग्वारपाठा का गूदा निकालकर मस्तक पर इसका लेप करने से आधा सीसी दर्द नष्ट होता है।
- 3-4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने पर दिन भर शरीर में शक्ति व चुस्ती-स्फूर्ति बनी रहती है।
- कान दर्द में भी एलोवेरा से लाभ मिलता है। एलोवेरा के रस को हल्का गर्म कर लें। जिस कान में दर्द हो रहा है, उसके दूसरी तरफ के कान में दो-दो बूंद टपकाने से कान के दर्द में आराम मिलता है।
- ग्वारपाठे के रस में शहद मिलाकर दांतो और मसूडो पर मलने से दांत और मसूडे सुरक्षित रहते है।
- घाव भरने की प्रक्रिया एक जटिल जैविक प्रक्रिया है और ऊतक पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा देना चिकित्सा हस्तक्षेप का मुख्य उद्देश्य है। त्वचा पर घाव अलग-अलग कारणों से होते हैं जैसे कि जलन, धमनी रोग, सर्जरी और आघात।घाव भरना एक गतिशील प्रक्रिया है जो तीन चरणों में होती है। पहला चरण सूजन, जमाव और ल्यूकोसाइट घुसपैठ है। दूसरे चरण में मृत ऊतक को हटाना शामिल है और प्रसार के तीसरे चरण में उपकला पुनर्जनन और रेशेदार ऊतक का निर्माण शामिल है।एलोवेरा पर कई अध्ययन किए गए हैं और त्वचा के घावों की रोकथाम और उपचार में इसे प्रभावी दिखाया गया है।
- एलोवेरा के सेवन से वजन कम करने में भी मदद मिलती है। यह शरीर के मेटाबोलिज्म को बढ़ा देती है जिससे वजन कम करने में आसानी होती है। इसके लिए एक या दो चम्मच एलोवेरा के जूस को अपने पसंदीदा फल के जूस में मिलाएं और खाना खाने से 15 मिनट पहले इसका सेवन करें। एलोवेरा का सेवन एक या दो हफ़्तों से ज्यादा अवधि के लिए नहीं करना चाहिए। इसलिए सभी को यह सलाह दी जाती है कि किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह ज़रुर लें।
त्वचा संबंधी समस्याओं में ग्वारपाठे का प्रयोग
आज के समय में हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है और खूबसूरती बढ़ाने के लिए लोगों द्वारा तमाम तरह के उपाय अपनाएं जा रहे हैं। पिछले कुछ सालों से त्वचा की देखभाल के लिए आयुर्वेदिक औषधियों का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है और इसके लिए एलोवेरा का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जा रहा है।
मुहांसे दूर करने में सहायक :एलोवेरा का चेहरे पर उपयोग करना सबसे ज्यादा प्रचलित है। इसमें सूजन रोधी गुण होते हैं जिस वजह से यह मुहांसों के इलाज में काफी असरदार है। इसमें मौजूद एंजाइम त्वचा की नमी को सील कर देते है और उनके ऊपर एक एंटीबैक्टीरियल परत बना देते हैं जिससे किसी भी तरह के बैक्टीरियल संक्रमण से त्वचा का बचाव होता है।
चेहरे के मुहांसे और दाग धब्बे दूर करने के लिए एलोवेरा जेल को रोजाना दिन में 2-3 बार मुहांसों पर लगाएं। इस्तेमाल से पहले इसकी थोड़ी सी मात्रा त्वचा पर लगाकर जांच लें कि कहीं आपको इससे किसी तरह की एलर्जी तो नहीं है उसके बाद इसका नियमित उपयोग करें। जिन लोगों की त्वचा अतिसंवेदनशील है उन्हें लम्बी अवधि के लिए एलोवेरा के इस्तेमाल से परहेज करना चाहिए।
बालों को बढ़ाने में मददगार :एलोवेरा का इस्तेमाल बालों को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। एलोवेरा में एक ऐसा एंजाइम पाया जाता है जो सिर की त्वचा को तमाम तरह की बीमारियों से बचाती है जिससे बालों का झड़ना कम हो जाता है। यह प्राकृतिक रुप से नए बालों के बनने में और पहले से मौजूद बालों के विकास में मदद करती है। यह एक आयुर्वेदिक औषधि है जो सिर की त्वचा में मौजूद बालों की जड़ों में रक्तप्रवाह बढ़ा देती है जिससे बाल काले, घने, लंबे एवं मजबूत होते है।
रुसी से छुटकारा :सर्दियों के दिनों में कई लोग बालों में रुसी की समस्या से परेशान रहते हैं। ऐसे में आप एलोवेरा जेल का इस्तेमाल करके रुसी से छुटकारा पा सकते हैं। इसके लिए बालों की जड़ों में एलोवेरा जेल लगाएं या एलोवेरा युक्त शैम्पू का प्रयोग करें।
स्ट्रेच मार्क्स हटाने में सहायक :एलोवेरा का इस्तेमाल आप स्ट्रेच मार्क्स को हटाने के लिए भी कर सकते हैं। त्वचा के जिस हिस्से में स्ट्रेच मार्क्स हैं वहां एलोवेरा जेल लगाएं और कुछ देर तक मसाज करें। 15 मिनट तक इसे सूखने दें और फिर इसके बाद सादे पानी से धो लें। बेहतरीन परिणाम पाने के लिए दिन में दो बार इसका प्रयोग करें।
इसके अतिरिक्त त्वचा की तैलीयता को कम करने हेतु ओैर त्वचा की नमी का बनाए रखने हेतु ग्वारपाठा का रस अति उपयोगी है ।
एलोवेरा का सेवन कैसे और कितनी मात्रा में करें?
एलोवेरा को कई तरीके से इस्तेमाल किया जाता है और सबकी मात्रा भी अलग अलग होती है-
- एलोवेरा जेलका इस्तेमाल त्वचा की देखभाल के लिए कर रहे हैं तो दिन में 2-3 बार इसका प्रयोग करें।
- एलोवेरा जूसका सेवन कर रहे हैं तो दिन में 10-20 एमएल का सेवन करना पर्याप्त है।
- प्रतिदिन 1-3 ग्रामएलोवेरा की पत्तियों के गूदे का सेवन पर्याप्त माना जाता है।
- कमर दर्द से परेशान रहते हैं तो एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदा ले सकते हैं। गेंहू का आटा, घी और एलोवेरा जेल (एलोवेरा का गूदा इतना हो जिससे आटा गूंथा जाए) लेकर आटा गूंथ लें। इससे रोटी बनाएं। रोटी का चूर्ण बनाकर लड्डू बना लें। रोज 1-2 लड्डू को खाने से कमर दर्द ठीक होता है। एलोवेरा जेल कमर दर्द में दर्दनिवारक दवा की तरह काम करता है।
- जोड़ो के दर्द में भी एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। 10 ग्राम एलोवेरा जेल नियमित रूप से सुबह-शाम सेवन करें। इससे गठिया में लाभ होता है।
- घृतकुमारी का गूदा घावों को भरने के लिए सबसे उपयुक्त औषधि है। रेडिएशन के कारण हुए गंभीर घावों पर इसके प्रयोग से बहुत ही अच्छा फायदा मिलता है।
- आग से जले हुए अंग पर एलोवेरा के गूदे को लगाने से जलन शांत हो जाती है। इससे फफोले नहीं होते हैं।
- एलोवेरा के रस को तिल और कांजी के साथ पका लें। इसका लेप करने पर घाव में लाभ होता है। केवल एलोवेरा के रस को पकाकर घाव पर लेप करने से भी लाभ होता है।
एलोवेरा के फायदे और नुकसान दोनों ही हैं, इसलिए फायदों के चक्कर में घृतकुमारी का जरूरत से ज्यादा उपयोग न करें। सीमित और संतुलित मात्रा में ही एलोवेरा का उपयोग करें। जरूरत हो तो एलोवेरा का उपयोग करने से पहले विशेषज्ञ या डॉक्टरी सलाह भी जरूर लें। इस प्रकार किसान भाई एलोवेरा की खेती के साथ-साथ इसका प्रसंस्करण यानी प्रोसेसिंग करके अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं. इसके लिये सरकार किसानों को आर्थिक अनुदान भी देती है. अगर आप भी एलोवेरा की खेती या इसकी प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करना चाहते हैं तो कृषि विभाग के नजदीकी कार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क कर सकते हैं.
Autors
डॉ. मुजाहिदा सैयद; डॉ. राजमोहन शर्मा एवं डॉ. अपर्णा शर्मा
सहायक प्राध्यापक
कृषि महाविद्यालय गंजबासौदा