Vegetables are Effective and Healthy Option to Deal With Malnutrition
शाकाहारी जीवन में सब्ज़ियों एवं फलों का विशेष महत्त्व है । हमारे भोजन को पौष्टिक तथा संतुलित बनाने में सब्ज़ियों का विशेष योगदान है । अगर भोजन पौष्टिक और संतुलित नहीं है तो यह कुपोषण को जन्म दे सकता है।
सब्ज़ियों से हमें पौष्टिक तत्व जैसे रेशा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज लवण और विटामिन्स मिलते है। साथ ही इनमें ज्यादा मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट तथा ऐसे रसायन तत्व भी पाए जाते है जो हमें रोगो से बचाते है । इसलिए सब्ज़ियों को रक्षात्मक आहार भी कहा जाता है ।
असुंतलित भोजन, वह स्थिति है जिसमें पोषक तत्वों की अधिकता, कमी अथवा गलत अनुपात में उपस्थिति कुपोषण को आमंत्रित करती है । सन १९९१ की तुलना में ५० फ़ीसदी की सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि होने के बावजूद भी आज हमारे देश में विश्व के लगभग एक तिहाई कुपोषित बच्चे निवास करते है । इनमें से भी आधे बच्चे ३ वर्ष की आयु से कम जो अल्प वज़नी है ।
एक सर्वे के अनुसार विश्व में कुल ५ वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में आधे (३ मिलियन) बच्चे कुपोषण की वजह से मरते है । ग्लोबल हंगर इंडेक्स-२०१६ के अनुसार भारत कुपोषण के कारण विश्व में सर्वाधिक भूख वाले २५ देशों की श्रेणी में गिना जाता है ।
भारत में ५२ प्रतिशत विवाहित महिलाओं को एनीमिया है तथा औसतन प्रति एक मिनट १ बच्चा कुपोषण के कारण मृत्यु हो रही है । यही नहीं भारत की १४ प्रतिशत महिलाएं और १८ प्रतिशत पुरुष मोटापे के शिकार है । यह तो ऐसे परिवार की कहानी है जिनके पास पर्याप्त धन की कमी है या दिनभर काम काज के बाद भी अपने बच्चो को संतुलित भोजन नहीं दे पाते हैं परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है की एक तिहाई बच्चे अधिपोषत है ।
जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छे होने के उपरांत भी वह अपने बच्चो को संतुलित भोजन नहीं दे पाते है । खान पान के वदलाव के इस युग में बच्चे अपने आहार में सब्जियां, फल व दूध को प्राथमिकता न देते हुए फ़ास्ट फ़ूड / जंक फ़ूड को खाकर मोटापे के शिकार हो रहे है।
कुपोषणता समाज में एक छिपी हुई भूख की तरह है जिससे समाज का हर वर्ग, व्यक्ति, बच्चे कुप्रभावित है । असंतुलित भोजन, ज्ञान की कमी, आर्थिक स्थिति, सामाजिक व धार्मिक विचार इत्यादि कुछ प्रमुख कारण इसके जिम्मेदार है । प्रस्तुत लेख में सब्जियां कुपोषणता से निपटने का एक प्रभावी विकल्प कैसे हो सकती है ? पर विस्तृत रूप से समीक्षा की गयी है तथा इसके उन्मूलन में संभावित सुझाव भी समायोजित किये गए है ।
भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् की एक अनुशंसा के अनुरूप हमारे देश में प्रति व्यक्ति को लगभग ३०० ग्राम सब्ज़ियाँ का सेवन करना चाहिए । जिसमें १२५ ग्राम हरे पत्तेदार सब्ज़ियाँ, १०० ग्राम जड़ व कंद व ७५ ग्राम अन्य सब्जियां शामिल है । परन्तु दुर्भाग्य वश भारत देश में सब्ज़ियों का वार्षिक औसत उपभोग ७६.१ किलोग्राम/व्यक्ति/वर्ष है जिसमें ग्रामीण भाग (७४.३) व शहरी भाग (७९.१ ) का योगदान है ।
सब्ज़ियों का उपभोग व्यक्ति या परिवार की आय की आय, कीमत, उपलब्धता, व्यक्ति विशेष स्वाद, जागरूकता, निर्णय लेने की क्षमता, महिलाओं की कार्य शैली, विश्वास, धार्मिक मान्यताएं, विचार, परम्पराएँ और भौगोलिक, वातावरणीय व सामाजिक कारणों का एक जटिल समूह मिलकर व्यक्ति विशेष या परिवार के खानपान के प्रारूप को निर्धारित करता है । भारत विश्व में चीन के बाद सब्ज़ी उत्पादन में दूसरे स्थान पर है ।
कई सब्ज़ियों फसलों जैसे भिंडी, मटर व फूलगोभी के उत्पादन पर तो विश्व में पहले स्थान पर है । विदेशी सब्ज़ियों जैसे ब्रॉकली, ऐस्पैरागस, पार्सले, सेलेरी, सलाद पत्ता, करमसाग, ब्रुसेल्स स्प्राउट, लीक, पकचोई, इंडीव, गांठ- गोभी, आर्टिचोक इत्यादि के भारत में आगमन व व्यापारिक उत्पादन से भी उपभोक्ता के समक्ष सब्ज़ियों में विविधीकरण के नये विकल्प मिले हुए है । जिनकी खेती से न केवल किसान भाइयों को लाभ मिलेगा बल्कि उपभोक्ता स्तर पर पोषण सुरक्षा को एक नई दिशा मिलेंगी ।
प्राचीन भारत से ही ग्रामों में विविध सब्ज़ियों की खेती घर के पीछे गृह वाटिका के रूप में होती आ रही है । आजकल शहरों में भी लोग सब्ज़ियों की खेती अपने घर की बालकनी, छत या गमलों में करने से गुरेज नहीं करते है । सब्ज़ियों के पोषक मूल्य में जल, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, पोषक तंतु, विटामिन्स व खनिज लवण भी शामिल है । जो शरीर की विभिन्न आवश्यक क्रियाओं को संपन्न करने में मदद करने के साथ साथ प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करते है ।
सब्ज़ियों में पाए जाने बाले बृहद घटको, विटामिन्स व खनिज लवणों की आवयश्कता, प्रमुख स्रोतों व उनके शरीर में महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे । (तालिका १)
1. जल:
ज्यादातर सब्ज़ियों में जल की मात्रा ८० प्रतिशत से भी अधिक होती है । कुछ सब्ज़ियाँ जैसे खीरा, पालक, टमाटर, तरबूज़, खरबूज, पत्ता गोभी व सलाद पत्ता आदि में तो ९० प्रतिशत से भी अधिक जल पाया जाता है । जल की मात्रा सब्जियों को ताज़ा बनाये रखने में मदद करती है ।
2. कार्बोहाइड्रेट:
जल के बाद दूसरे नंबर पर कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है । कुछ सब्ज़ियाँ जैसे आलू , शकरकंद, याम, मटर व बीन्स इत्यादि में अच्छी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है । हेमिसेलुलोस आहार तंतु का कार्य करता है ।
3. प्रोटीन :
प्रोटीन शरीर में वृद्धि व विकास के लिए अत्यंत जरूरी है । हमारे देश में प्रोटीन उपभोग प्रतिदिन प्रति व्यक्ति (५८.२ ग्राम) है जो की विश्व में (७०.८ ग्राम ) व एशिया में (६४.३ ग्राम) से काफी कम है । हालाँकि इसकी आवश्कता प्रतिदिन लगभग ६५ ग्राम प्रति वयस्क व्यक्ति है ।
सब्ज़ियों में ज्यादा मात्रा में प्रोटीन नहीं पाया जाता है, फिर भी दलहनी सब्ज़ियों में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है । चौलाई (१७.५- ३८.३% शुष्क भार) में लायसिन एमिनो अम्ल प्रचुर प्रोटीन पाया जाता है जो की गेंहू की प्रोटीन में एक सीमान्तकारी एमिनो अम्ल है ।
सब्ज़ी सोयाबीन, हरी मटर, स्वीट कॉर्न, ब्रुसेल्स स्प्राउट, मेंथी इत्यादि प्रोटीन तत्व से भरपूर सब्ज़ियाँ है । ज्यादातर सभी सब्ज़ियों में में प्रोटीन ३ % से कम रहता है ।
सोयाबीन (४३.२ ग्राम ), ह्यसिन्थ बीन (२४.९ ग्राम ), मटर (१९.७ ग्राम ),सहजन पत्तियां (६.७ ग्राम), करी पत्ता (६.१ ग्राम ), सेलरी (६.३ ग्राम ),पार्सले (५.९ ग्राम ), मेंथी (४.४ ग्राम ), मूली पत्तियां (३.९ ग्राम ), सरसों साग (४.० ग्राम ) भी इसके प्रमुख स्रोत है ।
4. वसा :
सब्ज़ियों में वसा १ % से भी कम होती है परन्तु कुछ सब्ज़ियाँ जैसे ब्रुसेल्स स्प्राउट, स्वीट कॉर्न, परशनिप व भिंडी में वसा १% से अधिक होती है । बहुअसंतृप्त वसीय अम्लों को आवश्यक वसीय अम्ल कहते है । इनका निर्माण मानव शरीर में नहीं हो सकता है । अतः इनका सेवन करना जरुरी है ।
यह मुख्य्तया दो प्रकार के होते है, पहला ओमेगा -३ वसीय अम्ल (अल्फा- लिनोलेनिक अम्ल) जो कोशिकीय झिल्लियों में फॉस्फोलिपिडके रूप में मुख्य कार्य करते है ।
जिसके प्रमुख स्रोत मेंथी बीज (१०८२ मिलीग्राम), राजमा (५५७ मिलीग्राम), सहजन पत्ता (४४६ मिलीग्राम), बीन्स (२२७मिलीग्राम) व विलायती पालक (२२० मिलीग्राम) है व दूसरें ओमेगा -६ वसीय अम्ल (लिनोलिक अम्ल ), शरीर में ऊर्जा प्रदान करना, अणुओं का संकेतन , प्रदाह , वाहिका संकीर्ण व प्लेटलेट्स एकत्रीकरण में मध्यस्थता निभाता है ।
आहार तंतु पादप उत्पति या कार्बोहायड्रेट के समरूप ऐसे खाद्य भाग है जो छोटी आंत में पूर्णतया पाचन व अवशोषण प्रतिरोधी या बृहदांत्र में आंशिक पाचन से गुजरते है । ये रेचक का कार्य करते है । आहार तंतुओं की भोजन में कमी से कब्ज़, मोटापा, मधुमेह (मेलिटस ), ह्रदय सम्बन्धी बीमारियां, कोलोरेक्टल कैंसर की संभावना बढ़ जाती है ।
तंतुओ में पेक्टिन, बीटा-ग्लूकन्स, हेमी-सेल्यूलोस, सेलुलोस, लिगनिन, ओलिगोसेकेराइड व गोंद शामिल है । जो की पादप कोशिका भीति के मुख्य घटक है ।
तंतुओं को जीवाणुओं द्वारा वृहदांत्र में आंशिक रूप से पचाया जाता है या पूर्णतया पचाया नहीं जा सकता है । ऐसे घटक पेक्टिन, हेमी-सेलुलोस व सेलुलोस है जिन्हें आंशिक पचाया जा सकता है जबकि लिगनिन को जीवाणुओं द्वारा पचाया नहीं जा सकता है ।
पाचक तंतुओं की मुख्य भूमिका रुधिर में कोलेस्टेरोल के मात्रा को घटाकर कार्डिओवैस्कुलर बीमारियों की संभावना को कम करना है । यह जठरांत्र के समस्याओं व वज़न प्रवंधन में भी मददगार साबित होते है ।
हरी पत्तीदार सब्ज़ियाँ, आर्टिचोक, शकरकंद, शलजम, आलू इत्यादि में पाचक तंतु अत्यधिक पाए जाते है । सामान्यतः सब्ज़ियों के छिलकों में तंतु अधिक पाए जाते है । अतः उन्हें बिना छीले खाने की अनुशंसा भी की जाती है ।
तालिका १: सब्ज़ियों में उपस्थित आहार तंतु व विटामिन्स (प्रति १०० ग्राम)
घटक | वयस्क व्यक्ति प्रतिदिन आवश्कता* | शाकीय स्रोत |
आहार तंतु | ३८ ग्राम | हरी पत्तीदार सब्ज़ियाँ, आर्टिचोक, शकरकंद, शलजम, आलू , दलहनी सब्ज़ियां, कद्दू वर्गीय सब्ज़ियां |
विटामिन 'सी’ | ४० मिलीग्राम | पार्सले (१३३ मिलीग्राम), अगेथी पत्ते (१२१ मिलीग्राम), शिमला मिर्च (१२० मिलीग्राम ), हरी मिर्च (१२० मिलीग्राम ), सहजन पत्ता (१०८ मिलीग्राम) व पत्तागोभी (४५ मिलीग्राम ) |
थायमिन(विटामिन 'बी-१') | १.४ मिलीग्राम | बीन्स (०.२८-०.३६ मिलीग्राम ), मटर (०.२५ -०.५२ मिलीग्राम ) |
राइबोफ्लेविन(विटामिन 'बी- २ ‘) | १.६ मिलीग्राम | लाल मिर्च (०.८३ मिलीग्राम ), अगेथी पत्ते (०.३३ मिलीग्राम), सहजन पत्ता (०.४५ मिलीग्राम) , बथुआ (०.५१ मिलीग्राम ), चौलाई (०.३० मिलीग्राम), मूली पत्ता (०.४७ मिलीग्राम), मेंथी पत्ता (०.३१ मिलीग्राम), पालक (०.५६ मिलीग्राम), करी पत्ता (०.२१ मिलीग्राम), पोर्चूलका (०.२२ मिलीग्राम), शलजम हरी (०.३१ मिलीग्राम) |
नियासिन(विटामिन 'बी- ३ ') | १८ मिलीग्राम | लाल मिर्च, शकरकंद, आलू (५.१ मिलीग्राम ) व शिमला मिर्च ( २.१७ मिलीग्राम), बीन्स व मटर (३.३ मिलीग्राम) |
पैण्टोथेनिक अम्ल(विटामिन 'बी- ५ ') | ५ मिलीग्राम | लहसुन, राजमा, ओएस्टर मशरूम, लोबिया |
पाइरोडोक्सिन (विटामिन 'बी-६') | २ मिलीग्राम | लहसुन (सिंगल क्लोव), तरबूज़, पाक चोई पत्ते, सहजन पत्ते , मेंथी , करी पत्ते व ओएस्टर मशरुम |
बायोटिन(विटामिन 'बी-७ ') | ३० माइक्रोग्राम | गांठ-गोभी पत्ते, पार्सले, स्कारलेट बीन्स, अरवी पत्ते व सिटका मशरुम |
फोलिक अम्ल(विटामिन 'बी -९’ ) | १ ०० माइक्रोग्राम | पार्सले (१९७ माइक्रोग्राम ), विलायती पालक (१४२ माइक्रोग्राम ), अगेथी पत्ता (१२० माइक्रोग्राम ), दलहनी सब्ज़ियां (४८- ५०) व एस्परगस (१५६ माइक्रोग्राम) |
सायनोकोबलमीन(विटामिन 'बी -१२ ’ ) | १ माइक्रोग्राम | विलायती पालक (०.१४ माइक्रोग्राम), ब्रोकॉली व एस्परेगस (लेश मात्र) |
विटामिन ‘ ए’ | ६०० माइक्रोग्राम | सहजन पत्ता (१७५४२ माइक्रोग्राम ), अगेथी पत्ते (१२५८२ माइक्रोग्राम), मेंथी पत्ता (९२४५ माइक्रोग्राम), चौलाई (८४९१ माइक्रोग्राम), गाजर (५४२३ माइक्रोग्राम), शकरकंद (५३७६ माइक्रोग्राम), पोदीना (४६०२ माइक्रोग्राम), टमाटर (१५१३ माइक्रोग्राम) व लाल मिर्च (१५४२ माइक्रोग्राम) |
विटामिन ‘के’(फ़ायटलमेनाक्विनोन) | १२० माइक्रोग्राम | विलायती पालक, हरी शलजम, ब्रोकोली, सहजन, चौलाई, मेंथी पत्ता, पार्सले, अरवी पत्ते, व गांठ-गोभी |
विटामिन ‘ई’ | १५ मिलीग्राम | परशिनप, विलायती पालक, ब्रोकोली, जुकिनी हरा , करी पत्ता, अगेथी पत्ता एवं वाटरक्रैस |
*भारतीय पोषण संस्थान, हैदराबाद द्वारा अनुशंसित
विटामिन्स: कार्बनिक यौगिकों का समूह / और आवश्यक पोषक तत्व जो शरीर की चपापचय क्रियाएं व प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूती प्रदान करने हेतु कम मात्रा में आवश्यक होते है, विटामिन्स कहलाते है । जल में घुलनशील विटामिन्स के अंतर्गत विटामिन 'बी' समूह व विटामिन 'सी' आते है ।
इन विटामिन्स का सेवन दिन- प्रति दिन की क्रियायों को हेतु आवश्यक है । वसा में घुलनशील विटामिन्स (विटामिन 'ए', डी, ई, के ) का शरीर में अवशोषण वसा ग्लोबुलेस के द्वारा होता है । वसा में घुलनशील विटामिन्स विशेषकर विटामिन 'ए व ई को शरीर के ऊतकों में संचयन किया जाता है ।
जल में घुलनशील विटामिन्स:
थायमिन (विटामिन 'बी- १ '): यह विटामिन कार्बोहाइड्रेट, वसा व प्रोटीन के विघटन से ऊर्जा निर्माण के समय सह- एंजाइम का कार्य करती है ।
इसके प्रमुख स्रोत बीन्स (०.२८-०.३६ मिलीग्राम ) व मटर (०.२५ -०.५२ मिलीग्राम ) है । इसकी कमी से बेरी बेरी नामक रोग हो जाता है ।
राइबोफ्लेविन (विटामिन 'बी-२): राइबोफ्लेविन में एंटीऑक्सीडेंट प्रवृति के कारण यहाँ ग्लूटाथिओन रेडक्टेस एंजाइम में सह- कारक के रूप में कार्य करता है ।
यह विटामिन बी-६ , नियासिन व विटामिन 'के' के उपापचय में मदद करता है । यह कार्बोहायड्रेट, वसा व प्रोटीन के टूटने में भी सहायक है ।
इसकी कमी से जीभ में व्यथा, लालपन व झुलसी आँखे , छिलकेदार त्वचा एवं अंडकोषीय चर्म रोग हो जाती है ।
अतः राइबोफ्लेविन प्रचुर सब्ज़ियाँ जैसे पत्तेदार सब्ज़ियाँ, चौलाई, पालक, करी पत्ता, मेंथी पत्ता, पॉरचुलाका, मूली पत्ता, शलजम हरी इत्यादि के सेवन से इसकी कमी से होने वाली व्याधियों से निपटा जा सकता है ।
नियासिन (विटामिन 'बी- ३ '): नियासिन अन्य विटामिन ‘बी’ समूह की तुलना में अधिक स्थाई होती है । आवश्यक एमिनो अम्ल ट्रिप्टाफान नियासिन का अग्रगामी रसायन है । इसकी कमी से भारत की कुछ स्थानिक भागो में जहां ज्वार प्रधान आहार लेते है, वहां पेलाग्रा नामक बीमारी हो जाती है । सब्ज़ियाँ जैसे लाल मिर्च, शकरकंद, आलू व शिमला मिर्च, बीन्स व मटर इसके प्रमुख स्रोत है ।
पैण्टोथेनिक अम्ल (विटामिन 'बी- ५ '): सब्ज़ियाँ जैसे लहसुन, राजमा, ओएस्टर मशरूम, लोबिया पैण्टोथेनिक अम्ल का स्रोत है ।
पाइरोडोक्सिन (विटामिन 'बी-६'): पाईरोडोक्सिन रूप प्रमुखतया पादप उत्पति भोजन में पाया जाता है जबकि पायरीडोक्सिल व पायरीडोक्सिल फॉस्फेट मुख्य रूप से जंतु उत्पति भोजन में प्रधान होते है।
पायरीडोक्सिल व पायरीडोक्सिल फॉस्फेट का महत्त्वपूर्ण हिस्सा व्यंजन पकाने में नष्ट हो जाता है जबकि पाईरोडोक्सिन की मात्रा पकाने से प्रभावित नहीं होती है ।
यह विटामिन एमिनो अम्ल व वसाओं के संश्लेषण व विघटन में सह-कारक के रूप में कार्य करता है । अतः साथ ही ट्रिप्टोफान को नियासिन में रूपांतरित करने में सहायक है ।
पाइरोडोक्सिन प्रचुर सब्ज़ियाँ जैसे लहसुन (सिंगल क्लोव), पाक चोई पत्ते, सहजन पत्ते , मेंथी , तरबूज़ ,करी पत्ते व ओएस्टर मशरुम है ।
तरबूज़ में उपस्थित विटामिन ‘बी-६’ न्यूरोट्रांसमीटर की तरह कार्य करती है । जिससे शरीर में सेरोटोनिन नामक तत्व का निर्माण होता है । फलस्वरूप मनुष्य का मन प्रसन्नचित, तनावरहित व मस्तिष्क आनंदमयी हो जाता है ।
बायोटिन(विटामिन 'बी-७ '): बायोटिन एक सल्फर युक्त विटामिन 'बी' समूह का हिस्सा है इसकी प्रायः मानव शरीर में कमी लम्बे समय तक कच्चे अंडो के सेवन करने से होती है ।
बायोटिन की कमी से हाँथ पैर सुन्न और शरीर में सिहरन, मानसिक बदलाव, अवसाद, आँखों, नाक, मुँह पैर लाल चकते रहते है । बायोटिन कुछ सब्ज़ियां जैसे गांठ-गोभी पत्ते, पार्सले, स्कारलेट बीन्स, अरवी पत्ते व सिटका मशरुम अच्छे स्रोत माने जाते है ।
फोलिक अम्ल (विटामिन 'बी -९’): फोलिक अम्ल विटामिन बी-१२ की साथ मिलकर लाल रुधिर कणिकाएं, श्वेत रुधिर कणिकाएं व न्यूक्लिक अम्लों (डी. एन. ए. व आर. एन. ए. ) की संश्लेषण में सहायक है ।
फोलिक अम्ल गर्भवती महिलाओं के लिए अति जरुरी है यह न्यूरल ट्यूब, जन्म सम्बन्धी , स्पाइनल कोर्ड विकारों को दूर करता है ।
इसकी कमी से दस्त, मुँह व जीभ में सूजन, भ्रूण में न्यूरल ट्यूब विकार व गर्भवती महिलाओं में जन्म सम्बंधी समस्याएं हो जाती है । कुछ सब्ज़ियां जैसे पार्सले (१९७ माइक्रोग्राम), विलायती पालक (१४२ माइक्रोग्राम) व अगेथी पत्ता (१२० माइक्रोग्राम) लेग्यूम सब्ज़ियां (४८- ५०) व एस्परगस (१५६ माइक्रोग्राम) इसके प्रमुख स्रोत है ।
सायनोकोबलमीन (विटामिन 'बी -१२ ’ ): सायनोकॉबलमीन में कोबाल्ट कोरियोइड वलय सरंचना में पाया जाता है । यह विटामिन बाह्य कारक के रूप में अंतः कारकों के साथ आवश्यक रूप से क्रिया करके रोगों से बचाता है । यह उपापचय की क्रियायों में सह- एंजाइम का कार्य भी करता है ।
सामान्यतः विटामिन-१२, जंतु उत्पति स्रोतों जैसे लीवर, अंडा, मांस, श्रिम्प, चिकन, दूध व दही में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है परन्तु इसकी पर्याप्त मात्रा पत्तेदार सब्ज़ियाँ जैसे विलायती पालक (०.१४ माइक्रोग्राम ) में भी दर्ज़ की गयी है जो की शाकाहारी मानवों के लिए एक सुनहरा विकल्प है ।
2. विटामिन 'सी':
मानव शरीर को छोड़कर अन्य कई जंतुओं के शरीर में विटामिन 'सी' का संश्लेषण ग्लूकोस से होता है । यह एक एंटीसार्विक विटामिन है जो प्रति रक्षा तंत्र को मज़बूती प्रदान करती है । इसका मुख्य कार्य घाव को भरना व एलर्जी उपचार में सहायक है । यह एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में भी कार्य करती है ।
कोलैजन तंतु मानव शरीर में संयोजी ऊतकों के निर्माण के लिए जरूरी है । अतः यह विटामिन कोलेजन निर्माण में मदगार है । यह शरीर में हीम रहित आयरन (पादप उत्पति ) के अवशोषण को बढ़ावा देती है ।
सब्ज़ियाँ पकाने के दौरान विटामिन 'सी' की लगभग ६०- ७५ प्रतिशत से भी अधिक मात्रा नष्ट हो जाती है ।
अतः सब्ज़ियों को सलाद के रूप में कच्चा भी खाना चाहिए । गोभी वर्गीय सब्ज़ियां जैसे ब्रोकोली, फूलगोभी, पत्ता गोभी व ब्रुसेल्स स्प्राउट एवं अन्य सब्ज़ियाँ जैसे शिमला मिर्च, टमाटर, बीन्स, चौलाई, धनियां पत्ता, सेलेरी, ड्रमस्टिक पत्ते, पार्सले, आलू, ग्वारफली इत्यादि में अच्छे मात्रा में पाई जाती है ।
वसा में घुलनशील विटामिन्स
विटामिन 'ए': सब्ज़ियों में विटामिन ए का प्री- कर्सर बीटा कैरोटीन सक्रिय रूप में पाया जाता है । मानव शरीर में विटामिन ‘ए’ का संश्लेषण नहीं होता है । अतः इसे भोजन के रूप में ग्रहण करना अति जरुरी हो जाता है । यह मुख्य रूप से दर्ष्टि , वर्द्धि, अस्थि विकास , प्रतिरक्षा तंत्र व जनन हेतु आवश्यक है ।
इसकी कमी से द्रष्टि ह्रास, रतोंधी , अंधापन, हो जाता है । समान्तयः प्री- स्कूल बच्चे व प्रेगनेंट महिलाएं इसकी कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है । अतः विटामिन ए प्रचुर सब्ज़ियाँ जैसे चौलाई, पालक, करी पत्ता,सहजन पत्ती, मेंथी पत्ता, शलजम,सरसों साग, पार्सले , मूली पत्ते इत्यादि में (१९२०-७४४० माइक्रोग्राम ) तक पाई जाती है । संतरी व पीली रंग की सब्ज़ियां जैसे गाजर, कददू एवं ककोड़ा में भी उच्च मात्रा में कैरोटीन पाया जाता है ।
विटामिन 'ई': यह कोशकीय स्तर पर प्रतिऑक्सीकारक का कार्य करता है । यह विटामिन बहुअसंतृप्त वसीय अम्लों के पेरोक्सिडेशन व हृदयाघात की घटनाओं को रोकती है । विटामिन 'ई, विटामिन 'ए' व 'सी' के साथ मिलकर आँखों में मोतियाबंद को दूर व अल्ज़ामर रोग की अगेती अवस्था को भी मंदित करती है ।
यह शरीर की जैविक झिल्लियों जैसे कोशिका व् प्लाज्मा झिल्ली को मुक्त मूलको से नष्ट होने से बचाती है । इस विटामिन के कमी से मस्तिष्क सम्बन्धी विकार हो जाते है यह विटामिन परशिनप, विलायती पालक, ब्रोकोली, जुकिनी हरा , करी पत्ता, अगेथी पत्ता एवं वाटरक्रैस में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है ।
विटामिन ‘के’: सब्ज़ियों में विटामिन 'के' भी पाई जाती है । क्युनॉन्स नामक यौगिक विटामिन 'के की क्रियाशीलता दर्शाते है । पादप उत्पति 'फयलोक्युनॉन्स’ क्युनॉन्स परिवार में अति क्रियाशील रूप में पाए जाते है । हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ जैसे विलायती पालक, हरी शलजम ब्रोकोली सहजन, चौलाई, मेंथी पत्ता, पार्सले, अरवी पत्ते, व गांठ-गोभी फयलोक्युनॉन्स के अच्छे स्रोत माने जाते है । इसकी कमी से नकसीर हो जाता है ।
खनिज लवण
मुख्य विटामिन्स के अलावा सब्ज़ियों में बहुत सारे आवश्यक खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, पौटेशियम, मैग्नीशियम, आयोडीन, जस्ता, क्लोराइड, सेलेनियम, तांबा इत्यादि पाए जाते है । सब्ज़ियों में उपस्थित खनिज व अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की विस्तृत रूप से समीक्षा तालिका २ में की गई है ।
कैल्शियम: कैल्शियम शरीर का बृहद तत्व है । एक वयस्क मानव (६० किलोग्राम भार) के शरीर में लगभग १ किलोग्राम कैल्शियम होता है । जिसका ज्यादातर भाग (९९ % ) अस्थियों व दांतों में जमा रहता है ।
यह रुधिर स्कंदन में सहायक, तंत्रिकाओं में उत्तेजना हेतु, पेशीय संकुचन और हॉर्मोन क्रिया में द्वितीयक सन्देश वाहक का कार्य करता है । यह दन्त व अस्थि निर्माण में सहायक है कैल्शियम विशेषकर, बच्चो, गर्भवती महिलाओं व स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अत्यंत जरुरी है । हरी सब्ज़ियों जैसे सरसों साग, करमसाग,ब्रोकोली में उपस्थित कैल्शियम बृहदांत्र में कैंसर की संभावनाओं को काम करता है । सब्ज़ियों में उपस्थित कैल्शियम, पोटेशियम एवं मैगनीशियम रक्तचाप को काम करने में सहायक है ।
मैग्नीशियम: मैग्नीशियम ३०० से अधिक एन्जामों में सह-कारक के रूप में विभिन्न क्रियायों जैसे प्रोटीन जैव-संश्लेषण, पेशीय व तंत्रिका कार्य, रुधिर- शर्करा नियम इत्यादि में भाग लेता है। इसके प्रमुख स्रोत लोबिया (२३० मिलीग्राम), चौलाई (२४७ मिलीग्राम), करी पत्ता (२२१ मिलीग्राम), टमाटर (१४६ मिलीग्राम) है ।
फॉस्फोरस: इसकी कमाई से हाँथ पैर सुन्न व शरीर में सिहरन रहती है । इसके प्रमुख स्रोत लोबिया (४१४ मिलीग्राम ), सब्ज़ी सोयाबीन (४३२ मिलीग्राम), स्कारलेट रनर बीन (१६० मिलीग्राम ), मटर (१३९ मिलीग्राम ), सेलरी (१४० मिलीग्राम ), पार्सले (१७५ मिलीग्राम ) है ।
आयोडीन: इसकी कमी से गलगण्ड नामक रोग हो जाता है । गर्वभती महिलाओं के आहार में आयोडीन की विशेषकर जरुरत होती है । समुद्री शाकीय भोजन, बीन्स,रहुबारब, वाटरक्रेस, आलू इसके प्रमुख स्रोत है ।
सोडियम: यह एक मुख्य धनायन है । जो परासरण साम्य व बाह्य कोशिकीय द्रव्य को व्यवस्थित करता है । इसके प्रमुख स्रोत गाजर, चुकंदर पत्तिया, मेंथी पत्ता, पालक इत्यादि है । इसकी कमी से कमजोरी, तनाव, उल्टी व सर दर्द होता है ।
पौटेशियम: पोटेशियम के प्रमुख स्रोत लाल मिर्च, जीरा, काली मिर्च, धनियाँ, राज़मा, लोबिया, तरबूज़ इत्यादि है । इसकी कमी से सीरम- पोटैशियम मात्रा असंतुलित हो जाती है ।
लोहा: शरीर क्रिया की उचित कार्यवाही हेतु लोहे की मानव आहार में अति जरुरी है । यह हीमोग्लोबिन के निर्माण में प्रमुख घटक की भूमिका निभाता है । प्रतिदिन एक वयस्क पुरुष को लगभग १० मिलीग्राम व प्री-मेनोपोसल महिला को १५ मिलीग्राम लोहा की जरुरत होती है । कुछ सब्ज़ियाँ जैसे ब्रोकोली व ब्रुसेल्स स्प्राउट में लोह तत्व अधिक पाए जाते है और साथ साथ इसके अवशोषण को भी बढ़ावा देते है क्योंकि इनमें विटामिन सी भी अधिक पाई जाती है । लोहे की पूरे शरीर में अवशोषण प्रक्रिया इसकी उपलब्ध रूप पर निर्भर करती है । मूलतयाः लोहे के दो रूप, हीम आयरन व हीम रहित आयरन होते है जो क्रमशः जीव व शाकीय आधारित होते है । शाकीय हीम रहित आयरन मानव शरीर में कम पाया जाता है । अतः आयरन संवृद्ध सब्जियों के सेवन से ही इसकी भरपाई संभव है । मांस, समुद्री भोजन, पोल्ट्री इत्यादि में हीम व हीम रहित लोहे के दोनों रूप होते है । सामान्यतः हीम आयरन का अवशोषण हीम रहित आयरन से अधिक होता है । अतः शाकाहारी मनुष्यों को हीम रहित आयरन (पादप उत्पति ) का सेवन विटामिन 'सी' प्रचुर स्रोतों के साथ करना चाहिए क्योंकि विटामिन 'सी' शरीर में हीम रहित आयरन (पादप उत्पति ) के अवशोषण को बढ़ावा देती है । आयरन की मात्रा चौलाई (३८.५ मिलीग्राम ), मूली (१८.० मिलीग्राम), पार्सले (१७.९ मिलीग्राम), सरसों साग (१६.३ मिलीग्राम), पोदीना (१५.६ मिलीग्राम), बसेला (१०.० मिलीग्राम), तरबूज़ (७.६ मिलीग्राम), बथुआ (४.२), मेंथी पत्ता (१.९३ मिलीग्राम), जीरा, पोदीना व काली मिर्च में प्रचुरता से पाई जाती है ।
जस्ता: वृद्धि व विकास में सहायक होता है । बच्चों में रुग्णता व मृत्यु दर काम करता है । शरीर में जस्ता को भण्डारण करने हेतु कोई विशेष तंत्र नहीं होता है । अतः हमें इसका प्रतिदिन सेवन करना चाहिए । जस्ते के प्रमुख स्रोत राई, जीरा, आलू, बीन्स व कददू होते है । जस्ता की कमी से स्वाद व सूंघने की क्षमता में कमी आ जाती है ।
सेलेनियम: सेलेनियम विटामिन ‘ई’ के साथ अन्योन क्रिया करके वसा व शरीर के अन्य मेटाबॉलिट्स के विघटन को रोकता है । राई, लहसुन, ब्रोकली इत्यादि इसके प्रमुख स्रोत है ।
तांबा: तांबा कई एन्जाम में आवश्यक घटक है यह हीमोग्लोबिन, मिलेनिन व फॉस्फोलिपिड संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । यह धनियाँ व कालीमिर्च में पाया जाता है ।
क्लोराइड: क्लोराइड एक बाह्य कोशिकीय मुख्य ऋणायन है । यह बाह्य कोशकीय परासरण साम्य को बनाये रखते है । पसीने में क्लोराइड की अधिकता 'सिस्टिक फ़्रायब्रोसिस' का सूचक है । यह लोटस तना, सहजन पत्तिया, करी पत्ता, मेंथी पत्ता, चौलाई, खरबूज़, गांठ-गोभी, विलायती पालक व बैंगन में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है ।
तालिका २: सब्ज़ियों में उपस्थित खनिज व अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व (प्रति १०० ग्राम)
घटक | वयस्क व्यक्ति प्रतिदिन आवश्कता* | शाकीय फसल द्वारा उपलब्ध स्रोत |
कैल्शियम | ६०० मिलीग्राम | चौलाई (३३०-८०० मिलीग्राम ), शलजम हरी (७१० मिलीग्राम ), पार्सले (३९० मिलीग्राम ), पालक (३८० ग्राम ), मूली पत्ता (३१० मिलीग्राम ), सेलरी (२३० मिलीग्राम ), अरवी पत्ता (२२७ मिलीग्राम ), ह्यसिन्थ बीन (२१० मिलीग्राम), पोदीना (२०० मिलीग्राम ), अगेथी (९०१ मिलीग्राम ), गांठ-गोभी (३६८ मिलीग्राम ) |
फॉस्फोरस | ६०० मिलीग्राम | लोबिया (४१४ मिलीग्राम ), सब्ज़ी सोयाबीन (४३२ मिलीग्राम), स्कारलेट रनर बीन (१६० मिलीग्राम ), मटर (१३९ मिलीग्राम ), सेलरी (१४० मिलीग्राम ), पार्सले (१७५ मिलीग्राम ) |
क्लोराइड | २.३ ग्राम | लोटस तना, सहजन पत्तिया, करी पत्ता, मेंथी पत्ता, चौलाई, खरबूज़, गांठ-गोभी, विलायती पालक व बैंगन |
मैग्नीशियम | ३४० मिलीग्राम | लोबिया(२३० मिलीग्राम), चौलाई (२४७ मिलीग्राम), करी पत्ता (२२१ मिलीग्राम ), टमाटर (१४६ मिलीग्राम ) |
आयोडीन | १५० माइक्रोग्राम | समुद्री शाकीय भोजन, बीन्स,रहुबारब, वाटरक्रेस, आलू |
सोडियम | १.५ ग्राम | चौलाई, गाजर, चुकंदर पत्तिया, मेंथी पत्ता, पालक, विलायती पालक |
पौटेशियम | ३७५० मिलीग्राम | लोबिया (११३१ मिलीग्राम), स्वोर्ड बीन (१८०० मिलीग्राम), अरवी (५५० मिलीग्राम), खरबूज़ (३४१ मिलीग्राम), सेलरी (२१० मिलीग्राम), धनियां पत्ता (२५६ मिलीग्राम), सहजन (२५९ मिलीग्राम ), चौलाई (३४१ मिलीग्राम) |
लोहा | १७ मिलीग्राम | चौलाई (३८.५ मिलीग्राम ), मूली (१८.० मिलीग्राम), पार्सले (१७.९ मिलीग्राम), सरसों साग (१६.३ मिलीग्राम), पोदीना (१५.६ मिलीग्राम), बसेला (१०.० मिलीग्राम), तरबूज़ (७.६ मिलीग्राम), बथुआ (४.२), मेंथी पत्ता (१.९३ मिलीग्राम) |
जस्ता | १२ मिलीग्राम | राई, जीरा, आलू, बीन्स व कददू |
सेलेनियम | ४० माइक्रोग्राम | राई, लहसुन, ब्रोकली |
तांबा | ९०० माइक्रोग्राम | धनियाँ व कालीमिर्च |
मैगनीज | २-५ मिलीग्राम | जीरा, धनियां, भिंडी व लोंग |
*भारतीय पोषण संस्थान, हैदराबाद द्वारा अनुशंसित
तालिका ३: पूसा संस्थान द्वारा सब्ज़ियों की विकसित गुणवत्तापूर्ण उन्नत किस्में
शाकीय फसल | गुणवत्तापूर्ण उन्नत किस्में |
चौलाई | पूसा कीर्ति, पूसा लाल चौलाई, पूसा किरण |
पत्तागोभी | गोल्डेन एकड़, पूसा मुक्ता, पूसा अगेती, पूसा ड्रम हेड, पूसा संकर-१ |
गाजर | पूसा नयनज्योती, पूसा वृष्टि , पूसा आशिता ( काली गाज़र), पूसा यम्दागिनी ,पूसा केसर, पूसा रुधिरा |
फूलगोभी | पूसा मेघना, पूसा कार्तिक संकर, पूसा अश्वनी, पूसा शरद, पूसा शुक्ति ,पूसा शुभ्रा, पूसा स्नोव्बल -१, पूसा सिंथेटिक |
मिर्च - | पूसा सदाबहार , पूसा ज्वाला |
बरबटी (लोबिया) | पूसा कोमल , पूसा सुकोमल , पूसा फाल्गुनी , पूसा बरसाती ,पूसा दो फसली |
मेंथी | पूसा कसूरी , पूसा अर्ली बंचिंग |
फ्रेंचबीन | पूसा हिमलता,पूसा पार्वती , केंटुकी वंडर, कन्टेंडर |
सब्जी मटर | अर्केल , पूसा प्रगति, पूसा श्री, बॉनविले, लिंकन, |
सेम | पूसा सेम-२ , पूसा सेम-३ ,पूसा अर्ली प्रोलिफिक |
खरबूजा | पूसा मधुरस , पूसा शरबती ,पूसा रसराज, पूसा मधुरिमा, पूसा शरदा |
भिन्डी | पूसा ए -४ , पूसा मखमली ,पूसा सावनी, पूसा भिंडी-५ |
पालक | पूसा हरित , पूसा भारती , आल ग्रीन, पूसा ज्योति |
चप्पन कदू | अर्ली येल्लो प्रोलिफिक, ऑस्ट्रलियन ग्रीन , पूसा अलंकार, पूसा पसंद |
टमाटर | पूसा रोहिणी ,पूसा दिव्या , पूसा संकर -१ , पूसा संकर- २, पूसा संकर -४ , पूसा संकर- ८, पूसा गौरव , पूसा -१२० |
ब्रॉकली | पूसा के. टी .एस.-१ |
बथुआ | पूसा बथुआ-१, पूसा ग्रीन |
ग्वार फली | पूसा मौसमी, पूसा नौबहार, पूसा सदाबहार |
सलाद पत्ता | चायनीज़ येलो, ग्रेट लैक्स |
गांठ-गोभी | पूसा विराट, वाइट वियना |
चुकंदर | क्रिमसन ग्लोब, डेट्रिओट डार्क रेड |
शलजम | पूसा स्वर्णिमा, पूसा चंद्रिमा, पूसा श्वेती |
मूली | पूसा जामुनी, पूसा मृदुला, पूसा गुलाबी, पूसा चेतकी, जापानीज वाइट, पूसा हिमानी, पूसा श्वेता |
शिमला मिर्च | कैलिफोर्निया वंडर, यलो वंडर , पूसा दीप्ति (संकर) |
विलायती पालक | विर्जिनिया सेवॉय |
ब्रुसेल्स स्प्राउट्स | हिल्ड्स आइडियल |
प्याज़ | पूसा माधवी, पूसा रिद्धि, पूसा रेड |
पार्सले | मोस कर्ल्ड |
सेलरी | फोर्ड हुक एम्परर |
सरसों साग | पूसा साग -१ |
बंचिंग प्याज़ | पूसा सौम्या |
बांकला | पूसा सुमित, पूसा उदित |
लौकी | पूसा नूतन, पूसा संतुष्टि, पूसा संकर-३ |
करेला | पूसा दो मौसमी, पूसा विशेष, पूसा संकर-१, पूसा संकर-२ |
तोरई | पूसा स्नेहा, पूसा श्रेष्ठा (संकर ) |
सीताफल (कददू), | पूसा विश्वास, पूसा विकास |
लीक | लंदन फ्लैग |
खीरा | पूसा उदय, पूसा वरखा, जापानीज लॉन्ग ग्रीन |
सब्ज़ी पेठा | पूसा सब्ज़ी पेठा, पूसा उज्जवल |
Authors:
डॉ. बृज बिहारी शर्मा*, डॉ. भोपाल सिंह तोमर**
*वैज्ञानिक, **अध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक
शाकीय विज्ञान संभाग
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा कैंपस, नई दिल्ली-१००१२