Entrepreneurship in agriculture and related areas
कृषि क्षेत्र
रोजगार तथा आजीविका सृजन में इसके उच्चांश के कारण कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलाधार माना जाता है। यह 52 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार उपलब्ध कराकर आधे बिलियन से अधिक लोगों को सहारा देता है। राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान वर्ष 2006-07 में लगभग 18.5 प्रतिशत है। यह कच्ची सामग्री का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है तथा अनेक औद्योगिक उत्पादों विशेषत: उर्वरक, कीटनाशी, कृषि औजार तथा अनेक प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के लिए इसकी भारी मांग है।
कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि एवं सहकारिता विभाग कृषि क्षेत्र के विकास के लिए उत्तरदायी नोडल संगठन है। यह देश के भूमि, जल, मृदा तथा पौध संसाधनों के इष्टतम उपयोग के जरिए तीव्र कृषि संबंधी संवृद्धि हासिल करने की ओर लक्षित राष्ट्रीय नीतियों तथा कार्यक्रमों के निरुपण तथा क्रियान्वयन के लिए उत्तरदायी है।
कृषि के राज्य विषय होने के कारण यह राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व है कि वे अपने संबंधित राज्य के भीतर इस क्षेत्र की संवृद्धि तथा विकास का सुनिश्चय करें। तदनुसार, अनेक राज्यों में पृथक विभाग स्थापित किए गए है।
सरकार द्वारा हाल के वर्षों में अनेक महत्वपूर्ण पहलें की गई हैं - राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीआई), राष्ट्रीय कृषक नीति 2007, कृषकों को सांस्थानिक, ऋण प्रदान करना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राज्यों को कृषि में अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहन देने हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, एकीकृत खाद्य कानून, भंडारण विकास तथा विनियमन हेतु विधायी रूपरेखा, पौध किस्मों तथा कृषक अधिकारों का संरक्षण (पीपीवीएफआर) अधिनियम, 2001, राष्ट्रीय बांस मिशन इत्यादि।
बागवानी और संबद्ध क्षेत्र
'बागवानी और संबद्ध' क्षेत्र देश में खाद्य और पोषण सुरक्षा का अभिन्न तत्व है। बागवानी मुख्य खंड है जबकि इसे विभिन्न उप खंड हैं फल, सब्जियां, सुगंधित और हर्बल पौध फूल, मसाले और बागानी फसलें। ये सभी आर्थिक सुरक्षा के अनिवार्य तत्व माने जाते हैं भारत की व्यापार कृषि-अबोहवा, विविध प्रकार की बड़ी मात्रा में बागवानी फसलें उगाने के लिए अनुकूल है जिसमें कंद-मूल, घुबर फसलें, मशरूम सजावटी फसलें बागानी फसलें जैसे नारियल, ताड़ काजू और कोकोआ शामिल हैं।
भारत सरकार में बागावानी फसलों को भूमि के सक्षम उपयोग और प्राकृतिक संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग द्वारा कृषि में स्थिति अनुकूल तरीके से विविधकरण के साधन के रूप में मान्यता दी है। बागवानी में रोजगार के अपार अवसर विशेषकर बेरोजगार युवाओं और महिलाओं के लिए सृजन की क्षमता है। बहुत सी वस्तुओं के उत्पादन में भारत नेतृत्व करते आ रहा है जैसे आम, केला, क्षारीय नींबू, नारियल, ताड़, काजू, अदरक, हल्दी और काली मिर्च। वर्तमान में यह विश्व में फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
भारत का सब्जी उत्पादन चीन के बाद दूसरा स्थान है और फूलगोभी, के उत्पादन में पहला स्थान है प्याज में दूसरा और बंदगोभी में तीसरा स्थान है। भारत ने फूलों के उत्पादन में भी उल्लेखनीय विकास किया है। इसके अतिरिक्त यह मसालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता, उत्पादक और निर्यातक है। भारत में व्यापक किस्म के मसाले पाए जाते हैं जैसे काली मिर्च, इलायची (छोटी और बड़ी), अदरक, लहसुन और बहुत किस्म की पेड़ और बीज मसाले। देश में लगभग सभी राज्य एक या अधिक मसाले उगाते हैं। मुख्य मसाला उत्पादक राज्य है आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और मध्य प्रदेश। पूर्वोत्तर क्षेत्र और अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह के पास भी संभावित मसाला उत्पादन क्षेत्र हैं विशेषतया जैविक रूप से। इसके अतिरिक्त नारियल सदाबहार फसल है। लगभग 10 मिलियन लोग इसके उत्पादन, प्रसंस्करण और संबंधित क्रियाकलापों पर निर्भर रहते हैं। यह मुख्यत: देश के तटीय राज्यों तथा पूर्वोत्तर क्षेत्रों के 1.84 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में उगाया जाता है। इसका उत्पादन 8.67 मिलियन टन है। भारत नारियल उत्पादन में विश्व का अग्रणी देश है।
कृषि की तीव्र वृद्धि न केवल आत्म निर्भरता के लिए आवश्यकता है बल्कि लोगों की खाद्य तथा पौषणिक सुरक्षा को पूरा करने ग्रामीण क्षेत्रों में आय तथा सम्पत्ति का साम्यापूर्ण वितरण करने तथा साथ ही गरीबी को कम करने तथा जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए भी यह आवश्यक है। कृषि में संवृद्धि का अन्य क्षेत्रों पर अधिकतम विस्तृत प्रभाव पड़ता है जिससे संपूर्ण अर्थव्यवस्था में तथा जनसंख्या के सर्वाधिक खंड में लाभों का विस्तार होता है।
इस प्रकार से, वर्षों से बागवानी और संबद्ध क्षेत्र के विकास के लिए बहुत अधिक प्रगति की गई है। निवेश वृद्धि के फलस्वरूप उत्पादन बढ़ा है और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बागवानी उत्पाद की उपलब्धता बढ़ी है। क्षेत्र की उन्नति और वाणिज्यिकीकरण के लिए बहुत सी योजनाएं और नीतियां समय-समय पर लाई गई हैं। क्षेत्र में मौजूदा संभावना से बड़ी संख्या में निवेशक फायदा उठा रहे है तथा दोहन न किए गए संभावना की खोज कर रहे हैं।
पशुपालन तथा डेयरी
पशुपालन और डेयरी राज्य का विषय है और क्षेत्र के विकास के लिए राज्य सरकारें प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए डेयरी आय और रोजगार का द्वितीयक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। भारतीय डेयरी उद्योग 9वीं योजना के बाद ठोस विकास गति पायी है और इसने 2005-06 के दौरान 97.1 मिलियन टन का वार्षिक उत्पादन हासिल किया है। वर्ष 2006-2007 के दौरान भारत का दुग्ध उत्पदन 100.9 मिलियन टन के स्तर पर पहुंच गाया है। इस न केवल देश को विश्व में शीर्ष पर रखा है परन्तु देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए दुग्ध और दुग्ध उत्पाद की उपलब्धता में स्थायी विकास दर्शाता है।
कृषि मंत्रालय के अधीन पशु पालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग मवेशी उत्पादन, संरक्षण, रक्षा और पशु सुधार, डेयरी विकास तथा दिल्ली दुग्ध योजना और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड से संबंधित मामलों के लिए जिम्मेदार हैं। यह मछली पकड़ने और मत्स्य पालन से संबंधित सभी मामलों की देख रेख भी करता है जिसमें अंतर्देशीय और समुद्री क्षेत्र और राष्ट्रीय मत्स्यिकी विकास बोर्ड से संबंधित मामले शामिल है।
भारत सरकार दुधारु जानवरों की उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास कर रही है इस प्रकार से प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता बढ़ेगी। अधिकांश दूध का उत्पादन छोटे किसानों, सीमांत किसानों और भूमि हीन मजदूरों द्वारा किया जाता है जो ग्रामीण स्तर पर सहकारिताओं में समूहबद्ध हैं। उन्हें स्थायी बाजार मुहैया कराने और दुग्ध उत्पाद के लिए परिलब्धात्मक कीमत दिलाने के लिए देश में लगभग 12 मिलियन किसानों को एक लाख से अधिक ग्रामीण स्तरीय सहकारी समितियों की परिधि में लाया गया है।
विभाग राज्य सरकारों को पशु रोग नियंत्रण, वैज्ञानिक प्रबंधन और आनुवांशिक संसाधनों का उन्नयन, पोषक चारा और पशु चारा की बढ़ती उपलब्धता, प्रसंस्करण और विपणन सुविधाओं का स्थायी विकास और मवेशियों और मत्स्यिकी उद्यमों की उत्पादकता एवं लाभदायकता बढ़ाने के लिए सहायता प्रदान करते आया है। राज्य सरकारों में अलग विभाग गठित किए है जो राज्य में पशुपालन और डेयरी कार्य के विकास के लिए जिम्मेदार हैं।
मत्स्यिकी
'मत्स्यिकी और जल कृषि क्षेत्र' भारतीय कृषि में सूर्य किरण के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह असंख्य अनुषंगी उद्योगों के विकास को अभिप्रेरत करता और आर्थिक रूप से पिछड़े बड़े तब के लोगों के लिए जीविका का साधन है विशेषतया देश के मछुआरों के लिए। यह खाद्य आपूर्ति बढ़ाने, पर्याप्त रोजगार के अवसर का सृजन करने और पोषण स्तर बढ़ाने में सहायता करता है। इसकी बड़ी निर्यात क्षमता है और देश के लिए विदेशी मुद्दा अर्जन का बड़ा स्रोत है।
' पशु पालन और डेरी विभाग और मत्स्यिकी' भारत में मत्स्यिकी उद्योग के विकास के लिए मुख्य प्राधिकरण है। यह सीधे और राज्य सरकारों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासनों के द्वारा विभिन्न उत्पादन, इनपुट आपूर्ति तथा मूलसंरचना विकास कार्यक्रम और कल्याणोन्मुखी योजनाएं चलाता आ रहा है यह मत्स्यिकी क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के अलावा करता है। इसके अतिरिक्त खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय एक दूसरा मुख्य अभिकरण है जो भारत में मत्स्य प्रसंस्करण खण्ड के मजबूत विकास के लिए जिम्मेदार है।
तथापि, मत्स्यिकी मूल्य रूप से राज्य का विषय है और इसके विकास के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य सरकार की है। मुख्य बल मत्स्यिकी विकास में अनुकूलन उत्पादन और उत्पादकता, मत्स्य उत्पादों का निर्यात बढ़ाने, रोजगार का सृजन करने और मछुआरों के कल्याण और उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधारने पर है।
वर्षों से मत्स्यिकी उद्योग उभरकर तेजी से बढ़ रहा है। इसमें पकड़ने और कृषि दोनों शामिल हैं, अर्न्देशीय और समुद्री, जलकृषि, गेयर्स, नेवीगेशन, समुद्र विज्ञान, जल जीवशाला प्रबंधन, प्रजनन, प्रसंस्करण, समुद्री भोजन का निर्यात और आयात, विशेष उत्पाद और सह उत्पाद अनुसंधान और सहबद्ध क्रियाकलाप इसमें शामिल हैं। पूरे विश्व में उद्यमियों के लिए निवेश के अनेक अवसर मौजूद है।
परन्तु देश में मत्स्यिकी विकास को अनेक चुनौतियों और मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है जैसाकि मत्स्य उत्पादन के अर्थ में मत्स्यिकी संसाधनों और उनकी क्षमता के मूल्यांकन का स्टीक डाटा, फिन और शेलफिश कृषि के लिए स्थायी प्रौद्योगिकी का विकास, अधिक उत्पादन, हरवेस्ट और पश्च हरवेस्ट कार्य फिशिंग पोतों के लिए लैंडिंग और बर्थिंग सुविधा और मछुआरों का कल्याण आदि।
इस प्रकार से इसकी उपलब्धि और क्षमता को देखते हुए इस सेक्टर में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। मजबूत और टिकाऊ स्थिति की संसाधन आधार, यौक्तिक और प्रिएम्पटिव नीति, सार्वजनिक और निजी निवेश, अच्छा अभिशासन आदि सेक्टर के स्थायी विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसकी क्षमता का पूर्ण उपयोग मूलसंरचना निवेश, प्रौद्योगिकी गहनता, विविधीकरण और मूल्यवर्धन द्वारा हासिल किया जाता है। इसके केन्द्र में भारत में मत्स्य पालन कार्यकलाप संबंधी विभिन्न मुद्रों को पारस्परिक समझदारी और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग से समयबद्ध तरीके से समाधान करने की आवश्यकता है।
रेशम उत्पादन
रेशम भारत के जीवन में रच बस गया है। हजारों वर्षों से यह भारतीय संस्कृति और परम्परा का अभिन्न अंग बन गया है। कोई भी अनुष्ठान किसी न किसी में रेशम के उपयोग के बिना पूरा नहीं होता है। रेशम उत्पादन और सिल्क रेशमी कपड़ा एक मुख्य उप क्षेत्र है जिसमें कपड़ा क्षेत्र आता है। रेशम उत्पादन कृषि आधारित कुटीर उद्योग है। रेशम उत्पादन का आशय बड़ी मात्रा में रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम उत्पादक जीवों को पालन होता है। रेशम उत्पादन कृषि आधारित श्रम गहन उद्योग है। रेशम उत्पादन उद्योग में शामिल मुख्य क्रियाकलाप हैं :
1. रेशम कीट खाद्य पौधों की खेती करना;
2. कच्चा रेशम के उत्पादन के लिए रेशम कीट पालना;
3. रेशम फिलोमेंट निकालने के लिए कोकून का रीलिंग; और
4. अन्य कोकून पश्च प्रसंस्करण जैसे कि, मरोड़ना, डाइ करना, बुनना, प्रिटिंग और तैयार करना
रेशम उत्पादन एक अन्यन्त गहन श्रम क्षेत्र है, जिसमें कृषि (रेशम उत्पादन) और उद्योगों क्रियाकलाप शामिल होते हैं। भारत का रेशम कच्चा उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। इस स्थान के साथ-साथ इसकी अपार रोजगार क्षमता, जो रेशम पालम और सिल्क को भारतीय कपड़े के नक्शे में अपरिहार्य बनाता है।
रेशम का मूल्य बहुत अधिक है परन्तु इसकी उत्पादन की मात्रा कम है जो विश्व के कुल कपड़ा उत्पादन का केवल 0.2 प्रतिशत है। यह आर्थिक महत्व का मूल्यवर्धित उत्पाद प्रदान करता है।
मूंगा रेशम के उत्पादन में भारत का एकाधिकार है। यह कृषि क्षेत्र में एकमात्र नकदी फसल है जो 30 दिनों के भीतर प्रतिफल प्रदान करता है। रेशम उत्पादन महत्वपूर्ण आर्थिक क्रियाकलाप के रूप में उभरा है यह देश के अनेकानेक भागों में लोकप्रिय होता जा रहा है क्योंकि इसकी परिपक्वन अवधि छोटी होती है, संसाधनों का तुरंत पुन: चक्रन होता है। यह सभी प्रकार के किसानों के लिए उपयुक्त होता है विशेषतया सीमांत और छोटे जमीन धारकों के लिए चूंकि यह आप बढ़ाने के लिए समृद्ध अवसर प्रदान करता है और साल भर के लिए स्वयं परिवार के लिए रोजगार का सृजन करता है।
भारत सरकार की देश में रेशम उद्योग के विकास के लिए समवर्ती जिम्मेदारी है। केन्द्रीय स्तर पर, कपड़ा मंत्रालय नोडल संगठन है जिसमें रेशम उत्पादन और रेशमी कपड़ा उद्योग एक मुख्य कार्यात्मक क्षेत्र के रूप में हैं।रेशम उत्पादन के संवर्धन और विकास के लिए अनेक केन्द्रीय रूप से प्रायोजित योजनाएं हैं, जिनके द्वारा भारत सरकार विभिन्न क्रियाकलाप कर रही है जैसे रेशम उत्पादन संबंधी मूल संरचना का सृजन नर्सरी और फार्मों का विकास, बागान क्षेत्र का विस्तार आदि।
लेखक:
प्रशांत कुमार वर्मा
एम. एस. सी. (कृषि)