Modern cultivation of China aster

Modern cultivation of China aster

चाइना एस्टर की आधुनिक खेती

चाइना एस्टर एक बहूत ही महत्वपूर्ण वार्षिक फूल है । वार्षिक फूलो में गुलदावदी तथा गेंदा के बाद तीसरे स्थान पर आता है | हमारे देश के सीमांत और छोटे किसान बड़े पैमाने पर पारंपरिक फसल के रूप में इसकी खेती करते हैं। चाइना एस्टर नारियल के बागानों में मिश्रित फसल के रूप में भी उपयुक्त होता  है |

चाइना एस्टर की खेती भारत में चाइना एस्टर की खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल में की जाती है | चाइना एस्टर फूलों का उपयोग विभिन्न उद्देश्य जैसे कट फ्लावर, ढीले फूल, धार्मिक उद्देश्य और आंतरिक सजावट के लिए किया जाता है | चाइना एस्टर अन्य फूलो जैसे चमेली तथा क्रोसेन्ड्रा की तुलना में कम लागत में उगाया जा सकता है |

जलवायु एंव भूमि

चाइना एस्टर के लिए ठण्डी जलवायु उपयुक्त रहती है | चाइना एस्टर को मुख्य रूप से शर्दियो में उगाया जाता है | अच्छी तरह से फूलों के रंग के विकास के लिए 50-60 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता के साथ 20-30ºC दिन और 15-17ºC रात के तापमान की आवश्यकता होती है।

इसके लिए लाल दोमट मिट्टी जिसमे पानी न ठहरता हो उपयुक्त होती है | चाइना एस्टर की खेती के लिए ऐसी भूमि जिसका पीएच मान 6.8 -7.5 हो उपयुक्त होती है | भारी भूमि जिसमे कैल्शियम की मात्रा अधिक हो चाइना एस्टर की खेती के लिए उचित नहीं होती है |

खेत की तैयारी

चाइना एस्टर की खेती के लिए एक अच्छी तरह से प्रबंधित और समतल खेत की आवश्यकता होती है। इसके लिए खेत में 2 से 3 जुताई अच्छी तरह से करने के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत को अच्छे से समतल किया जा और 10-15 टन अच्छी तरह सड़ी गली गोबर की खाद को खेत की तैयारी के समय खेत में ठीक से मिला देना चाहिए। तथा इसके बाद अच्छे से डोलिया बनाने के बाद पौध की रोपाई करनी चाहिए |

नर्सरी स्थापना

चाइना एस्टर की नर्सरी के लिए हम प्रो-ट्रे में 3: 1: 1 अनुपात के साथ कोको पीट, वर्मीकुलाइट और परलाइट का उपयोग कर सकते हैं। प्रो ट्रे में मिश्रण को भर के ट्रे के सभी कॉलम में 1 से 2 बीज डालना चाहिए ध्यान रहे बीजो को ज़्यदा गहराई में नहीं डाले

बीज डाल कर ऊपर से मिश्रण से कवर कर देना चाहिए और नर्सरी को झारे से धीरे-धीरे पानी देना चाहिए। पौध तैयार करने के लिए अगस्त से सितम्बर माह सबसे उपयुक्त समय रहता है

रोपाई और पौधे तथा लाइन के बीच की दुरी

रोपाई के लिए स्वस्थ तथा रोग मुक्त अंकुर का प्रयोग करना चाहिए | जब अंकुर में 3 से 4 पत्तिया आ जाए तब रोपाई के लिए उपयुक्त होती है । रोपाई से पहले हमे अंकुर की जड़ो को कवकनाशी के घोल में डूबना चाहिए जिससे कवक से होने वाली बीमारी से बचाया जा सके ।

वाणिज्यिक उद्देश्य और अच्छी तरह से फूलों के विकास के लिए हमें पौधे से पौधे की बीच की दूरी 20 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए। रोपाई के लिए 30-45 दिन की पौध सबसे उचित मानी गई है |

महत्वपूर्ण किस्में

अर्का कामिनी – यह किस्म एक पौधे पर 50 फूल का उत्पादन करती है और 8 दिन तक फूलो को रखा जा सकता है

अर्का पूर्णिमा – इस किस्म में फूलो फूलो का आकार बढ़ा होता है इसके एक फूल का वजन लगभग 3 से 5 ग्राम होता है | यह किस्म प्रति पौधा 25 से 30 फूल का उत्पादन करती है |

अर्का शशांक – यह किस्म उच्च उपज और गुणवत्ता वाले फूलों के लिए उपयुक्त है।

फुले गणेश वायलेट – यह किस्म प्रति हेक्टेयर 60 लाख फूलों का उत्पादन करती है।

फुले गणेश गुलाबी – यह एक अगेती किस्म है और यह प्रति हेक्टेयर 43 लाख फूलों का उत्पादन करती है।

फुले गणेश सफेद- इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 47 लाख फूलों का उत्पादन होता है।

फुले गणेश बैंगनी – यह किस्म प्रति हेक्टेयर 46 लाख फूलों का उत्पादन करती है।

उर्वरक की आवश्यकताएं

चाइना एस्टर की अच्छी वृद्धि के लिए उर्वरक और खाद का उचित अनुप्रयोग महत्वपूर्ण है। अच्छी तरह से विकास और फूलों के विकास के लिए, 90 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, और 60 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता खेत की तैयारी के समय और 90 किलोग्राम नाइट्रोजन फसल की रोपाई के 40 दिनों के बाद देने की आवश्यकता होती है।

सिंचाई

चाइना एस्टर में सिंचाई की आवशयकता मुख्य रूप से मिट्टी के प्रकार तथा मौसम पर निर्भर करती है | चाइना एस्टर एक कम गहरी जड़ वाली फसल है इसलिए इसे पूरे फसल विकास अवधि में मिट्टी में उचित नमी की आवश्यकता होती है।

ड्रिप सिंचाई विधि मिट्टी में उचित नमी बनाए रखने में सक्षम है इसलिए ड्रिप सिंचाई विधि चाइना एस्टर के लिए सबसे अच्छी विधि है। अन्यथा हम 7-10 दिन के अंतराल पर भी सिंचाई कर सकते हैं।

पिंचिंग

पिंचिंग चाइना एस्टर में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण किर्या है । पिंचिंग से पोधो में साइड में निकलने वाली साखा, पोधो पर फूलो की संख्या तथा प्रति यूनिट क्षेत्र में फूलों की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। पिंचिंग पोधो की रोपाई के 45 दिन बाद करना लाभदायक रहता है |

वृद्धि नियामकों का उपयोग

चाइना एस्टर में जिब्रेलिक एसिड 200-300 पीपीएम का छिड़काव करने से प्रति पौधे में फूलो की संख्या तथा फूलो की अवधि को बढ़ता है

कीट और रोग प्रबंधन

कीट प्रबंधन

क्राइसोमेलिड बीटल:

बीटल्स नई लगाई गई फसल पर हमला करते हैं और छेद बनाते हैं जिससे पत्तिया और नई साखा कट जाती है| जिसके परिणामस्वरूप परिणामस्वरूप पौधे मुरझा जाते है। इसके नियंत्रण के लिए मिट्टी में फोरेट या कार्बोफ्यूरान 1 kg a.i./ha का उपयोग करना चाहिए।

फ्लोवर ईटिंग कैटरपिलर:

फ्लोवर ईटिंग कैटरपिलर मुख्य रूप से अक्टूबर महीने में हमला करते हैं । कैटरपिलर मुख्य रूप से फूलों पर हमला करते हैं।

तना छेदक:

तना छेदक मुख्य रूप से तना और साइड में फैली हुई शाखाओ पर हमला करता है तथा छेद बनता है परिणामस्वरूप पौधे मुरझा जाते है। तना छेदक के नियंत्रण के लिए, हमें मिट्टी में फास्फेट और कार्बोफ्यूरान 1 किलोग्राम a.i/ha लगाना चाहिए।

रोग प्रबंधन

कॉलर और रूट रोट: –

यह चाइना एस्टर की बहुत गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में पौधे अचानक मुरझाने लग जाते है तथा पौधे के तने जमीन के पास से गलने लग जाता है । इस बीमारी से बचाव से के लिए मिट्टी में अतरिक्त नमी इक्क्ठा होने से रोकना चाहिए तथा इस के साथ साथ कैप्टान, मैनकोज़ेब जैसे कवकनाशी के उपयोग से भी इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है ।

गलना: –

पत्तियों का पीलापन और कॉलर वाले हिस्से का सड़ना इस बीमारी की मुख्य विशेषताएं हैं। यह रोपण से पहले मिट्टी की नसबंदी द्वारा नियंत्रित कर सकता है और बेन्लेट या कार्बेन्डाजिम जैसे कवकनाशी का उपयोग कर सकता है।

फूलो की तुड़ाई

फूलों की गुणवत्ता और फूलों की पैदावार के लिए फूलो की तुड़ाई सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फूलो की तुड़ाई का समय तथा फूलो को किस अवस्था में तोडना है यह इस बात पर निर्भर करता है की फूलो को किस उद्देस्य के लिए प्रयोग किया जायेगा ।

कटाई हमेशा शाम के समय या सुबह के समय की जाती है। कट फ्लावर उद्देश्य के लिए हमें फूलों को कटाई के तुरंत बाद साफ पानी में डालना चाहिए।

उपज

चाइना एस्टर की आधुनिक खेती से 1.8 से 2 टन प्रति हेक्टेयर फूलो का उत्पादन किया जा सकता है

 


Authors

हीरा लाल अटल

बिधान चंद्र कृषि विशवविधालय, मोहनपुर (पश्चिम बंगाल) 741252

Email: heera.atal93@gmail.com

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