पशुओं का पालन पोषण एवं प्रबंधन

पशुओं का पालन पोषण एवं प्रबंधन

Nurturing and management of livestock

पशुपालन ग्रामीण जीवन का महत्‍वपूर्ण अंग है। समृद्ध डेयरी व्‍यवसाय के कारण देश,  दुग्‍ध उत्‍पादन मे अग्रणी बना हुआ है। पशुओं के पालन पोषण एवं प्रबंधन  के लिए तीन बातों पर ध्यान देना अत्‍यंत आवश्‍यक है। सही जनन, सही खानपान और रोगों से बचाव

1. सही जनन:

सही जनन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

अच्‍छी नस्ल का चुनाव :

पशुपालन के लिए नस्लों का चुनाव करते समय वहाँ की जलवायु और सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश पर ध्यान देना आवश्यक है। बिहार की जलवायु के अनुसार यहा जो पशुपालक संकर नस्ल की पशु पालना चाहते है वह जरसी क्रॉस पाल सकते है।

वैसे इलाके जहां हरा चारा प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है वहाँ फ्रीसियन क्रॉस भी पाली जा सकती है। जो पशुपालक देशी नस्ल की गाय पालना चाहते है वो साहिवाल, रेड सिंधी अथवा थरपारकर नस्ल की गाय पाल सकते है। भैंसों मे मुर्रा नस्ल की भैंस को पालना यहा की आवो हवा के अनुसार सबसे उपयुक्त है।

कृत्रिम गर्भाधान:

मादा के जननांग मे शुक्राणु को कृत्रिम रूप से रखने की प्रक्रिया को कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं। इसके कई लाभ हैं

  1. सांढ को पालने की आवश्यकता नहीं रहती है
  2. संक्रामक बीमारियो के फैलने की संभावना कम हो जाती है।
  3. उत्तम गुण वाले सांढ का उपयोग अधिक से अधिक किया जा सकता है।
  4. नर के मरने के बाद भ उसके शुक्राणु का उपयोग किया जा सकता है।
  5. रेकॉर्ड रखने मे सुविधा होती है।

कृत्रिम गर्भाधान का उचित समय गाय मे  गर्मी के मध्य मे अर्थात गर्मी मे आने के 12 से 16 घंट के बीच मे तथा भैस मे गर्मी के अंत मे अर्थात 20-24 घंटे के बीच है अतः गर्भाधान के लिए कृत्रिम गर्भाधान इसी समय के बीच करना चाहिए।

सही खानपान व पोषण:

वैज्ञानिक दृष्टि से पशु को शरीर के भार के अनुसार खिलना चाहिए।  पशु के जीवित रहने के लिये जितनी भोजन की आवश्यकता होती है उसे हम निर्वाह राशन कहते। निर्वाह राशन के रूप मे उसके वजन का 2-2.5(खुस्क मात्रा) प्रतिशत खिलाना चाहिए।

एक वयस्क पशु को निर्वाह राशन के रूप मे 15 किलोग्राम हरा चारा तथा 4-5 किलोग्राम सूखा भूसा अवश्य देना चाहिए । पशु को दूध उत्पादन एवं अन्य काम के लिए अलग से वर्धक राशन देना चाहिए।  10 किलोग्राम तक दूध देने वाली पशुओं को अगर उन्हे इच्छानुसार दलहानी चारा दिया जा रहा हो तो कोई भी ज्यादा दना देने की आवश्यकता नहीं है।

परंतु अगर गाय 10 किलोग्राम से ज्यादा और भैस 7 किलोग्राम से ज्यादा दूध दे रही है तो प्रत्येक 2.5 किलोग्राम दूध पर गाय को और प्रत्येक 2 किलोग्राम दूध पर भैंस को एक किलोग्राम दाना मिश्रण अवश्य देना चाहिए।

पशु के गाभिन काल के अंतिम 60 दिनों मे शरीर भर मे कम से कम 500 ग्राम प्रतिदिन की बढ़ोतरी होना चाहिए । इसके लिए अतिरिक्त 1 किलोग्राम दाना मिश्रण प्रतिदिन खिलाना चाहिए। जो गाय प्रतिदिन 15 लीटर से अधिक दूध देती है , उनकी आधारीय उपापचय की दर अधिक होती है। इस कारण इन्हे निर्वाह राशन 20-40 प्रतिशत अधिक देना चाहिए।

बछरों की खिलाई पिलाई :

खीस पिलाना: खीस नवजात बछरों के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योकि यह बछड़े के स्वास्थ्य के लिए तो लाभदायक तो है ही साथ ही यह उसमे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढाता है । खीस को बछड़े के जन्म के दो घंटे के बाद ही पीला देना चाहिए।

पौष्टिकता की दृष्टि से खीस का काफी महत्व है। इसमे दस्तावर गुण होता है, जिससे बछड़े के पेट मे इकट्ठे माल आदि की सफाई हो जाती है। यदि गाय किसी कारणवश दूध नहीं देती है तथा बछड़ो को अपनी माँ का दूध नहीं मिल पाता है तो इस स्थिती मे दो अंडों को एक औंस अरंडी का तेल मिलकर खिलाना चाहिए। बछड़ो को उसके शरीर के 1/10 वे भाग के बराबर दूध पिलाना चाहिए।

नवजात बच्चो की देखभाल:

गाय / भैस के ब्याने के बाद बच्चे के नाक एवं मुंह से झिल्ली साफ कर देना चाहिए तथा माँ को उसे चाटना देना चाहिए जिससे शरीर मे रक्त का प्रवाह सुचारु रूप से हो सके। अगर गाय/भैंस न चाटे तो उसके ऊपर सेंधा नमक लगा दे।

बच्चे के पीले खुरो को साफ कर दे जिससे बच्चे को तुरंत खड़े होने मे आसानी हो। बच्चे की नाभि ऊपर से काटे तथा उसपर स्पिरिट या बीटाडीन लगा दे।

नवजात बच्चे आपस मे शरीर चाटते है जिससे पेट मे बाल चला जाता है और हैयर बॉल बन जाता है जिससे की पाचन क्रिया मे रुकावट आती है अतः बच्चों के मुह मे 8-10 दिनों तक जाली लगाकर रखना चाहिए। बच्चे को सर्दी से बचाने के लिए उसे सुखी जगह पर रखे तथा ठंडी हवा न लगने दे।   

पशुओं का रोगों से बचाव:

रोगों की रोकथाम के लिए सही समय पर कृमिनाशक दवा एवं टिकाकरण कराना चाहिए। पहली बार कृमिनाशक दवा जन्म के 15 दिन के बाद खिलाना चाहिए। उसके बाद एक साल की उम्र तक प्रत्येक महीने कृमिनाशक दवा खिलाना चाहिए। वयस्क पशु को साल मे दो बार वर्षा ऋतु के पहले और बाद मे कृमिनाशक दवा खिलना चाहिए।

नवजात पशुओं में टिकाकरण

बीमारी का नाम मात्रा/डोज़ आयु
मुंह खुर पका रोग

बड़ा पशु 3 मि. ली.

छोटा पशु 2  मि. ली. 

जन्म के चार महीने के बाद,

बूस्टर छह महीने के बाद,

पुनः हर वर्ष मे दो बार

गलघोटू

गाय/ भैंस 3 मि. ली.

भेड़/ बकरी 1-2 मि. ली.

जन्म के छह महीने के बाद,

बूस्टर छह महीने के बाद,

पुनः हर वर्ष वर्षा ऋतु के पहले

लंगड़ा

गाय/ भैंस ५ मि. ली.

भेड़/ बकरी 1-2 मि. ली.

जन्म के छह महीने के बाद,

पुनः हर वर्ष वर्षा ऋतु के पहले ३ साल तक

विष ज्वर/ अन्थ्राक्स 1 मि. ली. त्वचा मे

जन्म के छह महीने के बाद,

पुनः हर वर्ष

 


लेखक:

शंकर दयाल1 एवं रजनी कुमारी2 

1वरीय वैज्ञानिक,2 वैज्ञानिक

पूर्वी क्षेत्र के लिए भा. कृ. अनु. प. का अनुसंधान परिसर, पटना -800014, बिहार

Email: antudayal@gmail.com

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