जैविक खेती के जरिए युवाओं का विकास एवं सशक्तिकरण 

सर अल्बर्ट हॉवर्ड, एफएच किंग, रुडोल्फ स्टेनर और अन्य लोगों द्वारा 1900 के दशक की शुरुआत में जैविक कृषि की अवधारणाओं को विकसित किया गया था, जो मानते थे कि पशु खाद , फसलों को कवर, फसल रोटेशन, और जैविक आधारित कीट नियंत्रण।

हावर्ड, भारत में एक कृषि शोधकर्ता के रूप में काम कर रहे थे, उन्होंने पारंपरिक और टिकाऊ खेती प्रथाओं से बहुत प्रेरणा प्राप्त की, जो उन्होंने वहां सामना किया और पश्चिम में उनके गोद लेने की वकालत की। इस तरह की प्रथाओं को विभिन्न अधिवक्ताओं ने आगे बढ़ाया - जैसे कि जे.आई. रोडले और उनके बेटे रॉबर्ट, 1940 और उसके बाद, जिन्होंने ऑर्गेनिक गार्डनिंग और फार्मिंग पत्रिका प्रकाशित की और जैविक खेती के लिए कई ग्रंथों का प्रकाशन किया।

राहेल कार्सन द्वारा 1960 के दशक में साइलेंट स्प्रिंग के प्रकाशन से जैविक खाद्य पदार्थों की मांग को बढ़ावा दिया गया था, जिसमें कीटनाशकों से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की मात्रा का दस्तावेजीकरण किया गया था।
पारंपरिक कृषि की तुलना में, जैविक खेती कम कीटनाशकों का उपयोग करती है, मिट्टी के कटाव को कम करती है, भूजल और सतह के पानी में नाइट्रेट की कमी होती है, और जानवरों के कचरे को खेत में वापस लाती है।

इन लाभों को उपभोक्ताओं के लिए उच्च खाद्य लागतों और आमतौर पर कम पैदावार द्वारा प्रतिसंतुलित किया जाता है। दरअसल, परंपरागत रूप से उगाई गई फसलों की तुलना में जैविक फसलों की पैदावार लगभग 25 प्रतिशत कम पाई गई है, हालांकि यह फसल के प्रकार के आधार पर काफी भिन्न हो सकती है।

जैविक खेती के तरीके

जैविक खेती में विभिन्न तकनीकें शामिल हैं जो पारिस्थितिक रूप से हैं और इसका अभ्यास करके मिट्टी की उर्वरता को लंबे समय तक संरक्षित किया जाता है। जैविक खेती में विभिन्न विधियां उनमें से कुछ फसल चक्रण, हरी खाद का उपयोग, जैविक कीट नियंत्रण और खाद हैं, ये भी कृषि मजदूरों को रोजगार प्रदान करते हैं।

फसल चक्र

यह मौसम के अनुसार एक ही क्षेत्र में विभिन्न फसलों को उगाने की तकनीक है और कृषि कीटों से बचने के लिए, और प्रजनन क्षमता को बनाए रखने के लिए इसका अभ्यास किया जाता है।

हरी खाद

हरी खाद पौधों की पत्तियां और अपशिष्ट पदार्थ होते हैं जो मिट्टी को ढक देते हैं और मिट्टी में भर जाते हैं और मिट्टी के पोषक तत्व बन जाते हैं और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं।

जैविक कीट नियंत्रण

जीवित जीवों का उपयोग सिंथेटिक रसायनों के बिना पौधों को कीट से बचाने के लिए किया जाता है।

जैविक खेती के फायदे

जैविक खेती कृषि करने का एक महत्वपूर्ण रूप है, जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र के कई लाभ हैं जैसेः

1. पोषण: जैविक भोजन पोषक तत्वों से भरपूर होता है और यह हानिकारक रसायनों से मुक्त होता है, यह मिट्टी में पोषक तत्वों को भी बढ़ाता है इसलिए उगाई गई फसल स्वास्थ्यवर्धक होती है।

2. जैव विविधता को बढ़ावा देना: मिट्टी की उर्वरता का निर्माण करने और जानवरों को प्राकृतिक रूप से उभारने के लिए फसल रोटेशन जैव विविधता को बढ़ावा देने में मदद करता है, जो सभी जीवित प्रजातियों में अधिक से अधिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। चूंकि जैविक खेत वन्यजीवों को सुरक्षित स्थान प्रदान करते हैं, स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में भी सुधार होता है।

3. फार्म प्रदूषण को कम करना: जबकि ‘‘फार्म स्मॉग‘‘ वास्तविक नहीं है, पारंपरिक खेती सिंथेटिक उर्वरक और रासायनिक कीटनाशकों से अपवाह के संबंध में प्रदूषण के अपने रूपों का निर्माण करती है, जो आसपास के क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाती हैं। यह अपवाह स्थानीय भूजल आपूर्ति में फैल जाती है। जैविक खेती के माध्यम से हानिकारक रसायनों का उपयोग समाप्त हो जाता है, पर्यावरण को लाभ होता है। जैविक खेती मिट्टी में सुधार करती है, भूजल प्रदूषण के जोखिम को दूर करती है और उन क्षेत्रों में मिट्टी का पुनर्वास करती है जहां पहले से ही पानी की आपूर्ति को नुकसान पहुंचा है।

4. गुणवत्ता वाला भोजन: जैविक भोजन वास्तव में उन उत्पादों की तुलना में बेहतर है जो पारंपरिक खेतों और विधियों से आते हैं। जैविक उपज में गैर-कार्बनिक किस्मों की तुलना में कम नाइट्रेट सामग्री होती है, जिससे फलों का स्वाद मीठा ही नहीं होता बल्कि उच्च एंटीऑक्सीडेंट स्तर भी होता है। विज्ञान दर्शाता है कि जैविक खेती केवल स्वादिष्ट नहीं है, बल्कि आपके लिए बेहतर है!

5. लंबे समय तक भंडारण: जैविक खाद्य पदार्थों में सिंथेटिक रसायनों का उपयोग करके उगाई गई अन्य फसलों की तुलना में उनके सेलुलर संरचना में चयापचय और संरचनात्मक अखंडता के कारण लंबे समय तक भंडारण की क्षमता है।

6. कम आय लागत: जैविक खेती के साथ कृषि पर खर्च कम है क्योंकि इसके लिए जमीन तक जानवरों की जरूरत होती है, जो खाद आसानी से उपलब्ध हैं और वे खुद तैयार कर सकते हैं, और जैव उर्वरक कम लागत के साथ तैयार किए जाते हैं।

7. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में मदद करना: जैविक खेती गैर-ऊर्जा ऊर्जा के उपयोग को कम करती है, क्योंकि यह रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग से बचती है, जिसके उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता होती है। जैविक खेती से मिट्टी में अधिक कार्बन भी लौटता है, जो तब ग्रीनहाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग को कम करता है।

8. कृषि की संस्कृति का संरक्षण: दुनिया भर में, हर संस्कृति में कम से कम एक चीज होती हैः भोजन। जैविक खेती जैव विविधता और अच्छे स्वास्थ्य का जश्न मनाती है, और यह हमारे पर्यावरण और हमारे भोजन से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को निकालती है। यह प्रोत्साहित करने और जश्न मनाने के लिए कुछ है!

जैविक खेती की सीमाएं

  • जैविक खेती परिणाम प्राप्त करने में अधिक समय लगने वाली प्रक्रिया है, जो किसानों को इस तरह की खेती की उपेक्षा करने के लिए मजबूर करती है।
  • इसमें अधिक श्रम शक्ति की आवश्यकता होती है और पारंपरिक खेती की तुलना में इसका नियमित अवलोकन होना चाहिए।
  • जैविक खेती एक कौशल आधारित काम है और किसानों को मौसम और फसलों की स्थिति के अनुसार समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ख्21-29,।
  • पारंपरिक खेती की तुलना में जैविक खेती में कम उत्पादकता प्रमुख समस्या है, लेकिन कृषि के पारंपरिक रूप में रसायनों के अधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता समय-समय पर घटती जा रही है।
  • हालांकि इसके कुछ नुकसान भी हैं, यह कृषि करने का एक उपयोगी रूप है, जो पारिस्थितिकी तंत्र और उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाता है,। मिट्टी पोषक तत्वों को प्राप्त करती है और कृषि के लिए मिट्टी की उर्वरता को अधिक समय तक और उपयोगी बनाए रखती है।

जैविक खेती के जरिए युवाओंऔर मजदूरों को रोजगार

वर्तमान में मशीनरी मानव शक्ति की जगह ले रही है और उन्हें बेरोजगार बना रही है लेकिन जैविक खेती के साथ यह रोजगार प्रदान करती है क्योंकि खाद तैयार करने से लेकर फसलों की कटाई तक कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

विभिन्न प्रकार के जैविक फल और सब्जियां बाजार में उपलब्ध है। इनमें से जैविक फल, सब्जियां, अनाज और दुग्ध उत्पाद और मीट सबसे ज्यादे मात्रा में खरीदे जाते हैं। इसके अलावा जैविक खाद्य पदार्थों द्वारा तैयार किये गये सोडा, कुकीज और नाश्ते में उपयोग होने वाला दलिया आदि जैसी वस्तुएं बाजार में आसानी से उपलब्ध है। इसी तरह आर्गेनिक दूध और मीट भी साधरण दूध और मीट के तुलना में अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं।

बाजार में खाद्य पदार्थों जैसे की फलों और सब्जियों के बढ़ती मांग के कारण उनमें कई बार कीटनाशकों के तत्व भी पाये गये हैं। यहीं कारण है कि जैविक खाद्य पदार्थों की लोकप्रियता काफी बढ़ गयी है और अब लोग अनाज, दालों, चाय, मसालों और तिलहन में भी जैविक तरीके से उत्पन्न वस्तुओं को वारीयता दे रहे हैं। नीचे दिए गये कुछ खाद्य पदार्थ जैविक मानको की श्रेणी में आती है। जो खेती के अलावा रोजÛार भी प्रदान करती है

1. सब्जियां: जैविक सब्जियां जैविक खाद्य पदार्थों का सबसे बड़ा हिस्सा है। पालक, टमाटर, फूलगोभी, आलू, करेला, गाजर, शिमला मिर्च और हरी मिर्च जैविक रुप से उगायी गयी सब्जियों का एक बड़ा हिस्सा है। इन सब्जियों में जहरीले रसायन और उर्वरक नही इस्तेमाल किये जाते हैं। इनकी बुवाई हाथों द्वारा काफी सघन तरीके से की जाती है।

2. फल और इनके रस: जैविक तरीके से उगाये गये फल भारत में जैविक खाद्य पदार्थों में एक अहम योगदान देते हैं। अलफांसो आम, अनार, केला, आड़ू और सेव सबसे ज्यादे खरीदे जाने वाले जैविक फल होते हैं। इन तरह के फलों में तेजी से पकाने वाले रसायनो जैसे कि असेटलीन गैस और कैल्शियम कार्बइड का उपयोग नही किया जाता है। हम कह सकते हैं कि आर्गेनिक तरीके से तैयार किये गये फलों का स्वाद और गुणवत्ता में रसायनिक तरीके से पकाये गये फलों से कही ज्यादे अच्छे होते है।

3. अनाज: वर्तमान में जैविक तरीके से उगाये गये अनाज की बाजार में काफी मांग है, क्योंकि लोग अब दिन-प्रतिदिन स्वास्थ्य को लेकर और अधिक सजग होते जा रहे हैं। इस श्रेणी में गेहुं, बाजरा, मक्का और चावल आदि जैसे आनज सबसे प्रमुख है।इन अनाजों को उगाने के लिए रसायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकोंके जगह कम्पोस्ट और जैविक खादों का प्रयोग किया जाता है।

4. फलियां: आज के समय में उपभोक्ता जैविक तरीके से उगाये गये दालो में काफी रुचि ले रहे हैं, जिनमें मूंग, चना, तूर, उड़द, अरहर, राजमा आदि प्रमुख है। ऐसा देखा गया है कि जैविक तरीके से उगाये हुई दालें ज्यादे मीठी और पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसके साथ ही इन्हें पकाने पर उत्पन्न होने वाली सुंगध भी इनके उच्च श्रेणी को प्रमाणित करने का कार्य करती हैं।

5. दुग्ध उत्पाद: दुध जैविक खाद्य पदार्थों के श्रेणी में एक लोकप्रिय वस्तु है। अगर साधरण शब्दों में कहे तो जैविक रुप से प्राप्त दुध वह दुध है, जो उन गायों से प्राप्त किया गया हो, जिन्हें नाही ग्रोथ हार्मोन लगाये गये हो और नाहि अंटिबायोटिक्स दिये गये हो।

इसके साथ ही उन्हें पूर्ण रुप से सिर्फ जैविक उत्पाद खिलाये गये हो और प्राकृतिक रुप से बड़ा किया गया हो। यह सब इसलिए सुनिश्चित किया जाता है ताकि प्राप्त दुध में किसी प्रकार के अवांछनीय रसायन ना मिले हो क्योंकि पशु जो खाते हैं उनपर उनका काफी ज्यादे प्रभाव पड़ता है।

6. अंडे: जैविक रुप से प्राप्त किये गये अंडों की भी आजकल बाजार में काफी मांग है, प्रायः यह उन मुर्गियों से प्राप्त होता है, जिन्हें प्राकृतिक आहार दिया जाता है और इसमें किसी प्रकार के अंटीबायोटिक्स, केमिकल, अंडे के छिलके आदि नही मिले होते हैं। इसके साथ ही इन मुर्गियों को पिजरे में भी नही रखा जाता है।

7. मीट: आर्गेनिक मीट उन पशुओं से प्राप्त होता है, जिन्हें बिना किसी दवा, रेडियशन या किसी अन्य अप्राकृतिक तरीके से ना बड़ा किया जाता हो। जैविक रुप से बड़े किये जानवरों को अच्छे वातावरण में प्राकृतिक भोजन खिलाकर बड़ा किया जाता है। उन्हे घास, अनाज, बेरीज, बीज और हरे पत्तेदार वस्तुएं खिलाई जाती हैं। यह जैविक रुप से तैयार किये गये मीट ओमेगा 3 और अन्य कई पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं तथा नान-आर्गेनिक मीट से कही ज्यादे अच्छे होते हैं।

8. पेय पदार्थ: वर्तमान समय में जैविक रुप से उत्पादित चाय की काफी मांग है। इसका कारण है कि आर्गेनिक चाय में समान्य चाय के मुकाबले अधिक स्वाद और पोषक तत्वों से भरपूर होती है।जैविक तरीके से की गयी चाय की खेती उच्च गुणवत्ता वाली हरी पत्तियों का उत्पादन करने के लिए खेती के पारंपरिक तरीकों पर आधारित है।

इस तरीके में चायों की छटाईं हाथ द्वारा की जाती है और खरपतवार को गाय गोबर के साथ मिश्रित करके उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है। इस विधी में विभिन्न प्रकार कीचाय के पौधों की रक्षा के लिए गौ-मूत्र का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा अन्य लोकप्रिय कार्बनिक पेय पदार्थों में कॉफी, जल जीरा, आम पन्ना, निंबू पानी, गन्ने का रस, टॉडी और कोकम रसआदि शामिल हैं।

9. औषधीय पौधों का औद्योगीकरण: औषधीय पौधों की खेती एवं संग्रह द्वारा समय-समय पर वैज्ञानिक तरीकों से सुखा कर प्रोसेसिंग करना जरूरी है। प्रोसेसिंग करने से जड़ी बूटियों की कीमत में काफी वृद्धि की जा सकती है। औषधि का तत्व, चूर्ण, एक्सट्रैपक्ट बनाकर विदेशों को निर्यात करना घरेलू उद्योगों को आपूर्ति की जा सकती है अतः जड़ी बूटियों को उद्योग के साथ जोड़ना आवश्यक है

भारत के परिपेक्ष में जैविक खेती 

देश में खाद्यान्न उत्पादन का 40 प्रतिशत भाग वर्षा पर निर्भर खेती वाले क्षेत्रों से होता है। जैविक खादों के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से भी नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके अलावा सूखे क्षेत्रों में खेती के लिए कम लागत वाली सरल प्रौद्योगिकियाँ विकसित की गई हैं और उन्हें जैविक खेती के लिए खेतों तक स्थानान्तरित किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि होने और उत्पादन कायम रहने से सूखी भूमि की खेती से जुड़े समुदायों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में मदद मिलेगी, जो देश का एक निर्धनतम समुदाय है

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत में सामाजिक - सांस्कृतिक पर्यावरण अनुकूल है। भारतीय किसान हरित क्रान्ति की शुरुआत से पहले तक खेती के पर्यावरण-हितैषी तरीके का प्रयोग करते रहे हैं, जो पश्चिमी देश में खेती की कृत्रिम विधियों पर आधारित थी। कई कारणों से छोटे और सीमान्त किसानों ने अब तक कृत्रिम खेती को पूरी तरह नहीं अपनाया है और वे कमोबेश पर्यावरण - हितैषी पारम्परिक प्रणाली का अनुसरण कर रहे हैं।

वे स्थानीय अथवा अपने खेतों से प्राप्त पुनर्जीवन संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं और स्वनिर्मित पारिस्थितिकीय और जैविकीय प्रक्रियाओं का प्रबन्धन करते हैं। खेती करने और फसलों, पशुधन तथा मानव के लिए पोषक उत्पादों के स्वीकार्य स्तरों के लिए यह आवश्यक हो गया है और इससे भी अधिक फसलों और मानवों को उन कीटनाशकों और बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है जो जैव-रसायनों और जैव-उर्वरकों के इस्तेमाल से सम्भव हो सकता है। ऐसी स्थिति में खेती से जुड़े समुदाय को जैविक कृषि की विधियों से अवगत कराने से इस दिशा में कठिनाइयाँ कम हो सकती हैं।

भारत जैसा देश जैविक खेती को अपनाकर कई प्रकार से लाभान्वित हो सकता है। उत्पादों के लाभकारी मूल्य, मिट्टी की उर्वर और जल की मात्रा के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, मृदा क्षरण की रोकथाम, प्राकृतिक और कृषि जैव-विविधता का संरक्षण आदि उनमें शामिल है।

इसके माध्यम से ग्रामीण रोजगार के सृजन प्रवास में कमी, उन्नत घरेलू पोषण, स्थानीय खाद्य सुरक्षा तथा बाहरी चीजों पर निर्भरता में कमी जैसे आर्थिक तथा सामाजिक लाभ भी प्राप्त होंगे। इस प्रकार जैविक खेती से पर्यावरण का संरक्षण होगा और मानवीय जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होगी।

घरेलू बाजारों में जैविक उत्पादों की अच्छी माँग है और उतनी मात्रा में आपूर्ति नहीं हो पाती है। इन दोनों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है जिसके कारण उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है। थोक विक्रेता और व्यापारी जैविक उत्पादों के वितरण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ये छोटे खेतों से उपजते हैं। बड़े किसानों की आपूर्ति बाजारों तक पहुँच है और वितरण के लिए उनकी अपनी दुकानें हैं। जैविक उत्पादों के लिए महानगर प्रमुख घरेलू बाजार हैं।

भारत में जैविक खेती की सम्भावनाओं के लिए मध्य प्रदेश एक अच्छी जगह हो सकती है। राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में अधिक लाभकारी कीमतें और उनकी आपूर्ति में कमी होना भारत के लिए एक अवसर जैसा है। उसी प्रकार भारत के जैविक कपास के मामले में अच्छी सम्भावना दिखाई पड़ती है

भविष्य की संभावनाओं

वर्तमान दुनिया में अधिकांश उपभोग करने वाले खाद्य पदार्थों में हानिकारक रसायन होते हैं जो अनजाने में विभिन्न बीमारियों का कारण बन रहे हैं या जानबूझकर उपेक्षित हैं, इसे जैविक खेती से कम किया जा सकता है। कृषि भूमि कृषि के लिए बेकार हो रही है अगर यह जारी रहेगा तो आने वाली पीढ़ियों को खाद्य उत्पादन की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा और वे गुणवत्ता वाले भोजन का उत्पादन करने में असमर्थ हैं। इसके लिए धैर्य के साथ जैविक कृषि कौशल का उचित अभ्यास आवश्यक है। 


Authors

डा. ए. एस. तिग्गा1 , पूजा जेना1 ,  डा. षिवनाथ दास2 , डा. रंजीत कुमार2 एवं डा. राजन कुमार2

1 बिहार कृशि विष्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर
2 डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृशि विष्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर

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