Natural farming is a necessity to maintain soil health and yield of sugarcane
For sugarcane production, the field is deeply plowed two to three times, due to which a hard layer (hard pan) is formed on the lower surface of the field, which affects the air circulation, activity of microorganisms, etc. in the soil. In such a situation, if natural ingredients are used for sugarcane production, then the health of the soil will be maintained and the farmer brothers will continue to get bountiful yield.
Natural farming is a necessity to maintain soil health and yield of sugarcane
गन्ने की फसल में किसानों द्वारा अंधाधुन रसायनिक उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है जिससे मिट्टी की संरचना खराब होती है तथा धीरे-धीरे मिट्टी बंजर होने लगती है। गन्ना उत्पादन के लिए खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई की जाती है जिससे खेत की निचली सतह पर कठोर परत (हार्ड पैन) बन जाता है जो कि मिट्टी में हवा संचरण, सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता इत्यादि को प्रभावित करता है। ऐसी परिस्थिति में यदि गन्ना उत्पादन के लिए प्राकृतिक अवयव का प्रयोग करते हैं तो मिट्टी का स्वास्थ्य बना रहेगा और किसान भाइयों को भरपूर उपज मिलता रहेगा।
पारंपरिक जैविक खादों की कमी के संदर्भ में मृदा संरक्षण और स्वास्थ्य पर बढ़ती चिंता के साथ, फसल बायोमास की क्षमता का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की आवश्यकता है। गन्ना एक ऐसी फसल है जो 7-12 टन/हेक्टेयर फसल अवशेष पैदा करती है, जो जैविक कार्बन और पौधों के पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है।
फसल अवशेष को जलाने से मिट्टी के जैविक गुणों और उर्वरता को कम करने के अलावा पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिलेगा। इस संदर्भ में, एकीकृत गन्ना फसल अवशेष प्रबंधन जो माइक्रोबियल समृद्ध (ट्राइकोडर्मा विरिडे), फार्म यार्ड खाद और यूरिया (75 किग्रा/हेक्टेयर) का उपयोग करके फसल अवशेष का संरक्षण और विघटन करता है जो मिट्टी के स्वास्थ्य और गन्ने की उपज को बनाए रखने में एक नई तकनीक के रूप में काम करता है।
फसल अवशेष प्रबंधन तकनीक ने मिट्टी की नमी को बनाए रखने के साथ-साथ केंचुओं की संख्या में वृद्धि और खरपतवार की संख्या को कम किया। वैज्ञानिक शोध से प्रमाणित हुआ है कि एकीकृत गन्ना फसल अवशेष प्रबंधन से 15 दिन पहले कलियों का जमाव हुआ। और एकीकृत गन्ना फसल अवशेष प्रबंधन ने गन्ने की उपज में वृद्धि पाई गई। गन्ने की फसल अवशेषों में नाइट्रोजन की आपूर्ति करने की क्षमता होती है।
जब अवशेष कटाई के बाद मिट्टी की सतह पर रखा जाता है तब मिट्टी में तापक्रम को संरक्षित रखता है। फलस्वरूप सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता को बढ़ाता है। उष्णकटिबंधीय जलवायु में अवशेष अपघटन की दर के साथ-साथ लीचिंग के कारण मिट्टी-पौधे प्रणाली से घटी हुई नाइट्रोजन की मात्रा को बरकरार रखता है। फसल अवशेष जलाने के कारण उत्पन्न तीव्र गर्मी से सूक्ष्मजीव मर जाते हैं।
एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन से तीन वर्षों के शोध से यह सिद्ध हुआ है कि मिट्टी में कार्बनिक कार्बन, उपलब्ध नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम को क्रमशः 11.2, 3.6, 8.5 और 11.2 प्रतिशत तक बढ़ाया है तथा औसतन गन्ना उपज में 12.8 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई है। इस लेख का उद्देश्य है कि वर्तमान परिस्थिति में फसल में नाइट्रोजन पोषण के लिए गन्ना अवशेष के योगदान को उजागर करना है।
कई प्रायोगिक परिणामों से पता चला है कि गन्ने की फसल अवशेष धीरे-धीरे और कम मात्रा में नाइट्रोजन की आपूर्ति पौधे को करता है, इसलिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गन्ने के उत्पादन के लिए अवशेष से नाइट्रोजन खनिजकरण करना महत्वपूर्ण है।
गन्ना मुख्य रूप से दो प्रकार के बायोमास का उत्पादन करता है-गन्ना ट्रेस और खोई (बगास)। गन्ने का ट्रेस गन्ने के डंठल की कटाई के बाद बचा हुआ अवशेष है, जबकि खोई गन्ने की मिलिंग के बाद बचा रेशेदार अवशेष है, जिसमें 45-50% नमी की मात्रा होती है और इसमें नरम और चिकनी पैरेन्काइमेटस (पिथ) के साथ कठोर फाइबर का मिश्रण होता है।
बिहार में गन्ने की खेती वाले क्षेत्र में बिगड़ती मिट्टी का स्वास्थ्य और कम पैदावार एक चिंता का कारण है। इसकी 110 टन/हेक्टेयर की संभावित उपज की तुलना में पिछले दस वर्षों में स्थिर औसत उत्पादकता 68 टन/हेक्टेयर के करीब पाई जा रही है।
गन्ने की फसल के बाद स्थानीय किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली अवशेष जलाने की प्रथा बेहद नुकसानदायक है। प्रत्येक टन गन्ने के अवशेष में लगभग 5.4 किग्रा N, 1.3 किग्रा P2O5, 3.1 किग्रा K2O और सूक्ष्म पोषक तत्व की थोड़ी मात्रा पाई जाती है। जब गन्ने के कचरे को जलाया जाता है, तो अवशेष में अधिकांश कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्व का ह्रास हो गया हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है।
किसान आमतौर पर कचरे को इस मानसिकता के साथ जलाते हैं कि इसका प्रबंधन श्रमसाध्य है, जबकि इससे अंकुरण प्रभावित होता है तथा खूंटी की खेती में बाधा उत्पन्न करता है। दूसरी ओर किसान फसल की पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। इसलिए, वर्तमान में प्राकृतिक खेती के तहत मृदा स्वास्थ्य और गन्ने की उपज को बनाए रखने के लिए किसानों को फसल अवशेषों के संरक्षण, मिट्टी की उर्वरता और गन्ने की उपज पर इसके सकारात्मक प्रभाव के लिए प्रेरित करना है।
गन्ना अवशेष में सूखी एवं हरी पत्तियां और गन्ने के डंठल की मात्रा होती है, जो शुष्क पदार्थ के 10 से 20 टन/हेक्टेयर तक होती है, उच्च C:N अनुपात (80 से 110 1) होती हैं। नाइट्रोजन का 80 किग्रा/हेक्टेयर, मिट्टी में ऊर्जा के कारण बढ़ी हुई सूक्ष्मजीव गतिविधि के कारण उच्च C:N अनुपात में महत्वपूर्ण नाइट्रोजन स्थिरीकरण होता है, जिससे अल्पावधि में नाइट्रोजन रिलीज की दर धीमी हो जाती है। ट्रैश- नाइट्रोजन का खनिजकरण धीरे-धीरे फसल के लिए उपलब्ध होता है, लगभग 40 किलोग्राम/हेक्टेयर/वर्ष नाइट्रोजन की आपूर्ति करने से मिट्टी-पौधे के पारिस्थितिकी तंत्र को अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति भी करता है।
गन्ने के अंकुरण और उपज पर एकीकृत फसल अवशेष प्रबंधन का प्रभाव
फसल अवशेषों को जलाने से अंकुरण कम होता है और नियमित खूंटी की खेती में बाधा उत्पन्न होती है। फसल अवशेषों की पतली परत को खेत में समान रूप से फैलाकर जलाने से उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी के परिणामस्वरूप अंकुरण में तेजी आता है। इसके अलावा गन्ने की परिपक्वता 15-20 दिन पहले हो जाती है। ज्ञातव्य हो कि मुख्य फसल की उपज खूंटी फसलों की तुलना में हमेशा अधिक होता है।
आंकड़ों से पता चलता है कि एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन में पहले खूंटी और आधार वर्ष की तुलना में दूसरी और तीसरी खूंटी फसल में गन्ने की उपज में औसतन वृद्धि 8.5 प्रतिशत पाई गई। गन्ने की पैदावार में वृद्धि का श्रेय अंकुरण प्रतिशत में वृद्धि, मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि और मिट्टी के स्वास्थ्य पर मल्चिंग के सकारात्मक प्रभाव के कारण हुआ है।
गन्ने में ट्रैश मल्चिंग पर शोध से पता चलता है कि ट्रैश मल्चिंग से नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण, मिट्टी की जैविक गतिविधि में वृद्धि और लाभकारी जीवाणुओं / केंचुओं की संख्या में वृद्धि से अतिरिक्त लाभ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अंततः उपज में वृद्धि हुई। मल्चिंग गन्ने की उत्पादकता और मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
कटाई के बाद हरे और जले हुए फसल अवशेष की राख के नमूने से पता चला है कि कचरे में 0.51% कुल नाइट्रोजन होता है जो इसके व्यापक उच्च कार्बन / नाइट्रोजन अनुपात को कम करने और अपघटन दर को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त नाइट्रोजन स्रोत की आवश्यकता है।
राख के नमूनों में हरे फसल अवशेष की तुलना में अधिक कुल फास्फोरस और पोटेशियम की मात्रा पाया गया है, लेकिन जलने के बाद उत्पादित राख की मात्रा हरे फसल अवशेष (7-12 टन/हेक्टेयर) की तुलना में काफी कम (0.75 - 1.0 टन/हेक्टेयर) है, जो, अंततः एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए कम लागत का परिणाम होता है।
मिट्टी के गुणों पर एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन का प्रभाव
कार्बनिक कार्बन: मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की मात्रा इसके स्वास्थ्य और उर्वरता के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन ने मिट्टी की कार्बनिक कार्बन की मात्रा बढ़ाता है। इसके अलावा, नाइट्रोजन और लिग्नोलिटिक माइक्रोबियल कल्चर (ट्राइकोडर्मा विरिडे) के प्रयोग से एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन में कार्बनिक कार्बन के निर्माण के परिणामस्वरूप अवशेष के तेजी से अपघटन को बढ़ाता है। अवशेष जलाने से जैविक कार्बन में कमी दर्ज की गई। यह अवशेष को जलाने की प्रक्रिया के दौरान शुष्क पदार्थ और कार्बन के नुकसान के कारण हो सकता है।
उपलब्ध नाइट्रोजन:
मिट्टी में उपलब्ध नाइट्रोजन मुख्य रूप से नाइट्रोजन आपूर्ति, फसल अवशेष अपघटन और मिट्टी की जैविक कार्बन के स्रोतों पर निर्भर करती है। नाइट्रोजन की हानि अवशेष जलाने के दौरान होती है। उर्वरक के माध्यम से आपूर्ति की जाने वाली अकार्बनिक नाइट्रोजन प्रतिधारण की तुलना में अधिक नुकसान की संभावना होती है। एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन में नाइट्रोजन का कम निर्माण एवं अवशेष में व्यापक कार्बन / नाइट्रोजन अनुपात के लिए जिम्मेदार होता है और इसके परिणामस्वरूप जीवाणुओं द्वारा स्थिरीकरण होता है।
उपलब्ध फास्फोरस:
मिट्टी की उपलब्ध फास्फोरस पर एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन का प्रभाव सकारात्मक है। कई प्रयोगों से पता चला कि एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन से मिट्टी में उपलब्ध फास्फोरस में वृद्धि करने की क्षमता होती है। इस उपलब्ध फास्फोरस को ट्राइकोडर्मा विरिडे के इनोक्यूलेशन के फलस्वरूप होता है, जो कार्बनिक अम्ल और गन्ने के अवशेष से फास्फोरस के उत्पादन के माध्यम से मिट्टी में अनुपलब्ध फास्फोरस को उपलब्ध कराता है। क्षारीय मिट्टी फास्फोरस को अनुपलब्ध रूप में बदल देती है जिससे गन्ने की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
उपलब्ध पोटेशियम:
अवशेष के प्रभावी प्रबंधन से पोटेशियम की मात्रा में वृद्धि होती है क्योंकि अवशेष पोटेशियम का एक समृद्ध स्रोत है। हालांकि अवशेष की राख में अधिक पोटेशियम होता है, लेकिन जलने से उत्पन्न राख की मात्रा गन्ने की फसल की पोटेशियम की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
निष्कर्ष
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि गन्ने की प्राकृतिक खेती के लिए प्राकृतिक तरीके से रोग प्रबंधन, पोषक तत्व का प्रबंधन, फसल चक्र इत्यादि का समावेश करने से किसानों को अत्यधिक लाभ मिलेगा। एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन के तहत यूरिया और ट्राइकोडर्मा विरिडे, कंपोस्ट खाद के उपयोग के साथ पंक्तियों में ट्रैश मल्चिंग की एकीकृत गन्ना अवशेष प्रबंधन तकनीक मिट्टी के स्वास्थ्य और गन्ने की उपज को बढ़ाने में प्रभावी है। इस तकनीक को किसानों में परीक्षेत्र भ्रमण, प्रशिक्षण, प्रदर्शन और समूह चर्चा के माध्यम से लोकप्रिय बनाना किसानों के लिए अत्यधिक लाभकारी है और मिट्टी की नमी के संरक्षण एवं पोषक तत्व प्रबंधन की उपलब्धता में मदद करता है जिससे गन्ने फसल को सिंचाई की संख्या और आवृत्ति में कमी आती है। ट्रैश मल्चिंग से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में मददगार होता है जिससे मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों / केंचुओं की संख्या में बढ़ोतरी होती है। गन्ने की खेती में इस तकनीक को अपनाने से गन्ने की पैदावार में वृद्धि होती है और 15 दिन पहले फसल काटने को तैयार हो जाता है।
Authors:
अजीत कुमार*1, सुनीता कुमारी मीना1, संजीव कुमार सिन्हा2
सहायक प्राध्यापक सह वैज्ञानिक,
मृदा विज्ञान विभाग, ईख अनुसंधान संस्थान,
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर-848125, बिहार, भारत।
*अनुरूपी लेखक इमेल़ः