वर्मी-कम्‍पोस्‍ट क्‍या है।

वर्मी-कम्‍पोस्‍ट क्‍या है।

What is vermi-Compost

वर्मी-कम्‍पोस्‍ट को वर्मीकल्‍चर या केंचुआ पालन भी कहते हैं। केंचुओं के मल से तैयार खाद ही वर्मी कम्‍पोस्‍ट कहलाती है। यह सब प्रकार की फसलों के लिए प्राकृतिक, सम्‍पूर्ण एव्र संतुलित आहार है।

वर्मी-कम्‍पोस्‍ट का उत्‍पादन तथा विपणन एक अच्‍छा पर्यावरण हितैसी रोजगार है। प्राइज़ काल से ही केचुआ किसान का मित्र माना जाता है। खेतो की मिट्टी को भुरभुरी बनाकर यह प्राकृतिक हलवाहे का काम करता है। प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्‍तू ने केंचुओ को धरती की ऑतें कहा है और डारविन ने तो इसे भूमी की उपजता का बैरोमीटर कहा 

केचुओं से खेती में लाभ: केचुओं के द्वारा भूमि की उर्वरकता, पी.एच., भौतिक अवस्‍था, जैव पदार्थ एवं लाभदायक जीवाणूओं मे वृद्धि होती है। 

केंचुओं के मल से भू‍मी में 5 गुणा नत्रजन, 1.5 गुणा विनिमयी सोडियम, 3 गुणा मैग्‍नीशियम, 7.2 गुणा सुलभ फासफोरस तथा 11 गुणा सुलभ पोटाश बढ जाती है। 

खेत में खरपतवार, कीडो एवं बीमारी मे कमी होती है । खेत मे केंचुए पालने से मटर व जंई के उत्‍पादन में 70 प्रतिशत, सेब उत्‍पादन में 25 प्रतिशत, और गेंहू के उत्‍पादन मे 30 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई है। 

वर्मीकम्‍पोस्‍ट कैसे बनाऐं: फार्म व घरो के कूडे करकट, मक्‍का या बाजरे के डंठल- ठूंठ, सूखी पत्तियों व खरपतवार आदि को इक्‍कटठा करके किसी चबूतरे पर या गडढे में या 10’x3’x1.5’ आकार की क्‍यारियों में पर्त लगाकर अंधेरे या छांव मे डालकर उसमें केंचुओ के स्‍पान या कोकून को छोड देते हैं। ये स्‍पान बाजार से पैकेट के रूप में मिलते हैं। स्‍पान बढ कर केचुए बन जाते हैं और उपरोक्‍त अवयवों को खाकर मिट्टी के रूप में मल त्‍याग करते हैं यह ही मल उर्वरक मिट्टी वर्मीकम्‍पोस्‍ट कहलाती है। लगभग डेढ माह में इस प्रकार अच्‍छी खाद तैयार हो जाती है। असीजा फिसिडा (लाल रंग) किस्‍म केचुओं की एक अच्‍छी किस्‍म है। 

वर्मीकम्‍पोस्‍ट कितनी डालें : खेत में पहले साल 5 टन प्रति हैक्‍टेयर, दूसरे साल 2.5 टन प्रति हैक्‍टेयर तथा तीसरे साल 1.25 टन प्रति हैक्‍टेयर वर्मीकम्‍पोस्‍ट डालें। गमलों में 150 से 300 ग्राम वर्मीकम्‍पोस्‍ट प्रति गमला के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। 

सावधानी: वर्मीकम्‍पोस्‍ट से अच्‍छे परिणाम प्राप्‍त करने के लिए इसे पौधों में डालने के बाद पत्‍तों आदि से ढक देना चाहिए तथा इसके साथ रसायन उर्वक, कीटनाशी, फफूंदनाशी या खरपतवारनाशी दवा का प्रयोग कभी भी नही करना चाहिए।

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