Water requirements of major crops and their critical states

फसलों से अधिक व अच्छी पैदावर लेने के लिये उनकी सिंचाई के लिये विभिन्न क्रांतिक अवस्थाओं पर मृदा में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना अति आवश्यक है। फसलो में क्रांतिक अवस्थाए वे अवस्थाएं कहलाती है, जिन पर फसलों में सिंचाई करने या न करने से पैदावार में प्रभाव पडता है अर्थात सिंचाई करने से पैदावार में आशातीत बढोतरी होती है और इन क्रांतिक अवस्थाओं पर फसलो में सिंचाई न करने से पैदावर में कमी आती है।

इसके साथ साथ फसलों में उचित समय पर सिंचाई न करने से भी पौधों की उचित वृद्धि नहीं हो पाती जिसका पैदावार पर प्रतिकुल प्रभाव पड्ता है। इस प्रकार फसलों से अधिक पैदावार लेने के लिए यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि फसलों को सही समय पर सिंचाई उपलब्ध हो तथा प्रत्येक सिंचाई में उचित मात्रा में पानी का प्रयोग किया जाना चाहिये।

विभिन्न फसलों की सिचाई के लिये क्रांतिक अवस्थाएं

गेहूँ

गेहूँ की बौनी जातियो में कुल 5-6 सिंचाई की जरुरत होती है। पहली सिंचाई, क्राउन जड़ें निकलते समय, दुसरी सिंचाई कल्ले निकलते समय, तीसरी सिंचाई गांठ बनते समय, चौथी सिंचाई फूल निकलते समय, पाँचवी सिंचाई दानों में दूध पडने की अवस्था में करनी चाहिए बलुई भूमि में एक और सिंचाई की जरुरत पड सकती है अतः बलुई भुमि में छठी सिंचाई दानों के पकते समय करनी चहिए।

जहॉ पर सिंचाई कि व्यवस्था सीमित हो वहॉ पर तीन या चार सिंचाई जरुर करनी चाहिए। अगर तीन सिंचाई का पानी उपलब्ध है तो पहली सिंचाई क्राउन जड़ें निकलते समय, (20-25 दिन बाद), दुसरी सिंचाई तनो मे गांठे बनते समय (65 दिन बाद) तथा तीसरी सिंचाई दानों में दुध भरने के समय (105-110 दिन बाद) करनी चाहिए।

चार सिंचाई का पानी उपलब्ध होने पर पहली सिंचाई क्राउन जड़ें निकलते समय (20-25 दिन बाद), दुसरी सिंचाई कल्ले निकलते समय (40-45 दिन बाद), तीसरी सिंचाई तनो मे गांठे बनते समय (60-65 दिन बाद) तथा चौथी सिंचाई दानो में दूध पड़ते के समय करनी चाहिए।

यदि दो ही सिंचाई का पानी उपलब्ध हो तो पहली सिंचाई क्राउन जड़ें निकलते समय तथा दुसरी सिंचाई दानो में दूध भरते समय करनी चाहिए। और अगर एक ही सिंचाई का पानी उपलब्ध है तो बुवाई के 30 दिन बाद सिंचाई कर देना उचित रहता है ।

चना

सामान्यत: यह फसल बारानी परिस्थितियों में लगाई जाती है फिर भी चने कि फसल में एक या दो सिंचाई करना लाभदायक होता है। पहली सिंचाई फूल आने से पहले 4-6 पत्तियॉ आने पर (बोआई के 45-60 दिन बाद) करनी चाहिए। तथा दूसरी सिंचाई यदि वर्षा न हो तो, फलियो में दाने बनते समय करनी चाहिए ।

मटर

मटर की फसल को सामान्यत: दो सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल निकलते समय तथा दूसरी सिंचाई शीतकालीन वर्षा न होने पर फलियो में दाना बनते समय करनी चाहिए।

मसूर ‌-

मसूर की खेती अधिकतर असिंचित भागो में की जाती है। यदि उचित समय पर सिंचाई कर दी जाये तो असिंचित फसल की अपेक्षा सिंचित फसल की पैदावार मे काफी वृद्धि हो जाती है। मसूर में पहली सिंचाई शाखाए बनने पर (बोने के 40-45 दिन बाद) तथा दुसरी सिंचाई फलिया बनते समय करनी चाहिए।

सरसों

सरसों की सिंचित फसल में सामान्यत: दो या तीन सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए, दूसरी सिंचाई फली बनते समय तथा तीसरी सिंचाई फलियों में दाना मोटा होते समय करनी चहिए। सरसों की फसल में पहली एवं दूसरी सिंचाई अधिक महत्वपूर्ण होती है। अत: बुआई के 30-35 दिन बाद तथा फली बनते समय, केवल दो सिंचाई से भी सरसों की अधिक पैदावार ली जा सकती है।

उर्द

ग्रीष्मकालीन उर्द की फसल में तीन-चार सिंचाई की जरुरत होती है। पहली सिंचाई बुआई के 25-30 दिन बाद, दूसरी फूल आने से पहले की अवस्था पर तथा तीसरी सिंचाई, दानो के बनने के समय करनी चाहिए। खरीफ की फसल में प्राय: सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यदि लम्बी अवधि तक वर्षा नहीं होती है, तो ऐसे परिस्थिति में आवश्यकताओं के अनुरूप एक-दो सिंचाई की जा सकती है। उर्द की फसल में प्रति सिंचाई 5-6 से.मी. पानी लगाना चाहिए।

मूंग-

मूंग की फसल की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए नमी का होना नितांत आवश्यक है। आशानुरूप व अच्छी उपज के लिए दो-तीन सिंचाई पर्याप्त होती है। मूंग में पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन बाद, दुसरी सिंचाई कलिका निकलते और फूल आने के समय तथा तीसरी सिंचाई दानो के विकास के समय करनी चाहिए।

अरहर-

बरसात का मौसम होने के करण यदि वर्षा नियमित है तो सिंचाई की बहुत जरुरत नहीं होती है। यदि मौसम सूखा होता है तो नमी कि पुर्ति के लिए सिंचाई कर देनी चाहिए। अरहर की फसल में सिंचाई के लिए दो क्रांतिक अवस्थाएं होती है।

पहली बुआई के 30-35 दिन बाद तथा दुसरी फूल आने के समय। यदि इन दोनो अवस्थाओं पर वर्षा नहीं होती है तो सिंचाई कर देनी चाहिए। अरहर की फसल मे जल ठहराव 24 घंटे से अधिक नहीं रहना चाहिए और अधिक उपज के लिये जल निकास का प्रबंधन अति आवश्यक है।

मूंगफली -

मूंगफली की फसल में दो-तीन सिंचाई पर्याप्त होती है। पहली सिंचाई सुईया निकलते समय (पेगिंग), दुसरी सिंचाई फली बनते समय तथा तीसरी सिंचाई फलन के समय करनी चाहिए। मूंगफली की फसल में हल्का पानी (4-5 से.मी. प्रति सिंचाई) लगाना चाहिए।

सोयाबीन

सोयाबीन की फसल मे तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली बीज अंकुरण के समय, दूसरी सिचाई वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था मे, तीसरी सिचाई दाना भरने की अवस्था मे तथा चौथी सिंचाई पकने की अवस्था मे करनी चाहिए। प्रत्येक चरण मे 5-6 से.मी. तक मध्यम सिंचाई करना चाहिए।

तालिका ३ विभिन्न फसलों की सिचाई के लिये क्रांतिक अवस्थाएं

फसल का नाम

सिंचाई की कुल संख्या

फसल की जल जरुरत (से.मी. में)

सिंचाई के लिये फसलों की क्रांतिक अवस्थाएं

फसल की आयु

(दिनों में)

प्रति सिंचाई पानी की मात्रा

(से.मी. में)

गेहु (बौना)

5-6

45-50

क्राउन जडे निकलते समय

कल्ले निकलते समय

गाठे बनते समय/सुशुप्त अवस्था में

फूल निकलते समय

दानो मे दुध पडने के समय

दानो के पकते समय

20-25

40-45

60-65

80-90

105-110

120

6-8

चना

1-2

20-25

फूल आने से पहले

फलियो मे दाना भरते समय

45-60

95-100

7-8

मटर (दानो के लिए)

 

2

 

25-30

 

फूल निकलते समय

फलियो मे दाना भरते समय

45

80-85

6-7

मसूर

2

25-30

शाखाएं बनने पर

फलिया बनते समय

40-45

80-85

6-7

सरसों

2-3

25-30

फूल आने के समय

फलिया बनते समय

फलियो मे दाना मोटा होते समय

30-35

60-65

85-90

8-9

उर्द (रबी एवं ग्रीष्मकालीन )

3-4

25-30

पौध अवस्था

फूल आने से पहले की अवस्था

दाने बनने के समय

25-30

40-45

55-60

5-6

मूंग (रबी एवं ग्रीष्मकालीन )

2-3

25-30

पौध अवस्था

कलिका निकलने और फूल आने के समय 

दानो के विकास के समय

20-25

30-35

40-45

5-6

अरहर

 

40-45

पौध की देर वाली अवस्था

फूल आने पर

30-35

90-95

6-8

सोयाबीन

3-4

45-70

बीज अंकुरण की अवस्था

वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था

दाना भरने की अवस्था

पकने की अवस्था

 

 

 

 

5-6

मूंगफली

2-3

40-45

सुईया निकलते समय

फली बनते समय

फली भरते समय

40-45

65-70

90-95

4-5

 


Authors:

ए.के. श्रीवास्तव एवं योगरंजन

कृषि वैज्ञानिक, कृषि महाविद्यालय, टीकमगढ़,

जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर, म.प्र.-482004

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