Adverse effects of flood and measures to prevent it
आसाम और बिहार मे हर साल बाढ़ की वजह से करीब अनेक लोग मारे जाते है। पिछले साल 45 लाख से ज्यादा लोग इससे सीधे प्रभावित हुए थे। इस साल 2020 मे भी वही परिस्थिति है, हालत बत से बत्तर हो गई है। लाखों लोगों की जिंदगी पर इससे फर्क पड़ा है। उत्तरी बिहार की 76% आबादी बाढ़ की तबाही के आवर्ती खतरे मे है और बिहार के भोगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 73.06% भाग बाढ़ से प्रभावित हुआ है।
आसाम हमेशा से भारत मे सबसे ज्यादा बाढ़ से ग्रस्त रहने वाला राज्य रहा है, इसके पीछे का मुख्य कारण आसाम से गुजरती नदी ब्रह्मपुत्र है, यह नदी एक बहुत ही अस्थिर नदी है, जो की अपनी दिशा को बहुत ज्यादा बदलती है। इसका अस्थिरता के पीछे का कारण एक बड़ा भूकंप था जो की सन् 1950 मे आसाम मे आया था। सन् 1950 से 2010 तक करीब 12 मुख्य बाढ़ आसाम मे आई है, तथा पिछले की सालों मे बाढ़ आने की तीव्रता भी ज्यादा देखी गई है।
बाढ़ की ज्यादा तीव्रता तथा बाढ़ आने की संख्या मे वृद्धि के कुछ मुख्य कारण है :-
- बड़े पैमाने पर जंगलों से पेड़ों का काटा जाना।
- अनियोजित विकास जो की बाढ़ के मैदानों और आद्र.भूमि पर अतिक्रमण के तहत हुआ है।
- जल निकास की उचित प्रणाली का न होना।
- जलवायु परीवर्तन।
- तटबंधों का सही तरीके से न बनाना।
बाढ़ कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। बाढ़ के कारण खेत जलमग्न हो जाते हैं और फसल नुकसान की ओर जाती है जिससे किसानों की ऋणग्रस्तता बढ़ जाती है। नुकसान केवल कृषक समुदाय के लिए ही नहीं है, बल्कि आम आदमी पर भी लगातार महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावाए दुधारू पशुओं के जीवन के लिए खतरा कृषि समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसके अलावाए बाढ़ मिट्टी की विशेषताओं को भी प्रभावित कर सकती है। शीर्ष.परत के क्षरण के कारण भूमि को बांझ बनाया जा सकता है।
बाढ़ पर जलवायु परीवर्तन का प्रभाव
जलवायु परीवर्तन की वजह से साल मे जीतने भी दिन बारिश होती है वो दिन कम होते जा रहे है और बारिश जब भी होती है यह और भी तीव्रता से होने लगी है। अत्यधिक वर्षा के मामले और भी ज्यादा बढ़ते जा रहे है जिसके वजह से बाढ़ होती है परंतु वर्षा आधारित दिनों की कुल संख्या कम होती जा रही है, जिसकी वजह से जल संकट और सूखे की परिसतिथि भी बढ़ती जा रही है।
यही परिस्थिति कुछ समय पहले जून 2020 मे मुंबई मे भी देखी गई थी। मुंबई मे 95% वर्षा मे कमी थी लेकिन जब बाद मे बारिश हुई तो इतनी तेज हुई की सारी सड़के पानी से भर गईए पिछले और इस साल के सारे परिप्रेक्ष्य को पर्यावरण के हिसाब से देखेंगे तो हालत इससे भी खराब होती चली जा रही है।
बाढ़ से बचने के लिए तरीके
तटबंध को बाढ़ग्रस्त इलाकों मे उचित तरीके से बनाए जाने पर बाढ़ के प्रकोप और इससे नुकसान को कम किया जा सकता है। इन तटबंधों को लेवी या डाइक्स भी कहा जाता हैए ये नदी के बहाव को नियंत्रित करने के लिए और बाढ़ को रोकने के लिए नदी के किनारे बनाए जाते है।
सन् 2018 की अमेरिकन रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की मिसिसिप्पी नदी मे जो बाढ़ 100 वर्षों मे एक बार आती थी उसकी होने की संभावना 75% ज्यादा बढ़ गई हैए एवं सन् 2020 मे भारतीय प्रकाशित एक रिपोर्ट मे बताया गया है कि इस वर्ष 197 से ज्यादा तटबंधों मे क्षति हुई है या टूट गए है। अर्थात इन तटबंधों को बहुत ही उच्च मानकों को ध्यान मे रखते हुएए बहुत सावधानी पूर्वक बनाया जाता है तथा इसे निरंतर प्रबंधन की जरूरत होती है।
अब सवाल यह पर उठता है की बाढ़ से बचाव के लिए क्या हो सकता है और बाढ़ के आने को कैसे काम किया जा सकता है?
निदरलेंड दुनिया मे बाढ़ को नियंत्रीत करने के मामले मे सबसे अच्छा देश माना जाता है। इन्होंने बाढ़ से बचाव के लिए की उचित प्रयास किए है तथा इन्होंने अपने संविधान मे भी डच की जनता को बाढ़ से बचने का अधिकार दिया हुआ है। यह बाढ़ से बचाव के लिए अपने हर कदम 1000 वर्षों मे एक बार आई बाढ़ से भी अपने शहर को बचाने के अनुसार सोचकर लेते है। जबकिए निदरलेंड की तुलना मे अमेरिका मे 100 सालों का अनुमान मानकर अपने मानकों पर काम करते है।
पिछले कुछ सालों पहले निदरलेंड ने रूम फॉर दी रिवर परियोजना निकली थी इन्होंने एक नदी के प्राकर्तिक वातावरण और उसके बहाव पर ध्यान देते हुए उसके आधार पर अपनी अधिसंरचनाओ को बनाना शुरू किया। सबसे सरल चीज इन्होंने की वह थी तटबंधों को नदियों से और दूर स्थापित किया जिससे की नदी को बहने के लिए और भी ज्यादा क्षेत्र मिल गया इससे नदी और भी ज्यादा क्षेत्र मे फैल पाई और जो अवसादन की समस्या आ रही थी वो भी इससे रुक गई।
इन्होंने बाढ़ जनित अंदर के क्षेत्रों मे पेड़-पोधे उगाने शुरू किए, प्राकर्तिक वनस्पति लगाने की वजह से और भी ज्यादा बाढ़ की समस्या नियंत्रित हो पाई। दूसरा इन्होंने बाढ़ मैदान का स्तर और नीचे करना शुरू कर दियाए इससे नदी को बहने के लिए और ज्यादा उचाई मिल गई। इन्होंने नदी तल को भी खोद कर और ज्यादा नीचे कर दिया ताकि नदी को बहने के लिए और ज्यादा जगह मिल पाए।
बाढ़ वाले इलाकों मे पानी भंडारण के लिए विशेष क्षेत्र बनाए गए और जलाशयों का निर्माण किया गया ताकि अगर बाढ़ होगी तो सारा पानी एक जगह वहा पर जाकर एकत्रित हो सके। बट्लर 2015 नामक वेज्ञानिक के अनुसार विभिन्न आकार के वर्षा जल टेंको मे जल संग्रह को अपनाने की सलाह दी गई और परिणामस्वरूप एक क्षेत्र मे 43% बाढ़ के संकट को 1000 लिटर वर्षा जल संग्रह टेंको को अपनाने पर कम किया जा सकता है।
इसरो के द्वारा "फ्लड हज़ार्ड ज़ोनेशन" पर अलग अलग क्षेत्र की बाढ़ से संबंधित जानकारी अंकित है आप अपने जिले की बाढ़ होने या न होने या जिले के किन क्षेत्रों मे बाढ़ हो सकती है यह सब जानकारी इस पर से प्राप्त कर सकते है। आप भारत मौसम विज्ञान विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, की वेबसाईट पर जाकर भी निरंतर अपने आस पास के जिले में होने वाली चरम घटनाओ जैसे बाढ़, सुखा, चक्रवात, बर्फ बारी आदि की जानकारी समय समय पर प्राप्त कर सकते है।
इसके अलावा अपने आस पास उपस्थित मौसम एवं आपदा संस्थानों के अंतर्गत काम कर रहे वेज्ञानिको से मिलकर भी उपाय एवं बचाव के सही तरीकों की जानकारी पहले से ही ले सकते है। आप भारत सरकार द्वारा हाल ही मे निकाली गई उच्च तरीकों से भरपूर मौसम एप को भी प्ले स्टोर से मुफ़्त मे डाउनलोड कर सकते है और घर बैठे मौसम की पूर्व मे जानकारी ले सकते है।
हमारे भारत देश को भी इन रणनीतियों का पालन करना चाहिए, यहा की नदियों को मुक्त प्रवाह से बहने के लिए ज्यादा क्षेत्र दिया जाना चाहिए जिससे की बाढ़ से आसानी से बचाव हो सके और एक दिन ऐसा आएगा की बाढ़ की संख्या और तिव्रता कम होगी और हम इतने सारे लोगों की जाने बचा पाएगे।
Authors
करन छाबड़ा*, मनोज कुमार
कृषि विज्ञान केंद्र, बारामुला-193404, जम्मू-कश्मीर, भारत
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