Enhancement of land and water productivity through raised and sunken bed technique

रेज्ड बेड प्लांटिंग पहली बार 1990 के दशक में गेहूं के लिए इस्तेमाल किया गया था और पारंपरिक जुताई एवं समतल भूमि पर बुआई के बराबर या उससे अधिक उपज प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया था। इसके अलावा, बेड पर रोपण के कई अन्य फायदे, जैसे यांत्रिक रूप से खरपतवारों को नियंत्रित करने की क्षमता, सिंचाई के पानी को बचाने की क्षमता, बुआई दर और जल जमाव में कमी को देखते हुए किया गया था।

स्थायी रेज्ड बेड जो पौधों की खूंटी को बरकरार रखते हैं और सिस्टम में सभी फसलों की सीधी ड्रिलिंग के साथ फायदे की संभावना को भी बढ़ाते हैं।

मिट्टी और फसल रणनीति के आधार पर बेड का आकार 50 से 120 सेमी तक हो सकता है। आमतौर पर, बेड की चौड़ाई (एक बेड के मध्य से उसके अगले  बेड के मध्य तक) 67.5 सेमी जबकि फर्रो की चौड़ाई (सबसे चौड़े बिंदु पर) 37.5 सेमी होते हैं।

फर्रो-सिंचित स्थायी रेज्ड बेड रोपण प्रणालियाँ कम लागत वाली, टिकाऊ कृषि प्रणालियों के प्रमुख घटक के रूप में उभरी हैं। बुआई के समय बेड को स्थायी रूप से और बस थोड़ा सा आकार दिया जाता है। इस तकनीक की क्षमता को देखते हुए बिना किसी पूर्व जुताई के एक ही बार में फर्रो-सिंचित स्थायी रेज्ड बेड पर फसलें लगाई जा सकती हैं।

रेज्ड और सँकेन बेड एक भूमि विन्यास है जिसे विशेष रूप से निचले क्षेत्रों के लिए काटने और भरने की विधि द्वारा डिज़ाइन किया गया है। इस तकनीक में बेड का निर्माण किसी क्षेत्र से सतही मिट्टी की परत को हटाकर और उसे निकटवर्ती क्षेत्र पर आवश्यकता के अनुसार ऊंचाई तक जमा करके तैयार किया जाता है।

रेज्ड बेड का निर्माण सँकेन बेड की खोदी गई मिट्टी को दोनों ओर से ऊंचाई तक जमा करके किया जाता है, जो नम्य मौसम के दौरान फसल उगाने के लिए सँकेन बेड में पानी के बढ़ते स्तर से अप्रभावित रहता है और शुष्क मौसम के दौरान गहराई तक पहुंच जाता है।

जल संग्रहण को अधिकतम करने के लिए, रेज्ड और सँकेन बेड पानी को तब तक बनाए रखने में सक्षम होता है जब तक कि मिट्टी इसे अवशोषित न कर ले। यह तकनीक जल उत्पादकता बढ़ाने के लिए उचित भूमि और जल प्रबंधन के लिए एक उपयोगी तकनीक है।

वर्टिसोल के मध्यम से उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में, 6-15 मीटर चौड़े और 30 सेमी ऊंचे रेज्ड बेड के साथ 6 मीटर चौड़े सँकेन बेड ऊपरी और निचली भूमि दोनों फसलों को उगाने के लिए, एवं वर्टिसोल के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में 1-2 मीटर चौड़े रेज्ड बेड अच्छे फसल उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त पाए गए हैं।

समस्याग्रस्त (जलयुक्त सोडिक) मिट्टी में अच्छे फसल उत्पादन के लिए रेज्ड और सँकेन बेड तकनीक भूमि संशोधन के उदाहरणों में से एक है।

विभिन्न देशों में भूमि प्रबंधन तकनीकों का नामकरण

वर्तमान में, दुनिया भर के तराई क्षेत्रों में कई प्रकार की पारंपरिक रेज्ड बेड तकनीकियों के माध्यम से खेती की जाती हैं जिसे तालिका 1 में दर्शाया गया है।

तालिका 1. विभिन्न देशों में पारंपरिक रेज्ड बेड तकनीकियों का नामकरण

भूमि प्रबंधन तकनीक

देश

सोरजन और ज्वारीय आर्द्रभूमि प्रणाली

जावा और इंडोनेशिया

चिनमपास कृषि प्रणाली

मेक्सिको

वारु वारस या कैबलोन्स

पेरू

रोंग चिन प्रणाली

थाईलैंड

रामली कृषि प्रणाली

तूनिसीया

फ्लोटिंग गार्डन कृषि पद्धति

बांग्लादेश

हाई बेड-लो डिच (एचबीएलडी) प्रणाली; डाइक-डिच इंटरएक्टिव सिस्टम; हाइज़ू हाई बेड-लो डिच एग्रोइकोसिस्टम (एचएचबीएलडीए); मलबरी-डाइक और मछली तालाब प्रणाली; डुओटियन एग्रोसिस्टम

 

चीन

सोरजन या सुरजन प्रणाली; डाइक-डिच प्रणाली; रेज्ड-बेड-डाइक प्रणाली

दक्षिण पूर्व एशिया

रेज बेड और फर्रो प्रणाली; रेज्ड और सँकेन बेड प्रणाली

भारत

 भूमि प्रबंधन तकनीकों का विवरण

1. रिज-फर्रो प्रणाली

कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी फसल उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता एक बड़ी समस्या है। इसलिए, अर्ध-शुष्क और उप-आर्द्र क्षेत्रों में रिज-फर्रो प्रणाली फसल उत्पादन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है जो उच्च अनाज की पैदावार बनाए रखने और जल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सिंचाई के पानी की आवश्यकता को कम करता है।

जल-जमाव के प्रति संवेदनशील फसलों के उत्पादन को बढ़ाने, खराब जल निकासी वाली वर्टीसॉइल की उत्पादकता में सुधार करने, कटाव योग्य भूमि में अपवाह एवं मिट्टी के नुकसान की जांच करने और मिट्टी की गहराई बढ़ाने के लिए रिज-फर्रो प्रणाली को उपयुक्त पाया गया है। 

इसके अलावा, रिज-फ़रो प्रणाली के उपयोग से पानी और रासायनिक उपयोग में भी कमी पायी गयी है। हालाँकि, इस प्रणाली के तहत गेहूं, चना और सोयाबीन जैसी निकट-दूरी वाली फसलों की यांत्रिक बुआई और अग्रिम चरण में खरपतवार निकालना एक बड़ी समस्या है।

2. ब्रॉड बेड और फर्रो सिस्टम

मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में गहरी काली कपास मिट्टी के लिए ब्रॉड बेड और फर्रो प्रणाली को विकसित किया गया है। ब्रॉड बेड और फर्रो प्रणाली और रेज्ड और सँकेन बेड दोनों तकनीकों ने केवल वर्टिसोल्स में अच्छा काम किया, जहां पानी का पार्श्व संचलन सराहनीय होता है।

3. स्थायी रेज बेड

स्थायी रेज बेड में रोपण एक नियंत्रित यातायात विधि है जो मिट्टी के संघनन को कम करती है। यह अर्ध-शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्रों के सिंचित एवं शुष्क भूमि क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता पर अधिशेष पानी के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सक्षम होता है। इस तकनीक का उपयोग उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ खेत में उपयोग के दौरान पानी की बचत के लिए भी किया जाता है।

पारंपरिक समतल सतह पर पानी देने की तुलना में स्थायी रेज बेड पर रोपण के कई फायदे हैं, जिसमें अनाज की उपज में 30% की औसत वृद्धि, जल उपयोग दक्षता में 73% की वृद्धि, सिंचाई जल में 25% की बचत और बीज बोने के लिए उपयोग किए जाने वाले बीज की मात्रा में 30-50% की बचत शामिल है।

रेज्ड और सँकेन बेड का डिज़ाइन

रेज्ड बेड की ऊंचाई, सँकेन बेड की गहराई और रेज्ड एवं सँकेन बेड की चौड़ाई का डिज़ाइन दिशानिर्देश होना बेहद जरूरी है, जिसे नीचे विस्तार से बताया गया है।

भूमि विन्यास

रेज्ड और सँकेन बेड को प्रभावी बनाने के साथ-साथ रेज्ड बेड की प्रभावकारिता को बनाए रखने के लिए रेज्ड बेड की चौड़ाई, ऊंचाई और सँकेन बेड की गहराई का उचित संयोजन आवश्यक है (चित्र 1)। सँकेन बेड की कम चौड़ाई बहुत प्रभावी होता है लेकिन यह भूमि के विखंडन को बढ़ाने के साथ-साथ कृषि मशीनरी उपकरणों के परिचालन में बाधा उत्पन करता है।

रेज्ड बेड की अधिक चौड़ाई मिट्टी की नमी को बनाये रखने में अधिक सक्षम नहीं हो पाता है। इसके उचित उपयोग के लिए पर्याप्त रिसाव को रोकने के लिए सँकेन बेड की उचित गहराई होना अति आवश्यक है।

चित्र 1: रेज्ड और सँकेन बेड की बनावट 

रेज्ड बेड की ऊंचाई

रेज्ड बेड की ऊँचाई ऐसी होनी चाहिए कि रेज्ड बेड के सिरों के बीच में पानी का स्तर महत्वपूर्ण गहराई से नीचे होना चाहिए। शुष्क मौसम में रेज्ड बेड  के किनारों के बीच 1.5 से 2.0 मीटर की जल स्तर की गहराई उपर्युक्त होता है। बाढ़ के पानी/अपवाह जल के अतिप्रवाह से बचने के लिए रेज्ड बेड की ऊंचाई काफी ऊंची होनी चाहिए।

अत्यधिक अपवाह/बाढ़ की घटनाओं के दौरान क्षति को कम करने के लिए रेज्ड और सँकेन बेड तल की दिशा अपवाह/बाढ़ प्रवाह की दिशा में होनी चाहिए।

रेज्ड बेड की ऊंचाई और चौड़ाई मिट्टी के भौतिक गुणों (मिट्टी की बनावट) और फसलों के प्रकार (जड़ों की गहराई) के अनुसार तय किया जाता है ताकि उन्हें सिंचाई की आवश्यकता न हो। आमतौर पर, रेज्ड बेड की उचाई 10 से 30 सेमी होते हैं।

यह मुख्य रूप से मिटटी में नमी और बनावट पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, रेज्ड बेड आमतौर पर भारी वर्षा वाली चिकनी मिट्टी पर 20 से 30 सेमी ऊंचे होते हैं, जहां जल निकासी एक बहुत बड़ी समस्या है। समान परिस्थितियों में, खुरदरी बनावट वाली मिट्टी पर रेज्ड बेड की ऊंचाई 15 से 20 सेमी होते हैं।

सँकेन बेड की गहराई

सँकेन बेड की गहराई तय करने के लिए एक दिशानिर्देश यह है कि फसल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए रेज्ड बेड पर अनुकूल मिट्टी आवरण प्रदान करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी की गहराई उजागर की जानी चाहिए।  सँकेन बेड की गहराई उसके उचित उपयोग पर निर्भर करती है।

सामान्य नियम के अनुसार सँकेन बेड की गहराई 60 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए। चरम वर्षा ऋतु के दौरान बहते पानी के सुरक्षित निपटान के लिए सुरक्षित जल निकासी का प्रावधान किया जाना चाहिए। विभिन्न कृषि गतिविधियों के लिए सँकेन बेड की गहराई को तालिका 2 में दिखाया गया है।

तालिका 2. सँकेन बेड की गहराई

कार्यकलाप

सँकेन बेड की गहराई

गहरे पानी में चावल की खेती

चावल की प्रजातियों की जल सहनशीलता गहराई

सिंघाड़ा की खेती

0.50 मीटर

मछली का बच्चा तैयार करना

0.75 - 1.0 मीटर

मछली का भंडारण

2.0 - 2.5 मीटर

सँकेन बेड की चौड़ाई

सँकेन बेड का उद्देश्य निर्धारित करने के बाद ही इसकी चौड़ाई तय की जानी चाहिए। यदि अतिरिक्त पानी के लिए एक सुरक्षित चैनल प्रदान किया जाता है तो यह रेज बेड के माध्यम से पानी की आवाजाही के हाइड्रोलिक्स को प्रभावित नहीं करेगा। हालाँकि, घेराबंदी में आसानी, कृषि मशीनरी और उपकरणों के उपयोग को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

5 मीटर से कम चौड़ाई वाले सँकेन बेड की बनावट नहीं करनी चाहिए। सुझाई गई गहराइयों के साथ सँकेन बेड की चौड़ाई को वांछित गहराई और चौड़ाई का रेज्ड बेड बनाने के लिए पर्याप्त मिट्टी की उपलब्धता होनी चाहिए। 5 से 20 मीटर का सँकेन बेड क्षेत्र प्रयोज्यता के दृष्टिकोण से एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

रेज बेड की चौड़ाई

एक बार सँकेन बेड की गहराई और ऊँचाई तय हो जाने के बाद, रेज्ड बेड की चौड़ाई की गणना एक उपयुक्त सूत्र के साथ की जानी चाहिए जो जल निकासी मानदंडों को पूरा करने के लिए रेज्ड बेड की ऊँचाई, सँकेन बेड की गहराई और रेज्ड की चौड़ाई के प्रभाव को सम्मिलित करता है (चित्र 2)। बेड की चौड़ाई सुविधानुसार (5 मीटर तक) और लम्बाई भूमि की उपलब्धता के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए।

चित्र 2: रेज्ड और सँकेन बेड में पौधरोपण

मिट्टी का प्रबंधन

मिट्टी के ऊपरी सतह को हटाने से प्रजनन क्षमता का स्तर कम हो जाता है और सँकेन बेड में खराब भौतिक स्थितियाँ उत्पन हो जाती है। इस प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए, शुरुआती 1-2 वर्षों के लिए 10 टन/हेक्टेयर की दर से खेतों की खाद (एफवाईएम) या कम्पोस्ट का उपयोग और/या शुष्क मौसम के दौरान सँकेन बेड में सेसबानिया उगाने और चावल बोने से पहले इसे मिलाने की सिफारिश की जाती है।

सिंचाई की आवश्यकता

रेज बेड में बुआई से पहले सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है। फसलों के स्थापित होने के बाद किसी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि बेड की सतह परत के नीचे 20 से 30 सेमी और निकटवर्ती सँकेन बेड में बहुत अधिक नमी उपलब्ध होती है, जो फसल के लिए पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पानी का प्रवाह पार्श्व और ऊपर दोनों दिशाओं में होता है।

50% क्षेत्र में रेज्ड बेड फसल प्रणाली में विविधता लाने और उसे तीव्र करने का अवसर प्रदान करता है, जबकि 50% क्षेत्र में सँकेन बेड साल भर सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी संग्रहीत करने में सक्षम होता है। साथ-साथ इसका उपयोग अन्य उद्यमों जैसे जलीय फसलों की खेती, जलीय कृषि इत्यादि के लिए भी किया जा सकता है।

रेज्ड और सँकेन बेड के फायदे

रेज्ड और सँकेन बेड तकनीक का अन्य भूमि प्रबंधन तकनीकों की तुलना में बहुत ही फायदे हैं। 

  • इस तकनीक से सिंचाई जल प्रबंधन को सरल एवं अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। फ्लैटबेड की तुलना में, यह अक्सर 30% कम पानी का उपयोग करता है और फसल की पैदावार को 20% से अधिक बढ़ाता है।
  • मानसून के दौरान, बेहतर जल निकासी के कारण ऊपरी भूमि पर फसलों का अधिक उत्पादन करना संभव हो पाता है।
  • पुष्पगुच्छ या बालियों की लंबाई में वृद्धि, बेहतर टिलर फूटना और मोटा दाना इत्यादि में मदद मिलता है।
  • बेड पर रोपण से बुआई से पहले सिंचाई करना संभव हो जाता है, जिससे रोपण से पहले खरपतवार निवारण में मदद मिलता है। यदि बुआई से पहले सिंचाई करने से बुआई में देरी होने की संभावना हो तो बेड पर रोपी गई फसलों की सिंचाई बुआई के तुरंत बाद की जा सकती है।
  • फसल चक्र के आरंभ में, सँकेन बेड में खरपतवारों को नियंत्रित करने में भी सुबिधा होती है।
  • सँकेन बेड में जल-स्तर की गहराई और अवधि दोनों में बढ़ोतरी होती है और रेज्ड बेड पर वायु का संचालन बढ़ जाता है।
  • इस तकनीक के माध्यम से फसल विविधीकरण में भूमि और जल संसाधनों के उचित उपयोग के लिए प्रभावी होता है। सँकेन बेड में जल संरक्षण से रेज्ड बेड में फसल उगाने में मदद मिलती हैं। रेज्ड और सँकेन बेड उपसतह जल निकासी में भी प्रभावी होता है।
  • क्रमवार रेज्ड और सँकेन बेड के निर्माण से क्षेत्र की स्थलाकृति में परिवर्तन से भौतिक वातावरण, विशेष रूप से मिट्टी की वातावरणीय स्थिति में सुधार होता है और चावल के अलावा अन्य फसलों की वृद्धि के लिए भी अनुकूल वातावरण बनाता है।
  • फर्रो रोपण तकनीक की तुलना में रेज्ड और सँकेन बेड तकनीक में चावल की समतुल्य उपज अधिक पायी गई। समतुल्य उपज रेज्ड और सँकेन बेड में मुख्यता दो कारणों से थी। 
    1. रेज्ड और सँकेन बेड के माध्यम से भूमि विन्यास के कारण भौतिक पर्यावरण सहित मिट्टी के माइक्रॉक्लाइमेट में सुधार पाया गया जोकि बेहतर फसल विकास के लिए मिट्टी-पौधे प्रणाली के पक्ष में मिट्टी की नमी और तापमान को बनाये रखने में मदद करता है।
    2. फसल प्रणाली में दलहन के साथ सब्जियों को शामिल करने से फसल प्रणाली से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

परिणाम

1. फ़सल उत्पादकता

रेज्ड और सँकेन बेड किसानों के धान की एकल-फसल पद्धति (एफपी) (442.3 किलोग्राम प्रति 1620 मीटर2 क्षेत्र) की तुलना में रेज्ड और सँकेन बेड फसल उत्पादन (1928.8 किलो प्रति 1620 मीटर2 क्षेत्र) में बहुत ही सुधार पाया गया है।

एकल-फसल पद्धति (2.7 टन  हेक्टेयर−1) की तुलना में रेज्ड और सँकेन बेड (11.9 टन  हेक्टेयर−1) के तहत फसल उत्पादकता में 4.4 गुना वृद्धि पाया गया।

एक अध्ययन में में पाया गया की एकल-फसल पद्धति की तुलना में रेज्ड और सँकेन बेड के तहत रोजगार सृजन में 941.7% की वृद्धि हुई।

2. जल उत्पादकता

एकल-फसल पद्धति पर रेज्ड और सँकेन बेड भूमि विन्यास के तहत जल उत्पादकता (डब्ल्यूपी) में बढ़ोतरी हुई। रेज्ड और सँकेन बेड के तहत जल उत्पादकता एकल-फसल पद्धति (0.2 किग्रा मीटर−3 पानी) की तुलना में 2.0–31.0 गुना बढ़ोतरी हुई।

एकल-फसल पद्धति पर रेज्ड और सँकेन बेड के कारण रोजगार और जल उत्पादकता में वृद्धि क्रमशः 445 और 291% पायी गई। एकल-फसल पद्धति  (0.18 किग्रा मी-3 पानी) की तुलना में रेज्ड और सँकेन बेड (0.69 किग्रा मी-3 पानी) के कारण जल उत्पादकता में  4 गुना बढ़ोतरी हुई।

चावल की एकल-फसल पद्धति (21.7 किग्रा हेक्टेयर-1 सेमी-1 पानी) की तुलना में रेज्ड और सँकेन बेड प्रणाली  के तहत विभिन्न फसल अनुक्रमों में जल उत्पादकता 39.4 से 622.3 किग्रा हेक्टेयर−1 सेमी−1 पानी तक पायी गई।

रेज्ड और सँकेन बेड भूमि विन्यास के तहत एकल-फसल पद्धति (1.06) के तहत बी:सी अनुपात में 75.5-513.2% की बढ़ोतरी पायी गई।

3. फसल की उपर्युक्तता

विभिन्न सब्जियों की फसलें खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम में रेज्ड बेड में उगाई जा सकती हैं: जैसे टमाटर, बैंगन, लौकी, करेला, तुरई, स्पंज लौकी, भिंडी, मिर्च, टिंडा, कद्दू, ककड़ी इत्यादि।


Author:

पवन जीत, आरती कुमारी, आशुतोष उपाध्याय, अनुप दास, प्रेम कुमार सुंदरम और बिकाश सरकार

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना 

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