Restoration of old guava trees or orchards of guava

Restoration of old guava trees or orchards of guava

अमरूद के पुराने वृक्षों तथा बागो का जीर्णोद्धार

अमरूद पोषक तत्त्वों से भरपूर एवं स्वादिष्ट फल है। देश के प्राय: सभी उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में अमरूद की खेती की जाती है। अमरूद के पौधे लगाने के 3-4 वर्षों के बाद फल देने लगते हैं और 25-30 वर्षों तक फल देते रहते हैं।

अमरूद के बाग , पुराने होने पर उत्पादन कम होने के साथ ही घने भी हो जाते हैं। ऐसे में ये वृक्ष किसानों के लिए लाभदायक नहीं रह जाते हैं। पुराने एवं अनुत्पाद्क वृक्षों को दो वर्ष में जीर्णोद्धार द्वारा ठीक किया जा सकता है। जीर्णोद्धार के माध्यम से पुन: आगामी 10-15 वर्षों तक उत्पादन ले सकते हैं।

अमरूद के बाग के पुराने होने पर उत्पादन कम होने के साथ ही किसान पुराने वृक्षों को काटकर नए पौधे लगा देते हैं। नये बाग को लगाने का खर्च 50-60 हजार प्रति हेक्टेयर आता है और प्रारंम्भ में 3-4 वर्षों तक बहुत कम फल मिलता हैं। जीर्णोद्धार करने से अतिरिक्त लकड़ी भी मिलती हैं जो जलावन के काम आती है।

पुराने वृक्षों की वांछित कटाई व छंटाई करने से नये तने निकलते हैं ताकि वे पुन: फल दे सकें। वैज्ञानिक तरीके से वृक्षों की डाली और फल देने वाली शाखाओं का निर्धारण किया जाता है। अगले दो साल में इन वृक्षों की बेहतर देख.रेख करके पुन: फल देने योग्य बना दिया जाता है। इस विधि से पुराने हो चुके बाग में वृक्षों का सटाव भी दूर हो जाता है।

जीर्णेद्धार की क्रियाए 

1. पुराने पेड़ों का निर्धारण कटाई (अप्रैलमई )

6 मी. पौधे से पौधे और 6 मी. कतार से कतार की दूरी पर लगाये गए अमरूद के बगीचे लगभग 20-25 वर्षों में घने हो जाते हैं। ऐसे पौधों में सूर्य के प्रकाश तथा वायु के संरचना में भी बाधा पड़ती है।

परिणामस्वरुप बीमारियों तथा कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है तथा उत्पादन भी कम हो जाता है। जीर्णोद्धार करने के लिए पेड़ों की चुनी हुई शाखाओं पर जमीन से 1-1.5 मीटर की ऊंचाई पर चाक या सफेद पेन्ट से निशान लगा दें।

शाखाओं को चुनते समय यह ध्यान रखें की चारों दिशाओं में बाहर की तरफ की शाखा हो। पौधों के बीच में स्थित शाखा, रोगग्रस्त व आड़ी-तिरछी शाखाओं को उनके निकलने की स्थान से ही काट दें। शाखाओं को तेज धार वाली आरी या मशीन चालित आरी से काटते हैं।

2. कटे भाग पर फफूंदनाशी दवा का लेप लगाना

कटाई के तुरंत बाद कटे भाग पर फफूंदनाशी दवा बोर्डो मिक्सचर 5: 5: 20; कॉपर सल्फेट : चूना : पानी ) का लेप लगा देते हैं। साथ ही उसमे कीटनाशक दवा क्लोरपायरीफास 2 मिली लीटर प्रति लीटर की दर से भी मिला सकते है। ऐसा करने से कीट व बीमारी से बचाव हो जाता है।

3. कटाई के बाद पौधों की देखरेख (जूनअगस्त)

कटाई के बाद पौधों में थाला बना कर गुड़ाई करके मई-जून के महीने में सिंचाई करनी चाहिए। 20 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाकर थाला विधि से दें।

इस विधि में खाद देने के लिए पौधों के तनों से 50 सेमी की दूरी पर गोलाई में 30 से.मी. चौड़ी तथा 20-25 से.मी. गहरी नाली बनाएं।

इस नाली को खाद के मिश्रण से भरकर इसके बाहर की तरफ गोलाई में मेड़ बना दें। सुपर फास्फेट की पुरी मात्रा 1.0 किग्रा, म्यूरेट आफ पोटाश 0.5 किग्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा 0.25 किग्रा जुलाई से अगस्त महीने में दें। 

4. नये कल्लों का चुनाव एवं अतिरिक्त कल्लों की कटाई (अक्टूबर)

पौधों में 60-70 दिनों के अंदर सुसूप्त कलियों से नये.नये कल्ले निकलते हैं। इन कल्लों को 40-50 सेमी तक बढ़ने दिया जाता हैं जिन्हें कटाई के 4-5 महीने बाद आवश्यकतानुसार प्रत्येक डाली में 8-10 अच्छे, स्वस्थ तथा ऊपर की ओर बढ़ने वाले कल्लों को छोड़कर बाकी सभी कल्लों को सिकेटियर की सहायता से काट दें ।

नव सृजित अवांछित कल्लों के कटाई के उपरांत 2 ग्रा. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना लाभदायक पाया गया है।

5. पौधों में अच्छा क्षत्रक का विकास

पौधों में अच्छा क्षत्रक विकसित करने के लिए समय-समय पर अवांछित शाखाओं तथा कल्लों को काटते रहना चाहिए तथा पत्तों पर आने वाले कीड़े तथा बीमारियों का नियन्त्रण करते रहें ।

प्रथम वर्ष में कल्लों की उचित वृद्धि के लिए अक्टूबर माह में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव करें । वांछित कल्लों की बढ़वार सुनिश्चित करने के लिए कुछ कल्लों की उनके निकलने के स्थान से ही काट दें।

समय-समय पर यह सुनिश्चित करते रहें की छत्रक के अंदर पर्याप्त धूप, रोशनी तथा वायु का आवागमन हो रहा है।

खाद एवं नमी संरक्षण

यूरिया की आधी मात्रा 0.25 किग्रा को अक्टूबर माह में थाले में डालकर अच्छी तरह मिला दें। अंतिम बरसात के बाद अक्टूबर माह में थालों में धान के पुआल बिछा दें, जिससे लम्बे समय तक नमी संरक्षित रह सके।

बाद में थालों की गुड़ाई करके पलवार को मिट्टी में मिला दें। पौधों की समय समय पर सिंचाई करना चाहिए। नये पत्तियों पर आने वाली कीड़ों तथा बिमारियों का नियंत्रण करना चाहिए ।

अंतरफसलीय चक्र

जीर्णोद्धार के पश्चात् बगीचे की जमीन काफी खाली हो जाती है जिसमें तरह-तरह की अंतरशस्य  फसल जैसे जायद में लौकी, खीरा व अन्य सब्जियां, खरीफ में सोयाबिन, अरहर, मूंग, उड़द व अन्य दलहनी फसलें तथा रबी में आलू, मटर, सरसों इत्यादि फसलों की सफल खेती कर सकते हैं।

इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी के साथ-साथ बगीचे की मिट्टी में भी सुधार होता है । अंतरशस्य फसल पौधों के पूर्ण छत्रक विकास होने तक लगाई जा सकती है। उसके बाद छाया में होने वाली फसलों जैसे हल्दी, अदरक की सफल खेती भी की जा सकती है।

अमरुद की फसल का कीड़ेबीमारी से बचाव

अमरुद की फसल को कई रोग हानि पहुंचाते है जिनमे म्लानी रोग, तना कैकर, एनेथ्रकनोज, स्कैब, फल विगलन, फल चिती तथा पौध अंगमारी प्रमुख है। अमरुद में लगने वाले विभिन्न कीड़ो में तना बेधक कीट, अमरुद की छाल भ़़क्षी इल्ली, स्केल कीट तथा फल मक्खी आदि प्रमुख है। अतः सभी की रोकथाम आवश्यक है।

1. अमरुद में बरसात की फसल में फल मक्खी भी बहुत नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए सबसे पहले मक्खी से सदुषित फलो को एक जगह करके नष्ट करें।

पेड़ो के बेसिन की जुताई करे तथा मिथाइल उजिनोल के 8-10 ट्रैप को (100 मी. ली घोल में 0.1 प्रतिशत मिथाइल उजिनोल तथा 0.1 प्रतिशत मैलाथियान ) प्रति हेक्टयर पर पेड़ो की डालियों पर 5-6 फीट ऊंचे लटका दें। यह बहुत ही प्रभावी तकनीक है। साथ ही इस घोल को प्रति सप्ताह बदलते रहना चाहिए।

2. अमरूद के छाल खाने वाले कीट के नियंत्रण के लिए कारटैप हाइड्रो क्लोराइड 200 से 300 ग्राम दवा प्रति 200 लीटर पानी का घोल बनाकर पेड के तनों पर छिड़काव करें।

इस प्रक्रिया को 10 से 15 दिन के अंतराल पर दोहरायें तथा मैलाथियान 500 मिली. दवा 200 लीटर पानी में घोल बना कर पेड़ों पर छिड़काव करें।

3. ऐंथ्रैक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए 1 ग्राम कार्बेन्डाजीम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

4. विल्ट या मुरझान से प्रभावित अमरूद की पत्तियॉ पीली होने लगती है। साथ ही किनारे वाली पत्तियॉं अन्दर की तरफ से मुड़ने लगती है। अंत में यह लाल होकर झड़ने लगती है। प्रभावित टहनियों में कोई भी पत्ती दिखाई नयी देती और यह सूखने लगती है।

ऐसी टहनियों पर लगे फल अविकसित रह जाते है और काले रंग के होने लगते है साथ ही कठोर भी हो जातें है और पूरी तरह इस प्रक्रिया में सोलह दिन लग जाते है, अंत में पौधा मर जाता है। इसके नि‍यंत्रण के लि‍ए बाग की अच्छी स्वछता जरूरी हैै। 

 सूखे पेड़ो को जड़ सहित उखाड़ देना चाहिए एवं जला कर गाड़ देना चाहिए तथा पौध रोपण के समय यह ध्यान देना चाहिए की जड़ो को नुकसान न पहुंचे। गड्डों को फोर्मलिन से उपचार करना चाहिए और तीन दिन के लिए ढक देना चाहिए और पौध रोपण इसके दो हफ्ते बाद करना चाहिए।

चूँकि यह मिटटी जनित रोग है इसलिए भूमि में ब्रसिकोल एवं बाविस्टीन (0.1 प्रतिशत) जड़ो और पत्तियों के चारो और पन्द्रह दिन के अन्तराल पर डालना चाहिए। कर्बिनिक खाद , खली, चुना आदि भी रोग को रोकने में सहायक होते है।

पुराने बाग या उद्यान के जीर्णोद्धार का लाभ:

  • कम समय में नये उत्पादक बाग तैयार किये जा सकते है।
  • जीर्णोद्धार करने से अतिरिक्त लकड़ी भी मिलती हैं जो जलावन के काम आती है।
  • जीर्णोद्धार प्रक्रिया द्वारा पुनरू फलत में ला कर कम से कम खर्च में गुणवत्तायुक्त पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
  • पुराने वृक्षों की वांछित कटाई.छंटाई करने से नये तने निकलते हैं ताकि वे पुन: फल दें सकें।
  • पौधों का जीर्णोद्धार कर आने वाले 10-15 वर्षों तक पुन: अच्छे उत्पादन प्राप्त कर सकते है।

Authors:

युगल किशोर लोधी, हेमंत पाणिग्रही एवं संगीता

उद्यान विज्ञान विभाग,

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर, रायपुर (छ.ग.)

Email: sanjuchandu1995@gmail.com

Related Posts

Popular varieties of Guava
अमरूद की लोकप्रिय किस्में 1. इलाहाबाद सफेदा - फल का आकार मध्यम,...
Read more
Intensive dense gardening of Guava
अमरूद की अति सघन बागवानी अमरूद भारत का एक लोकप्रिय फल...
Read more
Guava cultivationGuava cultivation
अमरूद की खेती
Cultivation of guava    अमरूद भारत का एक लोकप्रिय फल है। क्षेत्रफल...
Read more
अमरुद की फसलअमरुद की फसल
अमरुद की फसल में बहार के समय...
Diseases, pests and their control during springtime of Guava crop. अमरूद अपनी व्यापक...
Read more
सवाई माधोपुर के सेब - ‘‘अमरूद की...
Guava Cultivation, an apple of Sawai Madhopur. अमरूद भारत के प्रमुख...
Read more
बिहार में कृषि विकास के लिए समेकित...
Holistic approach of integrated nutrient management for agricultural development in...
Read more
rjwhiteclubs@gmail.com
rjwhiteclubs@gmail.com