How to produce the hybrid seed of Ridge Gourd
तोरई एक बेलवाली फसल है, जो जायद तथा खरीफ ऋतु में सफलतापूर्वक देश के कई स्थानों में लगायी जाती है। नर व मादा पुष्प एक ही बेल पर अलग-अलग स्थान पर तथा अलग-अलग समय पर खिलते हैं। नर पुष्प पहले तथा गुच्छों में लगते हैं जबकि मादा पुष्प बेल की पाश्र्व शाखाओं पर व अकेले लगते हैं। पुष्प का रंग चमकीला चमकीला पीला एवं आकर्षक होता है। मादा पुष्प के निचले भाग में फल की आकृतियुक्त अण्डाशय होता है जो निषेचन के पश्चात फल का निर्माण करता है। पुष्प सांयकाल में 5 से 8 बजे के दौरान खिलते हैं। पुष्पन के दौरान नर पुष्पों से जीवित व सक्रिय परागकण प्राप्त होते हैं, साथ ही मादा पुष्पों की वर्तिकाग्र निषेचन के लिए अत्यधिक सक्रिय होती है। तुरई मे पर-परागण द्वारा निषेचन होता है जो मुख्यत: मधुमक्खियों द्वारा सम्पन्न होता है।
तोरई की बेल
खेत का चुनाव:
तोरई के संकर बीज उत्पादन के लिए फसल बोने से पूर्व पिछले वर्ष खेत में उगाई गई फसलों की जानकारी पहले से कर लेनी चाहिए। खेत का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व में उस खेत में तोरई की फसल नहीं ली गई हो, क्योकि पिछली फसल का बीज खेत में गिर जाता है तथा यह बीज संकर बीज उत्पादन के लिए प्रयुक्त प्रजनकों के बीज के साथ उगकर मादा प्रजनक से पर-परागण करके संकर बीज को दूषित कर देते हैं। मृदा उचित जल निकासयुक्त, जीवांशयुक्त, बलुई दोमट या बलुई होनी चाहिए, जिसका पी.एच. मान 6.5 से 7.0 के मध्य का होना चाहिए।
मौसम का चुनाव:
तोरई के संकर बीज उत्पादन के लिए जायद मौसम की अपेक्षा, खरीफ मौसम अधिक उपयुक्त होता है। खरीफ मौसम में बेलों की वृद्धि, पुष्पन तथा फलन अधिक होता है।खरीफ में बीज की गुणवत्ता व फलत भी अधिक प्राप्त होती है ।
बीज का स्त्रोत:
संकर बीज उत्पादन के लिए दो पैतृक प्रजनको (नर व मादा) के आधारीय बीजों की जरूरत होती है। अत: पैतृक प्रजनको का बीज हमेशा विश्वशनीय संस्थानों जैसे कृषि विश्वविद्यालयों, राज्य एवं केन्द्रीय अनुसंधान संस्थानों आदि से ही प्राप्त करना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक:
खाद एवं उर्वरक की मात्रा मृदा की उर्वरता पर निर्भर करती है। खेत की अन्तिम जुताई के समय 25 से 30 टन सड़ी-गली गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना चाहिए। नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा क्रमश: 80:60:60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिलानी चाहिए। नत्रजन की एक तिहाई तथा फास्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा अन्तिम जुताई के समय देनी चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो समान भागों में बांटकर बुवाई के 25 से 30 तथा 45 से 50 दिनों के बाद खड़ी फसल में देना चाहिए।
पृथक्करण दूरी:
बीज की आनुवांशिक शुद्धता बनाये रखने के लिए पृथक्करण दूरी बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक होता है। अत: इसके लिए संकर बीज वाली फसल को, तुरई की अन्य प्रजातियों तथा चिकनी तुरई आदि से कम से कम 800-1000 मीटर की पृथक्करण दूरी पर बोना चाहिए।
बीज की मात्रा:
नर व मादा प्रजनकों के लिए बीज की मात्रा अलग-अलग ली जाती हैं। मादा प्रजनक के लिए लगभग 1.75 से 2.00 किलोग्राम एवं नर प्रजनक के लिए लगभग 0.50 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है।
बीज उपचार एवं बुवाई:
बुवाई करने से पूर्व बीज को थाइरम नामक फफुदनाशी (2 ग्राम दवा प्रति किग्रा. बीज) से उपचारित करना चाहिए। शीघ्र अंकुरण के लिए बीजों को 20 से 24 घंटे तक पानी में भिगोना चाहिए तथा इसके पश्चात् टाट की बोरी के टुकडें में लपेट कर किसी गर्म जगह पर रखना लाभप्रद होता है। बीज की बुवाई नालियों में करनी चाहिए। नाली से नाली के बीच 3 मीटर तथा थाले से थाले के मध्य 80 सेमी. दूरी रखनी चाहिए। नालियाँ 50 सेमी. चौडी व 35 से 45 सेमी. गहरी बनी होनी चाहिए।
नर एवं मादा पौधों का अनुपात:
तुरई में संकर बीज उत्पादन के लिए नर व मादा प्रजनकों को एक निश्चित अनुपात (नर : मादा : 1 : 3) के अनुपात में खेत में बनी नालियों में बुवाई करनी चाहिए। खेत में प्रथम पंक्ति तथा अन्तिम पंक्ति में नर पैतृक जनकों की बुवाई करे जिससे कि पर-परागण के दौरान बीज की आनुवांशिक शुद्धता बनी रहती है।
संकर बीज उत्पादन की विधि:
तुरई में प्राकृतिक रूप से पर-परागण कीट पतंगों के माध्यम से होता है अत: संकर बीज उत्पादन की मुख्यत: दो विधियाँ अपनायी जाती है।
1. हाथ द्वारा कृत्रिम निषेचन करके:
यह विधि पर्याप्त प्रथक्करण दूरी उपलब्ध न होने की दशा में अपनाई जाती है। इस विधि में मादा प्रजनक पर लगे पुष्पों को पुष्पन के एक दिन पहले बटर पेपर से बनी थैली से ढक देते है। इस थैली में 4-5 बारीक छिद्र हवा के आगमन के लिए करना आवश्यक है। अगले दिन सॉंयकाल 4 से 8 बजे के मध्य नर पुष्पों से परागकण एकत्रित करके महिन ब्रुश की सहायता से बटर पेपर थैलों से ढके मादा पुष्पों की वर्तिकाग्र पर परागकणों को स्थानान्तरित कर पुन: बटर पेपर से ढक देते है। 3 से 4 दिनों के पश्चात् जब निषेचित मादा पुष्पों में फलन आरम्भ हो जाता है तो फल की पर्याप्त वृद्धि के लिए उन पर लगी थैलियों को सावधानीपूर्वक हटा देना आवश्यक है। अधिक गुणवत्ता बीज प्राप्त करने के लिए प्रत्येक बेल से 4 से 5 फल ही प्राप्त करना चाहिए इससे अधिक फल लेने पर बीजों के विकास एवं गुणवत्ता में कमी आती है।
नर पुष्प पर परागकण हाथ द्वारा पर-परागण परागित पुष्प को ढकना
2. खुला परागण द्वारा निषेचन (मादा प्रजनक के नर फूलों को हटाना तथा मधुमक्खियों द्वारा परागण):
इस विधि का उपयोग पर्याप्त पृथक्करण दूरी (800 से 1000 मीटर) उपलब्ध होने की दशा में चुना जाता है। मादा प्रजनकों पर लगे नर पुष्पों की पुष्पकलिकाओं को खलने से पहले ही तोड़ दिया जाता है इसके लिये खेत में पुष्पकलियों के खिलने से पहले खेत का लगातार निरीक्षण करना आवश्यक है। पर-परागण के लिए प्रति एकड़ एक मधुमक्खी का छत्ता पर्याप्त होता है।
अवांछनीय पौधों का निष्कासन:
संकर बीज उत्पादन में यह एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसमें पैतृक प्रजनको की आनुवांशिक तथा भौतिक शुद्धता बनी रहती है। खेत में पैतृक प्रजनको के अलावा तोरई की अन्य किस्मों के पौधों तथा चिकनी तोरई के पौधों को फूल आने से पूर्व अवश्य निकाल देना चाहिए। पैतृक प्रजनकों के आनुवांशिक गुणों का बीज उत्पादक को ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।
फसल का निरीक्षण निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में करके अवांछनीय पौधों को निकाल देना चाहिए।
- फूल आने से पूर्व पौधे के बाहय गुणों के आधार पर जैसे पत्तों का रंग, आकार, बेल की वृद्धि इत्यादि।
- फूल आने के समय फूलों के गुणों के आधार पर जैसे फूलों का रंग, आकार एवं प्रकार आदि।
- फल की तुडाई से पूर्व, फल वृद्धि तथा तुड़ाई के समय फलों की गुणवता के आधार पर।
तुड़ाई एवं बीज निष्कासन:
मादा प्रजनक के फलों का रंग भूरा होकर फलों के तथा फल सुखने के पश्चात् इनको बेलों से तोड लिया जाता है। परिपक्व फलों को हिलाने पर फल में उपस्थित बीजों की आवाज आती है। परिपक्व फलों को 5 से 10 दिनों तक छायादार स्थान पर रखकर सुखाया जाता है, ताकि फलो एवं बीजों में उपस्थित अतिरिक्त नमी निकल जायें। सूखे हुए फलो से बीज निकाल लेना चाहिए। परिपक्व बीज काले व चमकीले रंग के दिखाई देते है।
उपज:
इस प्रकार तुरई के संकर बीज की उपज 1.5 से 2.0 क्विटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है।कीट एवं व्याद्यि प्रबंद्यन:
इस फसल को मुख्यत: रस चूषक कीट जैसे फलमक्खी एवं लाल भृंग कीट द्वारा विभिन्न अवस्थाओ पर नुकसान पहॅूंचाया जाता है। अत: इन कीटों के नियऩ्त्रण के लिए बेलों पर मैलाथियान या एण्डोसल्फान (1.5 - 2.0 मिली. प्रति लीटर) का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। मृदुलोमिल आसिता रोग का प्रकोप गर्मियों के मौसम में बरसात हो जाने की दशा में अधिक होता है जिसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 (2.0 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करें। अधिक तापमान व शुष्क मौसम की दशाओं में चूर्णिल आसिता रोग के लक्षण बेलों पर दिखाई देते है। इसकी रोकथाम के लिए कैराथेन (2.0 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करें।
Authors:
शशि कुमार बैरवा1, डॉ बी.आर. चौधरी2, डॉं. अनिल कुमार सोनी3, सुरेश कुमार4,
2वैज्ञानिक (उधान) , 4अनुसंधान अध्येता, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर (राजस्थान)
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