The significance of molybdenum in plants 

मोलिब्डेनम पौधों द्वारा लिया जाने वाले आठ आवश्यक सुक्ष्म रासायनिक तत्वों में से एक है। अन्य सात लोहा, तांबा, जस्ता, मैंगनीज, क्लोरीन, निकल और बोरान हैं। इन तत्वों को सुक्ष्म तत्व कहा जाता हे, क्योंकि पौधों को इनकी बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है।

प्रमुख  आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, कैल्शियम और मैग्नीशियम हैं। लेकिन पोधो के सामान्य विकास के लिए इन सुक्ष्म रासायनिक तत्वों की बहुत आवश्यकता होती हैं। इन आठ सुक्ष्म रासायनिक तत्वों की तुलना में मोलिब्डेनम की बहुत कम मात्रा में जरूरत होती है।

सभी प्रकार की फसलों में प्रति हेक्टेयर 50 ग्राम मोलिब्डेनम की जरूरतों होती हे। मोलिब्डेनम बीज या इस तरह के कंद के रूप में, अन्य रोपण सामग्री में, कुछ कृत्रिम उर्वरकों में, गोबर की खाद में मौजूद रहता है। मोलिब्डेनम सभी प्रकार की फसलों के बीजो के आकार को बड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, सेम, मटर और मक्का आदि में मोलिब्डेनम बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन टमाटर के बीज में इसका थोड़ा महत्व ज्यादा है।

सभी प्रकार की कृषि मिट्टी में मोलिब्डेनम की ओसत मात्रा  0.05  और 0.1 पीपीएम के बीच आमतौर पर होती है। मोलिब्डेनम मोटे तौर पर मिट्टी में MoO42- के रूप में पाया जाता है। इसका का अवशोषण मृदा पीएच पर बहुत निर्भर करता है। एसिड मिट्टी में यह बहुत कम मात्रा में  उपलब्ध रहता है, लेकिन पीएच के बडने से इसकी मात्रा भी मिट्टी में बढ़ जाती है।

पौधों के लिए मोलिब्डेनम की उपलब्धता लवणीय मिट्टी में स्वाभाविक कमी नहीं है, पर एसिड मिट्टी में इसकी कमी को चुना डालकर सुधारा जा सकता हे। मोलिब्डेनम की पोधो को आवश्यकता पीएच 6.0 के ऊपर बहुत कम होती हे, लेकिन सबसे ज्यादा आवश्यकता जहां पीएच 5.5 या उससे कम है वहा होती हे।

पौधों में मोलिब्डेनम का महत्व

पौधे मोलिब्ढेथ के रूप में मोलिब्डेनम को अवशोषित करते हे। मोलिब्डेनम मुख्य रूप से फ्लोएम और नाड़ी पैरेन्काइमा में स्थित होता है, और पोधों में मोबाइल तत्व है। पौधों में नाइट्रोजन के रासायनिक परिवर्तन के लिए मोलिब्डेनम की जरूरत होती है।

मोलिब्डेनम गैर फलियां जैसे गोभी, टमाटर, सलाद, सूरजमुखी और मक्का में, मिट्टी से नाइट्रेट को पोधो में अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिन पोधो में मोलिब्डेनम की कमी होती है, वहा नाइट्रेट पत्तियों में जमा हो जाता है और पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन का निर्माण नहीं होने देता हे। इससे यह नतीजा निकलता है  कि पोधो में नाइट्रोजन की कमी के कारण पोधो का विकास अवरुद्ध हो जाता है।

इसी समय, पत्तियों के किनारों अप्रयुक्त नाइट्रेट के संचय से झुलस जाते है। पोधो में नाइट्रेट के अवशोषण के बाद मोलिब्डेनम नाइट्रेट को तोड़ने का काम करता हे जिससे नाइट्रेट पोधो के विभिन्न भागो में चला जाता हे, उससे पोधे में नाइट्रोजन की कमी नही होती हे, और पोधे का विकास अच्छी तरह से होता है।

मोलिब्डेनम जड़ गुत्थी जीवाणुओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन के निर्धारण में मदद करता है। जिससे जमीन में नाइट्रोजन की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सकता हे।

मोलिब्डेनम की कमी के लक्षण

चूंकि पोधो की चया-अपचय प्रकिया और नाइट्रेट की कमी में मोलिब्डेनम बहुत महत्वपूर्ण कार्य करता है। मोलिब्डेनम की कमी के लक्षण नाइट्रोजन की कमी जैसे ही दिखते है। मोलिब्डेनम की कमी से पीड़ित पौधों का विकास सही तरह से नही होता हैं; इसकी कमी से पत्ते पीले पड़ जाते हे और अंत में सूख जाते हे।

गैर फलियां में मोलिब्डेनम की कमी का मुख्य लक्षण स्टूथिनिंग होता हैं और पत्तियों की विफलता के कारण एक स्वस्थ गहरे हरे रंग का विकास नही होता हे। प्रभावित पौधों की पत्तियों की नसों के बीच और किनारों पर एक हरे रंग या पीला हरा रंग दिखाइ देता हे। पोधे की उन्नती के चरणों में, पत्तियों के हाशिये पर चले जाने पर ऊतक मर जाते है।

इसकी कमी से पुरानी पत्तियों अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं। गोभी में, बाहरी पत्तियों के किनारे पीले पड़ने पर ऊतक की वर्धी रुक जाती हे और अंत में ऊतको की मौत हो जाती है। जब इन पत्तियों का विकास रुक जाता हे, पत्तियों संकीर्ण हो जाती हे, विकृत पत्तियों के गठन में उनके किनारों पर ऊतक के अभाव परिणाम स्वरूप जो रोग उत्पन होता हे उसको व्हिपटेल नाम से जाना जाता है।

व्हिपटेल  रोग मुख्य रूप से फूलगोभी में होता हे, इससे प्रभावित पत्तियां आमतौर पर थोडी गाडी हो जाती हे, और पत्ती के किनारे ऊपर की ओर मुड़ जाते हे, यह विशेष रूप से टमाटर में होता हे।

  फूलगोभी में मोलिब्डेनम कमी के लक्षण

चित्र 1: फूलगोभी में मोलिब्डेनम कमी के लक्षण

 सुरजमुखी में मोलिब्डेनम कमी के लक्षण

चित्र 2: सुरजमुखी में मोलिब्डेनम कमी के लक्षण

 

मोलिब्डेनम की कमी के उपाय

अधिकतर मिट्टी में मोलिब्डेनम अनुपलब्ध रूप में होता हे, इसकी उपलब्धता बड़ाने के लिए चूने या डोलोमाइट का उपयोग किया जाता हे। चूकी चूने का प्रभाव बहुत धीमा होता हे, तथा इसकी कमी को पूरा करने में कई महीने लग जाते हे।

चूने या डोलोमाइट की जरूरत जमीन में प्रति हेक्टेयर 2 से 8 टन तक हो सकती हे, यह जमीन की पीएच तथा जमीन की बनावट पर निर्भर करता हे की जमीन रेतीली हे या भारी बनावट वाली है।

चूने या डोलोमाइट मोलिब्डेनम की कमी में बहुत प्रभावी होता क्योकि यह जमीन की पीएच को बड़ाने में भी फायदेमंद होता हैं।

मोलिब्डेनम निम्नलिखित तरीके से जमीन में प्रयोग किया जा सकता है:

  1. उर्वरको के साथ मिश्रित करके या
  2. किसी के साथ घोल बनाके
  3. रोपाई से पहले बीजउपचार द्वारा
  4. कड़ी फसल की पत्तियों पर छिडकाव करके

मोलिब्डेनम के स्रोत

मोलिब्डेनम के स्रोत जो फसलो में प्रयोग किये जाते हे, वह मोलिब्डेनम ट्राईऑक्साइड, सोडियम मोलिब्ढेथ, अमोनियम मोलिब्ढेथ आदि हैं।

इसका प्रयोग उर्वरक के साथ मिश्रित करके या छिडकाव करके भी किया जा सकता हे। यह पानी में आंशिक रूप से घुलनशील होता हे, इसका प्रयोग गर्म पानी में घोल कर किया जा सकता है।

मोलिब्डेनम,  मोलिब्डेनम ट्राईऑक्साइड में 66 प्रतिशत, अमोनियम मोलिब्ढेथ में 54 प्रतिशत  तथा सोडियम मोलिब्ढेथ मोलिब्डेनम में 39 प्रतिशत होता हे। 


Authors:

डॉ. जुगल मालव एव डॉ. मोहम्मद साजिद

कृषि महाविघालय, आनंद कृषि विश्वविद्यालय, जबुगाम, गुजरात

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