Nutrient supply and element management in plants
पौधों के पोषक तत्व वह रसायनिक पदार्थ होतेे है, जिसकी आवश्यकता पौधेे को उसके जीवन, वृद्धि और उसके शरीर की उपापचय क्रियाओं को चलाने के लिए होती है। पोषक तत्व शरीर को समृद्ध करते हैं। यह ऊतकों का निर्माण और उनकी मरम्मत करते हैं, यह शरीर को उष्मा और ऊर्जा प्रदान करते हैं। पौधे इनको अपनी जड़ों के माध्यम से सीधे मिट्टी से या अपने वातावरण से प्राप्त करते हैं।
जैविक पोषक तत्वों में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन (अमिनो अम्ल) और विटामिन शामिल हैं। अकार्बनिक रासायनिक यौगिकों, जैसे खनिज लवण, पानी और ऑक्सीजनको भी पोषक तत्व माना जा सकता हैं। जीव को पोषक तत्व किसी बाहरी स्रोत से लेने की आवश्यकता तब पड़ती है जब उसका शरीर इनकी पर्याप्त मात्रा का संश्लेषण स्वयं उसके शरीर में नहीं कर पाता।
जिन पोषक तत्वों की आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़ती है उन्हें स्थूल पोषक तत्व कहते हैं और जिनकी कम मात्रा की जरूरत होती है उन्हे सूक्ष्म पोषक तत्व कहते हैं। प्रत्येक तत्व का पौधों के अन्दर अलग-अलग कार्य एवं महत्व है जो विभिन्न अवस्थाओं में पूर्ण होता है। कोई एक तत्व दूसरे तत्व का पूरक नहीं है। यह संतुलन बिगड़ने पर उत्पादन सीधे प्रभावित होता है।
मृदा उर्वरता का संतुलन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि फसल की मांग एवं आवश्यकता के अनुसार पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध होते रहें, जिससे वांछित उपज मिल सके और मृदा स्वस्थ्य सुरक्षित बना रहे। इसके लिए आवश्यकतानुसार अकार्बनिक एवं कार्बनिक स्रोतो से फसल को सभी तत्वों का निश्चित अनुपात उपलब्ध कराना आवश्यक है। इस व्यवस्था/ तकनीकी को एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन की संज्ञा दी गई है।
पौधों के पोषक तत्व
पौधों के लिए आवश्यक खनिज तत्वों की संख्या 14 है, यदि इनमें जल एवं कार्बन-डाई-आक्साइड से प्राप्त होने वाले तीन तत्वों कार्बन, हाइड्रोजन तथा आक्सीजन को सम्मिलित कर लिया जाए तो कुल आवश्यक पोषक तत्वों की संख्या 17 हो जाती है|
फसलों या पौधों के पोषण में 96 प्रतिशत भाग कार्बन, हाइड्रोजन एवं आक्सीजन का है, और शेष 4 प्रतिशत में अन्य 13 तत्व अलग योगदान करते हैं| इनमें जिन पोषक तत्वों की आवश्यकता अधिक मात्रा में होती है, उन्हें प्रमुख तत्व कहते हैं| ये तत्व हैं, जैसे- नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर, शेष तत्व, मात्रा की दृष्टि से सूक्ष्म तत्वों की श्रेणी में आते हैं|
सूक्ष्म तत्व यद्यपि फसलों या पौधों द्वारा कम मात्रा में ग्रहण किए जाते हैं| लेकिन इनका महत्व कम नहीं है| इन आवश्यक तत्वों के अतिरिक्त अन्य तत्व जैसे- सोडियम, कोबाल्ट, आयोडीन, स्ट्रांटियम, फ्लोरीन, वैनेडियम और ब्रोमाइड भी हैं| जिनकी कुछ वनस्पतिक की क्रियाओं में आवश्यकता होती है| पोषक तत्वों के प्रमुख श्रोत है जैविक खाद/ उर्वरक, फसल अवशेष, जीवाणु खाद आैर रसायनिक खाद ।
पोषक तत्वों के कार्बनिक स्रोत
कार्बनिक खाद | नाइट्रोजन (प्रतिशत) | फास्फोरस (प्रतिशत) | पोटाश (प्रतिशत) |
गोबर की खाद | 0.5 | 0.2 | 0.5 |
कम्पोस्ट | 1.5 | 1.0 | 1.5 |
खलियाँ | 2.5 से 8.0 | 0.8 से 3.0 | 1.2 से 2.2 |
हड्डी की खाद | 3 से 4 | 20 से 25 | – |
सीवरेज अपशिष्ट | 50 पी पी एम | 15 पी पी एम | 30 पी पी एम |
धान अवशेष | 0.61 | 0.09 | 1 |
गेहूं अवशेष | 0.48 | 0.07 | 0.98 |
मक्का अवशेष | 0.58 | 0.09 | 1.25 |
पोषक तत्वों के रासायनिक स्रोत
स्रोत | नाइट्रोजन (%) | फास्फोरस (%) | पोटाश (%) |
यूरिया | 46 | – | – |
डाई अमोनियम फोस्पेट | 18 | 46 | |
म्यूरेट ऑफ पोटाश (एम ओ पी) | – | – | 60 |
कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट | 25 | – | – |
अमोनियम सल्फेट | 20 | – | – |
12-32-16 (मिश्रित उर्वरक) | 12 | 32 | 16 |
17-17-17 (मिश्रित उर्वरक) | 17 | 17 | 17 |
10-26-26 (मिश्रित उर्वरक) | 10 | 26 | 26 |
तत्व प्रबन्धन का मूल सिद्धान्त
प्रत्येक तत्व का पौधों के अन्दर अलग-अलग कार्य एवं महत्व है जो विभिन्न अवस्थाओं में पूर्ण होता है। कोई एक तत्व दूसरे तत्व का पूरक नहीं है। यह संतुलन बिगड़ने पर उत्पादन सीधे प्रभावित होता है।
इसलिए मृदा उर्वरता का संतुलन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि फसल की मांग एवं आवश्यकता के अनुसार पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध होते रहें, जिससे वांछित उपज मिल सके और मृदा स्वस्थ्य सुरक्षित बना रहे। इसके लिए आवश्यकतानुसार अकार्बनिक एवं कार्बनिक स्रोतो से फसल को सभी तत्वों का निश्चित अनुपात में ग्रहण करना आवश्यक है। इस व्यवस्था/ तकनीकी को एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन की संज्ञा दी गई है।
कार्बनिक खादों से न केवल फसलों या पौधों की पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं, बल्कि भूमि की संरचना और लाभकारी सूक्ष्मजीवों की संख्या तथा क्रियाशीलता में वृद्धि होती है| जबकि भूमि की उर्वराशक्ति में मात्र रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग से ह्रास होने लगता है|
भूमि की उर्वरा शक्ति को ठीक करने और लम्बे समय तक अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अकार्बनिक खादों के साथ-साथ कार्बनिक खादों का समेकित रूप में संतुलित प्रयोग करना अत्यन्त आवश्यक है| जिससे ये मृदा संरचना और जैविक क्रियाओं को समान रूप से सुदृढ़ बनाती है और फसलों या पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की समुचित मात्रा प्रदान करती है|
कार्बनिक खादों के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता| अधिक उपज देने वाली उन्नत फसल किस्मों से उनकी क्षमता के अनुरूप उपज प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है, कि फसलों या पौधों में पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा किया जाए| इसके लिए रासायनिक उर्वरकों के अतिरिक्त और कोई स्रोत नहीं हो सकता है|
कृषि में तत्व प्रबन्धन से लाभ
- अधिकतम पैदावार प्राप्त करना।
- पोषक तत्वों को बर्बादी से बचाना।
- विषैलापन तथा प्रतिक्रियाओं से बचाना, किसी एक तत्व की अधिकता भी विषैलापन पैदा करती है।
- मृदा की उत्पादकता एवं स्वास्थ्य बनाये रखना।
- गुणात्मक उत्पादन।
- वातावरण की विपरीत परिस्थितियों से बचाव।
- कीड़े मकोड़ों के प्रभाव को प्राकृतिक तौर पर कम करना।
- लाभ/लागत अनुपात में वृद्धि।
पोषक तत्व प्रबन्धन हेतु कुछ सुझाव
- मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों एवं जैविक खादों का प्रयोग करें।
- दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर का प्रयोग अवश्य करें।
- धान व गेहूं के फसल चक्र में ढैंचे की हरी खाद का प्रयोग करें।
- फसल चक्र में परिवर्तन करें।
- आवश्यकतानुसार उपलब्धता के आधार पर गोबर तथा कूड़ा करकट का प्रयोग कर कम्पोस्ट बनाई जाये।
- खेत में फसलावशिष्ट जैविक पदार्थों को मिट्टी में मिला दिया जाय।
- विभिन्न प्रकार के जैव उर्वरकों तथा नत्रजनिक संस्लेषी, फास्फेट को घुलनशील बनाने वाले बैक्टीरियल अल्गन तथा फंगल बायोफर्टिलाइजर का प्रयोग करें।
- कार्बनिक पदार्थ तथा अकार्बनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें।
जैविक खादों एवं जैव उर्वरकों द्वारा उर्वरकों के समतुल्य पोषक तत्व
सामग्री | निवेश की मात्रा | उर्वरकों के रूप में पोषक तत्वों की समतुल्य मात्रा |
(क) जैविक खादें/फसल अवशेष | ||
गोबर की खाद | प्रति टन | 3.6 किग्रा० नाइट्रोजन फास्फोरस (पी०2 ओ० 5)+ पोटाश (के2 ओ०) (2:1:1) |
ढैंचा की हरी खाद | 45 दिन की फसल | 50-60 किग्रा० नाइट्रोजन (बौनी जाति के धान में) |
गन्ने की खोई | 5 टन प्रति हे० | 12 किग्रा० नाइट्रोजन प्रति टन |
धान का पुआल+जलकुम्भी | 5 टन प्रति हे० | 20 किग्रा० नाइट्रोजन प्रति टन |
जैव उर्वरक | ||
राइजोबियम कल्चर एजेटोबैक्टर एवं कल्चर | 19-22 किग्रा० नाइट्रोजन | |
एजोस्पिरिलम | 20 किग्रा० नाइट्रोजन | |
नील हरित शैवाल | 10 किग्रा० प्रति हे० | 20-30 किग्रा० नाइट्रोजन |
एजोला | 6-21 टन प्रति हे० | 3-5 किग्रा० प्रति हे० |
Authors:
सुषमा, युशमा साओ, संगीता, सरिता पैकरा,
मृदा विज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर, रायपुर( छ.ग.).
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