Soil Testing and Balanced Nutrient Management is a must for Higher Yield

पौधों की बढ़वार के लिये प्रमुख रूप से 16 विभिन्न पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जिसमें से 03 पोषक तत्व कार्बन, हाईड्रोजन तथा आक्सीजन पौधे वायुमण्डल एवं जल से ग्रहण करते हैं। शेष 13 पोषक तत्व जैसे नत्रजन, स्फुर, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर एवं सूक्ष्म तत्व - आयरन, कापर, जिंक, मैंगनीज,बोरान, क्लोरीन एवं मालीब्डेनम पौधे को भूमि से प्राप्त होता है।

इसमें से किसी भी तत्व की कमी या अधिकता होने पर फसल की वृद्धि एवं उत्पादकता प्रभावित होती है। एक तत्व की कमी या अधिकता दूसरे तत्व के अवशोषण पर भी प्रभाव डालता है। इसी तरह मिट्टी की अम्लीयता, क्षारीयता तथा घूलनशील लवणों की मात्रा भी पौधों के विकास को प्रभावित करती है।

अम्लीय भूमि में स्फुर, बोरान, मालीब्डेनम की उपलब्धता कम हो जाती है, जबकि आयरन, मैगनीज, एल्युमिनियम की उपलब्धता विषैले स्तर तक पहुंच जाती है।

वर्तमान समय में सद्यन कृषि प्रणाली अपनाने तथा संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन न करने के कारण मृदा उत्पादकता में निरंतर कमी होती जा रही है। कृषि को टिकाऊ एवं लाभप्रद बनाने के लिये मृदा स्वास्थ्य का संरक्षण एवं सुधार आवश्यक है। एक ही प्रकार के फसल का उत्पादन लगातार करने एवं फसल चक्र में दलहनी फसल को शामिल न करने से भूमि की उर्वरता घट रही है।

जैविक खाद के उपयोग न करने से मिट्टी की संरचना, जलधारण क्षमता तथा स्वास्थ्य में विपरीत प्रभाव पड़ा है। असंतुलित मात्रा में उर्वरकों के उपयोग से भूमि और जल प्रदूषित हो रहा है।

उर्वरक खपत एवं कास्त लागत बढ़ने के बावजूद उत्पादकता में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है। अतः खेतो की मिट्टी का परीक्षण कराकर संतुलित एवं समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन वर्तमान परिदृश्य में अति आवश्यक है।

मिट्टी परीक्षण :-

कृषि क्षेत्र में मिट्टी परीक्षण से अभिप्रेत है कि मिट्टी में पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्ध सांद्रता का पता लगाकर उर्वरक मात्रा की सिफारिशों को निर्धारित करने के लिए मिट्टी परीक्षण किया जाता है।

सघन कृषि में एक फसल चक्र के पूरा होने पर प्रतिवर्ष अन्यथा दो वर्ष में एक बार मिट्टी परीक्षण अवश्य कराना चाहिये। फसल की बुआई/रोपाई के पहले सूखे खेत से मिट्टी नमूना एकत्र करना चाहिये।

आवश्यक सामग्री :-

कुदाल, खुरपी, कोर सैंपलर, नमूने बैग, प्लास्टिक की ट्रे या बाल्टी आदि।

मिट्टी नमूना लेने की सही विधि :-

खेत से मिट्टी नमूने इस तरह से इकट्ठा किया जाना चाहिए कि एकत्र किए गए नमूने खेत का सही मायने में प्रतिनिधित्व करते हो। प्रयोगशाला विश्लेषण से प्राप्त परिणामों की उपयोगिता मिट्टी नमूने की शुद्धता पर निर्भर करती है। खेत से बड़ी संख्या में नमूनों का संग्रहण करना चाहिये, ताकि उप-नमूने द्वारा वांछित आकार का नमूना प्राप्त किया जा सके। सामान्य तौर पर नमूना संग्रहण प्रत्येक दो हेक्टेयर क्षेत्र के लिए एक नमूने की दर से किया जाता है।

  • दृश्य अवलोकन और किसान के अनुभव के आधार पर खेत को विभिन्न समरूप इकाइयों में विभाजित कर नमूना संग्रहण के लिए खेत में जिग-जैग पैटर्न में कई स्थानों का चयन किया जाता है।
  • स्थान चुनकर सतह से कचरा पत्थर आदि साफ कर खुरपी से “V” आकार का 6 इंच गहरा गड्ढा करें। इसकी एक सतह से आधा ईंच मिट्टी की परत खुरच कर एकत्र करें। प्रत्येक नमूने इकाई से कम से कम 10 से 15 नमूने लीजिए और एक बाल्टी या ट्रे में रखें।
  • सभी गड्ढों से प्राप्त मिट्टी को आपस मे मिलाकर छाया में सुखायें फिर ढेलों को फोड़कर बारिक करके अच्छी तरह से मिला लें।
  • मिट्टी की मात्रा आधा किलो से अधिक हो तो इसे साफ कपड़े पर गोलाकार ढे़र बना लें। उसके चार बराबर भाग कर आमने सामने के भाग (A एवं B) को लेकर फिर मिलायें, तत्पश्चात चार बराबर भाग कर भाग E एवं F भाग को थैली में भरें।
  • नमूना के साथ सूचना पत्र में जानकारी (किसान का नाम, पता, खसरा नंबर, खेत की पहचान, नमूना दिनांक, जमीन की स्थिति, मिट्टी का प्रकार, लगाई जाने वाली फसल का नाम, गत वर्ष ली गई फसल का नाम एवं उपयोग की गई खाद/उर्वरक की मात्रा आदि) भरकर थैली में रखें।
  • एकत्रित नमूनों को क्षेत्रीय कृषि अधिकारी के माध्यम से निकटतम मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला भेजें एवं प्राप्त परिणाम (स्वायल हेल्थ कार्ड) के अनुसार अनुशंसित मात्रा में उर्वरक उपयोग करें।

मिट्टी नमूना लेने के दौरान सावधानी:-

  • मिट्टी के नमूने लेने के लिए जंग लगे औजारों, उर्वरक के बोरे-पात्र आदि का उपयोग न करें।
  • मिट्टी का नमूना पडती अवधि के दौरान एकत्र करना चाहिये।
  • जिग-जैग पैटर्न में कई स्थानों पर नमूना लेना एकरूपता सुनिश्चित करता है।
  • जल जमाव वाले स्थल, पेड़ों, खाद के ढेर, मुख्य मेंड और सिंचाई नाली के पास से नमूने एकत्र नहीं करना चाहिये।
  • ऐसे खेत जो स्वरूप, स्थिति, उत्पादन और पूर्व प्रबंधन में समान हैं, को एक एकल नमूना इकाई में वर्गीकृत किया जाना चाहिये। भिन्न-भिन्न रंग, ढलान, जल निकासी, चूना-जिप्सम उपयोग, उर्वरक उपयोग, फसल प्रणाली आदि वाले खेत में अलग-अलग नमूनों को इकट्ठा करें।
  • उथली जड़ वाली फसलों के लिए, 15 सेमी गहराई तक नमूने एकत्र करें। गहरी जड़ वाली फसलों के लिए, 30 सेमी गहराई तक नमूने एकत्र करें।

मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक सिफारिश

  • पी.एच. - यह मिट्टी की अम्लीयता या क्षारीयता को दर्शाती है। इसका मान 0 से 14 तक होता है। साधारणतः 5 से 7.5 पी.एच. सामान्य श्रेणी में आता है तथा सभी फसलों के उत्पादन के लिये उपयुक्त है, इससे अधिक होने पर क्षारीय और कम होने पर भूमि अम्लीय कहलाती है। क्षारीय में जिप्सम एवं अम्लीय भूमि में चूना भू-सुधारक का उपयोग करना चाहिये।
  • विद्युत चालकता - मिट्टी में उपलब्ध लवण के आधार पर भूमि की विद्युत चालकता निर्धारित की जाती है। एक डेसी साइमन प्रति वर्ग से.मी. से कम विद्युत चालकता वाली भूमि सभी फसलों के उत्पादन हेतु उपयुक्त है। इससे अधिक विद्युत चालकता होने पर गोबर/कम्पोस्ट खाद का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • आर्गेनिक कार्बन - भूमि में उपलब्ध आर्गेनिक कार्बन 50 प्रतिशत से कम हाने की स्थिति मे गोबर/कम्पोस्ट खाद, हरीखाद का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • नत्रजन, स्फुर, पोटाश - यह तीनों तत्व मुख्य पोषक तत्व की श्रेणी में आते हैं, इनका फसलों द्वारा अधिक मात्रा में भूमि से अवशोषण किया जाता है। मिट्टी परीक्षण में उर्वरता स्तर निम्न होने की स्थिति में सिफारिश मात्रा में 50 % बढ़ाकर, मध्यम उर्वरता स्तर में सिफारिश मात्रा का तथा उच्च स्तर होने पर सिफारिश मात्रा में 50% कमी कर उपयोग करना चाहिये।
  • सल्फर (गंधक) - यह द्वितीयक पोषक तत्व की श्रेणी में आता है। तिलहनी एवं दलहनी फसलों में तेल एवं प्रोटीन के निर्माण में सल्फर तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसकी पूर्ति हेतु जिप्सम/पायराईट/सिंगल सुपरफास्फेट का उपयोग करना चाहिये।
  • जिंक, आयरन, कापर, बौरान, मैंगनीज, मालीब्डेनम - यह छः तत्व सूक्ष्म पोषक तत्व की श्रेणी में आते है, इनमें से एक भी तत्व की कमी या अधिकता होने पर पौधों द्वारा तत्वों का अवशोषण प्रभावित होने से फसल की बढ़वार एवं उत्पादकता में कमी आती है। अतः सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा क्रांतिक स्तर से कम होने पर संबंधित तत्व की पूर्ति किया जाना आवश्यक है। अनाज वाली फसलों में जिंक तत्व की कमी हेतु जिंक सल्फेट का उपयोग किया जाना चाहिये।
जैव उर्वरक उपयोग मात्रा एवं पौधों को उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा 
क्र जैव उर्वरक फसल पोषक तत्व(कि.ग्रा./हे.) बीजोपचार(ग्रा./कि.ग्रा.) भूमि उपचार(कि.ग्रा./एकड़)
1 राइजोबियम दलहनी 30-80 नत्रजन 5-10 -
2 एजोटोबेकटर मक्का, गेहूं, तिल, सरसों, गन्ना, सब्जी 15-20 नत्रजन 5-10 -
3 एजोस्प्रिलियम धान 25-30 नत्रजन 5-10 4
4 पी.एस.बी. कल्चर सभी फसलें 20-30 स्फुर 5-10 4
5 के.एम.बी. कल्चर सभी फसलें 20-30 पोटाश 5-10 4
6 नील हरित काई धान 25-30 नत्रजन 5-10 4
7 वैम (माइकोराइजा) सभी फसलें 30-50 स्फुर - -

 

विभिन्न उर्वरको में उपलब्ध पोषक तत्व
उर्वरक का नाम उपलब्ध तत्व एवं मात्रा (प्रतिशत)
नत्रजन स्फुर पोटाश सल्फर
यूरिया 46 - - -
अमोनियम सल्फेट 20.6 - - 24
सिंगल सुपर फास्फेट - 16 - 12
इफको 12 32 16 -
ग्रोमोर 28 28 - -
ट्रिपल सुपर फास्फेट - 48 - -
डी.ए.पी. 18 46 - -
पोटाश - - 60 -
सुफला 20 20 - -

            -

विभिन्न जैविक खादों में उपलब्ध पोषक तत्व की मात्रा
क्रं.- खाद का नाम नत्रजन(कि.ग्रा./क्विं) स्फुर(कि.ग्रा./क्विं) पोटाश(कि.ग्रा./क्विं)
1 गोबर खाद 0.5 0.2 0.5
2 कम्पोस्ट 0.8 0.5 0.6
3 वर्मी कम्पोस्ट 1.2 0.5 1.5
4 नाडेप कम्पोस्ट 1.0 0.6 1.5
5 नीम की खली 5.0 1.0 1.5
6 हरी खाद 2.5 0.-5 1.5

 Authors: 

श्रीमती रिंकी राय*, श्री चंदन कुमार राय, श्री खगेश जोशीश्री प्रदीप कुमार,  श्री संतोष कुमार साहू

मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान विभाग

इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,रायपुर, छत्तीसगढ़

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