किसानो को ईख बीज उत्पादन तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने की एक महत्वपूर्ण पहल

किसानो को ईख बीज उत्पादन तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने की एक महत्वपूर्ण पहल

An important initiative to make farmers self–reliant in sugarcane seed production technology

ईख की खेती में अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त प्रभेद का चयन महत्वपूर्ण होता है। परंतु प्रभेद अच्छा हो लेकिन उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं हो तो प्रभेद की महत्ता ख़त्म हो जाती है। ईख में चूँकि शुद्ध बीज का प्रयोग व्यवसायिक स्तर पर नहीं होता है इसलिए उसे ईख का बीज न कहकर बीज का ईख कहा जाता है।

व्यावसायिक ईख फसल में उपज और चीनी की मात्रा पर अधिक ध्यान दिया जाता है। जबकि ईख बीज में आँखों की स्वस्थता, पौधों में नमी और रिड्यूसिंग सुगर की अधिकता एवं अंकुरण क्षमता पर ध्यान दिया जाता है। साधारणतया अधिकांश जगहों पर ईख की कटाई तथा रोपाई का काम साथ-साथ होता है इसलिए किसान व्यावसायिक ईख को ही रोपने के काम में लाते हैं।

सामान्यतः ईख बीज का अंकुरण 30% प्रतिशत से ज्यादा नहीं होता है जिसके चलते उपज में कमी आती है। इसलिए बीज उत्पादन कार्यक्रम चलाया जाता है ताकि लगातार प्रजनक एवं आधार बीज का उत्पादन और आगे गुणन चलता रहे जिससे बीज के चलते उपज में होने वाली कमी को रोका जा सके। इस कार्यक्रम को तीन स्तर पर चलाया जाता है यथा प्रजनक, आधार, एवं प्रमाणित या व्यावसायिक बीज उत्पादन।

व्यावसायिक बीज उत्पादन

इन बीजों का उत्पादन प्रमाणित बीजों से किसानों या चीनी मिल के खेतों पर की जाती है। इसका उत्पादन प्रशिक्षित एवं प्रगतिशील किसानों द्वारा अपने फार्म पर किया जाता है। फसल की पूरी अवधी में तीन बार निरिक्षण की आवश्यकता होती है। पहला 129 दिन पर, दूसरा 200 दिन पर एवं अंतिम फसल काटने के 15 दिन पहले।

अंतिम निरिक्षण के समय यह सुनिश्चित करना है कि एक भी झुंड में रेड रॉट, विल्ट, स्मट, लीफ स्केल्ड एवं ग्रासी सूट नहीं हो। प्लासी बोरर, गुरदासपुर बोरर से एक भी झुण्ड ग्रसित नहीं होना चाहिए।

बीज गुणवत्ता की आवश्यक जानकारियाँ:

  • 10 – 20 महीने तक की फसल बीज के लिए उपयुक्त होती है।
  • नहीं जमने वाले आँखों की संख्या 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
  • मिट्टी जनित रोगों और कीड़ों से मुक्त खेतों से ही बीजों का चयन करना चाहिए।
  • फसल काटने के 72 घंटे और गुल्ली काटने के 24 घंटे के अंदर ही रोपाई कर देनी चाहिए।
  • फूल आये हुए पौधों से ऊपर के तीन गांठे बीज के टुकड़े में न लिए जाये।
  • बीज वाले खेत में 10 प्रतिशत से अधिक पौधा न गिरा हो।
  • अंकुरण क्षमता 80 प्रतिशत वांछनीय है।
  • गुल्ली काटते समय यह ध्यान रखना चाहिए की ऊपर वाले आँख के ऊपर गाँठ का एक चौथई से ज्यादा न हो, अगर हो तो ऐसे टुकड़ों की संख्या 3 % से अधिक न हो।

बीज उत्पादन की तकनीक:

खेत का चुनाव एवं तैयारी:

ऊपरी दोमट मिट्टी वाला जमीन जहाँ पानी निकास की व्यवस्था हो वह बीज उत्पादन के लिए उपयुक्त होता है। खेत के जुताई के समय सड़ा हुआ कम्पोस्ट 80 क्विंटल/एकड़ डालकर अच्छी जुताई कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए की पिछले वर्ष ईख की खेती न की गई हो।

प्रभेद एवं बीज का चुनाव:

अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित प्रभेदों के दोनों परिपक्वता वर्ग के प्रभेदों का बीज प्रमाणित श्रोत से लेना चाहिए ताकि उसमे कोई मिश्रण प्रभेद का बीज न हो। ऊपर बताये गए बीज की आवश्यकता और गुणों को ध्यान में रखते हुए बीज के चुनाव और रोप के लिए तैयारी करनी चाहिए।

रोपाई का समय और दूरी:

बीज रोपाई का समय ऐसे सुनिश्चित करना चाहिए की अगले मौसम में इसे लगाते समय उम्र 10-12 माह का हो। जैसे अक्टूबर – नवम्बर में लगाने के लिए बीजस्थली में जनवरी में रोप करनी चाहिए और अगर फ़रवरी – मार्च में रोप करनी है तो बीज स्थली में अप्रैल में रोप की जानी चाहिए। रोपाई की दूरी 90 से.मी. रखी जाती है।

उर्वरक एवं सिंचाई:

व्यवसायिक फसल के लिए उर्वरकों की मात्रा पर बहुत सारे काम हुए हैं लेकिन बीज के ईख पर काम कम हुए हैं जो भी काम हुए हैं उसके आधार पर पाया गया है कि उसके लिए नेत्रजन का प्रयोग अधिक करना चाहिए क्योंकि उससे पौधे के उपज में वृद्धि के साथ – साथ रिड्यूसिंग सुगर एवं नमी की मात्रा बढ़ जाती है जो बीज की अंकुरण क्षमता को बढ़ा देती है।

बीज ईख के लिए उर्वरक की अनुशंसित मात्रा:

रोपाई के समय अण्डी की खल्ली 300 कि. ग्रा., डी. ऐ. पी. 75 कि. ग्रा. यूरिया 32 कि. ग्रा., एम.ओ.पी 56 कि. ग्रा. और जिंक सल्फ़ेट 20 कि. ग्रा. प्रति एकड़ के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। रोपण के बाद 38 कि. ग्रा. प्रथम सिंचाई के समय, 38 कि. ग्रा. मिट्टी चढाने के समय और 20 कि. ग्रा. फसल काटने के 30 -45 दिन पहले प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करना चाहिए।

सिंचाई:

सिंचाई इतनी होनी चाहिए कि खेत में हल्की सी भी दरार न पड़े और न जल का जमाव हो। इसके लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इसके लिए अप्रैल से जून तक 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई सुनिश्चित करना चाहिए।

पौधा संरक्षण:

ईख संरक्षण के लिए समेकित नियंत्रण प्रणाली अपनानी चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए-

  • प्रभेद:- क्षेत्र विशेष के ईख के लिए अनुशंसित प्रभेदों का ही चयन करना चाहिए।
  • मिट्टी का उपचार:- ईख फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरिप्यरिफॉस (5 मी.ली. दवा प्रति लीटर पानी की दर से ) छिड़काव करनी चाहिए अथवा फॉरेट 10 जी. का प्रयोग करना चाहिए।
  • बीजोपचार:- ईख बीज के टुकड़े को 1 मी. ली. मेलाथियान का एक लीटर पानी के घोल में और वैभिस्टिन का 1 % घोल में ईख बीज को डुबोकर रासायनिक उपचार करना चाहिए।
  • फसल निरिक्षण:- सही समय पर ईख फसल का निरिक्षण करना चाहिए और आक्रांत पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। अच्छे मानक वाले फसल से ही बीज लेना चाहिए।

अतः किसान भाइयों को उपरोक्त बतायें गये तकनीक को अपनाना चाहिए ताकि गन्ना बीज के लिए आत्मनिर्भर बन सके तथा गन्ना उत्पादान में लगने वाले खर्च को कम कर मुनाफा अघिक कमा सके।


लेखकगण

डा. अजीत कुमार एवं डा. चन्दन कुमार झा

सहायक प्राध्यापक सह वैज्ञानिक,

मृदा विज्ञान विभाग, ईख अनुसंधान संस्थान,

डॉ आरपीसीएयू पूसा. 848125 समस्तीपुर- बिहार।

इमेल़ः ajeetrau@gmail.com

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