चारा फसल Tag

चारा फसल जायद बाजरा की वैज्ञानिक खेती बाजरा शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रमुख अनाजवर्गीय फसल है| इसकी खेती गर्मी और वर्षा ऋतू दोनों में की जाती है| यह अन्य चारा फसलो की अपेक्षा शीघ्रता से बढने वाली रोग निरोधक तथा अधिक कल्ले फूटने वाली चारे की फसल है। हरे चारे के लिए इससे कई कटाई ली जा सकती है| यह घनी पत्तीदार व सुकोमल होती है तथा इसका चारा स्वादिष्ट व पौष्टिक होता है| इसके चारे में प्रूसिक अम्ल नहीं होता है तथा ओक्सेलिक अम्ल भी कम होता है, इस वजह से गर्मियों में पशुओ के लिए यह अधिक सुरक्षित चारा रहता है| खरीफ के अलावा जायद...

चारा फसलों पर जैव उर्वरक का उपयोग पिछले ५० सालो में कृषि क्षेत्र में फसलों के लिए रासायनिक उर्वरको का अधिक उपयोग किया गया है जिसके प्रभाव से मिटटी की उपजाऊ क्षमता में कमी, पौधों में पोषक तत्वों की ज्यादा मात्रा, पौधों में रोग तथा किटो का आना , फलिय पौधों में नोडूलेसन की कमी, मिटटी के जीवाणुओं में कमी और प्रदुषण हुआ है| जिसके कारण किसानो को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है | फसल की उत्पादकता कम हो गई है जिससे कि‍सानों की आमदनी कम हो गयी| ऐसी स्थिति में किसानो ने रासायनिक उर्वरक के बदले जैव उर्वरक का प्रयोग करना शुरू किया जो उनकी आशाओं पर खड़े...

चारा फसल के रूप मे शहतूत की खेती पशु आहार के पूरक के रूप में हरी पत्तियों की भूमिका का महत्व निर्विवाद है। विकासशील देशों में, अनाज फसलों के भूसे और घास को पशुओं को खिलाया जाता है, लेकिन इनके कम पोषक मान के कारण पशुओं अपनी उत्पादक क्षमता का पूर्ण प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं। इस कारण अधिकांश स्थानों पर पशुओं को चारे के साथ रातिब (दाना)भी खिलाया जाता है, परन्तु पशु आहार, रातिब से भी संतुलित नहीं हों पाता है। अत:इन परिस्तिथियों में शहतूत की पत्तियों को पशु आहार में मिलकर आहार की दक्षता में सुधार किया जा सकता है। बढ़ती मानव आबादी की भोजन आपूर्ति को पूरा करने के लिए...

Seed production technology of  Anjangrass grass (Cenchrusciliaris L.) अंजन घास, से. सिलिएरिस पोयेसी परिवार कि अत्यधिक पौष्टिक घास है, जिसे गर्म, शुष्क क्षेत्रों में चारागाह के लिए उत्कृष्ट माना जाता है। सूखे की अवधि के दौरान, यह घास कटिबन्धीय क्षेत्रों में स्वादिष्ट चारेे के उत्पादन एवं अनियमित चराई के लिए मूल्यवान है। अंजन घास की कुछ प्रजातियों की ऊपज बारीश के समय में भी इसे एक अच्छे चारे के रूप में प्रस्तुत करती है । यह माना जा रहा है की अंजन की हरी घास या साइलेज  मवेशियों में दूध की मात्रा तो बढाती ही है साथ ही दूध की गुणवत्ता एवं चमक भी बढाती है । से. सिलिएरिस के लेक्टोगॉग होने के...

Multi cut fodder sorghum cultivation technique.  भारत में मात्र 4 प्रतिशत भूमि पर चारे की खेती की जाती है तथा एक गणना के अनुसार भारत में 36 प्रतिशत हरे चारे एवं 40 प्रतिशत सूखे चारे की कमी है | अत:  हमें उन चारा फसलों की खेती करनी होगी जो लम्बे समय तक पशुओं को पोष्टिक हरा चारा उपलब्ध कराने के साथ साथ हमारी जलवायु में आसानी से लगाई जा सके| शरद ऋतू में बरसीम, जई, रिजका, कुसुम आदि की उपलब्धता मार्च के पहले पखवाड़े तक बनी रहती है किन्तु बहु कट चारा ज्वार से पशुओं को लम्बे समय तक हरा चारा आसानी से मिल सकता है। ज्वार का चारा स्वाद एवं गुणवत्ता में बहुत अच्छा होता...

Major Diseases of Fodder Crops And Their Management भारत विश्व में सबसे अधिक पशु जनसंख्या वाले देशों में से एक है। दुधारू पशुओं के अधिक दुध उत्पादन के लिए हरे चारे वाली फसलों की भूमिका सर्वविदित है। इन फसलों में अनेक प्रकार के रोग आक्रमण करते है जो चारे की उपज एवं गुणवत्ता में ह्रास करते है एवं हमारे पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक सिद्ध होते हैं। अतः इन रोगों का प्रबन्धन अति आवश्यक है। चारे की फसलों में प्रमुख रोग एवं उनका प्रबन्धन इस प्रकार हैः बाजरे की मॄदुरोमिल आसिता या हरित बाली रोगः रोगजनक: यह एक मृदोढ रोग है। इसका रोगकारक स्क्लेरोस्पोरा ग्रैमिनिकॉला नामक कवक है। मॄदुरोमिल आसिता या...

Green fodder production technique पशुओं की उत्पादन क्षमता उनको दिए जाने वाले आहार पर निर्भर करती है। पशुओं को संतुलित आहार दिया जाय तो पशुओं की उत्पादन क्षमता को निश्चित ही बढ़ाया जा सकता है।  हरे चारे के प्रयोग से पशुओं को आवश्यकतानुसार शरीर को विटामिन ’ए’ एवं अन्य विटामिन मिलते हैं।  इसलिए प्रत्येक पशुपालक को अपने पशुधन से उचित उत्पादन लेने के लिए वर्ष पर्यन्त हरा चारा खिलाने का प्रबन्ध अवश्य करना चाहिए। पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए किसान भाईयों को चाहिए कि वे ऐसी बहुवर्षीय हरे चारे की फसले उगाऐं  जिनसे पशुओं को दलहनी एवं गैरदलहनी चारा वर्ष भर उलब्ध हो सकें।  रबी एवं खरीफ के लिए पौष्टिक हरा चारा...

चारा सह अनाज की बहुउद्देशीय गेहूं फसल। Eastern region of India possesses large number of ruminant population (162 million) which is equivalent to almost 55 million adult cattle units that depend on available feed resources.  The dry and green roughages contribute to the tune of 80-90 percent in their ration and hence, a total of 184 million ton dry matter is required to feed the present population. Generally, green fodder contribution varies from 25 to 40 percent in ruminant’s ration depending upon availability. But, at the same time, an acute shortage of green fodder prevails in the eastern part of India that varies from 82 to 89 percent. The main reason behind this...

अल्फाल्‍फा वीविल (Hypera postica Gyllenhal) के फैलने के लिए जिम्मेदार कारक का विश्लेषण   Alfalfa adult weevil   Forage production occupies a top priority by a farmer in cold arid region because long severe winter of 7-8 months is devoid of any vegetation greenery. Alfalfa (Medicago sativa L.) also called as the "Queen of fodder or Green Gold" is the most important fodder crop grown in Ladakh region owing to its well adaptability in the region. It is locally named as 'Buksukh". The crop being highly suited to the farming community, the cropping area has picked up and covered almost the entire area under fodder crops. It is a very important leguminous fodder grown as a...

चारा ज्‍वार की बहु वाली प्रजातियॉं किसानो को अधिक उत्पादन देने वाली बहु कटाई चारा ज्वार किस्मों का अपने क्षेत्र के अनुरूप चयन करना चाहिए | विगत कुछ वर्षो में विभिन्न कृषि जलवायु वाली परिस्थितियों के लिए राष्टीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर ज्वार की बहु कटाई वाली बहुत सी किस्में विकसित की गई है | किसान अपने क्षेत्र के अनुरूप संस्तुत किस्म का चयन कर अधिक से अधिक उत्पादन ले सकता है । बहु कटाई वाली ज्‍वार की किस्मों की बुआर्इ अप्रेल के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए, असिंचित क्षेत्रों में मानसून के आने के बाद अथवा 15 जून बाद बुआई करें | बहुकट चारा ज्वार की किस्मों हेतु  बीज की मात्रा 40 से 50 की.ग्रा....