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Cercospora disease of chilli मिर्च (Capsicum annum L.) उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय देशों के व्यंजनों का एक महत्वपूर्ण घटक है और यह वैश्विक स्तर पर चौथी प्रमुख खेती की जाने वाली फसल है। मिर्च दक्षिणी अमेरिका की मूल निवासी है। इसे 'वंडर स्पाइस' कहा जाता है। मिर्च हर भारतीय व्यंजन में महत्वपूर्ण सब्जी और मसाला होती है और पूरे देश में उगाई जाती है। तीखे रूप में इन्हें हरी मिर्च, सुखी मिर्च, मिर्च पाउडर, मिर्च पेस्ट, मिर्च सॉस, मिर्च ऑलियोरेसिन या मिश्रित करी पाउडर के रूप में उपयोग किया जाता है। सूखे फल मसालों में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं। यह व्यंजनों में स्वाद, रंग और तीखापन जोड़ती है। मिर्च का उपयोग...

Red chilli: Harvest and Post Harvest Handling भारत मिर्च का विश्व में सबसे बड़ा निर्माता एवं उपभोक्ता है। इसका योगदान वैश्विक उत्पादन का लगभग २५ प्रतिशत है। इसकी खेती भारत के विभिन्न भागों में होती है और यह सालभर उपलब्ध रहता है। इसकी तुड़ाई ज्यादातर दिसंबर से मार्च तक होती है तथा इसकी आपूर्ति फरवरी से अप्रैल तक चरम पर होती है। इसके रोपाई का मुख्य समय खरीफ का मौसम है।  लाल मिर्च की तुड़ाई: लाल मिर्च की तुड़ाई सवेरे करनी चाहिए.  बारिश या बारिश के पश्चात् तुड़ाई से बचना चाहिए. तुड़ाई के समय फलों के डंठल को मजबूती से पकड़ कर ऊपर के तरफ खींचना चाहिए. इससे फलों का टूटना बचाया जा सकता...

मिर्च की खेती के लिए नर्सरी की तैयारी मिर्च को सामान्य रूप से प्रत्यारोपित किया जाता है क्योंकि बहुत बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं और विशेष देखभाल दी जा सकती है, जब पौध नर्सरी में तैयार की जाती है| मि‍र्च नर्सरी के लिए साइट का चयन चयनित क्षेत्र अच्छी तरह से सूखा होना चाहिए, और जल जमाव से मुक्त होना चाहिए उचित धूप होनी चाहिए, नर्सरी को पानी की आपूर्ति पास होनी चाहिए ताकि सिंचाई आसान हो सके। इस क्षेत्र को पालतू और जंगली जानवरों से अच्छी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए। कार्बनिक पदार्थों से भरपूर रेतीली दोमट और दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है ।। स्वस्थ रोपाई के लिए, बीज और मिट्टी को रोगज़नक़ और कीट से...

मिर्च की पौध की तैयारी व देखभाल मिर्च की खेती पौध तैयार कर के की जाती है। अच्छे और स्वस्थ पौध अच्छी खेती का आधार होती है। पौध की तैयारी पौधशाला या नर्सरी में की जाती है। इसके लिए जगह का चुनाव बहुत मत्वपूर्ण है। पौधशाला ऐसी जगह पर होना चाहिए जहाँ छाँव न हो और पर्याप्त मात्रा में धूप उपलब्ध हो। पौधशाला का क्षेत्र सीमित होना चाहिए ताकि देखभाल आसान हो। पौधशाला की मिट्टी उपजाऊ और दोमट होनी चाहिए जहाँ जल निकासी की व्यवस्था हो। अगर पौधशाला की भूमि ऊंचाई पर हो तो अच्छा है जिससे वर्षा काल में पानी ठहरने का भय न हो साथ ही साथ सिंचाई की व्यवस्था...

 Nutritional benefits and medicinal uses of chilli मिर्च के फलों के आकार, रंग, स्वाद और तीखेपन में काफी भिन्नता है. यह भिन्नता मिर्च के पोषण सरंचना में भी पायी जाती है जो मिर्च के प्रजातियों पर, किस्मों पर, फसल उगाने के तरीके पर और फलों के परिपक्वता पर निर्भर करता है. साथ ही साथ पोषण तत्वों की भिन्नता तुड़ाई उपरान्त रखरखाव और उसके भण्डारण पर भी निर्भर करता है. यह पाया गया है की विटामिन ए, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा फलों के परिपक्वता के साथ ही सभी प्रजातियों और किस्मों में बढ़ जाती है. लाल मिर्च में विटामिन बी 6 हरी मिर्च की तुलना में काफी ज्यादा होता है.  विटामिन ए कई...

Integrated management of Major diseases of Okra and Chilli 1. भिण्डी में पाऊडरी मिल्डयू अथवा चूर्ण फंफूदी रोग रोग के लक्षण - यह भिण्डी का एक प्रमुख रोग है जो देरी से बोई गई फसल पर अत्यधिक संक्रमण करता है। रोग के लक्षण की शुरूआत पुरानी पत्तियों पर सफेद चकते के रूप में दिखाई देते है। ये चकते कुछ ही दिनो में ऊपर की और अन्य पत्तियों पर फैल जाते है। संक्रमित पौधों की पत्तियों पर सफेद पाऊडर जैसा रोगजनक देखा जा सकता है जो पत्तियों के दानो तरफ तथा पौधे के सभी भाग पर (जड़ के अतिरिक्त) पर देखा जा सकता है बाद में पौधे का ऊपरी भाग पीला पड़कर सूखने लगता है। पौधे...

13 Major Insect pests and diseases of Chilli and their prevention measures मिर्च के फसल का सबसे घातक तथा ज्यादा नुकसान करने वाली बीमारी है पत्ता मोडक बीमारी। जिसे विभिन्न स्थानों में कुकड़ा या चुरड़ा-मुरड़ा रोग के नाम से जाना जाता है। यह रोग न होकर थ्रिप्स व माइट के प्रकोप के कारण होता है। थ्रिप्स के प्रकोप के कारण मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव का आकार धारण कर लेती है। माइट के प्रकोप से भी पत्तियां मुड़ जाती है परन्तु ये नीचे की ओर मुड़ती हैं। मिर्च में लगने वाली माइट बहुत ही छोटी होती है जिन्हें साधारणत: आंखों से देखना सम्भव नहीं हो पाता है। यदि...

Agricultural work to be carried out in the month of May दलहनी फसल: इस समय मूंग, उर्द, लोबि‍या की फसल में 12 से 15 दि‍न के अन्‍तराल पर सि‍ंचाई करें। मूंग में पत्‍ति‍यों के धब्‍बा रोग की रोकथाम के लि‍ए कॉपर ऑक्‍सीक्‍लोराईड 0.3 प्रति‍शत का घोल बनाकर 10 दि‍न के अंतराल पर छि‍डकाव करें। दलहनी फसल में धब्‍बा रोग के लि‍ए कार्बेन्‍डाजि‍म 500 ग्राम / हैक्‍टेयर के हि‍साब से घोल बनाकर छि‍डकाव करें। पीला मौजैक रोग की रोकथाम के लि‍ए एक लि‍टर मेटासि‍स्‍टाक्‍स दवा को 1000 लि‍टर पानी में घोलकर प्रति‍ हैक्‍टेअर की दर से छि‍डकाव करें।  गेंहूॅ: गेहूॅ में मढाई का कार्य शीघ्र पूरा कर ले। अनाज के भण्‍डारण से पहले गेंहूॅ को धूपं में इतना सुखाऐं...

Agricultural work to be carried out in the month of June धान फसल: यदि‍ मई के अन्‍ति‍म सप्‍ताह में धान की नर्सरी नही डाली हो तो जून के प्रथम पखवाडे तक पूरा कर ले। सुगंधि‍त धान की प्रजाति‍यों की नर्सरी जून के तीसरे सप्‍ताह मे ही डालनी चाहि‍ऐ। एक हैक्‍टेयर क्षेत्रफल में धान की रोपाई के लि‍ए 800 से 1000 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र की आवश्‍यकता होती है। प्रमुख कि‍स्‍मे - पूसा 1509, 1612, पूसा बासमती 5,6, पूसा 1121, पूसा आरएच 10  सब्‍जि‍यॉं : बै्ंगन, मि‍र्च व अगेती फूलगोभी की नर्सरी तैयार करें। बैंगन की कि‍स्‍मे: गोल फल- पूसा उत्‍तम, पूसा संकर 6 व 9, लम्‍बे फल- पूसा श्‍यामला, पूसा कौसल, पूसा संकर 5 व 20, छोटे...

Optimal planting geometry and fertilizer application method for drip irrigated vegetable crops फसलों की सिंचाई की विधियों में टपक सिंचाई पध्दति सर्वाधिक कुशल विधि है जिसमें जल का 80-90 प्रतिशत कुशल उपयोग होता है। इस पध्दति से सभी प्रकार की भूमि में कम समय एवं कम जल में सिंचाई की जा सकती  है। टपक सिंचाई पध्दति द्वारा सिंचाई में पौधों के सीमित नम क्षेत्र के कारण रोग की सम्भावना कम होती है तथा फसलों की पंक्तियों में खर-पतवार नहीं उग पाते हैं। सिंचाई की इस विधि का उपयोग पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। सीमित जल संसाधनों और दिनों-दिन बढ़ती हुई जलावश्यकता के कारण टपक सिंचाई तकनीक सर्वाधिक उपयुक्तहै। टपक तंत्र एक...