गेहूं Tag

Symptoms, disease spread and disease management of loose smut disease in wheat गेहूँ (ट्रिटिकम प्रजाति) न केवल भारतीय परिदृश्य में अपितु वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है जोकि विभिन्न प्रकार की जलवायु, भौगोलिक क्षेत्र एवं फसल परिस्थितियों के बीच उगाई जाती है। यह करोडों लोगो का मुख्य खाद्य है। दुनिया में समस्त कृषित भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। गेहूँ विश्व के सभी प्रायद्वीपों में उगाया जाता है। गेहूँ विश्व की निरंतर बढ़ रही जनसंख्या के लिए लगभग २० प्रतिशत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। भारतीय परिदृश्य में गेहूँ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। दुनिया  में भारत गेहूँ...

गेहूं की अच्छी पैदावार  प्राप्त  करने  के  लिए उन्नत  किस्म का  चयन Selecting a wheat variety for a geographic area is critical to achieving high yields and improved grain structure, so it is one of the most important decisions a producer makes each year. Variety selection is the foundation for developing an effective and successful crop management plan. The maximum yield potential of each variety is genetically determined. This yield potential is only achieved when management and environmental conditions are right. गेहूँ मानव मूल की सबसे प्रधान फसल है जो सदियों से सामान्य आबादी की खाद्य आदतों में रही है। हम सभी पोषक तत्वों की हमारी दैनिक आवश्यकताओं के लिए इसका सेवन करते हैं, और ऊर्जा स्तर को बढ़ाने की हमारी...

गेहूँ के गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन की उन्नत तकनीकियाँ, बीज प्रसंस्करण और भण्डारण For quality seed production, it is necessary that the seed should be of advanced species, physical purity, genetic purity, germination capacity should be determined and conformed to the variety. The seed should be healthy, free from seed borne diseases, uniform in color, shape and size. गेहूँ एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है जिसका स्थान भारत मे चावल के बाद आता है। तथा 2021 के दौरान 31.61 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 109.52 मिलियन टन उत्पादन हुआ यह रबी मौसम की फसल है। गेहूँ की खेती भारत के विभिन्न राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश उत्तराखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,...

गेहूँ सुधार के लिए डबल्ड हैप्लोइडी तकनीक: एक परिचय  Doubled haploidy technique is used to generate pure inbred lines for basic research and production of commercial cultivars. These lines are pure and genetically homozygous individuals are produced when spontaneous or induced chromosome duplication of haploid cells occurs. Double haploids are one of the biggest achievements in plant breeding because of production of completely homozygous plant within a year (Hooghvorst and Nogues., 2021). The production of doubled haploid lines can accelerate the breeding of new wheat varieties by several years through one step creation of 100% homozygous plants. This technology plays an important role in studying the genetic control of traits in wheat, marker...

गेहूं की जल्दी बुवाई: जलवायु परिवर्तन में एक सार्थक प्रयास Early (October) sowing of wheat is defined as sowing from the third week of October to the first week of November. Farmers in northwestern and central India advance their wheat much earlier (October) than usual (November) to protect their wheat from eventual heat stress and maintain production by using soil moisture even after the paddy harvest. Wheat is an important crop in South Asia and India. Women from marginal and small agricultural households who contribute significantly to the wheat production system and animal management should be given special attention. The Gangetic plains of South Asia are currently considered ideal for wheat growing,...

गेहूँ एवं जौ की फसलों में लगने वाले महत्वपूर्ण रोग एवं उनकी रोकथाम   कृषि फसलों में लगने वालें रोग अनेक पादप रोगजनकों (जैसे कवक, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमि, फाइटोप्लाज्मा इत्यादि) एवं वातावरण कारकों के द्वारा उत्पन्न होते हैं। रोगजनकों से होने वाले रोग अनुकूल परिस्थितियों में फसल को भारी क्षति पहुंचा सकते है। अतः इन रोगों का शुरूआत में ही नियंत्रण करना अति आवश्यक है। गेहूँ एवं जौ प्रमुख रबी फसलों में से एक हैं जो हमारे देश भारतवर्ष में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में महती योगदान देती हैं। इन फसलों के महत्वपूर्ण रोग एवं उनका प्रबंधन इस प्रकार है -    गेहूं में लगने वाले प्रमुख रोग: 1. पीली गेरूई (धारीदार रतुआ):...

काले गेहूं की खेती  बढ़ती जनसंख्या के साथ विश्व में भोजन की कमी और आवश्यकता दोनों तेजी से बढ़ रही है। वहीँ अगर गेहूं की बात करें तो गेहूं (Wheat) एक महत्वपूर्ण फसल है जो विश्व खाद्य आवश्यकता को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गेहूं पूरी दुनिया में उगाया जाता है। वहीं गेंहू की उपज और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सुधार आवश्यक है। पंजाब के मोहाली में नेशनल एग्री-फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (NABI) की वैज्ञानिक डॉ. मोनिका गर्ग ने गेहूं की तीन नई किस्में विकसित की हैं- काली, नीली और बैंगनी। अपने खास गुणों के चलते इसकी मांग काफी अधिक रहती है। वहीं दूसरी ओर इसकी सप्लाई लिमिटेड होने के चलते इसकी...

Safe storage of wheat भारत में उगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलों में गेहूँ एक महत्वपूर्ण फसल है। उत्पादन तकनीकों में प्रगति के कारण गेहूँ उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2020-21 के दौरान देश में अब तक का गेहूँ का सर्वाधिक उत्पादन लगभग 109.52 मिलियन टन रहा। आमतौर पर फसल कटाई के बाद भारत में गेहूँ अनाज व बीजों को किसानों, व्यापारियों एवं औद्योगिक स्तर पर संग्रहित किया जाता है। देश के सभी भागों में अनाज के रख-रखाव एवं संग्रह के लिए उपयुक्त तकनीक एवं भंडारण संरचनाएं विकसित की गई हैं। कटाई के बाद अनाज को उपयोग करने के लिए पारम्परिक एवं आधुनिक भंडारण पद्धतियों को अनाज संग्रह के प्रयोग...

गेहूँ की उन्नत किस्में एवं उत्पादन तकनीकी भारत में चावल के बाद गेंहूँ एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है जिसकी खेती शीत ऋतू में की जाती है| गेहूँ के दानों का उपयोग अनेकों प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाने में किया जाता है| इसके दानों में कार्बोहाइड्रेट (60-68%) और प्रोटीन (8-12%) मुख्य रूप से पाए जाते है| इसकी भूसी का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है| गुणवत्ता व उपयोग के आधार पर गेंहूँ को दो श्रेणियों मे विभाजित किया गया है-मृदु गेहूँ (ट्रिटिकम ऐस्टिवम) एवं कठोर गेहूँ (ट्रिटिकम ड्यूरम)। ट्रिटिकम ऐस्टिवम की खेती देश के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि डयूरम की खेती पंजाब एवं मध्य भारत में...

Karnal bunt disease of wheat: condition and direction करनाल बंट टिलेशिया इंडिका नामक कवक से उत्पन्न होने वाला गेहूँ की फसल का एक मुख्य रोग है। यह रोग विशेष रूप से भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है। यद्यपि आज तक भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में करनाल बंट की कोई महामारी दर्ज नहीं की गयी है किन्तु अति संवेदनशील गेहूँ की प्रजातियों में पुष्पावथा के समय (फरवरी-मार्च) में जब उच्च आर्द्रता होती है, तब 30-40 प्रतिशत तक गेहूँ की फसल करनाल बंट से संक्रमित पायी गयी है अखिल भारतीय गेहूँ एवं जौ समन्वित अनुसन्धान परियोजना 2019 के तहत किये गये पोस्ट हार्वेस्ट सर्वे के दौरान कुल...