गेहूं Tag

गेहूं उत्पादन तकनीक गेहूँ रबी ऋतु में उगाई जाने वाली अनाज की एक मुख्य फसल है।  क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टि से विश्व में धान के बाद गेहूँ दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण फसल है। गेहूँ अनाज के साथ-साथ भूसे के रूप में पशु आहार के लिए प्रमुख स्रोत है। गेहूँ का मुख्य उत्पादन उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर में होता है। हरियाणा राज्य में गेहूँ  की फसल लगभग 25 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में उगायी जाती है और इसकी औसत उपज लगभग 3172 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है । हरियाणा क्षेत्र में गेहूँ का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाये जाने की अपार सम्भावनायें...

गेहूँ के बीज जनित रोग Wheat is the second most important cereal crop in India after Rice. Being one of the most important staple crop, it fulfils major nutrition requirement of the human population since times immemorial. Seed borne diseases of wheat viz., Karnal bunt (Tilletia inidica), loose smut (Ustilago nuda tritici), head scab (Fusarium spp) and tundu or ear cockle (Clavibacter tritici and Anguina tritici) are major constraints affecting both quality and quantity of the wheat grain production leading to low market prices. Besides affecting quality, several diseases may have toxic effect on human beings and animals due to the toxins produced by pathogens. Infected wheat seeds can be carried to long...

उत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिये गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उत्पादन तकनीकियाँ विश्व स्तर पर भारत गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है एवं कुल खाद्य पदार्थो के उत्पादन में 34¬ प्रतिशत  योगदान करता है। वर्ष 1964-65 के दौरान देश में गेहूँ का उत्पादन महज 12.3 मिलियन टन था जो कि 2018-19 के दौरान 102.19 (चतुर्थ आग्रिम अनुमान) तक पहुँच गया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें मजबूत शोध कार्यों और संगठित प्रसार कार्यक्रमों के द्रारा ही संभव हुई है। कृषि जलवायु स्थिति के व्यापक विविधता के आधार पर भारत को 5 विभिन्न क्षेत्रों मे बाँटा गया है जोकि उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (12.62 मिलियन हैक्टर), उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (8.56 मिलियन हैक्टर),...

गेहूँ उत्पादन की आधुनिक सस्य तकनिकी  देश में लगभग 3.02 करोड़ हेक्टेअर क्षेत्रफल से 9.68 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो रहा है। देश की बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वर्ष 2030 के अन्त तक 28.4 करोड़ टन गेहूँ की आवश्यकता होगी। इसे हमे प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण, भूमि, जल एवं श्रमिक कमी तथा उत्पादन अवयवों के बढ़ते मूल्य के सापेक्ष प्राप्त करनी होगी। उत्तर प्रदेश के वर्ष 2001-02 से वर्ष 2016-17 के गेहूँ उत्पादन एवं उत्पादकता के आंकड़ो से स्पष्ट है, कि इसमें एक ठहराव सा आ गया है। जिसको हम मुख्य रूप से उन्नतशील बीज, पोषक तत्व, नाशीजीव, खरपतवार एवं जल प्रबन्ध को एक साथ समायोजित कर ही...

वैज्ञानिक खेती के उन्‍नत तरीकों को अपनाकर गेहूं का उत्पादन बढ़ाऐं  भारत में गेहूँ की खेती करीब 27 मिलियन हेक्टेयर में होती हैं, विगत 40 वर्षों में देश में गेहूँ उत्पादन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की हैं और भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश बन गया हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या को ध्यान में रखकर इस बात का अनुमान लगाया जा रहा हैं की अन्न की मांग प्रतिवर्ष 2% बढ़ेगी। इस मांग को पूरा करने के लिए उत्पादकता को बढ़ाना होगा, क्योंकि क्षेत्रफल के बढ़ने की संभावना नहीं के बराबर हैं। राजस्थान में गेहूँ का उत्पादन एवं उसका लाभांश, खेती की लागत के अनुरूप नहीं हैं। उन्नत तकनीको के प्रयोग...

गेंहू की पछेती बुबाई में पैदावार बढ़ाने के लिए मिश्रित शाकनाशियों का उपयोग  खरपतवार कृषि-पारिस्थितिक तंत्र में अवांछित पौंधें हैं जो सीमित संसाधनों के लिए फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं जिसके परिणामस्वरूप फसल पैदावार और किसानों की आय में कमी आती है। देर से बोए गए गेहूं में, मिश्रित प्रकार के खरपतवार के कारण गेंहू की उपज में 34.3 प्रतिशत तक की कमी पाई गई, जिससे नत्रजन, पासफोरस और पोटाश की क्रमश: 2.57, 0.43 और 1.27 प्रतिशत की हानि पाई गई है। एक आंकलन के अनुसार खरपतवार नियंत्रण की औसतन लगत रु 6000 प्रति हेक्टेयर खरीफ ऋतु में और रु 4000 प्रति हेक्टेयर रबी ऋतु में आंकी गयी है जो कुल फसल...

Yellow stripe Rust disease of Wheat and its treatment मुख्यतः पीला रतुआ रोग पहाड़ों के  तराई क्षेत्रो में पाया जाता है  परन्तु पिछले कुछ वर्षों से उत्तर भारत के  मैदानी क्षेत्रो में इस रोग का प्रकोप पाया गया है | मैदानी क्षेत्रो में  सामान्यतः गेहूं की अगेती एवं पछेती किस्मों में यह रोग छोटे छोटे खंडो में क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र ,लखनऊ द्वारा रिपोर्ट किया गया है | जनवरी और फरवरी में गेहूं की फसल में लगने वाले पीला रतुआ (यैलोरस्ट) रोग आने की संभावना रहती है। निम्न तापमान  एवं उच्च आर्दता येलो रस्ट के स्पोर अंकुरण के लिए अनुकूल होता है एवं  गेहूं को पीला रतुआ रोग लग जाता...

 गेहूं की प्रचुर फसल के लिए वि‍शेषज्ञ सलाह  1. यदि खेत पूर्ण रूप से समतल नही है तो लेज़र लैंड लेवेलेर की सहायता से खेत को समतल कर लेना चाहिए| कम पानी उपलब्धता की स्तिथि में भी समतल खेतो में फसल रक्षक सिंचाई की जा सकती है | यदि प्रयाप्त सिंचाई जल उपलब्ध भी है तो खेत समतलीकरण पानी, सिंचाई का समय, बिजली इत्यादि बचाने और पैदवार बढ़ाने में मददगार साबित होता है | 2. यदि खेत में नमी कम है तो बिजाई से पहले बीज को पानी में भिगोकर फिर सुखाकर (नल के पानी में रात भर भिगोकर) उपयोग करें। यह प्रकिर्या जिसे बीज प्रईमिंग कहते है,  अंकुरण की सुविधा प्रदान करेगा और...