ग्वार की खेती Tag

बहुउपयोगी फसल ग्वार की खेती ग्वार उत्तरी भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है जिसकी खेती मुख्यतः हरी फली सब्जी-दाले, हरी खाद व चारा फसलों के लिए की जाती है। उत्तरी भारत में इसके उगाए जाने का एक मुख्य कारण यह भी है कि ग्वार अन्य फसलों की तुलना में अधिक सूखा सहनशील है इसलिए शुष्क क्षेत्रों में तो इसकी खेती हरी खाद के रूप में बड़े पैमाने पर की जाती है। ग्वार की कुछ किस्मो का प्रयोग गोंद निकालने के लिए किया जाता है और उन्हें मुख्यता उसी के लिए उगाते हैं जिससे प्राप्त गोद का प्रयोग विभिन्न कार्यो जैसे- कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन एवं कागज की वस्तुएं...

ग्वार की वैज्ञानिक खेती तकनीक दलहन फसलों में ग्वार (क्लस्टर बीन) का विशेष योगदान है। यह गोंद (गम) और अन्य उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण औद्योगिक फसल है। ग्वांर का उपयोग हरे चारे एंव इसकी कच्ची फलियों को सब्जी के रूप में किया जाता है। इसकी खेती राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में की जाती है। भारत में राजस्थान ग्वार के क्षेत्र और उत्पादन में पहले स्थान पर है। ग्वार से ग्वार गम का उत्पादन होता है और जिसका निर्यात किया जाता है। इसके बीजों में 18 प्रतिशत प्रोटीन, 32 प्रतिशत फाइबर और भ्रूणपोष में लगभग 30-33 प्रतिशत गम होता है । खेत का चुनाव एंव तैयारी ग्वार की खेती मध्यम से हल्की बनावट...

Improved technology for cluster bean cultivation ग्वार, लेग्युमिनेसी कुल की, खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली एकवर्षीय फसल है। ग्वार यानि‍ क्‍लस्‍ट्रबीन का वैज्ञानिक नाम साइमोपसिस टेट्रागोनोलोबा  है। इसका पौधा बहु-शाखीय व सीधा बढ़ने वाला है। पौधे की लम्बाई 30-90 सेमी तक होती है। इसकी जड़ें मृदा में काफी गहराई तक जाती हैं। ग्वार के फूल आकार में छोटे व गुलाबी रंग के होते हैं। फलियां लम्बी व रोएंदार होती हैं। ग्वार एक स्वपरांगित फसल है। ग्वार की फसल में बुवाई के 70-75 दिनों बाद फलियां आनी शुरू हो जाती हैं। सामान्यतः 110-133 फलियां प्रति पौधा आ जाती हैं। ग्वार की खेती कम वर्षा और विपरीत परिस्थितियों वाली जलवायु में भी आसानी की जा...