जड़ वाली सब्जी Tag

उच्चहन (डॉड़) भूमि में सूरन की खेती  जिमी कंद को सूरन या ओल के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में आसानी से हो सकती है। असिंचित भूूूूमि‍ में भी इसकी खेती की जा सकती है और सिंचाई सुविधा होने पर अन्य फसलों की तुलना में अत्यधिक लाभदायक है। इसकी खेती करने के लाभ निम्न हैं। यह 9-12 महीनों की फसल है। इसे सब्जी वाली फसल, कंदीय फसल या औषधीय फसल तीनों रूप में उपयोग कि‍या जा सकता है। इसकी मांग हमेशा बनी रहती है अतः दाम अच्छा मिलता है। यह एक ऐसी फसल है जिसे किसान अपनी आवश्यकतानुसार कभी भी विक्रय कर सकता है। मेड़ो में लगाने के लिये यह अत्यंत उत्तम फसल है। इसके...

Advanced Farming Technique of Beetroot. चुकंदर का शुमार मीठी सब्जियों में किया जाता है । चुकंदर में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट लाल तत्व में कैंसर रोधी क्षमता होती है । इतना ही नहीं यह हृदय की बीमारियों में भी कारगर माना जाता है । चुकंदर की कई प्रजातियाँ भारत में उगाई जाती हैं । अलग-अलग राज्यों में इसको अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है । बांग्ला में बीटा गांछा, हिंदी पट्टी में चुकंदर, गुजरात में सलादा, कन्नड़ भाषा में गजारुगद्दी, मलयालम में बीट, मराठी में बीटा, पंजाबी में बीट और तेलुगु में डंपामोक्का के नाम से मशहूर प्रजातियां भारत में सामान्यतः उगाई जाती है। भारत में उगायी जाने वाली चुकंदर की प्रजातियां डेट्रॉइट डार्क...

Techniques for Carrot cultivation and its seed production गाजर की खेती पुरे भारत मे की जाती है इसका उपयोग सलाद,अचार एवं हल्वा के रूप मे किया जाता है। गाजर का रस कैरोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है। कभी कभी इसका उपयोग मक्खन को रंग करने के लिये भी किया जाता है। गाजर मे विटामिन जैसे थियामीन एवं राबोफलेविन प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है। संतरे रंग के गाजर मे कैरोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है। गाजर की खेती के लिये मिटटी एवं जलवायु गाजर की खेती के लिये अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिटटी जिसमे कार्बनिक पदार्थ हयुमस की मात्रा अधिक हो तथा पी.एच. मान 5.5-7.0 होनी चाहिए। हल्की मिटटी...

Seed Production technology of Rooted Vegetable Crops जड़ वाली सब्जियों में मूली, शलगम, गाजर व चकुंदर प्रमुख है। जड वाली सब्जियों की खेती में कृषि क्रियाओं में प्रयाप्त समानता है। ये ठंडे मौसम की फसलें है तथा सभी भूमिगत होती है। इनसे हमें पौष्टिक तत्व, शर्करा, सुपाच्य रेशा, खनिज लवण, विटामिन्स व कम वसा प्राप्त होती है। बीज उत्पादन के लिए इन सब्जियों को दो अलग-अलग समूहों में बांटा गया है। एशियाटिक या उष्णकटिबंधीय समूह तथा युरोपियन या शीतोष्ण समूह।  युरोपियन समूह में शीतकालीन किस्में आती है जिनका बीज उत्पादन पहाड़ी इलाकों में ही सभंव होता है जबकि मूली, शलगम व गाजर की अर्द्धउष्णीय या एशियाटिक किस्मों का बीज उत्पादन उत्तर भारत के...