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Advanced cultivation of golden fibre jute: an overview जूट को भारत का सुनहरा रेशा ('गोल्डन फाइबर') माना जाता है। जूट  प्राकृतिक, नवीकरणीय, जैवनिम्ननीय और पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद है, जिसका उपयोग ज़्यादातर पैकेजिंग सामग्री के रूप में किया जाता है, आजकल इसे पैकेजिंग क्षेत्र में सस्ते सिंथेटिक्स से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। पारंपरिक पैकेजिंग क्षेत्र के अलावा, जूट का उपयोग बड़े और छोटे उद्योगों में कपड़ा और गैर-कपड़ा दोनों क्षेत्रों में किया जाता रहा है। जूट पर्यावरण के अनुकूल है, जैवनिम्ननीय है और इसमें CO2 अवशोषण दर बहुत अधिक होने के कारण, इसको पर्यावरण के अनुकुल बनाता है और 'सुरक्षित' पैकेजिंग के सभी मानकों को पूरा करता है जो इसके व्यवसायिक विकास...

Diseases of the jute and its management पटसन का वानस्पतिक नाम कोरकोरस केपसुलेरिस तथा को. आलीटोरियस है जो कि स्परेमेनियोसी परिवार का सदस्य है। विश्‍व में कपास के बाद पटसन दूसरी महत्वपूर्ण वानस्पतिक रेशा उत्पादक वाणिज्यिक फसल है। पटसन की खेती मुख्यतया बंगलादेश, भारत, चीन, नेपाल तथा थाईलैंड में की जाती है। भारत में पश्‍ि‍चम बंगाल, बिहार, असम इत्यादि राज्यों में पटसन कि खेती की जाती है। देश में पटसन का क्षेत्रफल 8.27 लाख हैक्टेयर है। वही इसका उत्पादन 114 लाख गांठ है। पटसन की फसल में कई प्रकार के जैविक व अजैविक कारकों से रेशे के उत्पादन में कमी आती है। जैविक कारकों के अन्तर्गत तना सड़न रोग इसके उत्पादन में सबसे...

Jute business changing lives of hundreds of women's अंतराष्ट्रीय बाजार से लेकर भारतीय महाद्वीप में जूट से बने सामानों की भारी मांग है। जूट से फैशनेबल कपड़े, चप्पल, सजावटी सामान और पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला परंपरागत बोरा बनाया जा रहा है। लेकिन देश में जूट की खेती घटती जा रही है। ऐसे में केंद्र सरकार की सहायता से उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने देश-विदेश में जूट की इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए जूट और सनई की खेती को बढ़ावा देने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। विश्व में कुल जूट उत्पादन का लगभग 49 प्रतिशत उत्पादन भारत में होता है। आज भी देश में...

Climate Smart Agricultural Activities for Jute Production हमारी कृषि आज भी वर्षा और मानसून पर निर्भर है। जिसके कारण कृषि की उत्तपादकता मे हमेशा अस्थिरता रहती है। बारिश का समय पर ना होना, अगर होना भी कभी अत्‍याधि‍क तो कभी कम होना, आदि‍ बारिश की अनिमियताऐं  कृषि को बहुत प्रभवित करती है। बारिश की अनिमियता या असामान्‍य व्‍यवहार का कारण जलवायु मे परिवर्तन है। इसके लि‍ए पेड़ो का कम होना, औधौगीकरण, शहरीकरण, ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन, त्रुटिपूर्ण कृषि क्रियाएँ , बंजर भूमि का बढ़ना इत्यादि माना जा रहा है। ग्रीन हाऊस गैस जैसे की कार्बनडाइओक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ़्लोरोकार्बोन इत्यादि वायुमंडल मे मोटी परत बना लेते है जिससे किरणों के धरातल पे टकराने...

Economic Analysis and Marketing Management of Jute Production पटसन भारत के पूर्वी व उत्तर राज्यों में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण पर्यावर्णीय अनुकूल रेशा फसल है | इसकी खेती लगभग 8 लाख हेक्टर में लगभग 40 लाख लघु व सीमान्त कृषकों द्वारा की जाती है | पश्चिम बंगाल पटसन के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में देश का एक अग्रणी राज्य है | इसके अलावा इसकी खेती बिहार, असम, ओड़ीशा, त्रिपुरा, मेघालय तथा उत्तर प्रदेश में की जाती है | वर्तमान दशक में नवीनतम कृषि तकनीकों एवं क्षेत्रफल विस्तार के कारण इसकी राष्ट्रीय उत्पादकता 23.0 कु॰/हे॰ तथा वर्ष 2012-2013 में लगभग 103.4 लाख बेल का उत्पादन हुआ है | विभिन्न कारणों से पटसन उत्पादक राज्यों...

जूट- गोल्डन फाइबर का सिंहावलोकन Jute is considered as the golden fibre of India. It is the commercially available natural fibre which is utilized mostly as packaging material, nowadays facing a steep competition from cheap synthetics in packaging sector. Besides the traditional packaging sector, jute has been used in both textile and non-textile sectors in large and small industries. Jute is eco-friendly, biodegradable and has much higher CO2 assimilation rate which is creating an opportunity for the survival and growth of jute industry in the era of environmental concern. Global production of jute and allied fibres is around 3.0 million tonnes, 92.5% of which comes from India and Bangladesh alone. India...