जैव प्रौद्योगिकी Tag

फसल सुधार में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार है, भारत की लगभग 65-70 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, लेकिन इस बदलते परिवेश में जहाँ बढ़ती आबादी के कारण कृषि जोत सिकुडती जा रही है, वहीं बदलती हुई जलवायुवीय परिस्थितियों ने कृषि स्थति को और भयावाह बना दिया है। कहीं पानी की कमी के कारण बुवाई पर रोक है, तो कहीं अधिक पैदावार की वजह से उपज की पर्याप्त कीमत नहीं मिल पा रही है। हरित क्रांति ने उपज तो बढ़ा दी है, लेकिन बदलते वक्त में खेती के सामने अलग चुनौतियां भी पैदा कर दी हैं। ऐसी खोज जरूरी है, जो...

बागवानी में जैव प्रौद्योगिकी  की भूमिका  इन विट्रो कल्चर तकनीकों में लगभग 60 साल पहले फल की फसलों के लिए कई अनुप्रयोग हुए हैं। जिनमें गुठलीदार  फलों के लिए भ्रूण बचाव तकनीक शामिल हैं। जो बाद में इस विधि को व्यावसायिक रूप से स्वीकार्य, जल्दी पकने वाले आड़ू की खेती के उत्पादन के लिए सफलतापूर्वक लागू किया गया है। इन विधियों को अन्य फसलों के लिए भी अनुकूलित किया गया है उदाहरण प्रजनन कार्यक्रमों में प्रारंभिक पकने और बीज रहित अंगूर दोनों का उत्पादन करने के लिए। ऐतिहासिक रूप से फलों की फसलों के लिए इन विट्रो विधि के तरीकों का दूसरा अनुप्रयोग स्ट्रॉबेरी से वायरस पैदा करने वाली बीमारी को खत्म...

Engineering of Stem rot resistance in oil seeds through biotechnology   ति‍लहनी फसलों का एक अति मत्वपूर्ण फफूंदी कारक रोग, स्क्लेरोटिनिया तना सड़न / गलन नाम से जाना जाता हैं। इसी रोग को उदाहरण के रूप में लेते हुए प्रस्तुत समीक्षा इस तथ्य को विस्तार से प्रस्तुत करेगी की, किस प्रकार कृषि जैव-प्रौद्योगिकी, किसानों की समस्याओं का प्रभावी समाधान ढूंढ़ने में सक्षम है । स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम बैक्‍ट्रीया जनित तना गलन रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम (Sclerotinia sclerotiorum (Lib) de Bary) जीवाणु एक नेक्रोट्रॉफिक पैथोजन है , यानि‍ यह अपना भोजन पौधों के सडे-गले अवशेषों से प्राप्त कर जीवित रहता है। इस जीवाणु की जीवन चक्र की चार अवस्थाएं: स्केलोरेसिया (sclerotia), एपोथेसिएम (apothecium), एस्कोस्पोर (ascospores) तथा माइसीलियम (mycelium)...