दलहन Tag

भारत में दलहन उत्पादन की संभावनाएं  प्राचीन काल से ही भारत में उगाई जाने वाली फसलों में दलहनी फसलों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। शाकाहारी भोजन में प्रोटीन का मुख्य जरीया होने के कारण दलहनी फसलों का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। ये फसलें सामान्यतः प्रोटीन की प्रमुख स्त्रोत मानी जाती है। दलहनी फसलों के अंतर्गत प्रमुखतः अरहर, मूंग, उड़द की खेती खरीफ मौसम में तथा चना, मसूर, राजमा एवं मटर की खेती रबी मौसम में की जाती है। भारत के कई स्थानों में मूंग एवं उड़द की खेती जायद में भी की जाती है। दलहनी वर्ग की इन सभी फसलों में प्रोटीन काफी मात्रा में होने के कारण इन में...

सोयाबीन (ग्लाइसीन मैक्स) की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषतायें सोयाबीन एक दलहन कुल की मुख्य तिलहनी फसल है| इसमें 30-40 प्रतिशत प्रोटीन तथा 20-22 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है| यह भोजन और पशु आहार के लिए प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है| इसका वनस्पति तेल खाद्य व औधोगिक अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है| सोयाबीन एक प्रमुख खरीफ फसल है, इसकी बुआई जून-जुलाई में और कटाई सितम्बर-अक्टूबर में की जाती है| राजस्थान में इसकी खेती झालावाड़, कोटा, बारां, चित्तौडगढ़ आदि जिलों में की जाती है| सोयाबीन की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषतायें: राजस्थान में उगाई जाने वाली सोयाबीन की विभिन्न किस्में जो सोयाबीन के उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देती...

प्रचुर मात्रा में मसूर उत्पादन के लिए उन्नत खेती  रबी मौसम में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मसूर का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके दानों में 24-26% प्रतिशत प्रोटीन, 3% प्रतिशत वसा, 2% प्रतिशत रेशा, 57% प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, कैल्सियम 68 मिली ग्राम/ 100 दाने, स्फुर 300 मिलीग्राम / 100 दाने, लौह तत्व 7 मिलीग्राम / 100 दाने, विटामिन C 450 IU पाई जाती है।  इन विशेषताओ के कारण इसका उपयोग दाल के अलावा अन्‍य कई प्रकार के व्यंजनों में , पूर्ण दाने या आटे के रूप, में किया जाता हैं। मसूर की खेती के लि‍ए भूमि एवं खेत की तैयारीः- मसूर की खेती प्रायः सभी प्रकार की भूमियों मे की जाती है। किन्तु दोमट एवं बलुअर दोमट भूमि सर्वोत्तम होती...

Advanced techniques for cultivating Lentils मसूर एक मूल्यवान मानव भोजन है, जो दाल के रूप में प्रयोग होती है। उच्च जैविक मूल्य के साथ इसे आसानी से पकाया जा सकता है । मसूर में प्रोटीन - 24-26%, कार्बोहाइड्रेट - 57 - 60%, फैट - 1.3%, फाइबर - 3.2%, फास्फोरस - 300 मिलीग्राम/100 ग्राम, आयरन - 7 मिलीग्राम/100 ग्राम, विटामिन सी - 10-15 मिलीग्राम/100 ग्राम, कैल्शियम - 69 मिलीग्राम/100 ग्राम एवं विटामिन ए - 450 आईयू पोषक तत्‍व पाऐ जाते है।  सूखे पत्ते, और टूटी फली को  पशु चारा के रूप में उपयोग किया जाता है।    मसूर की उत्पादकता क्रोएशिया में सबसे अधिक उत्पादकता दर्ज की गई है (2862 किलोग्राम / हेक्टेयर), इसके बाद न्यूजीलैंड...

Improved technology for cultivation of Mungbean मूंग भारत में उगायी जाने वाली, कम समय मे पकने वाली, महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इन फसल में वातावर्णीय नाइट्रोजन को पौधों द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाने की अदभुत क्षमता होती हैं। जिससे पौधों को कम उर्वरक की आवश्यकता पड़ती है, और उत्पादन लागत कम हो जाती है। इनकी खेती लगभग सभी राज्यों मे की जाती है। परन्तु महाराष्ट, आन्ध्र प्रदेश,  उत्तर प्रदेश , राजस्थान, मध्य प्रदेश तमिलनाडु तथा उड़ीसा, मूंग तथा उड़द उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं। मूंग की खेती के लि‍ए भूमि की तैयारी मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी...

 दलहनी फसल अरहर में एकीकृत रोग प्रबंधन Pigeon pea is an important pulse crop and has major role in food and nutritional security because it is a rich source of protein, minerals and vitamins. The cultivated area and production of pigeonpea have recorded a steady positive growth in the past 50 years, but the mean national productivity has remained unchanged at around 700 kg/ha. To increase its productivity, breeders are trying to develop suitable varieties with subjective spread, growth, duration, disease and pest resistance under varied agro-climatic growing conditions.  Diseases are a continual problem and control measures must be planned for developing sustained production. Each condition that affects plant growth also affects the disease...

अरहर के मुख्‍य रोगों तथा कीटों का एकीकृत प्रबंधन Pigeonpea (Cajanus cajan (L.) Millsp.) is one of the most important legume crops of India. It is known as red gram, arhar and tur in the country. It is an important source of proteins (22%) along with carbohydrates, fibre, certain minerals viz., iron, calcium, magnesium, zinc, iodine, potassium and Phosphorous and ‘B’ complex vitamins.  Pigeonpea stalks are also a major source of firewood and live stock feed. India is the world’s largest producer and consumer of pulses including pigeonpea. About 90% of the global pigeonpea area is in India contributing to 93% of the global production. It occupies 4.9 m ha area...

Improved method of Lentil cultivation बिहार में रबी की दलहनी फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। यह यहाँ की एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है जिसकी खेती प्रायः सभी जिलों में की जाती है। बिहार राज्य में मसूर की खेती 1.73 लाख हेक्टेयर तथा इसकी औसल उत्पादकता 935 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। मसूर की खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों मंे धान के फसल के बाद की जाती है। बिहार राज्य में उतेरा विधि से धान की खड़ी फसल में बीज को छिड़कर भी बोया जाता है। रबी मौसम में सरसों एवं गन्ने के साथ अंततः फसल के रूप में लगाया जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने में भी मसूर की...

Major Insects, pests and Diseases of Khejri tree in desert areas of Rajasthan थार रेगिस्तान में उगने वाली वनस्पतियों में खेजड़ी का वृक्ष एक अति महत्वपूर्ण वृक्ष है| यह थार निवासियों की जीवन रेखा कहलाती है| यह भारतवर्ष के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जानी जाती है जैसे दिल्ली में इसें जाटी के नाम से जाना जाता है, पंजाब व हरियाणा में जॉड़, गुजरात में सुमरी, कर्नाटक में बनी, तमिलनाडुं में बन्नी, सिन्ध में कजड़ी एवं राजस्थान में इसे खेजड़ी के नाम से पुकारा जाता है| सुखे व अकाल जैसी विपरित परिस्थितियों का इस पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि ऐसी परिस्थितियों में मरूक्षेत्र् के जन-जीवन की रक्षा करती है| खेजड़ी की पत्तीयां...

Techniques for the improvement of Khejri - Kalpvriksh of Thar Desert थार रेगिस्तान में उगने वाली वनस्पतियों में खेजड़ी का वृक्ष एक अति महत्वपूर्ण वृक्ष है| यह मरूप्रदेश के कल्पवृक्ष के नाम से जानी जाती है| यह थार निवासियों की जीवन रेखा कहलाती है| यह दलहन परिवार का फलीदार वृक्ष है जिसका वनस्पतिक नाम "प्रोसोपिससिनेरेरिया" है| यह भारतवर्ष के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जानी जाती है जैसे दिल्ली क्षेत्र् में इसें जाटी के नाम से जाना जाता है, पंजाब व हरियाणा में जॉड़, गुजरात में सुमरी, कर्नाटक में बनी, तमिलनाडुं में बन्नी, सिन्ध में कजड़ी एवं राजस्थान में इसे खेजड़ी के नाम से पुकारा जाता है| वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को...