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दुधारू पशुओं में थनैला (Mastitis) रोग Mastitis or Thanela disease is mainly of two types - Clinical Thanela is easily identified by looking at the symptoms of the disease. Such as swelling in the udders, watery milk coming, salty or tasteless milk or splashing in the milk. But the external symptoms of the disease are not visible in sub-clinical Thanela. दुधारू पशुओं में थनैला (Mastitis) रोग थनैला मुख्य रूप से दुधारू पशुओं के थन की बीमारी है। इस बीमारी से ग्रसित पशु का जो दूध होता है उसका रंग और प्रकृति बदल जाती है। थन में सूजन, दूध में छिछड़े, दूध फट के आना, मवाद आना या पस आना जैसे लक्षण दिखाई देते...

दुधारू पशुओं में टीकाकरण का महत्व  भारतीय किसान सह-व्यवसाय के तौर पर  मुख्यतः पशुपालन पर निर्भर रहता है। पशुधन से स्वच्छ दुग्ध उत्पादन हेतु उसे विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाना आवश्यक है।  संक्रामक रोगों की चपेट मे आने से पशुओं के दुग्ध उत्पादन मे कमी होना, गर्भपात, फुराव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और अगर समय रहते इलाज ना किया जाये तो पीड़ित पशु की मृत्यु भी हो सकती  है। संक्रामक रोगों से बचाव के लिए पशुओं  का टीकाकरण एकमात्र प्रभावी उपाय है जो कि पशुओं की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उनकी संक्रामक रोगों से रक्षा करता है।  मुँहपका खुरपका रोग - यह एक विषाणुजनित रोग है, जो गाय, भैंस,...

Scientific management of milch cattle and milk harness भारत में डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ रहा हैl अब इसका विस्तार सीमान्त किसानों के जीविकोपार्जन से आगे निकलकर व्यावसायिक रूप में हो रहा है l वर्तमान समय में भारत को दुग्ध उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ देश होने का गौरव प्राप्त है l विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में १८% हिस्सा हमारा देश उत्पादित कर रहा हैl गाय एवं भैंस हमारे देश के मुख्य डेयरी पशुओं में आते हैंl दुग्ध उत्पादक किसानों द्वारा दोनों तरह के पशु पाले जाते हैं l किसानों के लिए अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए अच्छी नस्ल के चयन के साथ ही उनका उचित प्रबंधन भी अत्यंत आवश्यक होता है l...

दुधारू पशुओं के लिए आहार प्रबंधन  डेयरी व्यवसाय के लिए उत्तम नस्ल के साथ-साथ आहार प्रबंध अति आवश्यक है। उचित आहार प्रबंध से न केवल पशु अधिक दूध देते हैं बल्कि उसकी शारीरिक बढ़वार, प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। लाभप्रद डेयरी व्यवसाय हेेतुु पशु को बचपन से लेकर वृद्धि की विभिन्न अवस्थओ, प्रजनन काल एवं उत्पादन काल के दौरान समुचित पोषण उपलब्ध होना चाहिए। बछड़े-बछड़ियों की उनकी आरंभिक अवस्था में वृद्धि एवं मृत्यूू, गर्भकाल में माँ केे आहार प्रबंधन से प्रभावित होता है । बछड़ियों को जन्म के 2 घंटे के अंदर माँ का खीस पिलाना आवश्यक है। खीस की मात्रा निर्धारण बछड़ियों के शारीरिक भार पर...

Ways of hygienic milk production दूध यदि गंदगी, दुर्गंध तथा हानिकारक जीवाणु रहित है तो ऐसे दूध को हम स्वच्छ दूध कहते हैं। दूध जब थन से निकलता है तो स्वच्छ रहता है, पर थन से निकलने के बाद यदि साफ सफाई का ध्यान सही से न रखा जाए तो बाहरी आवोहवा के संपर्क मे आकर दूषित हो जाता है। दूषित दूध का सेवन करने से कई बीमारियाँ हो जाती हैं। अतः स्वच्छ दूध का उत्पादन अति आवश्यक है। स्वच्छ दूध के उत्पादन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जिस पशु से दूध निकाला जा रहा है वो स्वस्थ होना चाहिए। पशु मे टी. बी. तथा ब्रूसेलोसिस का परीक्षण साल...