पशुपालन Tag

Animal feed management in rainy and autumn season Due to sudden giving of excess fodder to the animals during rainy season, they start complaining of diarrhea because sudden change in diet affects the activities of the microorganisms in the stomach of the animal due to which problem of diarrhea and indigestion is seen in some animals. During the rainy season, animals and insects grow very fast and the incidence of fungus remains at its peak. Therefore, green fodder should not be dirty, smelly or muddy as this is the main cause of stomach diseases in animals. Animal feed management in rainy and autumn season हमारे भारत में पशुपालन कृषि का एक अभिन्न हिस्सा...

मैस्टाइटिस पशुओं के उपचार के लिए मेसेनकाइमल कोशिकाओं की भूमिका  Stem cells are the undifferentiated and uncommitted cells that give rise to deferent cell types or lineage on dividing. These stem cells are used as regenerative medicine for the treatment of various diseases in human and animals. In the present study mesenchymals Stem cells (MSC) used for the treatment of mastitis animal and it found that diseased animal treated with MSC has been cured which suggest that stem cell therapy use as regenerative medicine providing a promising area for the treatment of various diseases in animals. Stem cells “the hope cells”: A stem cell is a specialized cell which has the unique characteristic to develop...

खेजड़ी या सांगरी की खेती के साथ पशुपालन कर आय बढ़ाएं  राजस्थान का सतह क्षेत्र 342290 वर्ग किलोमीटर है जबकि थार 196150 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 60% से अधिक है। मानव आबादी 17.5 मिलियन है जिसमें से 77% ग्रामीण और 23% शहरी हैं। इस क्षेत्र में उत्पादन और जीवन समर्थन प्रणाली जैव-संबंधी और पर्यावरणीय सीमाओं से बाधित है । जैसे कि कम वार्षिक वर्षा (100-400 मिमी)  मानसून आने से पहले, बहुत अधिक तापमान (45 से 47 डिग्री तापमान) और औसतन बहुत तेज हवा और आँधियाँ जो कि 8 से 10 किलोमीटर की रफ़्तार से चलती है जिससे की स्वेद-वाष्पोतसर्जन (वार्षिक 1500 से 2000...

How to properly nurture newborn calf? पशुपालन व्यवसाय की सफलता के लिये उचित संख्या में उत्तम गुणों वाले बच्चों का विकास आवश्यक है। यही बछड़े बड़े होकर पुराने, बूढ़े तथा अनुत्पादक पशुओं का स्थान लेते है। इस तरह यह सतत प्रक्रिया चलती रहती है एवं उत्पादकता और लाभ दोनों ही बढ़ते हैं। यदि बछड़े पर्याप्त संख्या में ना हों तो अगली पीढ़ी के लिये उच्च उत्पादकता के पशु चयन करने में सफलता नहीं मिल पाएगी । यदि पालन पोषण पर ध्यान नहीं दिया जाए तो बछड़ों की मृत्युदर अधिक हो जाती है साथ ही जो बच्चे बच जाते हैं उनकी वृधिदर कम हो जाती है तथा उत्पादकता घट जाती है। बछड़ों की मृत्युदर...

Nurturing and management of livestock पशुपालन ग्रामीण जीवन का महत्‍वपूर्ण अंग है। समृद्ध डेयरी व्‍यवसाय के कारण देश,  दुग्‍ध उत्‍पादन मे अग्रणी बना हुआ है। पशुओं के पालन पोषण एवं प्रबंधन  के लिए तीन बातों पर ध्यान देना अत्‍यंत आवश्‍यक है। सही जनन, सही खानपान और रोगों से बचाव 1. सही जनन: सही जनन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। अच्‍छी नस्ल का चुनाव : पशुपालन के लिए नस्लों का चुनाव करते समय वहाँ की जलवायु और सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश पर ध्यान देना आवश्यक है। बिहार की जलवायु के अनुसार यहा जो पशुपालक संकर नस्ल की पशु पालना चाहते है वह जरसी क्रॉस पाल सकते है। वैसे इलाके जहां हरा चारा प्रचुर मात्रा मे...

Goat rearing: a profitable business बकरी पालन प्राचीन समय से ही किसानों के लिए एक प्रचलित ब्यबसाय है। बकरी को मांस के साथ साथ दूध उत्पादन के लिए भी पाला जाता है। बकरियों के बहुआयामी उपयोग के कारण ही इसका महत्व गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन के लिए बढ़ जाता है। बकरी को गरीब आदमी की गाय की संज्ञा भी दी जाती है।  बकरीपालन के लाभकारी ब्यबसाय होने के निम्नलिखित कारण है बकरी को किसी भी जलवायु मे पाला जा सकता है। बकरी पालने मे कम खर्च की आवश्यकता होती है। बकरी पालने मे कम श्रम की आवश्यकता होती है। बूढ़े एवं बच्चे जो और कोई श्रम नहीं कर सकते उनका भी उपयोग बकरी पालन...

दूधारू पशुओं में बाँझपन की समस्या के कारण एवं उनका निवारण  पिछले कई दशकों से यह पाया गया है कि जैसे-जैसे दूधारू पशुओं के दुग्ध उद्पादन में वृद्धि हुई है वैसे-वैसे प्रजनन क्षमता में गिरावट हुई है । दूधारू पशुओं की दूध उत्पादन की क्षमता प्रत्यक्ष रूप से उनकी प्रजनन क्षमता पर निर्भर करती है । दूधारू पशुओं में बाँझपन की स्थिति पशुपालकों के लिए बहुत बड़े आर्थिक नुकसान का कारण  है । पशुओं में अस्थायी रूप से प्रजनन क्षमता के घटने की स्थिति को बाँझपन कहते है । बाँझपन की स्थिति में दुधारू गाय अपने सामान्य ब्यांत अंतराल  (12 माह) को क़ायम नहीं रख पाती । सामान्य ब्यांत अंतराल को क़ायम...

पशुओं में प्रजनन सम्बन्धी रोग एवं प्रवंधन  पशुपालन को लाभकारी बनाने के लिए पशुओं में होने वाली प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं का प्रवंधन अति आवश्यक है। प्रजनन सम्बन्धी प्रमुख समस्याओं में पशु का समय पर  हीट में  न आना (एनेस्ट्रस), बार बार कित्रिम गर्भाधान के बाद भी गर्भ धारण नहीं होना (रिपीट ब्रीडिंग), बच्चेदानी में सूजन होना, उसमे मवाद का भर जाना, प्रसव के दौरान बच्चा फँस जाना, जेर का समय से न गिरना, गर्भावस्था के शुरुवात में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाना, गर्भपात हो जाना इत्यादि शामिल है। विदेशी नस्ल की गायों (जैसे जर्सी, होल्सटीन फ़्रिसियन आदि) में प्रजनन सम्बन्धी समस्याएँ देसी नस्ल की गायों (जैसे साहीवाल, गिर, थारपारकर आदि) की...