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Increasing Incidence of Tick transmitted Diseases In Eastern Region of India पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार एवं झारखंड राज्य शामिल हैं । इन सभी राज्यों में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र, आजीवि‍का का एक महत्वपूर्ण माध्यम है । इन राज्यों में पशुपालन का भी बहुत महत्व है। किलनी तथा मच्छर-मक्खी को सक्रिय रहने एवम् बीमारियों के प्रसार के लिए कम से कम 85% आर्द्रता तथा 7°C  से अधिक तापमान वाले जलवायु के इलाकों की आवश्यकता होती है। पूर्वी भारत एक उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला क्षेत्र है जिसके कारण यहां किलनी से प्रसारित बीमारियों का मवेशियों में प्रकोप बढ़ता जा रहा है। पूर्वी भारत की  बनस्पतियाँ (नम पर्णपाती वन) भी इन सन्धिपाद की वृद्धि...

Treatment of microbial diseases in cattle during the rainy season by herbal methods भारत की अर्थव्यवस्था ज्यादातर पशुधन पर निर्भर करती है, जो हर साल भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 4.8-6.5 प्रतिशत का योगदान करता है। भारत कृषि प्रधान देश है, पशुधन विभिन्न साधनों के रूप में भारत के लोगों के सामाजिक उत्थान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में गाय, भैंस, बकरी और भेड़ों का ज्यादातर पालन किया जाता है। 2012 की पशुधन जनगणना के अनुसार भारत में 19 करोड़ गाय 10.8 करोड़ भैंस, 65 करोड़ भेड़ तथा 135 करोड बकरियाँ हैं। 2012 वर्ष के आकड़ों के अनुसार, बड़े जुगाली करने वाले पशु (गाय व भैंस) 50.5 प्रतिशत तथा...

Goat rearing: a profitable business बकरी पालन प्राचीन समय से ही किसानों के लिए एक प्रचलित ब्यबसाय है। बकरी को मांस के साथ साथ दूध उत्पादन के लिए भी पाला जाता है। बकरियों के बहुआयामी उपयोग के कारण ही इसका महत्व गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन के लिए बढ़ जाता है। बकरी को गरीब आदमी की गाय की संज्ञा भी दी जाती है।  बकरीपालन के लाभकारी ब्यबसाय होने के निम्नलिखित कारण है बकरी को किसी भी जलवायु मे पाला जा सकता है। बकरी पालने मे कम खर्च की आवश्यकता होती है। बकरी पालने मे कम श्रम की आवश्यकता होती है। बूढ़े एवं बच्चे जो और कोई श्रम नहीं कर सकते उनका भी उपयोग बकरी पालन...

Livestock insurance scheme पशुधन बीमा योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो 10वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2005-06 तथा 2006-07 और 11वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2007-08 में प्रयोग के तौर पर, देश के 100 चयनित जिलों में क्रियान्वित की गई थी। यह योजना देश के 300 चयनित जिलों में नियमित रूप से चलाया जा रहा है। पशुधन बीमा योजना की शुरुआत दो उद्देश्यों के लि‍ए कि‍या गया है। 1. किसानों तथा पशुपालकों को, पशुओं की मृत्यु के कारण हुए नुकसान से, सुरक्षा मुहैया करवाने हेतु तथा 2. पशुधन तथा उनके उत्पादों के गुणवत्तापूर्ण विकास के चरम लक्ष्य के साथ लोकप्रिय बनाना । योजना के अंतर्गत देशी व संकर दुधारू मवेशियों और भैंसों का बीमा...

दूधारू पशुओं में बाँझपन की समस्या के कारण एवं उनका निवारण  पिछले कई दशकों से यह पाया गया है कि जैसे-जैसे दूधारू पशुओं के दुग्ध उद्पादन में वृद्धि हुई है वैसे-वैसे प्रजनन क्षमता में गिरावट हुई है । दूधारू पशुओं की दूध उत्पादन की क्षमता प्रत्यक्ष रूप से उनकी प्रजनन क्षमता पर निर्भर करती है । दूधारू पशुओं में बाँझपन की स्थिति पशुपालकों के लिए बहुत बड़े आर्थिक नुकसान का कारण  है । पशुओं में अस्थायी रूप से प्रजनन क्षमता के घटने की स्थिति को बाँझपन कहते है । बाँझपन की स्थिति में दुधारू गाय अपने सामान्य ब्यांत अंतराल  (12 माह) को क़ायम नहीं रख पाती । सामान्य ब्यांत अंतराल को क़ायम...

पशुओं में प्रजनन सम्बन्धी रोग एवं प्रवंधन  पशुपालन को लाभकारी बनाने के लिए पशुओं में होने वाली प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं का प्रवंधन अति आवश्यक है। प्रजनन सम्बन्धी प्रमुख समस्याओं में पशु का समय पर  हीट में  न आना (एनेस्ट्रस), बार बार कित्रिम गर्भाधान के बाद भी गर्भ धारण नहीं होना (रिपीट ब्रीडिंग), बच्चेदानी में सूजन होना, उसमे मवाद का भर जाना, प्रसव के दौरान बच्चा फँस जाना, जेर का समय से न गिरना, गर्भावस्था के शुरुवात में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाना, गर्भपात हो जाना इत्यादि शामिल है। विदेशी नस्ल की गायों (जैसे जर्सी, होल्सटीन फ़्रिसियन आदि) में प्रजनन सम्बन्धी समस्याएँ देसी नस्ल की गायों (जैसे साहीवाल, गिर, थारपारकर आदि) की...

पशुओं के लिए यूरिया, शीरा युक्‍त खनिज पोष्टिक आहार । यूरिया, शीरा युक्त पशु आहार पशुओं के लिए पूरक पोषण का महत्त्वपूर्ण स्रोत है जिसके फलस्वरूप पशुओं की उत्पादन क्षमता में सुधार होता है।  यह स्थानीय सामग्री जैसे गुड, यूरिया, केल्साइट और गेहूँ के भूसे के साथ मिलाकर बनाया जा सकता हैं। यह पशुओं के लिए एक सस्ता व सम्पूर्ण पोषण का आहार है। इससे पशुओं की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। भारत में पशुओं की संख्या बहुत अधिक है। परन्तु प्रति पशु दुग्ध उत्पादन बहुत कम है। इसका मुख्य कारण आनुवंशिकता क्षमता की कमी तथा पोष्टिक व संतुलित आहार की उचित आपूर्ति न होना है। फसल अवशेष ही हमारे पशुओं में मुख्य आहार...

बकरी पालन: एक आय संवर्धक और ग्राम संगत उद्यम Goat farming plays a prominent role in the rural economy in supplementing the income of rural household particularly the landless, marginal and small farmers. Goat is considered as poor man's cow and it can be profitably be reared with low investment under semi-intensive as well as the extensive systems of management.  They provide quick return on account of their short generation intervals, high rate of prolificacy and making the related products. Goats' importance is indicated by various functional contributions like milk, meat, skin, socio-economic relevance, security, income generation, human nutrition and stability of farming system. Goats are the backbone of rural people's economy of arid,...