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Diseases of the jute and its management पटसन का वानस्पतिक नाम कोरकोरस केपसुलेरिस तथा को. आलीटोरियस है जो कि स्परेमेनियोसी परिवार का सदस्य है। विश्‍व में कपास के बाद पटसन दूसरी महत्वपूर्ण वानस्पतिक रेशा उत्पादक वाणिज्यिक फसल है। पटसन की खेती मुख्यतया बंगलादेश, भारत, चीन, नेपाल तथा थाईलैंड में की जाती है। भारत में पश्‍ि‍चम बंगाल, बिहार, असम इत्यादि राज्यों में पटसन कि खेती की जाती है। देश में पटसन का क्षेत्रफल 8.27 लाख हैक्टेयर है। वही इसका उत्पादन 114 लाख गांठ है। पटसन की फसल में कई प्रकार के जैविक व अजैविक कारकों से रेशे के उत्पादन में कमी आती है। जैविक कारकों के अन्तर्गत तना सड़न रोग इसके उत्पादन में सबसे...

7 Major diseases of cotton crop and their symptoms कपास फसल का व्यावसायिक फसलाेे, प्राकृतिक रेेसे वाली फसलाेे और तिलहन फसलाेे में महत्वपूर्ण स्‍थान है। प्राकृतिक फाइबर का कम से कम 90 प्रतिशत अकेले कपास की फसल से प्राप्त होता है। कपास फसल का देश की अर्थव्‍यवस्‍था मे बडा योगदान है। यह भारत में 123 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है जो कृषि योग्य भूमि का करीब 7.5 प्रतिशत और वैश्विक कपास क्षेत्र का 36.8 प्रतिशत है। भारत में 130 कीट प्रजातियों पाई जाती हैं, उनमे से आधा दर्जन से अधिक विकसित कपास, संकर और अन्य किस्मों की पूरी क्षमता से पैदावार प्राप्त करने में समस्या पैदा करती हैं । रोगों...

जूट- गोल्डन फाइबर का सिंहावलोकन Jute is considered as the golden fibre of India. It is the commercially available natural fibre which is utilized mostly as packaging material, nowadays facing a steep competition from cheap synthetics in packaging sector. Besides the traditional packaging sector, jute has been used in both textile and non-textile sectors in large and small industries. Jute is eco-friendly, biodegradable and has much higher CO2 assimilation rate which is creating an opportunity for the survival and growth of jute industry in the era of environmental concern. Global production of jute and allied fibres is around 3.0 million tonnes, 92.5% of which comes from India and Bangladesh alone. India...