Blue green algae Tag

कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव का चयन एवं उनका वैज्ञानिक तरीके से उपयोग Today, organic farming is being considered as an alternative to chemical farming all over the world. Farmers can get good profit by using bacterial fertilizers. For nutrient management in organic farming, it becomes necessary for the farmers to use different types of bacterial fertilizers so that there is no decline in crop production and productivity and soil fertility remains intact. वर्तमान में कृषक अपने खेतों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये विभिन्न रसायनों का इस्तेमाल करके फसलों का अधिक उत्पादन ले रहे हैं। रसायनों खाद और दवा के प्रयोग से खेती में विकास तो हुआ परन्तु इसके दुष्परिणाम भी सामने आये जैसे...

Blue Green Algae Generated Biofertilizer भूमि की उर्वरा शक्ति बरकरार रखने तथा इसे बढ़ाने के लिए एक जैव उर्वरक जो नील हरित शैवालों के संवर्धन से बनाया जाता है अति महत्वपूर्ण है। यह जैव उर्वरक खरीफ सीजन में 20-25 कि.ग्रा. नेत्रजन प्रति हे. पैदा करता है तथा मिट्टी के स्वास्थ्य को ठीक रखता है। इसके अतिरिक्त भूमि के पानी संग्रह की क्षमता बढ़ाना एवं कई आवश्यक तत्व पौधों को उपलब्ध कराता है। भूमि के पी.एच. को एक समान बनाये रखने में मदद करता है तथा अनावश्यक खरपतवारों को पनपने से रोकता है। इसे जैव उर्वरक के लगातार प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है तथा धान एवं गेहूं की उपज...

Spirulina (Arthro spira platensis) cultivation for low investment and high income स्पिरोलिना (ऑरथो स्पाइरा प्लैटेंसिस), एक नील हरि‍त शैवाल (Blue green algae) है। यह एक पौष्टिक प्रोटीन आहार पूरक है और इसका उपयोग कई दवाओं के निर्माण और सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है। इसमें  प्रोटीन, एंटीऑक्सिडेंट्स, कई विटामिन और खनिज प्रचूर मात्रा पाए जाते है। स्वस्थ जीवन शैली के लिए यह एक सूपर फूड के रूप में जाना जाता है। कृषि में बढती लागत व कम रि‍टर्न के कारण कि‍सान की आय में नि‍रंतर गि‍रावट आ रही है। कि‍सान की आय को बढाने के लि‍ए स्‍पाईरूलि‍ना की खेती में बहुत संभावनाऐ नजर आती है। आजकल एक किलो सूखे स्पिर्युलिन पाउडर (Dry...

Production technique of Blue Green Algae (BGA) and its usage. पौधों के समुचित विकास के लिए नाइट्रोजन एक आवश्यक पोषक तत्व है।  रासायनिक उर्वरकों के अलावा शैवाल तथा जीवाणु की कुछ प्रजातियां वायुमंडलीय नाइट्रोजन (80 प्रतिशत) का स्थिरीकरण कर मूदा तथा पौधों को देती है और फसल के उत्पादकता में वृद्वि करती है। इस क्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं।  इन सूक्ष्म जीवाणुओं को ही जैव उर्वरक कहते हैं।  नील-हरित शैवाल एक विशेष प्रकार की काई होती है। नील हरति शैवाल उत्‍पादन की वि‍धि‍ इस प्रकार है  नील-हरित शैवाल की प्रजातियांः जलाक्रान्त दशा, जिसमें धान उगाया जाता है, नील-हरित शैवाल की औलोसिरा, ऐनाबिना, ऐनाबिनाप्सिम, कैलोथ्रिक्स, कैम्पाइलोनिया, सिलिन्ड्रो स्पमर्म फिश्येरला, हैप्लोसीफान, साइक्रोकीटे, नास्टोक, वेस्टिलोप्सिम...

Role of Bio fertilizers in improving soil fertility रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उपज में वृद्धि तो होती है परन्‍तू अधिक प्रयोग से मृदा की उर्वरता तथा संरचना पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है इसलिए रासायनिक उर्वरकों (Chemical fertilizers) के साथ साथ जैव उर्वरकों (Bio-fertilizers) के प्रयोग की सम्‍भावनाएं बढ रही हैं। जैव उर्वरकों के प्रयोग से फसल को पोषक तत्‍वों की आपूर्ति होने के साथ मृदा उर्वरता भी स्थिर बनी रहती है। जैव उर्वकों का प्रयोग रासायनिक उर्वरकों के साथ करने से रासायनिक उर्वकों की क्षमता बढती है जिससे उपज में वृद्धि होती है।  जैव उर्वक क्‍या हैं:  जैव उर्वरक जीवणू खाद है। खाद मे मौजूद लाभकारी शुक्ष्‍म जीवाणू (bactria) वायूमण्‍डल मे पहले...