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सब्‍जी माइक्रोग्रीनस - पोषण का एक संभावित स्रोत Microgreens are young and tender edible seedlings produced using the seeds of different species of vegetables, herbaceous plants, aromatic herbs and wild edible plants (Di Gioia and Santamaria 2015a, b). The edible portion constitutes single stem, the cotyledon leaves and, often, the emerging first true leave (Di Gioia et al. 2017). A few days of photosynthesis of microgreen is known to provide nearly 4-9 times more nutrients including antioxidants, vitamins and minerals than their mature counterparts. Microgreens first appeared in the menus of the chefs of San Francisco, in California, at the beginning of the 1980s. By geography, North America contribute ~50% of market share in...

उष्णकटिबंधीय गाजर की गुणवत्ता बीज उत्पादन तकनीक Carrot has high yield per given area with less input and labour requirement. It has different colours such as red, orange and yellow colour for food plate and rich in antioxidants (carotene, lycopene, anthocyanin). Carrot seeds demand Globally, it is the 10th top vegetable crops in the world with annual world production. In India, carrot is cultivated in almost 22 states in India in 62,412 ha area with production of 10,73,711 MT and average productivity of 17.2 MT/ha. The increasing trend in carrot production in country requires support to strengthen indigenous seed production of carrot which will generate employment in rural areas as well as save a...

Advanced Farming Technique of Beetroot. चुकंदर का शुमार मीठी सब्जियों में किया जाता है । चुकंदर में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट लाल तत्व में कैंसर रोधी क्षमता होती है । इतना ही नहीं यह हृदय की बीमारियों में भी कारगर माना जाता है । चुकंदर की कई प्रजातियाँ भारत में उगाई जाती हैं । अलग-अलग राज्यों में इसको अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है । बांग्ला में बीटा गांछा, हिंदी पट्टी में चुकंदर, गुजरात में सलादा, कन्नड़ भाषा में गजारुगद्दी, मलयालम में बीट, मराठी में बीटा, पंजाबी में बीट और तेलुगु में डंपामोक्का के नाम से मशहूर प्रजातियां भारत में सामान्यतः उगाई जाती है। भारत में उगायी जाने वाली चुकंदर की प्रजातियां डेट्रॉइट डार्क...

Techniques for Carrot cultivation and its seed production गाजर की खेती पुरे भारत मे की जाती है इसका उपयोग सलाद,अचार एवं हल्वा के रूप मे किया जाता है। गाजर का रस कैरोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है। कभी कभी इसका उपयोग मक्खन को रंग करने के लिये भी किया जाता है। गाजर मे विटामिन जैसे थियामीन एवं राबोफलेविन प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है। संतरे रंग के गाजर मे कैरोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है। गाजर की खेती के लिये मिटटी एवं जलवायु गाजर की खेती के लिये अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिटटी जिसमे कार्बनिक पदार्थ हयुमस की मात्रा अधिक हो तथा पी.एच. मान 5.5-7.0 होनी चाहिए। हल्की मिटटी...

Seed Production technology of Rooted Vegetable Crops जड़ वाली सब्जियों में मूली, शलगम, गाजर व चकुंदर प्रमुख है। जड वाली सब्जियों की खेती में कृषि क्रियाओं में प्रयाप्त समानता है। ये ठंडे मौसम की फसलें है तथा सभी भूमिगत होती है। इनसे हमें पौष्टिक तत्व, शर्करा, सुपाच्य रेशा, खनिज लवण, विटामिन्स व कम वसा प्राप्त होती है। बीज उत्पादन के लिए इन सब्जियों को दो अलग-अलग समूहों में बांटा गया है। एशियाटिक या उष्णकटिबंधीय समूह तथा युरोपियन या शीतोष्ण समूह।  युरोपियन समूह में शीतकालीन किस्में आती है जिनका बीज उत्पादन पहाड़ी इलाकों में ही सभंव होता है जबकि मूली, शलगम व गाजर की अर्द्धउष्णीय या एशियाटिक किस्मों का बीज उत्पादन उत्तर भारत के...

भारत में मूली का प्रयोग सलाद व सब्‍जी के रूप में पूरे साल होता है परन्‍तू इसकी कोई भी एक किस्‍म सारे साल नही उगाई जा सकती। पूसा संस्‍थान दिल्‍ली द्वारा विकस्ति पॉच किस्‍मो को उगाकर, उत्‍तरी भारत के मैदानों में पूरे साल मूली का उत्‍पादन किया जा सकता है। Varieties Sowing time Availability time Yield 1. पूसा देशी (Pusa Desi) अगस्‍त से अक्‍टूबर सितम्‍बर से नवम्‍बर 175 कि./है. 2. पूसा रश्मि (Pusa Rashmi) सितम्‍बर से नवम्‍बर अक्‍टूबर से दिसम्‍बर 200 कि./है. 3. जापानीज वहाईट (Japanes White) अक्‍टूबर से दिसम्‍बर नवम्‍बर से जनवरी 250 कि./है. 4. पूसा हिमानी (Pusa Himani) दिसम्‍बर से मार्च जनवरी से अप्रैल 250 कि./है. 5. पूसा चेतकी (Pusa Chetki) फरवरी से अगस्‍त मार्च से सितम्‍बर 170 कि./है. श्रोत: पूसा कृषि विज्ञान मेला शाकिय फसले संभाग, भाकृअसं, नई दिल्‍ली ...

मूली फसल उगाने के लि‍ए उन्‍नत किस्‍में    Varieties प्रजाति Developed By विकसित की Average yield औसत उपज( कुं/है) Characters गुण पूसा चेतकी (Pusa Chetki) IARI 250-300 इसकी जडें शीघ्र तैयार होने वाली मध्‍यम लम्‍बाई की सफेद, तीखी व सतह चिकनी होती है। गर्मी व बरसात दोनो मौसम में बुआई के लिए उपयुक्‍त। बुआई के 35-40 दिनो बाद तैयार हो जाती है। बुआई का उपयुक्‍त समय मध्‍य अक्‍टूबर से नवम्‍बर तक । पूसा हिमानी (Pusa Himani) IARI -  जडें अधिक लम्‍बी, कम तीखी, सफेद रंग की चिकनी होती है। देर से बुआई के लिए उपयुक्‍त । बुआई के 35 से 40 दिनो में तैयार हो जाती है। बुआई का उचित समय अक्‍तूबर माह है। बोनस आर-33 (Bones R-33) Sungrow Seeds -  यह चेतकी समूह की संकर किस्‍म है।...

 गाजर की उन्‍नत किस्‍मे।  किस्‍मे द्वारा विकसित औसत उपज (कुन्‍तल/हेक्‍टेयर) विशेषताऐं।  नैन्‍टिस IARI 120 हरे पत्‍तों के साथ लघु शीर्ष, उत्‍तम आर्कति की मूसली, नारंगी रगं की छोटी पतली पुच्‍छ के साथ बेलनाकार जड तथा नरंगी रगं का ही मधुर गुदा। यह किस्‍म सम्‍पुर्ण भारत के लिए उपयुक्‍त है। 1995 मे अनुमोदित   पूसा मेघाली   IARI 250 कोर सहित नारगी रगं की मुसली, लघु शीर्ष, उत्‍तम आकृति, मैदानी इलाकों मे बीज उत्‍पादन, मध्‍यप्रदेश व महाराष्‍ट्र में अगेती बुआई के लिए उपयुक्‍त किस्‍म जो 100 से 120 दिनों मे तैयार हो जाती है। 1994 मे अनुमोदित   पूसा रूधिरा   IARI 300 लम्‍बी स्‍वरंगी कोर सहित लाल मूसली, थोडी त्रिकोण आकृति लिए, मध्‍य सितम्‍बर से अक्‍तूबर तक बुआई योग्‍य किस्‍म जिसकी मूसली मध्‍य दिसंम्‍बर मे तैयार हो जाती...