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Current status and list of some important medicinal plants in Himachal Pradesh The importance of medicinal plants in traditional health care practices as well as in providing clues to new areas of research and biodiversity conservation is now widely acknowledged. Himachal Pradesh has a rich variety of medicinal plants, which are widely used. However, information on medicinal applications of plants in many Himalayan interior locations is limited. Keeping this in mind, the present study has been undertaken to explore some important medicinal plants and their enlightening resources in different areas of Himachal Pradesh. पौधे और पौधों से प्राप्त उत्पाद दुनिया भर में औषधि का प्रमुख स्रोत और अत्यधिक मूल्यवान संसाधन हैं। पादप...

लसोड़ा की फसल के औषधीय और पोषक गुण The Indian cherry (Cordia myxa L.) is a popular tropical fruit crop in the Boraginaceae family. It is a multipurpose fruit tree species native to India's arid and semi-arid regions. It is known locally as lasora or gonda. Cordia myxa is native to a region that stretches from the eastern Mediterranean to eastern India (Oudhia, 3). During the 16th century, the name cordia was given in honour of German botanist E. Cordes. Lasoda is a tropical tree that grows untamed in the wild. The fruit is a drupe with a globular-ovoid shape, It's round and smooth, about the size of a cherry. When fully ripe,...

शीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाले दस प्रमुख औषधीय पोधें  भारतवर्ष में जड़ी-बूटियों का इतिहास बहुत पुराना है। हमारे ग्रन्थों, वेदों व पुराणों में इनका विस्तृत वर्णन है। अनादिकाल से हम वनौषधियों के लिए वनों पर निर्भर रहे हैं। जड़ी-बूटियां कई लोगों की आजीविका का वैकल्पिक आधार भी रही हैं। जलवायु, मिट्टी व तापमान में विविधता के कारण औषधीय महत्व की अधिकांश जड़ी-बूटियां भारतवर्ष में पाई जाती हैं। शीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाले मुख्य जड़ी-बूटी पौधों की विस्तृत जानकारी नीचे दी जा रही है। 1. चिरायता  वानस्पतिक नाम: स्वर्शिया चिरायता (Swertia chirayita) प्रचलित नाम: चिरायता, चिराता, अर्धतिक्ता, किरातिक्त नाढीतिक्ता                   औषधीय महत्व: चिरायता भारत वर्ष का एक बहुमूल्य औषधीय पौधा है तथा ज्वर रोग में इसके...

सामान्य बीमारियों के लिए प्रमुख औषधीय पौधे प्राचीन काल से ही मनुष्य सामान्य रोगों के शमन के लिए अपने दैनिक जीवन में औषधीय पौधों का प्रयोग करते आ रहा है। इस आधार पर सामान्य रोगो के चिकित्सा को सर्वसुलभ तथा सस्ता बनाया जा सकता है। अपने पूरे जीवनकल में हम इन औषधीय पौधों का उपयोग किसी न किसी रूप में करते हैं। इनमें मारक गुण काम और शोधक अधिक होता है। ये औषधीय पौधे रोगों को दबाती नहीं, वरन उखाड़ती और भागती हैं।  जीवन-शक्ति संवर्धक औषधीय पौधे हमारे आस-पास ही खेतों, जंगलों में बहुताय उपलब्ध हैं। सही औषधीय पौधे उपुक्त क्षेत्र से, उपयुक्त मौसम में एकत्र की जाए, उन्हें सही ढंग से...

13 Major Anola Disease and their Management आँवला में लगने वाले प्रमुख रोग टहनी झुलसा, पत्ती धब्बा रोग, रतुआ, सूटी मोल्ड, लाइकेन, ब्लू मोल्ड, श्यामवर्ण, गीली सड़न, काली गीली सड़न, फोमा फल सड़न रोग, निग्रोस्पोरा फल सड़न रोग , पेस्टालोसिआ फल सड़न रोग व इंटरनल नेक्रोसिस हैं। जिसके रोकथाम क उपाय संक्षेप में इस लेख में उलेखित हैं। यह वृक्ष हिमालय में 1350 मीटर तक आरोही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाया जाता हैं और पुरे भारत वर्ष में उगाया जाता हैं। यह वृक्ष यूफोर्बीआयसी कुल का सदस्य हैं जिसे इंडियन ग्रूज़ वेर्री नाम से भी जाना जाता हैं। संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में इण्डियन गूजबेरी तथा लैटिन में...

धनिया की खेती  धनिया का वानस्पतिक नाम कोरिएन्ड्रम सेटाइवम है। यह अम्बेलीफेरी कुल का पौधा है । धनिया मसालों की एक प्रमुख फसल है। धनिये की पत्तियाँ व दाने दोनों का ही उपयोग किया जाता है। प्राचीन काल से ही विश्व में भारत देश को मसालों की भूमि के नाम से जाना जाता है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते है। भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है। इसकी खेती पंजाब, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कनार्टक तथा उत्तरप्रदेश में अधिक की जाती है। मारवाडी भाषा में इसे धोणा कहा जाता है धनिया का उपयोग एवं महत्व धनिया एक बहुमूल्य बहुउपयोगी मसाले वाली आर्थिक...

ईसबगोल के प्रमुख कीट एवं रोग प्रबन्धन ईसबगोल एक महत्वपूर्ण नगदी औषधीय फसल है। इस फसल में कीट एवं रोगों का प्रकोप यदि कम होता है, परन्तु इसमें मुख्य रूप से कीटों में माहू (मोयला) एवं दीमक नुकसान पहुचाते हैं और रोगों में मृदु रोमिल फफूंद प्रमुख है। इन नाशीजीवों के जीवन चक्र के बारे में सही पता कर इसे समय पर रोकथाम कर अधिक उच्च गुणवता वाला उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। भारत का स्थान ईसबगोल उत्पादन एवं क्षेत्रफल में प्रथम है। भारत में इसका उत्पादन प्रमुख रूप से गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तारप्रदेश एवं मध्यप्रदेश में करीब 50 हजार हेक्टयर में हो रहा हैं। म.प्र. में नीमच, रतलाम, मंदसौर,...

The main 4 species of Safed Musli are Chlorophytum borivilianum, Chlorophytum laxum, Chlorophytum arundinium and Chlorophytum tuberosum in which Chlorophytum borivilianum, Chlorophytum tuberosum are found in abundance in India. सफेद मुसली की खेती सफेद मूसली (क्लोरोफाइटम स्पीशीज) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जिसकी विभिन्न प्रजातियां की जड़ों का उपयोग आयुर्वेदिक व यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है इसकी सुखी जड़ों में पानी की मात्रा 5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट 42 प्रतिशत प्रोटीन 8-9 प्रतिशत रूट फाइबर ग्लुकासेाइल सेपोनिन 2-17 प्रतिशत के साथ-साथ सोडियम पोटेशियम कैल्शियम फास्फोरस व जिंक आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं सफेद मूसली का उपयोग मनुष्य की दुर्बलता व नपुसकता निवारण में किया जाता है भारत में इसकी खेती राजस्थान, हिमाचल...