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जैवशाकनाशी:  जैविक कृषि में खरपतवार प्नबंधन हेतू उपकरण   In irrigated agriculture, weed control through chemical herbicides, creates spray drift hazards and adversely affects the environment. Besides, pesticide residues (herbicides) in food commodities, directly or indirectly affect human health. These lead to the search for an alternate method of weed management, which is eco-friendly. In this regard the biological approach is gaining momentum. Utilization of plant pathogens for weed control was first reported in the early 1900s, but the concept of using bioherbicides to control weeds attracted wide interest among weed scientists and plant pathologists after the Second World War. The earliest experiments simply involved fungus Fusarium oxysporum against prickly pear cactus (Opuntia...

जैविक खेती की वि‍भि‍न्‍न क्रि‍याऐं कृषि‍ उत्‍पादों की लगातार बढती जरूरत को पूरा करने के लि‍ए व उत्पादन बढ़ााने के लिए कि‍सान रासायनिक उर्वको का प्रयोग करते है ।  निरंतर रसायनो का उपयोग मानव एवं मृदा के स्वास्थ्य पर बहुत गलत तरीके से असर कर रहा हे।मृदा में क्षारीयता, कार्बनिक तत्वों का प्रमाण कम होना, मृदा, पर्यावरण, जल एवम वायु प्रदूषण जैसे अनिछनीय बदलाव मे रासायनिक उर्वको का भी योगदान है। रासायनिक उर्वको खेती का खर्च बढ़ा देते हे, इसी लिए किसानो की महेनत का ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता। एसी स्थिति मे जैविक खेति एक मात्रा विकल्प हे जो मृदा, मानव को स्वस्थ रखती है, एवं किसानोंको मुनाफा भी देती है। जैविक खेती की...

जैविक खेती में नाशीजीव प्रबंधन के सुरक्षित उपाय  कृषि के व्यापारिकरण का हमारे वातावरण पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है । कृषि मे नाशीजीवों के प्रबन्धन हेतु उपयोग किए जाने वाले रसायन हमारे वातावरण, मिट्टी, पानी, हवा, जानवरों, यहाँ तक की हमारे शरीर में भी एकत्रित होते जा रहे है । रासायनिक उर्वरकों का कृषि उत्पादकता पर क्षणिक प्रभाव पड़ता है जबकि हमारे पर्यावरण पर अधिक समय तक नकारात्मक प्रभाव बना रहता है जहाँ वे रीसाव एवं बहाव के द्वारा भूमिगत जल तथा अन्य जल संरचनों को प्रदूषित करते हैं । ये सभी प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के साथ ही साथ पर्यावरणीय सन्तुलन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है । उपरोक्त समस्याओं की रोकथाम...

Javik Kheti: samay ki maang  आधुनिक समय में बढ़ती हुयी जनसंख्या के खाद्यान्न पूर्ति हेतु किसान रासायनिकों जैसे-खाद, खरपतवारनाशी, रोगनाशी तथा कीटानाशकों को प्रयोग कर रहे है। सम्भवतः इनके प्रयोग से किसान प्रथम वर्ष अधिक उत्पादन तो प्राप्त कर लेते है, परन्तु धीरे-धीरे इनके प्रयोग से मृदा की उर्वरा शक्ति क्षीण होने लगती है और फसलों की उत्पादन क्षमता भी कम हो जाती है। इन रसायनों की अधिक कीमत होने के कारण खेती की लागत बढ़ जाती है। क्षीण हुई मृदा उर्वरता के कारण इन रसायनों के प्रयोग से भी वे मुनाफा प्राप्त नहीं कर पाते है । यहीं नहीं इन रसायनों के प्रयोग से पर्यावरण में भी विपरीत प्रभाव पडता है।           रसायनिकों...

Earthworm manure, basis of organic farming. आज की सघन खेती के युग में भूमि की उर्वष षक्ति बनाये रखने के लिये प्राकृतिक खादों का प्रयोग बढ़ रहा है। इन प्राकृतिक खादों में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद मुख्य हैं। पिछले कुछ सालों से कम्पोस्ट बनाने की एक नई विधि विकसित की गई है जिसमें केंचुआ का प्रयोग किया जाता है, जिसे वर्मी कम्पोस्ट करते हैं। वर्मी कम्पोस्ट, केंचुआ की मदद से निर्मित जैविक खाद है, जिसे किसान भाई स्वयं बना सकते हैं। वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि :- सर्वप्रथम उपयुक्त स्थान जिसमें उपयुक्त नमी एवं तापमान निर्धारित किये जा सकें, का चयन कर इसके ऊपर एक छप्पर या अस्थाई शेड बनाया जाता है।...