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Major seed borne diseases of cereal crops and their prevention बीज-जनित रोगजनक खेत में फसल अंकुर स्थापना के लिए एक गंभीर खतरा है।इसलिए फसल की विफलता में संभावित कारक के रूप में योगदान कर सकते हैं।बीज न केवल इन रोगजनकों के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुरक्षित बनाते हैं, बल्कि नए क्षेत्रों में उनके आगमन और उनके व्यापक प्रसार के लिए वाहन के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। बीज-जनित, फफूंद, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमि आदि रोगजनक अनाज वाली फसलों में विनाशकारी नुकसान का कारण बन सकते हैं और इसलिए सीधे खाद्य सुरक्षा को प्रभावितकरते हैं। पौधों के संक्रमित वायवीय भागों के विपरीत, संक्रमित बीज लक्षण-रहित हो सकते हैं, जिससे उनकी पहचान असंभव हो...

7 major diseases of Paddy and their management हमारे देश की सबसे प्रमुख धान्य फसल धान है। धान की फसल पर अनेक तरह की समस्याएँ आ सकती हैं, रोग आक्रमण कर सकते हैं तथा इन रोगों के रोगकारक जीव की प्रकृति में विभिन्नता होने के कारण इनकी रोकथाम के उपाय भी भिन्न-भिन्न होते हैं। अतएवः रोगों का निदान एवं उसके प्रबन्धन के विषय में जानकारी अत्यावश्यक है। सबसे पहले हमें स्वस्थ बीज की बात करनी चाहिए क्योंकि अगर किसान भाइयों के पास स्वस्थ बीज उपलब्ध हो तो आधी समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं। अगर आपके पास स्वस्थ बीज की उपलब्धता नहीं है तो आप बीजोपचार करके आधी से अधिक समस्याओं से...

Importance of varieties selection and nursery management for improvement in paddy production धान एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है विश्व की अधिकांश जनसंख्या (लगभग 60 प्रतिशत) द्वारा दैनिक भोजन में चावल का उपयोग भात, पोहा, मुरमुरा, लाई, आटे की रोटी के इत्यादि के रूप में किया जाता है। धान उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। जैसा की हम जानते है कि हर खुशबूदार धान, बासमती धान नहीं होता लेकिन हर बासमती धान खुशबूदार होता है इसलिए धान (चावल) को दाने का आकार और गुणवत्ता के आधार पर मुख्यतः तीन श्रेणियों बासमती धान, सुगन्धित धान और असुगन्धित धान में बांटा जा सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पादित बासमती धान अपने अद्भुत गुणों...

Nematodes problems, symptoms and management in rice crop चावल दुनिया के एक बड़े हिस्से में  अनाज के रूप मे खाया जाता है। यह मानव पोषण और कैलोरी सेवन के लिए महत्वपूर्ण अनाज है, दुनियाभर में मनुष्यों द्वारा खपत की गई कैलोरी का 1/5 से अधिक हिस्सा है। चावल भारत की प्रसिद्ध फसल है जो देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों के लोगों का मुख्य भोजन है। कई निमेटोड प्रजातियां चावल की फसल को सक्रंमित करती है जैसे उफरा (डिटाइलेकस डिप्सेकी), व्हाइट टिप बिमारी (एफेलेनकोआइड बसेई) और जड़ गांठ रोग (मेलोडेगायनी ग्रमिनिकोल) है। दुनिया के सभी कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कुछ निमेटोड प्रजातियां जैसे कि प्रटिलेकंस स्पी. सबसे खतरनाक है। चावल रूट...

चावल के 5 प्रमुख रोग (ओरीज़ा सतवा) 1. Rice Blast Causal Organism -Pyricularia oryzae (Syn: P. grisea) (Sexual stage: Magnaporthe grisea) Symptom- On the leaves, the lesions start as small water soaked bluish green specks, soon enlarge and form characteristic boat shaped spots with grey centre and dark brown margin. The spots join together as the disease progresses and large areas of the leaves dry up and wither. Similar spots are also formed on the sheath. Severely infected nursery and field show a burnt appearance. At the flower emergence, the fungus attacks the peduncle which is engirdled, and the lesion turns to brownish-black. This stage of infection is commonly referred to as rotten neck / neck rot...

बासमती चावल के 10 प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन Rice (Oryza sativa) is one of the most important food crops. It is staple food for more than half of the world’s population. India is one of the largest rice growing country with an area of around 44 m ha and production of more than 100 million tonnes. Rice is grown in almost all the states of India contributing about 42 per cent to the country’s food grain production and provides livelihood to about 70 per cent of the population. Basmati Rice, a special class of rice has contributed significantly for rice production and its export to other countries and is in...

Paddy cultivation in low cost by zero tillage (Direct sowing) technique is beneficial for farmers . धान भारत की एक प्रमुख फसल है। हमारे देश में लगभग 42 मि. हे. क्षेत्र में धान की खेती की जाती है जिसमें से 20.7 मिलीयन हे. क्षेत्र वर्षा आधारित है। पूर्वी भारत में 162 लाख हेक्टेयर में धान की खेती वर्षा आधारित है। जिसमें 6.3 मि.हे. ऊपरी जमीन एवं 7.3 मि.हे. निचली भूमि  सूखे से हमेशा प्रभावित रहती है। बिहार राज्य में धान की खेती करीब 38 लाख हेक्टेयर में की जाती है। इसमें मात्र एक तिहाई जमीन ही सिंचित है जबकी दो - तिहाई क्षेत्र में धान की खेती नहर के पानी एवं...

Weed management in rice crop  देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ खाद्यानों की मांग को पूरा करना एक गम्भीर चुनौती बनी हुई है । धान हमारे देश की प्रमुख खाद्यान फ़सल है । इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग 4 करोड़ 22 लाख है0 क्षेत्र में की जाती है आजकल धान का उत्पादन लगभग 9 करोड़ टन तक पहुंच गया है । राष्ट्रीय स्तर पर धान कीऔसत पैदावार 20 क्विंटल प्रति हैक्‍टेयर है। जो कि इसकी क्षमता से काफ़ी कम है, इसके प्रमुख कारण है -  कीट एवं ब्याधियां,  बीज की गुणवत्ता,  गलत शस्य क्रियाएं,  तथा खरपतवार।धान की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिये सुधरी खेती की सभी प्रायोगिक विधियों को अपनाना आवश्यक...

4 Important diseases of Paddy crop 1. धान का भूरी चित्ती रोग/ पत्र लांछन (Brown Spot) धान का यह रोग देश के लगभग सभी हिस्सों मे फैलाा हुआ है, खासकर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु इत्यादि। भारत मे इस रोग पर पहली बार रिर्पोट चेन्नई के सुन्दरारमण (1919) द्वारा बनाई गई थी। उत्तर बिहार का यह प्रमुख रोग है। यह एक बीजजनित रोग है। यह रोग हेल्मिन्थो स्पोरियम औराइजी द्वारा होता है। इस रोग मे धान की फसल को बिचड़ा से लेकर दानों तक को नुकसान पहुँचाता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर गोलाकार भूरे रंग के धब्बें बन जाते है। यह रोग फफॅूंद जनित है। पौधों की बढ़वार कम...

कश्मीर घाटी में चावल गहनता (एसआरआई) प्रणाली के कार्यान्वयन की गुंजाइश व उपयोगिता “The system of rice intensification (SRI)" is a method of rice cultivation that involves efficient utilization of natural resources in conjunction with judicious use of external inputs to produce optimum rice yield.  Although SRI is best explained operationally in terms of making certain changes in conventional rice-growing practices, it is not best defined in terms of practices. SRI is a strategy of irrigated rice production, adapted to local conditions, that alters plant, soil, water and nutrient management practices with the purpose of (a) inducing larger and better-functioning root systems, and (b) more abundant, diverse and active communities of soil...