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गेहूँ एवं जौ की फसलों में लगने वाले महत्वपूर्ण रोग एवं उनकी रोकथाम   कृषि फसलों में लगने वालें रोग अनेक पादप रोगजनकों (जैसे कवक, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमि, फाइटोप्लाज्मा इत्यादि) एवं वातावरण कारकों के द्वारा उत्पन्न होते हैं। रोगजनकों से होने वाले रोग अनुकूल परिस्थितियों में फसल को भारी क्षति पहुंचा सकते है। अतः इन रोगों का शुरूआत में ही नियंत्रण करना अति आवश्यक है। गेहूँ एवं जौ प्रमुख रबी फसलों में से एक हैं जो हमारे देश भारतवर्ष में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में महती योगदान देती हैं। इन फसलों के महत्वपूर्ण रोग एवं उनका प्रबंधन इस प्रकार है -    गेहूं में लगने वाले प्रमुख रोग: 1. पीली गेरूई (धारीदार रतुआ):...

गेहूँ में उभरती कीट समस्या एवं उनका प्रबंधन Wheat is the second most important staple food crop in India providing nutrition to millions of population. India harvested a record wheat production of 109.5 million tonnes with productivity of 34.24 q/ha in 2020-21. Even though hundreds of pests were reported on wheat crop worldwide, it was considered pest free crop in India till late sixties. But due to changes in climatic conditions, production conditions, cropping patterns and use of new agro techniques resulted in several outbreaks of sporadic pests in wheat in India. Impact assessment of different pests on wheat crop performance is significant in making proper management decision. Termites, aphids, shootfly, armyworm,...

Major seed borne diseases of cereal crops and their prevention बीज-जनित रोगजनक खेत में फसल अंकुर स्थापना के लिए एक गंभीर खतरा है।इसलिए फसल की विफलता में संभावित कारक के रूप में योगदान कर सकते हैं।बीज न केवल इन रोगजनकों के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुरक्षित बनाते हैं, बल्कि नए क्षेत्रों में उनके आगमन और उनके व्यापक प्रसार के लिए वाहन के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। बीज-जनित, फफूंद, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमि आदि रोगजनक अनाज वाली फसलों में विनाशकारी नुकसान का कारण बन सकते हैं और इसलिए सीधे खाद्य सुरक्षा को प्रभावितकरते हैं। पौधों के संक्रमित वायवीय भागों के विपरीत, संक्रमित बीज लक्षण-रहित हो सकते हैं, जिससे उनकी पहचान असंभव हो...

Karnal bunt disease of wheat: condition and direction करनाल बंट टिलेशिया इंडिका नामक कवक से उत्पन्न होने वाला गेहूँ की फसल का एक मुख्य रोग है। यह रोग विशेष रूप से भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है। यद्यपि आज तक भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में करनाल बंट की कोई महामारी दर्ज नहीं की गयी है किन्तु अति संवेदनशील गेहूँ की प्रजातियों में पुष्पावथा के समय (फरवरी-मार्च) में जब उच्च आर्द्रता होती है, तब 30-40 प्रतिशत तक गेहूँ की फसल करनाल बंट से संक्रमित पायी गयी है अखिल भारतीय गेहूँ एवं जौ समन्वित अनुसन्धान परियोजना 2019 के तहत किये गये पोस्ट हार्वेस्ट सर्वे के दौरान कुल...

Major seedborn disease of wheat and their control पादप संरचना वकार्यिकी में किसी कारणवश आये परिवर्तन जो उनको नुकसान पहुंचाकर उनका आर्थिक महत्व एवं उपज घटा देते हैं उनको पादप रोग, बीमारी अथवा पादप व्याधि कहते हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए, पौधों केरोगों अथवा बीमारियों को सामान्यत:तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: बीज जनित रोग, मृदा जनित रोग व वायु जनित रोग। इन तीनो श्रेणियों के बीच अन्तर करने वाली कोई स्पष्ट विभाजक रेखा नहीं है और एक रोगज़नक़ अपने अस्तित्व के लिए एक या एक से ज्यादा तरीकों को अपना सकता है। उदाहरण के लिए, गेहूँ के अनावृत कंड रोग का रोगजनक अस्टीलैगो सेगेटम प्रजाति ट्रिटीसी एक अंत: बीज - जनित...

Karnal Bunt Disease of Wheat गेहूँ का यह रोग सर्वप्रथम 1931 में करनाल (हरियाणा) से रिपोर्ट किया गया था तथा वर्तमान में विश्व के अन्य देशों में भी पाया जाता है | भारत में यह रोग अधिक तापमान तथा उष्ण जलवायु वाले राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात तथा मध्यप्रदेश में नहीं पाया जाता। भारत के अपेक्षाकृत ठंडे प्रदेशों जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड के मैदानी इलाके पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी राजस्थान में गेंहू की फसल मे करनाल बंट रोग का प्रकोप अधि‍क होता है | करनाल बंट रोग से हर वर्ष गेहूं की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है । वैज्ञानिकों ने गेहूं में करनाल बंट रोग...

उत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिये गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उत्पादन तकनीकियाँ विश्व स्तर पर भारत गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है एवं कुल खाद्य पदार्थो के उत्पादन में 34¬ प्रतिशत  योगदान करता है। वर्ष 1964-65 के दौरान देश में गेहूँ का उत्पादन महज 12.3 मिलियन टन था जो कि 2018-19 के दौरान 102.19 (चतुर्थ आग्रिम अनुमान) तक पहुँच गया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें मजबूत शोध कार्यों और संगठित प्रसार कार्यक्रमों के द्रारा ही संभव हुई है। कृषि जलवायु स्थिति के व्यापक विविधता के आधार पर भारत को 5 विभिन्न क्षेत्रों मे बाँटा गया है जोकि उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (12.62 मिलियन हैक्टर), उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (8.56 मिलियन हैक्टर),...

गेहूं का झोंका (बलास्‍ट): एक विनाशकारी बीमारी Wheat is the second most important food crop in the world and a staple food crop providing 20% of protein to the human population.  The production of wheat is over 700 million tonnes in the world and is cultivated over large area under varied climatic conditions. Wheat production is affected by a number of diseases like rusts, karnal bunt, powdery mildew, loose smut, flag smut, leaf blight, head scab etc. Among these diseases affecting wheat production in the world, wheat blast is one of the devastating disease affecting wheat. Leaf blast, spike blast,collar rot node blast, or rotten neck blast are other names of this...