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जैविक खेती में सूक्ष्मजीव नवाचार: रुझान और भविष्य की संभावनाएं Organic farming in India is growing rapidly, driven by global demand for sustainable agriculture and healthier food. This shift supports environmental conservation, biodiversity, and increasing consumer awareness of health benefits. As consumer demand for organic products increases and farmers recognize the long-term advantages of organic practices, the adoption of organic farming is anticipated to speed up. Microbial innovations are transforming organic farming by providing natural solutions for improving soil health, nutrient cycling, and pest/disease control, ultimately supporting sustainable and resilient agricultural. Organic Farming in India: Present and Future India's organic farming has deep roots in traditional sustainable practices. However, the Green Revolution...

जैविक खेती: मिट्टी की स्थिरता में सुधार का तरीका According to organic farming, it is an agricultural practice that upholds, enhances, and maintains the standard of quality of our ecosystem. In organic farming, crops are grown without the use of synthetic chemicals, recycled inorganic fertilizers, or other potentially dangerous materials like herbicides and insecticides. By returning to our original technique of farming, which is devoid of chemicals, pesticides, and fertilizers, the phenomena of "Organic agriculture" is the only way to nourish the land and rejuvenate the soil. By opting not to utilize chemicals, synthetic materials, pesticides, or growth hormones to produce high nutritional quality food in sufficient quantities, this is a potential step...

जैविक खेती के जरिए युवाओं का विकास एवं सशक्तिकरण  सर अल्बर्ट हॉवर्ड, एफएच किंग, रुडोल्फ स्टेनर और अन्य लोगों द्वारा 1900 के दशक की शुरुआत में जैविक कृषि की अवधारणाओं को विकसित किया गया था, जो मानते थे कि पशु खाद , फसलों को कवर, फसल रोटेशन, और जैविक आधारित कीट नियंत्रण। हावर्ड, भारत में एक कृषि शोधकर्ता के रूप में काम कर रहे थे, उन्होंने पारंपरिक और टिकाऊ खेती प्रथाओं से बहुत प्रेरणा प्राप्त की, जो उन्होंने वहां सामना किया और पश्चिम में उनके गोद लेने की वकालत की। इस तरह की प्रथाओं को विभिन्न अधिवक्ताओं ने आगे बढ़ाया - जैसे कि जे.आई. रोडले और उनके बेटे रॉबर्ट, 1940 और उसके...

जैविक खेती की तकनीक आज जब हम अपनी खेती में हुई प्रगति को देखते है तो वह बहुत ही उत्साहित करती है। इस प्रगति का श्रेय हरित क्रांति को जाता है। हरित क्रांति की प्रगति के साथ अन्य क्रान्तियों का भी देश की प्रगति में बड़ा योगदान है जैसे श्वेत क्रांति(दुग्ध उत्पादन), पीली क्रान्ति (तिलहन उत्पादन), नीली क्रान्ति (मतस्य उत्पादन), लाल क्रान्ति (मांस) एवं गोल्डेन क्रान्ति (हार्टीकल्चर सहयोग)। रसायनिक उर्वरकों के अन्धाधुंध एवं असन्तुलित प्रयोग से कृषि जगत का पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़ गया है इसलिये पर्यावरण की सुरक्षा लिये तथा मृदा की उर्वरता बनाये रखने के लिये भविष्य में जैविक खेती एक उत्तम विकल्प है । जैविक खेती जैविक खेती, खेती की वह प्रक्रिया...

Organic farming - the need of the day हम आजादी के समय खाने के लिए अनाज विदेशो से लाते थे, खेतों में बहुत कम पैदा होता था क्योंकि किसानो के खेतो की उर्वरा शक्ति बहुत कमजोर थी। फिर साठ सत्तर के दशक में हरित क्रांति का दौर आया। हरित क्रांति कें समय विभिन्न फसलों के नए-नए संकर बीज आए, बहुत सारे रसायनिक उर्वरक आए, विभिन्न प्रकार के कीडों व बीमारियों को रोकने के लिए नई-नई दवाईयाँ आई। भरपूर अनाज पैदा होना लगा। देश में आज गोदाम गेंहू, चावल, बाजरे इत्यादि से भरे पडे़ है, लेकिन यह दौर कई बुराईयाँ भी साथ लाया। इस दषक में हमारा फसलों का उत्पादन तो बढा पर...

Light Trap: An efficient IPM tool for farmers of Sipahijala, Tripura   समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) किसानों के लिए एक प्रभावी नीति है | यह एक स्थायी संयंत्र संरक्षण रणनीति है जो पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और किसान हितैषी है । उधाराण के तौर पर त्रिपुरा में सिपाहीजला में जहाँ किसान कई फसलों की खेती कर रहे हैं परन्तू इन फसलों पर कीटो के हमले के कारणवश किसानों को उपज में भारी नुकसान उठाना पड रहा है | इन प्रमुख कीटों की दीर्घकालिक रोकथाम या हानि को सांस्कृतिक, जैविक, भौतिक, यांत्रिक उपकरणों, रासायनिक कीटनाशकों के संयोजन के माध्यम से प्रबंधित किया जा सकता है| कीटों और कीटनाशकों के...

Organic Farming in Jammu and Kashmir - Challenges and Prospects आधुनिक फसल उत्पादन प्रणाली ने पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए कई समस्याएं पैदा की हैं। मिट्टी और पौधों पर कृषि-रासायनों के असंतुलित प्रयोग से न केवल मिट्टी के बैक्टीरिया, कवक, एक्टिनोमाइसेट्स आदि को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि कीट प्रतिरोध और कीट पुनरुत्थान जैसी घटनाओं को भी जन्म दिया है। पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं पर आधुनिक कृषि के दुष्प्रभावों के कारण खेती के ऐसे वैकल्पिक तरीकों की तलाश शुरू हो गई है जो कृषि को अधिक टिकाऊ और उत्पादक बना दे। जैविक खेती एक विकल्प है जो सभी पारिस्थितिकीय पहलुओं को महत्व देता है। भारत में आज जैविक खेती के तहत...

जैविक खेती के लिए अपशिष्ट अपधटक एक वरदान  सूक्ष्मजीव सेल्लुलोज खाकर बढ़ते हैं और फिर पोषक तत्व छोड़ते हैं जो जमीन के लिए उपयोगी हैं। ज्यादा रासायनिक उर्वरक डालने से पीएच बढ़ता जाता है और कार्बन तत्व कम होते जाते हैं, बाद में ऐसी जमीन उर्वरक डालने पर भी उत्पादन नहीं दे पाती है। खेती के लि‍ए जमीन मे जीवाश्‍म होना आवश्‍यक है यदि जमीन में जीवाश्वम नहीं होंगे तो लम्बे समय तक वहा फसल उत्पादन नहीं हो सकता। इसलिए खेत में गोबर, फसल अवशेष आदि डालने चाहि‍ए।जिनके अपगठन के द्वारा वेस्ट डीकम्पोजर जमीन में पड़े उर्वरकों के पोषक तत्व को घोलकर पौधे को उपलब्‍ध करवाते हैं। कचरा अपघटक या वेस्ट डीकम्पोजर यह उत्पाद देशी...

आलू की जैविक खेती की वि‍धि‍  आलू अपने अंदर बिभिन्न प्रकार का विटामिन्स, मिनिरल्स एवं एंटी ओक्सिडेंट को समाये हुए एक संपूर्ण आहार है| आलू की फसल हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार आदि राज्यों की आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्योंकि यहां की जलवायु आलू उत्पादन के लिए अनुकूल है। आलू की अनुमोदित किस्में कुफरी-चंद्रमुखी, कुफरी-ज्योत, कुफरी-अशोका, कुफरी-पुखराज, कुफरी-लालिमा, कुफरी-अरुण, कुफरी-चिप्सोना, राजेंद्र आलू आदि प्रमुख किस्में है| आलू की फसल के लि‍ए भूमि  आलू की फसल के लिए अच्छे निकास वाली, उपजाऊ दोमट मिट्टी सबसे उत्तम है। यद्यपि अच्छे प्रबंध द्वारा इसे विभिन्न प्रकार की भूमियों में भी उगाया जा सकता है। इस फसल के लिए मिट्टी का पी एच मान 6-7.5 तक उपर्युक्त...

Impact of changing environment on agriculture भारत में खेती का बडा भाग मौसमी बरसात पर ही निर्भर हैं। बदलते मौसम के कारण खेती को नुकसान हो रहा है। देश में फसल उत्पादन में उतार-चढ़ाव का कारण बहुत कम या अत्यधिक वर्षा, अत्यधिक नमी, असामान्‍य तापमान, रोग व कीट प्रकोप, बेमौसम बारिश, बाढ़ व सूखा और ओलेे आदि मुख्य हैं। पिछले कुछ सालों से मौसम चक्र ने हमें चौंकाने का जो सिलसिला शुरू किया है जैसे की अतिवृष्टि और अनावृष्टि, ये तो हमारे लिए और खेती के लिए मुसीबत बन गया हैं। पिछले वर्ष की अपर्याप्त मानसूनी बारिश से जो दुष्प्रभाव पैदा हुये है, वे बीते दिनों में और बढ़ गये हैं। जलवायु परिवर्तन जैसे तापमान...