मूंग Tag

ताप-संरक्षक (थर्मो-प्रोटेक्टेंट): मूँग में उच्च तापमान सहनशीलता और उपज बढ़ाने के लिए बूस्टर खुराक  सभी दालों में, मूँग का जल्दी परिपक्व,  उच्च दैनिक उत्पादकता और बहुउपयोगी होने के कारण, एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हमारे देश के कुल दाल उत्पादन में मूँग का योगदान 11% है। मूँग एक पौष्टिक अनाज है जो पूरे भारत में अनाज आधारित आहार का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मूँग का पौष्टिक मूल्य इसके उच्च और आसानी से पचने योग्य प्रोटीन में निहित है। मूँग आम तौर पर गर्म मौसम की फसल है जिसमें बुवाई से लेकर परिपक्वता तक गर्मियों में 60-65 दिनों की आवश्यकता होती है। मूँग गर्म मौसम की फसल होने के कारण अपनी अधिकांश वृद्धि अवधि...

राजस्थान में मूँग की उन्नत खेती  मूँग एक फलीदार फसल है जिसे मुख्य रूप से दाल के लिए प्रयोग किया जाता है। दाने के साथ-साथ फसल की पत्तियों और तने से पर्याप्त मात्रा में भूसा प्राप्त होता है, जो जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत में लगभग 308 मिलियन हेक्टेयर में मूंग की खेती की जाती है तथा इसका उत्पादन 1.31 मिलियन टन प्रति वर्ष है। मूंग की औसत उत्पादकता 4.25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। मूंग को हरी खाद के लिए भी प्रयोग किया जाता है। मूंग की जड़ों में सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं जो वायुमंडल की नाइट्रोजन को एकत्रित करते हैं जो अगली फसल के द्वारा प्रयोग की जाती है। इसे मृदा अपरदन अवरोधी तथा कैच क्रॉप के रूप में प्रयोग करते हैं। राजस्थान में मूंग खरीफ एवं...

जायद में मूंग का उत्पादन दलहनी फसलों में मूंग की बहुमुखी भूमिका है। इससे पौष्टिक तत्व प्रोटीन पर्याप्त होने के कारण स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मूंग के दानों में 25 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 13 प्रशित वसा तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। इसमें वसा की मात्रा कम होती है और इसमें विटमिन बी कम्पलेक्स, कैल्शियम, खाद्य रेशा एवं पोटेशियम भरपूर होता है। मूंग की दाल से दही बडे, हल्वा, लड्डू, खिचड़ी, नमकीन, चीला, पकोडे़ आदि बनाये जाते हैं। बीमार होने पर डाॅक्टर मूंग की खिचड़ी या मूंग की दाल खाने का परामर्श देते हैं क्योकि यह जल्दी पच जाती है। फली तोड़ने के बाद फसलों...

Management of Whitegrub in Kharif Crops सफ़ेद लट (whitegrub) खरीफ की फसलों जैसे मूंगफली, मूंग, मोठ, बाजरा, सब्जियों इत्यादि पौधों की जड़ो को काटकर हानि पहुँचती है। ये मूंगफली जैसी मुसला जड़ो वाली फसलों में,  बाजरा जैसे झकड़ा जड़ वाली फसलों की अपेक्षा अधिक नुकसान करती है । राजस्थान के हल्के बालू मिटटी वाले क्षेत्रो में होलोट्राइकिया नामक भृंगो की सफ़ेद लटें अत्यधिक हानि करती है । सफ़ेद लट का जीवन चक्र :  राजस्थान के हल्के बालू मिटटी वाले क्षेत्रो में होलोट्राइकिया नामक भृंगो की सफ़ेद लटें एक वर्ष में केवल एक ही पीढ़ी पूरी करती है । मानसून अथवा मानसून पूर्व की पहली अच्छी वर्षा के पश्चात इस किट के भृंग सांयकाल गोधूलि वेला के...

Improved technology for cultivation of Mungbean मूंग भारत में उगायी जाने वाली, कम समय मे पकने वाली, महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इन फसल में वातावर्णीय नाइट्रोजन को पौधों द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाने की अदभुत क्षमता होती हैं। जिससे पौधों को कम उर्वरक की आवश्यकता पड़ती है, और उत्पादन लागत कम हो जाती है। इनकी खेती लगभग सभी राज्यों मे की जाती है। परन्तु महाराष्ट, आन्ध्र प्रदेश,  उत्तर प्रदेश , राजस्थान, मध्य प्रदेश तमिलनाडु तथा उड़ीसा, मूंग तथा उड़द उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं। मूंग की खेती के लि‍ए भूमि की तैयारी मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी...

Agricultural work to be carried out in the month of April मूंग: इस समय मूंग की फसल में 10 दि‍न के अन्‍तराल पर सि‍ंचाई करें। मूंग की फलि‍यां यदि‍ हल्‍के भूरे रगं की हो गयी हैं तो समझें की फसल पक कर तैयार है। गेंहूॅ: अनाज के भण्‍डारण से पहले गेंहूॅ को अच्‍छी तरह सुखा लें जि‍ससे उसमें नमी बाकी ना रहे। सब्‍जि‍यॉं : भि‍ण्‍डी व टमाटर की फसल को छेदक सूंडी के प्रकोप से बचाने के लि‍ए 0.1 प्रति‍शत टोपास या कैलि‍क्‍सि‍न  (400- 500 मि‍.लि‍./ 1000 लि‍टर पानी के हि‍साब से) का छि‍डकाव खडी फसल में कर दें। फल मक्‍खी के नि‍यंत्रण के लि‍ए मि‍थाइल यूजि‍नोल के फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें। कद्दू वर्गीय फसले: कद्दू वर्गीय फसलों...

Agricultural work to be carried out in the month of February सब्‍जि‍यॉं : भि‍ण्‍डी की पूसा ए-4 कि‍स्‍म की बुआई फरवरी माह में कर दें। भि‍ण्‍डी बुवाई के 8-10 दि‍न बाद सफेद मक्‍खी व जैसि‍ड कीटो से बचाव के लि‍ए 1.5 मि‍ली मोनेाक्रोटोफास दवा प्रति 1 ‍लि‍टर पानी के हि‍साब से  या 4 मि‍ली इमकडक्‍लोप्रि‍ड दवा प्रति‍ 10 लीटर पानी की दर से का छि‍डकाव करें। भि‍ण्‍डी में उर्वरक की पूर्ति‍ के लि‍ए 15 टन प्रति‍ हैक्‍टेयर गोबर की खाद के साथ 100:50:50 की दर से NPK डालें। इस माह में लौकी की पूसा संतुष्‍टि‍, पूसा संदेश (गोल फल) , पूसा समृध्‍दि‍ एवं पूसा हाईबि‍ड 3 की बुवाई करें। खीरे की पूसा उदय , पूसा बरखा की...

Agricultural work to be carried out in the month of March सब्‍जि‍यॉं : कद्दू, चप्‍पन कद्दू, लौकी , करेला, तोरर्इ , खीरा, खरबूजा, तरबूज आदि‍ बेल वाली सब्‍जि‍यों की बुआई करें। पूसा की नि‍म्‍न प्रजाति‍यों का चयन करें। कद्दू:  पूसा वि‍श्‍वास, पूसा हाईब्रि‍ड 1 खीरा: पूसा उदय खरबूजा: पूसा मधुरस तरबूज: शुगर बेबी चप्‍पन कद्दू:  ऑस्‍ट्रेलि‍यन ग्रीन एवं पूसा अलंकार कद्दू वर्गीय फसलों में 100-50-50 कि‍ग्रा/ हैक्‍टेयर की दर से नाईट्रोजन-फॉस्‍फोरस-पोटेशि‍यम की मात्रा डालें। तथा 5-6 दि‍न के अंतराल पर सि‍चांई करते रहे। भि‍ण्‍डी में फली व तना भेदक कीट के नि‍यंत्रण के लि‍ए 2 मि‍ली इमि‍डाक्‍लोप्रि‍ड दवा को 10 लि‍टर पानी में घोलकर छि‍डकाव करें। भि‍ण्‍डी रस चुसने वाले कीडों के नि‍यंत्रण के लि‍ए ट्राइजोफॉस और डेल्‍टामेथ्रि‍न 1 मि‍ली दवा /...

मूंगबीन में पीला मोज़ेक रोग: एक प्रमुख संकट। Mungbean belonging to family Fabaceae also called as greengram is one of the most important pulse crop grown and consumed in India. Providing one of the sources of protein for vegetarians. In India this crops is widely growing in the area of Uttar Pradesh, West Bengal, Madhya Pradesh, Maharashtra, Rajasthan, Bihar, Andhra Pradesh and Haryana during kharif and rabi season (Singh et al 2014a). Now a day this crop is tormenting a harsh abatement in the production due to astringent on rush of viral diseases. Among various viral diseases, Yellow Mosaic Disease (YMD) caused by different species of white-fly such as Bemisia tabaci transmitted geminivirus...

Important diseases of Moong bean and their management  1. अल्टरनेरिया पर्ण धब्बा रोग मूंग के प्रमुख रोग  :- लक्षण एवं पहचान- पत्ती की सतह पर भूरे रंग के धब्बे दिखाइ देते है। प्रारंभिक अवस्था में ये धब्बे गोल एवं छोटे भूरे रंग के होते है। बाद में ये छल्ले के रुप में गहरे भूरे रंग का आकार ले लेते है। संक्रमित भाग पत्ती से अलग होकर गिर जाता है। रोगजनक के बीजाणु (कोनिडिया) रोगजनित पौधो के अवशेष एवं ठुण्ठ पर तथा आश्रित खरपतवारों पर जीवित रहते है। इनकी बढ़वार के लिये 70 प्रतिशत आपेक्षिक आद्रता एवं 12 से 25 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है। नियंत्रण :- खेतों को साफ-सुथरा रखे। थायरम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज...