मृदा जनित बि‍मारियों के जैव नियंत्रण में ट्राइकोडर्मा फफूंद का महत्त्व व उपयोग

मृदा जनित बि‍मारियों के जैव नियंत्रण में ट्राइकोडर्मा फफूंद का महत्त्व व उपयोग

Importance and use of trichoderma fungus in biological control of soil borne diseases

ट्राइकोडर्मा पादप रोग प्रबंधन विशेष तौर पर मृदा जनित बिमारियों के नियंत्रण के लिए बहुत की प्रभावशाली जैविक विधि है। ट्राइकोडर्मा एक कवक (फफूंद) है। यह लगभग सभी प्रकार के कृषि योग्य भूमि में पाया जाता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग मृदा – जनित पादप रोगों के नियंत्रण के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

हमारे देश में फसलों को बीमारियों से होने वाले कुल नुकसान का  50 प्रतिशत से भी अधिक मृदा- जनित पादप रोग कारकों से होता हैं, जिसका नियंत्रण अन्य विधियों द्वारा सफलतापूर्वक नहीं हो पा रहा है। इसलिए ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियों से रोंगों का नियंत्रण प्रभावशाली रूप से किया जाता हैं इनमें से ट्राइकोडर्मा हरजीनियम एवं विरिडी का प्रयोग होता है।

ये मृदा जनित रोग कारकों जैसे राजोक्टोनिया, स्केलेरोशियम, स्केलेरोटीनिया ,मैक्रोफोमिना ,पीथियम, फाइटोफथेरा एवं फ्यूजेरियम आदि का पूर्णरूपेण अथवा आंशिक रूप से विनाश करके उनके द्वारा होने वाली विभिन्न बीमारियों जैसे बीज सड़न, आर्द्रगलन, मूल  विगलन, अंगमारी एवं म्लानि रोग के नियंत्रण में सहायक सिद्ध हुई है।

फसलों में लगने वाले जड़ गलन, उखटा, तना गलन आदि मृदा जनित फफूंद रोगों की रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा नामक मित्र फफूंद बहुत उपयोगी है। बीजोपचार, जड़ोपचार एवं मृदा उपचार में इसका प्रयोग करते हैं, जिससे फसलों की जड़ो के आस -पास इस मित्र फफूंद की भारी संख्या कृत्रिम रुप से निर्मित हो जाती है।

ट्राइकोडर्मा मृदा में स्थित रोग उत्पन्न करने वाली हानिकारक फफूंद की वृद्धि रोककर उन्हें धीरे धीरे नष्ट कर देता है। जिससे ये हानिकारक फफूंद फसल की जाड़ों को संक्रमित कर रोग उत्पन्न करने में असमर्थ हो जाती है।

ट्राइकोडर्मा उत्पादन विधि

ट्राइकोडर्मा के उत्पादन की ग्रामीण घरेलू विधि में कण्डों (गोबर के उपलों) का प्रयोग करते हैं। खेत में छायादार स्थान पर उपलों को कूट कूट कर बारिक कर देते हैं। इसमें  28 किलो ग्राम या लगभग 85 सूखे कण्डे रहते हैं। इनमें पानी मिला कर हाथों से भली भांति मिलाया जाता है। जिससे कि कण्डे का ढेर गाढ़ा भूरा दिखाई पड़ने लगे।

अब उच्च कोटी का ट्राइकोडर्मा शुद्ध कल्चर 60 ग्राम इस ढेर में मिला देते हैं। इस ढेर को पुराने जूट के बोरे से अच्छी तरह ढक देते है और फिर बोरे को ऊपर से पानी से भिगो देते हैं। समय समय पर पानी का छिड़काब बोरे के ऊपर करने से उचित नमी बनी रहती है।

12-16 दिनों के बाद ढ़ेर को फावडे से नीचे तक अच्छी तरह से मिलाते हैं। और पुनः बोरे से ढ़क देते है। फिर पानी का छिड़काव समय समय पर करते रहते हैं। लगभग 18–20 दिनों के बाद हरे रंग की फफूंद ढ़ेर पर दिखाई देने लगती है।

इस प्राकर लगभग 28 से 30 दिनों में ढे़र पूर्णतया हरा दिखाई देने लगता है। अब इस ढे़र का उपयोग मृदा उपचार के लिए करें ।

इस प्रकार अपने घर पर सरल, सस्ते व उच्च गुणवत्ता युक्त ट्राइकोडर्मा का उत्पादन कर सकते है। नया ढे़र पुनः तैयार करने के लिए पहले से तैयार ट्राइकोडर्मा का कुछ भाग बचा कर सुरक्षित रख सकते हैं और इस प्रकार इसका प्रयोग नये ढे़र के लिए मदर कल्चर के रूप में कर सकते हैं। जिससे बार बार हमें मदर कल्चर बाहर से नही लेना पडेगा।

उत्पादन हेतु ध्यान में रखने योग्य बातें

  1. उत्पादन हेतु छायादार स्थान का होना ज़रूरी है।जिससे कि सूर्य की किरणें ढे़र पर सीधी नहीं पड़ें। ढे़र में उचित नमी बनाए रखें।
  2. 25 – 30 डिग्री सेन्टीग्रड़ तापमान का होना ज़रूरी है।
  3. समय-समय पर ढे़र को पलटते रहना चाहिए।

खेत में प्रयोग करने की विधि

उपरोक्त विधि से तैयार ट्राइकोडर्मा को बुवाई से पूर्व 20 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से मृदा में मिला देते है। बुवाई के पश्चात भी पहली निराई गुड़ाई के समय पर भूमि में इसे मिलाया जा सकता है । ताकि यह पौधों की जड़ों तक पहुँच जाए।

ट्राइकोडर्मा के उपयोग हेतु फसलों की संस्तुति

 ट्राइकोडर्मा सभी पौधे व सब्जियों जैसे फूलगोभी,कपास, तम्बाकू, सोयाबीन, राजमा, चुकन्दर, बैंगन, केला, टमाटर, मिर्च, आलू, प्याज, मूंगफली, मटर, सूरजमुखी, हल्दी आदि के लिये उपयोगी है।

ट्राइकोडर्मा के लाभ

  • रोग नियंत्रण
  • पादप वृद्धिकारक
  • रोगों का जैव- रासायनिक नियन्त्रण
  • बायोरेमिडिएशन

सावधानियां

  1. मृदा में ट्राइकोडर्मा का उपयोग करने के 4 -5 दिन बाद तक रासायनिक फफूंदीनाशक का उपयोग न करें।
  2. सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का उपयोग न करें।
  3. ट्राइकोडर्मा के विकास एवं अस्तित्व के लिए उपयुक्त नमी बहुत आवश्यक है।
  4. ट्राइकोडर्मा उपचारित बीज को सीधा धूप की किरणों में न रखें
  5. ट्राइकोडर्मा द्वारा उपचारित गोबर की खाद (फार्म यार्ड मैन्योर)को लंबे समय तक न रखें।

ट्राइकोडर्मा उपयोग के तरीकों की अनुशंसा

  • ट्राइकोडर्मा कार्बनिक खाद के साथ उपयोग कर सकते हैं। कार्बनिक खाद को ट्राइकोडर्मा राइजोबियम एजोस्पाईरिलियम, बेसीलस, सबटीलिस फास्फोबैक्टिरिया के साथ उपयोग कर सकते हैं।
  • ट्राइकोडर्मा बीज या मेटाक्सिल या थाइरम के साथ उपयोग कर सकते है ।
  • टैंक मिश्रण के रुप में रासायनिक फफूंदीनाशक के साथ मिलाया जा सकता है।

 लेखक

अनिता मीणा, राज पाल मीना, रेखा मलिक, अजय वर्मा एवं जितेन्द्र कुमार

भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थानए करनाल

Email: anumeena5@gmail.com

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