आम के 5 प्रमुख रोग व उनका प्रबंधन

आम के 5 प्रमुख रोग व उनका प्रबंधन

5 Major diseases of mango and their management

आम भारत का प्रमुख फल है जिसे फलों के राजा की उपाधि भी दी गई है। इसके स्वाद, उम्दा सुगंधि के साथ यह फल वि‍टामि‍न ए तथा सी का एक प्रचुर स्रोत है। आम का पाैैैधा प्रकृति‍ि‍ में दढृ होता है अतः कम कीमत व कम मेहनत में इसका रखरखाव कि‍या जा सकता है।

भारत में कुल फल उत्पादन क्षेत्र 1.2 मि‍लयन हेक्टेयर में आम का उत्पादन क्षेत्र लगभग 22% है तथा उत्पादन 11 मि‍लयन टन है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश सवााधिक आम उत्पादक क्षेत्र हैं इसका उपयोग अपरि‍ि‍पक्व तथा परि‍पक्व दोनों अवस्थाओं में कि‍या जाता है।

कच्चे अपरि‍पक्व फलों का उपयोग चटनी, अचार व जूस बनाने में कि‍या जाता है ।  पके हुए फलों का उपयोग खाने में तथा अन्य उत्पाद जैसे की जैम, जैली, स्क्वैश, मर्मलैड , नेक्टर बनाने में होता है
आम के वि‍भि‍न्न वृद्धि अवस्थाओं में कई प्रकार के रोगों का आक्रमण होता है जिनमें से कुछ प्रमुख रोग व उनका प्रबंधन नि‍म्‍न प्रकार है-

1. सफेद रतुआ (पाउडरी मि‍ल्डयू) –

यह रोग फफूंद द्वारा होता है इस रोग में पत्ति‍यों डंठलों फलों व फूलों पर सफेद रंग का पाउडर जैसा चूण जमा हो जाता है। रोग ग्रसि‍त फल व फूल शीघ्र ही गि‍र जाते हैं गंभीर परि‍स्थति‍यों में फल भी नहीं लगते । नई पत्ति‍यों के दोनों तरफ फफूंद का आक्रमण होता है वह बाद की अवस्था में पत्ति‍यां बैंगनी गुलाबी हो जाती है पुष्पन के समय ठंडी रातें बारि‍श में , धुंध के मौसम में रोग का प्रकोप अधिक होता है।

Mango- सफेद रतुआ

प्रबंधन –

1. रोग ग्रस्त पौधों पर 5 कि‍लोग्राम प्रति‍ पौधे के हि‍साब से सल्फर चूर्ण  का छि‍डकाव करें
2. पुष्पन के बाद शीघ्र ही आद्र सल्फर 0.2% या काबेंडाजिम 0.1% या ट्रायडेमार्फ 0.1% या केराथेन 0.1% का छि‍डकाव करें तथा दुसरा छि‍डकाव का 15 दि‍न के अंतराल में करें।

2. कुरचना रोग-

यह आम का बहुत ही गंभीर रोग है इस रोग के दो प्रकार हैं कायकि‍य कुरचना तथा पुष्पीय कुरचना।

नवोद्मभदो , वृक्षों तथा ग्राफटि‍गंं वाले आम के पौधों में यह रोग होने की शंका होती है।  संक्रममत नवोद्मभद अत्यधिक शाखाएं उत्पन्न करता है जो कि‍ सीमि‍त वृद्धि करती है तथा फूली हुई वह छोटे पर्व वाली होती है। जिससे पौधा झाड़ीनुमा दि‍खाई देने लगता है।

Mango- कुरचना रोग

प्रबंधन-

वर्तमान समय में इस रोग के सटीक प्रबंधन की खोज नहीं हो सकी है परंतु वि‍भि‍न्न उपचारों द्वारा इसका संक्रमण कम कि‍या जा सकता है

1. रोग ग्रस्त पादप भागों की छटाई कर दे तथा उन्हें जला देवें
2. केवल प्रमाणि‍त पौधों को ही संंवर्धन के लि‍ए उपयोग में लेवें

3. अल्टरनेरि‍या पत्ती धब्बा रोग-

यह रोग अल्टरनेरि‍या नामक फफूंद से होता है इस रोग में पत्ति‍यों पर भूरे रंग के गोलाकार धब्बे बनते हैं जो कि‍ बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं रोग के लक्षण पत्ती की नि‍चली सतह पर दि‍खाई देते हैं प्रभावि‍त पत्ति‍यां गि‍र जाती है

Mango- अल्टरनेरि‍या पत्ती धब्बा रोग

प्रबंधन-

1. इस रोग के उपचार के लि‍ए फलोधान में नि‍यमि‍त अंतराल पर कॉपर फफूंदनाशक का छि‍डकाव करें ।
2.रोग ग्रस्त पादप भागों को इकट्ठा करके जला देना चादहए।

4. जीवाण्वि‍य केंकर-

यह रोग एक प्रकार के जि‍वाणु जैन्थोमोनास मैंजिफेरी से होता है। इस रोग में पत्ति‍यों पर छोटे अनि‍यमि‍त तथा कोणीय उठे हुए जलभरे घाव बनते हैं। बाद में पत्ति‍यां पीली होकर गि‍र जाती है।

Mango-जीवाण्वि‍य केंकरMango-जीवाण्वि‍य केंकर disease

प्रबंधन-

1. इसके प्रबंधन के लि‍ए कॉपर फफूंदनाशक का उपयोग करना लाभदायक है

2. फलोद्यान का नि‍यमि‍त सवेक्षण करें।
3. प्रमाणि‍त नवोद्मभद को ही बुवाई के लि‍ए प्रयुक्त करें।
4. फलोंजान में सफाई व्यवस्था को बनाए रखें

5. श्यामव्रण रोग (एन्थ्रेक्नोज)-

यह रोग एक प्रकार की फफूंद कोलेटोट्राइकम द्वारा होता है इस रोग में पत्ति‍यों पर पर धब्बे तथा पुष्प पूंज का झुलसना, टहतनयों का झुलसना, फल गलन जैसे लक्षण देखे जाते हैं। कोमल प्ररोह तथा पत्ति‍यां आसानी से इस रोग से ग्रसि‍त हो जाती हैं जिस कारण नई शाखाओं में अंततः डाईबैक हो जाता है पुरानी टहनि‍यों में घावों द्वारा फफूंद के प्रवेश से संक्रमि‍त हो सकती हैं व पेनीकल तथा फलों पर काले धब्बे बन जाते हैं गंभीर परि‍जस्थति‍यों में फल ही नहीं बनते हैं। तथा इस रोग के कारण उत्पादन में 10 से लेकर 90% तक हानि‍ देखी गई है। नमी वाले मौसम में यह रोग तीव्रता के साथ फैलता है

 श्यामव्रण रोगMango- श्यामव्रण रोग
प्रबंधन-
1. सभी रोग ग्रस्त पादप भाग जैैसे की टहतनयां, फूल, फल आदि‍ की छटाई कर देनी चाहि‍ए तथा इन्हें जला देना चाहि‍ए
2. पुष्‍प पुजंं मे  होने वाले संक्रमण को वर्षा ऋतु में स्वार्गी या फि‍र स्पर्शी फफूंद नाशी हर 12 से 15 दि‍न के अंतराल में छि‍डकाव द्वारा रोका जा सकता है 


Authors:
विजय श्री गहलोत, व नि‍ति‍का कुमारी 

स्नातकोत्तर छात्रा , पादप रोग वि‍ज्ञान वि‍भाग, कॉलेिज ओफ एग्रीकल्चर,

स्वामी केशवानंद राजस्थान एग्रीकल्चर यूनि‍र्वसि‍टी (एसकेआरएयू) ,बीकानेर , राजस्थान

Email: vijayshree1789@gmail.com

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