औषधियुक्त ऑंवले की उन्नत खेती

औषधियुक्त ऑंवले की उन्नत खेती

Advanced cultivation of medicinal Amla

इम्बेलिका आफिसिनेलिस भारत का एक अहम पौधा है। इसको संस्कृत में धात्री फल कहते है। यह वृक्ष पर उगता है तथा अनेकों गुणों से भरपूर होता है। ऑवला विटामिन सी का अनन्य स्त्रोत है । इस वृक्ष का मुख्य गुण यह है। कि यह उसर भूमि पर भी उग सकता है तथा इस वृक्ष को सिंचाई की आवष्यकता नही होती है। इसे आसानी से उगाया जा सकता है।

खेती के लिए भूमि तैयार करना:

ऑवला की बुआई हेतु पी.एच. मान तक की मृदा भी प्रयोग का जा सकती है। इसके लिए भूमि की कोई ज्यादा तैयारी नहीे करनी होती है। इसकी बुआई हेतु मई जून माह में 8-10 मीटर अंतराल पर 1-125 मीटर आकार के गड्डे खोद लेना चाहिए तथा इसमें कंकड पत्थर निकाल कर फेंक देना चाहिए

गड्डो में 50-60 कि. गोबर की खाद 15-20 की बालू 8-10 कि. जिप्सम तथा 6 किलो पाइराइट भर देना चाहिए पौधों को दीमक से मुक्त रखने हेतु गड्डो में 50-100 का बी.एच.सी. की धूल भी मिला देना चाहिए। भराई के 15-20 दिन उपरांत गड्डों को जमीन से 15-20 से भी ऊपर तक भरा जाना चाहिए ताकि वहॉ पर पानी न रुक सके।

ऑंवले की खेती में खाद एवं उर्वरक:

ऑवला के उत्पादन हेतु 100 कि.ग्रा. गोबर की खाद, 1 कि. ग्रा. नत्रजन 500 ग्रा. फास्फोरस एवं 750 ग्रा. पोटाष तत्व के रूप् में देना चाहिए। ऊसर भूमि में यदि जस्ते की कमी के लक्षण दिखाई पडे तो 250-500 ग्रा. जिंक सल्फेट को डालना चाहिए। गोबर की खाद को एक बार में तथा अन्य उर्वरकों को आधा जनवरी-फरवरी व जुलाई माह में प्रयोग करना चाहिए।

ऑंवले में सहफसली:

ऑवला के बाग में खरीफ के मौसम में मूंग उडद तथा मूंगफली, रबी के मौसम में मटर, मेथी, मसूर चना व जायद के मौसम में  लोबिया की फसले लगायी जा सकती है। 

ऑंवले में सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण:

ऑवला के नवरोपित पौधों में गर्मी के मौसम में हर सप्ताह सिंचाई करते रहना चाहिए तथा उन वृक्षों में जिनमें फल लगे हुए हो, उन्हें जून के माह में एक बार सींचना चाहिए। समय-समय पर घास को निकालना अति आवष्यक होता है।

ऑवला की व्यावसायिक प्रजातियॉ:

चकैयया, फ्रांसिस, कृश्णा, कंचन, नरेन्द्र, ऑवला4, नरेन्द्र5 व 7, एवं गंगा बनारसी ऐसी कुछ प्रजातियॉ व्यावसायिक दृश्टि से अति लाभकारी पायी गयी है।

ऑंवले में प्रमुख रोग एवं नियंत्रण:

ऑवला के पौधो में अनेको रोग पाए जाते है। जिनमें कीट, दैहिक व्याधियॉ इत्यादि प्रमुख होते हैं।

ऑंवले के कायि‍क रोग या  दैहिक व्याधि:

आंवले के फल प्राय: चटक जाते है और ऐसा ऊतक क्षय के कारण होता है। यह ऊतक क्षय बोरान तत्व की कमी से होता है। इस रोग के उपचार हेतु बोरेक्स 0.04-0.06 प्रतिषत बोरेक्स का छिडकाव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए। इस व्याधि से बचाव हेतु रोपण के समय भूमि में 50 ग्राम बोरेक्स डाल देना चाहिए। जिससे रोग प्राय: नहीं पाया जाता है।

इस रोग के अतिरिक्त ऑवला में कुछ कीट आक्रमण करते है जो कि छाल या पत्ती को खा लेते है अथवा टहनियों में गांठे बना देते है। इन कीटों की रोगथाम के लिए 0.03 प्रति डाइमेक्रान का छिडकाव कीट के आक्रमण होने पर किया जाता है। यह छिडकाव 7 दिन के अंतराल पर पुन: किया जाता है। ताकि कीअ पूर्ण रूप् से नश्ट हो जाए।

ध्यान रहे कि इस अंतराल में व अंतिम छिउकाव के 15 दिन बाद तक यदि वृक्ष में फल लगे हो तो उन्हें पर्यावरण हेतु नहीं तोडना चाहिए।

ऑंवले का उपयोग:

ताजा ऑवला विटामिन सी का मुख्य श्रोत है तथा इसे सेवन करने से मनुश्य में रोगरोधित पनपती है। यह चटनी, मुरब्बा इत्यादि के रूप में भी उतना ही उपयोगी होता है। ऑवला आधारित उत्पाद च्यवनप्राष, अमृतकलष अति उपयोगी है। आयुर्वेदिक औशधियों में ऑवले का उपयोग पेट के रोगो हेतु किया जाता है।

उदाहरण त्रिफला पूर्ण, त्रिफलामासी इत्यादि। सौंदर्य प्रसाधनो में भी ऑवला पाचक होता है। तथा भूख बढाता है। यह ऑखों की रोषनी हेतु अति उपयोगी है।

ऑवले के उपयोग से बेचैनी, यकृत, अमाषय, तिल्ली, वीर्य की दुर्बलता दूर होती है। ऑवले के प्रति 100 ग्राम फल में निम्न तत्व पाए जाते है। आर्द्रता 812 ग्राम, कैल्षियम-0.05 ग्राम, प्रोटीन 0.5 ग्राम, फास्फोरस-0.02 ग्राम, वसा 0.1 ग्राम, लोह 1.2 मि.ग्रा., खनिज पदार्थ 0.7 ग्राम, निमोटिनिक अम्ल 0.2 मि.ग्रा., कार्बोहाइड्रेट 141 ग्राम, राइबोफ्लेविन 0.01 ग्राम, गियासिन 0.2 मि. ग्रा., कैरोटिन 1 आईयू।

ऑवला की रासायनिक संरचना से यह साफ ज्ञात है कि इसमें अनेको विटामिन व भरपूर मात्रा में खनिज पदार्थ होते है। तथा यही कारण है। कि इसका सेवन अति उपयोगी है। ऑवला वर्तमान में प्रचुर मात्रा में निर्यात हो रहा है। क्योकि इसके गुणो के कारण संपूर्ण विष्व इसक बहूआयामी लाभों का वरण चाहता है।

ऑवला के एक एकड बागान से लगभग 85000 हिसाब से अच्छी है और सहफसली द्वारा उत्पादक और लाभ भी पा सकते है।   


Authors:

तुलेश कुमार गेंदले व विजय कुमार सुर्यवंशी*

ग्रा.कृ.वि.अ. लोरमी, जिला-मुंगेली

ग्रा.कृ.वि.अ. बिलासपुर*

Email: vijay.sury@yahoo.in

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