पशुुओं में गांठदार त्वचा , लम्पी स्किन डिजीज

पशुुओं में गांठदार त्वचा , लम्पी स्किन डिजीज

Nodular skin, Lumpy skin disease in cattle

लम्पी स्किन डिजीज (LSD) या गांठदार त्वचा रोग राजस्थान के कई जिलों में फैला हुआ है। यह एक तेजी से फैलने वाली विषाणु जनित बीमारी है। यह बीमारी पशुपालको के आर्थिक नुकसान का प्रमुख कारण है। यह रोग  गाय और भैंसो में मुख्य रूप से देखा गया है।

इस रोग में पशु के पूरे शरीर पर गांठे बन जाती है इस लिए इसको गांठदार त्वचा रोग भी कहते है | यह रोग भेड़ व बकरी माता जैसे विषाणु के कारण होता है। यह रोग परजीवी जैसे कीड़े ,मच्छर एवं मक्खियों के काटने से फैलता है।

यह रोग संक्रमित पशु के चारे, दाने व घाव से भी फैल सकता है। इस रोग के कारण पशुओं में मृत्यु दर काफी कम होती हैं या 10 प्रतिशत तक हो सकती है, लेकिन विशेष रूप से कम उम्र के दुधारू पशुओं के अधिक प्रभावित होने से दूध उत्पादन कम हो जाता है, जिससे पशुपालक को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

  1. इस रोग में पशु को तेज बूखार आ जाता है, जो लगभग 6-7 दिन तक रहता है।
  2. लसिका ग्रथियों में सूजन आ जाती है।
  3. कभी -कभी पशु के नाक और आँखो से पानी आता है।
  4. पशु का दूध उत्पादन काफी कम हो जाता है।
  5. शरीर के वजन में कमी और कभी- कभी मृत्यु भी हो सकती हैं।
  6. पशु के शरीर पर मोटी -मोटी गांठे बन जाती है, गांठो के फटने पर तरल द्रव्य निकलता है, जो बाद में घाव में बदल जाता है।  
  7. विषाणु से ग्याभिन पशुओं का गर्भपात हो जाता है।
  8. इस रोग से संक्रमित पशुओं के पैरो की सूजन, निमोनिया, लंगड़ापन ओर थनैला रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
  9. गभीर बीमारी में कार्निया की सूजन के कारण आँखों में पानी आना, दर्द होना और धुंधला दिखाई देना प्रमुख लक्षण हैं।

रोग का इलाज :-

  • यह एक विषाणु जनित रोग होने के कारण इसका कोई उचित इलाज उपलब्ध नही है।
  • पशुओं को संभावित संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक तथा सूजन व दर्द निवारक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
  • पशु की त्वचा के घावों को रोकने के लिए एंटीसेप्टिक दवा का उपयोग करना चाहिए।
  • संक्रमण के पश्चात ठीक हुए पशुओं में रोग के प्रति आजीवन रोगप्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है।

रोग से बचाव :-

  1. इस रोग से प्रभावित क्षेत्र में पशुओं की आवाजाही पर रोक ।
  2. रोग से ग्रसित पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  3. कुछ दिनों तक नये पशुओं को झुंड में शामिल नही करना चाहिए।
  4. पशु आवास में परजीवी नियंत्रण का उपयोग करना चाहिए।
  5. पशु आवास के आस- पास पानी इक्कट्ठा नही होना चाहिए ।
  6. संक्रमित पशु का ईलाज पशु चिकित्सक से करवाना चाहिए।
  7. संक्रमित पशु को पोष्टिक आहार व साफ पानी दे।
  8. संक्रमित पशु की मृत्यु होने पर उन्हें गड्डा खोदकर चुना या नमक डालकर दबाये।
  9. पशुओ के आस- पास सफ़ाई व्यवस्था का विशेष ध्यान रखना चाहिए |
  10. पशुओं के बाड़े में चिचड़ मारने की दवा व मक्खी भगाने की दवा का नियमित छिड़काव करना चाहिए |

Authors:

डॉ. विनय कुमार एवं डॉ. अशोक कुमार

पशु विज्ञान केंद्र, रतनगढ़ (चूरु)

राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

Email: vinaymeel123@gmail.com

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