09 Jan Care of animals in the cold
ठण्ड में पशुओं की देखभाल
In most parts of our country, the winter season lasts from the month of November to February. The changing weather and cold cause stress on the animals. Due to which their growth, diet, nutrition and production are affected. That’s why it is necessary to take proper care of animals at this time.
ठण्ड में पशुओं की देखभाल
हमारे देश के अधिकतर भागों में ठण्ड का मौसम नवम्बर से फरवरी माह तक रहता है। बदलते मौसम तथा ठण्ड से पशुओं पर तनाव पड़ता है। जिसके कारण उनके बढ़वार, खान-पान, पोषण एवं उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिए इस समय पशुओं की उचित देखभाल करना आवश्यक है। पशु आवास, आहार और स्वास्थ्य का समुचित प्रबंधन कर प्रतिकुल मौसम के प्रभाव का पशुओं के उत्पादन पर असर न पड़ने दें।
आवास प्रबंधन –
उचित आवास से पशु का दूध बढ़ जाता है, वजन में बढ़ोतरी होती है तथा उनकी बिमारियों में कमी आती है। एक सफल पशुपालक को पशुपोषण एवं प्रजनन के साथ-साथ ठण्ड में पशु आवास प्रबंधन पर निम्न बातों को ध्यान में रखनी चाहिए –
- आवास की दिशा पूरब-पश्चिम हो, इससे ठण्ड में धूप अन्दर तक आ जाती है तथा गर्मी में धूप को आसानी से अन्दर आने से रोका जा सकता है।
- आवास का फर्श साफ-सुधरा सुखा रहे। इसके लिए फर्श इस प्रकार बना हो कि मुत्र और गोबर असानी से निकाला जा सकें।
- ठण्ड में फर्श पर मैट बिछा दें जिसे समय-समय पर साफ करें तथा सुखा रखें या पराली का मोटा गद्दा बिछा दें जिसे समय-समय पर बदल दें।
- बकरियों के आवास की फर्श मिट्टी की बनी होती है। ठण्ड के दिनों में राते लम्बी होने के कारण बकरियों बाड़े के अन्दर ज्यादा समय बिताती है। इस स्थिति में बाड़े की फर्श का गीला तथा गन्दा रहने की सम्भावना बढ़ जाती है। अतः बाड़े के आधा फर्श पर बांस की फठ्ठी से बनी हुई दरार रहित आरामदायक चादरा बना कर बिछा दें ताकि बकरियाँ रात में गिली फर्श के बजाय इस पर आराम करे जिससे उन्हे निमोनिया तथा श्वसन संबंधित बिमारियाँ न हो।
- ठण्डी हवा को पशु आवास में आने से रोकने का प्रबंधन करें। धूप समाप्त होने पर आवास के खूले दरवाजे तथा खिड़कियों पर टाट या पर्दा लगा दे ताकि हवा अन्दर न प्रवेश करे तथा पशुओं को शीत लहर के प्रकोप से बचाया जा सकें।
- आवास हमेषा सूखा तथा रोगाणुमुक्त रखने हेतु समय-समय पर चुना, फिनाईल इत्यादि का छिड़काव करें ।
- पशु आवास में अन्तः एवं वाह्य परजीवी को पनपने से रोकने के लिए समय-समय पर मैलाथियम 1 -0.2 प्रतिशत घोल का छिड़कांव करें।
- पशुशाला को गर्म रखने के लिए अगर अलाव (आग) जलाते हैं तो पशुओं से दूरी बनाकर सावधानी पुर्वक जलायें।
- दिन में जब धूप निकल आए तब पशुओं को बाहर निकाल कर बांधे और शाम में सूर्य अस्त होते ही अन्दर पशु आवास में कर दें। इससे पशुओं को धूप से जरूरी स्वास्थ्य लाभदायक पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।
आहार प्रबंधन
ठण्ड में पशुओं का आहार प्रबंधन सही तरीके से करना चाहिए अन्यथा दूध उत्पादन में कमी आ जाती है। पशुओं में आहार का प्रबंधन दुग्धकाल, गर्भकाल, शुष्ककाल के लिए अलग-अलग किया जाता है।
- दुग्धकाल में सूखा तथा हरा चारा के साथ गाय को प्रति 5 किग्रा0 दूध पर 1.0 किग्रा0 दाना तथा भैंस को प्रति 2.0 किग्रा0 दूध पर 1.0 किग्रा0 दाना देना चाहिए।
- गर्भकाल के अंतिम दो माह बच्चे के विकास हेतु 0 किग्रा0 अतिरिक्त दाना दें।
- औसतन 10 किग्रा0 दूध देने वाली पशुओं के लिए एक दिन का राशन 10-12 किग्रा0, हरा चारा 5-6 किग्रा0, सूखा चारा और 0 किग्रा0 दाना का मिश्रण है।
- आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने हेतु खनिज मिश्रण फीड सप्लीमेंट के रूप में दें। पशुओं के आहार मे नमक का नियमित उपयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है।
- एक गाय को प्रतिदिन 50 ग्राम खनिज मिश्रण तथा 100 किग्रा0 भार पर प्रतिदिन 8-10 ग्राम नमक देना चाहिए।
- पशुओं को संतुलित आहार दें जिसमें उर्जा, प्रोटीन, वसा, विटामिन व खनिज युक्त पदार्थ का उचित समावेश हो।
- इस समय हरा-चारा के रूप में अक्टुबर-नवम्बर माह में लगाई गयी बरसीम पशु आहार के लिए तैयार हो जाती है। ठण्ड में पशुओं को हरा-चारा, सूखा चारा के साथ मिलाकर खिलायें।
- पशु को दो या दो से अधिक हरा-चारा मिलाकर खिलायें। इस मिश्रण में फलीदार तथा गैर फलीदार दोनो चारों को रखना चाहिए।
- ठण्ड के मौसम में अधिक नमी वाले हरे-चारों को अधिक मात्रा न खिलायें। बरसीम को खिलाने के पुर्व कुछ समय के लिए धुप में फैलाऐ दें जिससें उनमें मौजुद नमी कुछ कम हो जाती है।
- इस मौसम में पशु आहार में उर्जा की मात्रा बढ़ायें। पशु आहार में गुड़, जीरा-अजवायन तथा तेल शामिल करें। इस मौसम में बकरियों के लिए पीपल, नीम, शहतुत, बेरी, बबुल, सबबुल, गुलड़, बरगद, कटहल, आदि वृक्षों के चारा का उपल्बध होता है जिन्हें बकरियां खूब पसंद करती है, साथ ही ये बहुत पौष्टिक होता है।
- पशु को पीने हेतु पानी ताजा और साफ दें जिससे पशुओं की शारीरिक प्रक्रिया सूचारू रूप से चलें और उत्पादन में कमी न हों।
- संतुलित आहार में पशुओं को सालो भर का हरा-चारा उपल्ब्ध कराने हेतु माध्य फरवरी से मार्च तक ही गर्मियां के लिए चारें की फसलों की बुआई कर लें। इस समय मक्का, बाजरा, तथा लोबिया चारें वाली किस्मों की बुआई कर सकतें हैं।
स्वास्थ्य प्रबंधन
पशु की उत्पादकता सूचारू रूप से बनायें रखने के लिए उनका स्वस्थ्य रहना अत्यंत आवश्यक ह्रै।ठण्ड के मौसम में पशुओं को कोण्ड स्ट्रोक, निमोनिया और अफरा जैसी बीमारी होने की संभावना होती है। अतः निम्न बातों पर ध्यान दें –
- शीत लहर के प्रकोप से पशुओं के बचाने के लिए जूट की बोरी या पुरानी कम्बल शरीर के ऊपर ढ़क कर अच्छी तरह से बाँध दें जिससे की वह खूलकर न गिरे।
- पशुओं को धूप में खुला छोड़े जिससे शारीरिक व्यायाम होता है और शरीर का तापमान भी बना रहता है।
- ठण्ड में वातावरण का तापमान गिरने से तथा शीत लहर चलने पर पशुओं में कोल्ड स्ट्रोक तथा निमोनिया होने की संभावना बढ़ जाती है। कोल्ड स्ट्रोक होने पर पशुओं के नाक और आँख से पानी गिरना, भूख में कमी, दुध उत्पादन में कमी तथा शरीर कांपने लगता है। निमोनिया के स्थिति होने पर इन सब लक्षणों के साथ-साथ बुखार तथा गले में खड़खड़ाहट भी देखने को मिलता है। ऐसे स्थिति में पशु चिकित्सा डॉक्टर से सम्पर्क कर तुरन्त इलाज करायें।
- ठण्ड में पशुओं को अधिक हरा चारा खिलाने से भी अफरा बिमारी होने की संभावना रहती है। इसलिए पशुओं को हरा-चारा के साथ सुखा चारा मिलाकर खिलाना चाहिए।
- नवजात पशुओं को विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। उन्हें सर्दी-जुकाम, न्यूमोनिया तथा परजीवी से ग्रसित होने की सम्भावना रहती है। पशु को चर्मरोग से बचाव के लिए कृमिनाशक दवा पिलायें।
- बाह्य और अन्तपरजीवी से बचाव हेतु पशुओं को प्रत्येक 4 माह पर एक बार कृमिनाशक दवा अवश्य खिलायें। ये दवा आवश्यकतानुसार बदल-बदल कर खिलाना चाहिए जिसके लिए पशु चिकित्सक से सलाह लें। मेंमनों में काक्लीडियोसिस से निदान हेतु दवा पशुचिकित्सक की सलाह लें।
- पशु को साफ रखें। धूप होने पर यदि शीत लहर है तो नहलाए नहीं, उसके बदले ब्रस से अच्छी तरह से खरहा कर साफ करें।
- ठण्ड के वातावरण में नमी होने के कारण पशुओं में खुरपका-मुँहपका तथा गलाघोंटु बिमारी होने की संभावना रहती है। पशुओं का टीकाकरण अवश्य करायें।
- बकरियों को न्यूमोनिया होने की संभावना रहती है, अतः बचाव हेतु इसका टीकाकरण करायें।
‘‘ठण्ड में पशुओं के आवास, आहार, और स्वास्थ्य का करें उचित देखभाल ताकि उनके स्वास्थ्य तथा उत्पादन पर न हो कोई दुस्प्रभाव‘‘
आलेख
बिभा कुमारी1 एवं रणवीर कुमार सिन्हा2
1कृषि विज्ञान केन्द्र, अरवल
2औषधिविभाग,बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय,पटना
E Mail- bibhababyvet@rediffmai.com