Crop disease

तिल फसल के रोग तथा उनका प्रबंधन Sesame Phyllody  Sesame Phyllody is caused by phytoplasma organism. Disease symptoms are evident before flowering   (witches broom) and at the time of flowering (phyllody). Early infection causes severe witches broom with complete suppression of flowering . Conversion of floral parts into leaf like structures . Yellowing and cracking of capsules. Seed germination in capsules . Increase amount of IAA due to infection is responsible for excessive proliferation of vegetative and reproductive parts of the plant . Symptoms of Sesame Phyllody Causing organism, Phytoplasma, belong to candidatus phytoplasma asteris (16 Sr II group). It survive on host and weeds like Brassicas, Gram and in leaf hoppers (Jassid).  Transmission/ Vector  Insect transmission by...

8 Major insects and diseases of cucurbits and their control measures कद्दू वर्गीय सब्जियों में मुख्यतः कद्दू ,करेला ,लौकी ,ककड़ी, तोरई, पेठा ,परवल  एवं खीरा इत्यादि किस वर्ग में आते हैं l कद्दू वर्गीय सब्जियों के प्रमुख कीट एवं प्रमुख रोग इस प्रकार है। 1. लाल पंपकिन बीटल  कद्द वर्गीय सब्जियों में एक कीट जो मुख्य रूप से कद्दू वर्गीय फसल पर आक्रमण करता है वह कीट है लाल पंपकिन बिटल यह लाल रंग का किस पौधे के पत्तियों को शुरुआती अवस्था में पत्तियों को खाकर नष्ट कर देता है जिससे फसल की बढ़वार बिल्कुल रुक जाती है l   लाल पंपकिन बिटल  लक्षण व जीवनकाल : लाल पंपकिन बिटल के मादा पीले रंग के होते हैं व 5...

तेल ताड़ का पत्ता वेबवॉर्म, एक उभरता हुआ गंभीर कीट और तेल ताड़ के बागानों में इसका प्रबंधन Oil palm (ElaeisguineensisJacquin: Arecaceae) is known to be the highest edible oil yielding perennial crop, capable of yielding 4-5 MT of palm oil and 0.4-0.5 MT palm kernel oil with good planting material, irrigation and proper management. However, the productivity is not achieved due to infestation by a wide range of fauna which include insects, birds, mites and mammals, apart from diseases, nutrient deficiencies, water stress etc. As the oil palms grow and attain tallness, the leaves of adjacent palms are overlapped, thereby preventing sunlight penetration in the plantations, a more favourable environment is...

Yellow rust of wheat (Causal organism: Puccinia striiformis) पीला रतुआ रोग गेहूं के सबसे खतरनाक और विनाशकारक रोगों में से एक है। इसे धारीदार रतुआ भी कहते हैं जो पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नामक कवक से होता है। पीला रतुआ फसल की उपज में शत प्रतिशत नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। इस बीमारी से उत्तर भारत में गेहूं की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है। फसल सत्र के दौरान उच्च आर्द्रता और हल्की बारिश पीला रतुआ के संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करती हैं। पौधों के विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में इस रोग के संक्रमण से अधिक हानि हो सकती है। उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र जिसमें मुख्यतः पंजाब, हरियाणा,...

Biological Controller - An environmentally friendly way of managing various plant diseases वर्तमान समय मे पादप रोग के प्रबंधन मे विभिन प्रकार के जैव नियंत्रक उपयोग किए जा रहे है और इनकी भूमिका रोगो के उपचार मे बढ़ती जा रही है। इसका एक महत्व पूर्ण करना यह है कि ये  जैव नियंत्रक पर्यावरण को नुकसान नही पाहुचते है और मिट्टी कि उर्वरक क्षमता बनाए रखते है। पौधों की बीमारी वह अवस्था होती है जिसमे पौधे अपनी वास्तविक स्थिति को खो देते है परिणाम स्वरूप पौधों की आकृति बिगाड़ जाती है और उपज में कमी आ जाती है। पादप-रोग, विभिन्न प्रकार के रोगजनको (पथोजेंस) के द्वारा उत्पन्न होते है। ये रोग जनक विषाणु, जीवाणु,...

पश्‍चि‍मी राजस्थान में टि‍ड्डी प्रकोप एवं उसका नि‍यंत्रण  राजस्थान के पश्चिमी भाग की जलवायु, मृदा एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ अन्य भागो से भिन्न है। इस क्षेत्र के जिले जैसे बाडमेर, जोधपुर, जैसलमेर एवं बीकानेर की सीमा अंतर्राष्ट्रीय सीमा से मिलती है। इस क्षेत्र में मृदा रेतीली, अल्प वर्षा आधारित, उष्ण, उच्च तापमान एवं कम वनस्पति युक्त है। इस प्रकार की जलवायु एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ पड़ोसी देश पाकिस्तान में मिलती जो कि टिड्डी जैसे अति हानिकारक कीट के लिए अति उपयुक्त है। वर्ष 2019 (21 अप्रैल से) एवं वर्ष 2020 (11 मई से) में राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, जालोर एवं हनुमानगढ़ में टिड्डी दलों का आक्रमण हुआ जो कि नागौर पाली,...

13 Major Anola Disease and their Management आँवला में लगने वाले प्रमुख रोग टहनी झुलसा, पत्ती धब्बा रोग, रतुआ, सूटी मोल्ड, लाइकेन, ब्लू मोल्ड, श्यामवर्ण, गीली सड़न, काली गीली सड़न, फोमा फल सड़न रोग, निग्रोस्पोरा फल सड़न रोग , पेस्टालोसिआ फल सड़न रोग व इंटरनल नेक्रोसिस हैं। जिसके रोकथाम क उपाय संक्षेप में इस लेख में उलेखित हैं। यह वृक्ष हिमालय में 1350 मीटर तक आरोही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाया जाता हैं और पुरे भारत वर्ष में उगाया जाता हैं। यह वृक्ष यूफोर्बीआयसी कुल का सदस्य हैं जिसे इंडियन ग्रूज़ वेर्री नाम से भी जाना जाता हैं। संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में इण्डियन गूजबेरी तथा लैटिन में...

Plassey borer of Sugarcane: problem and prevention  गन्ना की फसल अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक अवधि (लगभग 10 से 12 माह) होने के कारण इसमे कीटों की समस्या भी अधिक होती है। बिहार में गन्‍ना फसल मे लगभग डेढ दर्जन से भी अधिक कीटों का प्रकोप देखा गया है। इनमें से छिद्रक कीट की समस्या रोपनी से कटाई तक पायी जाती हैं। बिहार में प्लासी छिद्रक (plaasee borer) आर्थिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण कीट है। सर्वप्रथम यह कीट पश्‍चि‍म बंगाल के प्लासी नामक जगह में पाया गया। इस जगह के नाम पर ही इसका नामंकरण प्लासी छिद्रक किया गया। यदि समय पर इसकी रोकथाम नहीं की जाती है तो गन्‍ना उत्‍पादन मे...

Adopt Trichoderma for soil-borne disease management हमारे खेत की मिट्टी में अनेकों प्रकार के फफूंद पाए जाते हैं। ट्राइकोडर्मा मिट्टी में पाए जाने वाला एक जैविक फफूंद है जो मृदा रोग प्रबंधन हेतु अत्यंत उपयोगी पाया गया है। जैविक खेती में रोग प्रबंधन हेतु बीज तथा मृदा के  उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा के प्रयोग  की अनुशंसा की जाती है। ट्राइकोडर्मा को मित्र कवक के रूप में जाना जाता है। ट्राइकोडर्मा के उपयोग से मृदा के स्वास्थ्य के साथ-साथ मनुष्य के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। खाद्य सुरक्षा और पोषण के लक्ष्यों को प्राप्त करने, जलवायु परिवर्तन का सामना करने और समग्र एवं सतत्  विकास सुनिश्चित करने के लिए ट्राइकोडर्मा के उपयोग द्वारा...

Farmers benefit from the use of organic agents in crops किसान की आय दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु किसान भाईयों को अपनी फसलों पर होने वाले रासायनों एवं कीट नाशकों पर अत्यधिक खर्च को कम कर के लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में फसलों को कीटों, रोगों एवं खरपतवारों आदि से प्रति वर्ष 7 से 25 प्रतिशत की क्षति होती है। प्रदेश में 33 प्रतिशत क्षति खरपतवारों द्वारा, 26 प्रतिशत रोगों द्वारा, 20 प्रतिशत कीटों द्वारा, 7 प्रतिशत भण्डारण के कीटों द्वारा, 6 प्रतिशत चूहों द्वारा तथा 8 प्रतिशत अन्य कारकों से होती है। इस क्षति को रोकने के लिए कृषि रक्षा रसायनों का प्रयोग किया जा...