सब्जी फसलों की गुणवत्तापूर्वक पौध उत्पादन तकनीकियाँ
पिछ्ले दो दशकों से हमारे देश में सब्जी उत्पादन में बड़ी तेजी से प्रगति हुई है। सब्जी उत्पादन की बढ़ोत्तरी में उन्नतशील प्रजातियों, संकर प्रजातियों तथा उन्नत उत्पादन तकनीकों का विशेष योगदान रहा है।विभिन्न जलवायु तथा मिट्टी के प्रकारों की उपलब्धता के कारण हम अपने देश में दुनिया की लगभग सभी प्रकार की सब्जियां उगाने में सक्षम है।
इन सब्जियों में बहुत सी महत्वपूर्ण सब्जी फसलों को पहले पौधशाला में बीज बोकर पौध तैयार की जाती है तथा फिर तैयार पौध की खेत में रोपायी करके खेती की जाती है।
सब्जी पौधशाला एक ऐसा स्थान है जहां पर सब्जियों की पौध तैयार की जाती है तथा पौधों को खेत में लगाने तक उनकी विशेष देखभाल की जाती है।अधिकतर सब्जी फसलें जैसे कि टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, मिर्च, फूलगोभी, बंदगोभी, ब्रोकोली, गांठ गोभी, चाईनीज बंदगोभी व प्याज जिनके बीज छोटे व पतले होते है
सब्जियों को शुरुआत विकास के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। इनकी स्वस्थ व उन्नत पौध तैयार कर लेना ही आधी फसल उगाने के बराबर होता है।बेहतर देखभाल के लिए इन सब्जियों को शुरुआत में नर्सरी में बोया जाता है और बीज बुआई के लगभग एक महीने के बाद मुख्य क्षेत्र में प्रत्यारोपित किया जाता है।
स्वस्थ पौधे तैयार करना एक तकनीकी कार्य है जिसके लिये प्रत्येक स्थिति में विशेष जानकारी व देखरेख की आवश्यकता होती है। अच्छी स्वस्थ पौध अधिक पैदावार का मुख्य आधार है।
कुछ किसान पौध उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर विभिन्न सब्जियों की उन्न्त पौध तैयार कर एक स्वतंत्र व्यवसाय खड़ा कर अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।अच्छी सफल फसल उगाने के लिये पौध का स्वस्थ होना आवशयक है।
नर्सरी प्रबंधन के लाभ:
- नर्सरी में पौध काफी जल्दी तैयार होती है और यह पौध बाजार में ऊँची कीमत पर बिकती है, नर्सरी में पौध तैयार करना आर्थिक रूप से किसान के लिये अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकता है।
- नर्सरी में बीज बुआई करने से बीज के अंकुरण व पौध विकास के लिये अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करना संभव है।
- नर्सरी में कीट व रोगाणुमुक्त पौध तैयार करना संभव है व छोटे से क्षेत्र में छोटे पौधों की बेहतर देखभाल करना आसान है।
- नर्सरी में पौध तैयार करने से भूमि व श्रम की बचत होती है जिससे मुख्य खेत में अधिक गहन फसल रोटेशन (चक्र) का पालन किया जा सकता है।
- नर्सरी में पौध तैयार करने से मुख्य क्षेत्र की तैयारी के लिये अधिक समय मिल जाता है।
- सब्जी बीज विशेष रूप से संकर बीज बहुत महंगा होता हैं, इसलिए नर्सरी में बुवाई करके हम बीज बचत कर सकते हैं।
पौधशाला के लिये उपयुक्त स्थान का चयन:
स्वस्थ पौध तैयार करने के लिए पौधशाला के स्थान का चयन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।पौधशाला के लियेस्थान का चयन करते समय निम्नलिखित बातों परध्यान देना आवशयक है।
- स्थान, ऊँचाई पर होना चाहिए जहां से पानी का निकास उचित हो।
- मिट्टी दुमट बलुई होनी चाहिए जिसका पीएच मान लगभग 6.5 हो।
- स्थान, पानी के स्त्रोत के समीप होना चाहिए।
- स्थान, खुले में होना चाहिए जहां पर पया॔प्तमात्रामेंसूर्य की रोशनीपहुँचे।
- स्थान, देखरेख की दृष्टि से भी निकट होनाचाहिए।
- स्थान, खेत के किनारे पर होना चाहिए ताकि अन्य कृषि कार्यो में रुकावट न आए।
पौधशाला की तैयारी
पौधशाला की क्यारियों को तैयार करने से पहलेमिट्टी कीजुताई करके भुरभुरा कर लेना चाहिये और उसके बाद मिट्टी से घास, पुरानी जड़ों के टुकड़ों व पत्थर हटा कर भूमि को समतल किया जाना चाहिए।
फॉरमैल्डिहाइड से पौधशाला भूमि की मिट्टी का उपचार:
यदि भूमि को पहली बार उपयोग किया जा रहा है तो इसे फफूंद रहित करने के लिये इसकोफॉरमैल्डिहाइड नामक रसायन से उपचार करना आवश्यक है। 25 मि.लि. फॉरमैल्डिहाइड को 1 लिटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं तथा पौधशाला के लिए चुने गए स्थान पर अच्छी तरह छिडकाव करें।
तत्पश्चात इस स्थान को पॉलीथिन से अच्छी तरह ढक दें।लगभग एक सप्ताह पश्चात पोलीथिन हटाकर इस जगह की अच्छी तरह खुदाई कर खुला छोड़ देजिससे रसायन का असर समाप्त हो जाए। इसके पश्चात भूमि को अच्छी तरह भुरभुरा बनाए तथा उपचार के लगभग 15 दिन पश्चात बुवाई के लिए तैयार करें।
यह उपचार कमरतोड़ तथा क्लेदगलन (डैम्पिंगऑफ) नामक बीमारी की रोकथाम में उपयोगीहोता है।
पौधशाला भूमि को सौर उर्जा से रोगाणुमुक्त करना:
मई-जून के महीनों में जब तापमान लगभग 45° से.तक बढ़ जाता है‚ यह अवधि पौधशाला भूमि को सौर उर्जा से रोगाणुमुक्त करने हेतु उपयुक्त है। इसके लिये पहले नर्सरी क्षेत्र की अच्छी तरह जुताई कर लें व उसमें गोबर की खाद मिला कर भूमि की सिंचाई करें।
सिंचित भूमि को 100 से 200 गेज की सफेद पारदर्शी पॉलिथीन से 5 से 6 सप्ताह तक ढक दें। पॉलिथीन चादर के किनारों को मिट्टी में अच्छी तरह से दबा दें। 5-6 सप्ताह के बाद पॉलिथीन की चादर को हटा दें व बीज बुआई के लिए क्यारी तैयार करें।
इस तकनीक के अच्छे प्रभाव और ताप संचय के लिये भूमि की अच्छी तरह जुताई की जानी चाहिये और भूतल समतल होना चाहिये ताकि पॉलिथीन की चादर ठीक तरह से बिछाई जा सके व भूमि अच्छी तरह से पानी सोख लें।
क्यारी बनाते समय प्रति 10 वर्ग मीटर में लगभग 20 से 25 कि.ग्राम गली गोबर की खाद व ट्राईकोडर्मा 1:50 के अनुपात में मिलाएं।इसके साथ ही 200 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15-20 ग्राम इंडोफिल एम 45 अथवा कैप्टाफ नामक फफूँदनाशक और मिथाईल पैराथियॉन नामक कीटनाशक अच्छी तरह से क्यारी में मिलाएं।
क्यारियां 15-20 सें.मी. ऊँची उठी होनी चाहिए। इनकी चोड़ाई लगभग 1 मीटर तथा लम्बाई 3 मीटर होनी चाहिए जो की सुविधा अनुसार घटाई –बढ़ाई जा सकती है।
प्रत्येक दो नर्सरी क्यारियों के बीच 30 सें.मी. चौड़ी व 15-20 सें.मी. गहरी पानी के निकास की नाली रखें।
बीज बुवाई एंव पौधशाला प्रबन्धन:
- बीज बुवाई से पहले बीज का फफूँद्नाश्क रसायनों से सूखा उपचार कर लेना चाहिये (2-3 ग्राम कैप्टान/थीरम/ बाविस्टीन इत्यादि फफूँदनाशक या ट्राईकोडर्मा हर्जिएनम प्रति कि.ग्राम बीज की दर से) जिससे डैपिंग आफ नामक बीमारी का प्रकोप कम होगा।
- बीज की बुवाई 5 सें.मी. दूर पंक्तिंयों में 1 सें.मी गहराई पर करें। तत्पश्चात बीज को मिट्टी या गोबर की खाद की पतली परत सेढकदें। बीजाई के तुरंत बादक्यारियों को सुखी घास से ढकदें जिससेमिट्टी में नमी बनी रहेगी व बीज अंकुरण शीघ्र होगा। इस घास को बीज अंकुरण शुरु होते ही हटाना बहुत आवश्यक होता है।
- पौधशाला में सिंचाई की व्यवस्था अत्यंत आवश्यक होती है। शुरु की अवस्था में पौधशालाकी फव्वारे से हल्की सिंचाई करें।
- पौधशाला में सिंचाई मौसम की स्थिति पर निर्भर करती है‚ ग्रीष्म ऋतु में प्रात: व सांय:काल क्यारियों की सिंचाई करें। शीत ऋतु में एक ही बार सिंचाई पर्याप्त होती है। बरसात के दिनों में सिंचाई की आवश्यकता कम रहती है।
- पौधशाला से अतिरिक्त वर्षा या सिंचाई के जल का निकास अत्यंत आवश्यक है अन्यथा पौधे पानी की अधिकता की वजह से मर सकते हैं।पौधशाला की क्यारियां नम होनी चाहिये। अधिक नमी होने से कमर-तोड़ रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
- अंकुरण होने पर घास हटा दें तथा नियमित हल्की सिंचाई से नमी बनाए रखें।
- अंकुरण के बाद पौधों के बीच लगभग 0.5-1.0 सेमी की दूरी रखते हुए नर्सरी बेड से कमजोर, अस्वस्थ, कीटग्रस्त पौधों को निकालना और घने पौधों में उचित दूरीरखना महत्वपूर्ण है। ऐसा करने से प्रत्येक पौधे को संतुलित प्रकाश व हवा का प्रवाहमिलता है व रोगग्रस्त और कीट प्रभावित पौधों के निरीक्षण में मदद मिलती है।
- कीटो व कमरतोड़ रोग से बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत इंडोफिल एम 45 या 2 ग्राम ट्राईकोडर्मा हर्जिएनम प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे तथा 2मि.लि.प्रति लीटर पानी के हिसाब से मेलाथीयोंन या एन्डोसल्फान का छिड़काव समय-समय पर करते रहें।
- जब पोध 8-10 सें.मी. ऊँची हो जाए तो 0.3 प्रतिशत यूरिया का छिड़कावकरेंताकि बढ़वार अच्छी हो।
- खरपतवार का नियंत्रण हल्की निराई-गुड़ाई से प्रति सप्ताह करें तथा अवांछनीय पोधे भी निकाल दें।
- रोपाई से 3-4 दिन पहले सिंचाई रोक दें तथा उखाड़ने से एक घंटा पहले हल्की सिंचाई करें ऐसा करने से जड़ें नहीं टूटेगी।
- स्वस्थ पौध का रोपण सांयकाल में ही करें तथा हल्की सिंचाई करें।
एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौध तैयार करने के लिए विभिन्न फसलों की बीज मात्रा व क्यारियों की संख्या:
फसल | क्यारियों की संख्या | बीज की मात्रा प्रति क्यारी (ग्रा.) |
टमाटर | 10 | 40-50 |
बैगन | 15 | 35-40 |
शिमला मिर्च | 10 | 70-80 |
मिर्च | 10 | 100-150 |
फुल गोभी (अगेती, मध्यम व पछेती) | 10, 10, 10 | 60-70, 40-50, 35-40 |
ब्रोकली | 10 | 50-60 |
बंदगोभी | 10 | 40-50 |
चाइनीज बंद गोभी | 10 | 60-75 |
गाँठ गोभी | 20 | 50-60 |
सलाद (लैटयूस) | 10 | 40-50 |
प्याज | 50 | 175-200 |
उच्च तक्नीकी द्वारा सब्जियों का पौध उत्पादन:
आजकल विभिन्न सब्जियों में संकर बीज उपलब्ध है जो काफी मंहगे होते हैं। उत्पादकों के पास उन मंहगे बीजों से उच्च गुणवता वाली स्वस्थ पौध तैयार करने की तकनीकी या जानकारी नहीं होती है। यही नहीं, यदि इन महंगे संकर बीजों से यदि पौध तैयार भी कर ली जाती है‚ तो मुख्य मौसम होने के कारण उत्पादकों को उनके उत्पादन का बहुत कम भाव मिल पाता है।
दूसरी तरफ अगर इन सब्जियों को यदि समय से पहले या बाद में उगाया जाये तो उत्पादन से अधिक भाव मिलते है। लेकिन बैमौसमी सब्जी उत्पादन हेतु स्वस्थ पौध तैयार करना आसान कार्य नही है। विशेष तौर पर वर्षा ऋतु में सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार करना काफी कठिन होता है। उस समय अत्यधिक खरपतवार होने के कारण विभिन्न प्रकार के कीटों जैसे सफेद मक्खी आदि की जनसंख्या बहुत अधिक होती है‚ जिसके कारण स्वस्थ पौध तैयार करना बहुत कठिन है।
यही नही उस समय अधिक तापमान व उच्च आद्रता होने के कारण भूमि में भूजनित रोग (कवक) अत्यधिक सक्रिय रह्ते है‚ जिसके कारण भी स्वस्थ पौधे तैयार करना मुश्किल हो जाता है। कई बार इसके कारण पौध तैयार करना लगभग असंभव हो जाता है।
उच्च गुणवत्ता वाली पौध पॉलीहाउस में तैयार की जा सकती है।पॉलीहाउस में चारों और से 40 मेश का नाइलोन नेट लगाने व ऊपर से प्लास्टिक से ढकने की व्यवस्था होती है‚ इस कारण कोई भी कीट जैसे कि सफेद मक्खी, एफिड (चेपा) जैसिड, थ्रिप्स आदि पॉलीहाउस मे प्रवेश नहीं कर सकते जो कि बाहर पौध तैयार करते समय विषाणु रोग फैलाने के मुख्य स्त्रोत है।
पॉलीहाउस मे पौध कम समय में तैयार की जा सकती है खासकर सर्दी के मौसम में जब बाहर क्यारियों में पौध तैयारकरने में 50-60 दिन लगते है पॉलीहाउस में केवल 28-30 दिन में स्वस्थ व उच्च गुणवत्ता वाली पौध तैयार की जा सकती है।
पॉलीहाउस के अन्दर बेमौसमी पौध तैयार करना:
उत्तर भारत के क्षेत्रों में सर्दी के मौसम में पौध बनाने में प्राय: परेशानी होती है।पॉलीहाउसके अन्दर तापमान को बढ़ा कर और पाले से बचाकर पौध कोशीघ्र व अच्छी तरह से तैयार किया जा सकता है। पौध को छोटी– छोटी प्लास्टिक की थैलियों‚ मिट्टीएवं प्लास्टिक के गमलों‚ प्लास्टिक की ट्रे (प्लग ट्रे) तथा नर्सरी बेड में तैयार किया जा सकता है।
कद्दू वर्गकी फसलों की अगेती फसल लेने के लिए पौध को पॉलीहाउस के अन्दर तैयार करके लगभग एक से डेढ़ माह जल्दी फसल ली जा सकती है।कददू वर्ग की फसलों के लिए अधिकतम तापमान32°–35°सेल्सियस उपयुक्त रहता है क्योंकि ये गर्म जलवायु वाली फसलें है। ये फसलें8 डिग्री सेलिसयस से कम तापमान को सहन नही कर पाती है।
उत्तरी भारत में अगेती कद्दू वर्ग की फसलों को बोने का समय फरवरी का अंतिम सप्ताह या मार्च का प्रथम सप्ताह है जब रात का तापमान 13–15 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। लेकिन पॉलीहाउस में जल्दी तैयार की गई नर्सरी से पौध को फरवरी के प्रथम सप्ताह में सीधे रोपा जा सकता है जब पाला पड़ने का खतरा समाप्त हो चुका हो।इस विधि से फसल सामान्य विधि की तुलना में एक से डेढ़माह जल्दी प्राप्त की जा सकती है।
इसका लाभ दो तरह से होता है – एक तो बेमौसमी सब्जी मिलती है जिसका बाजार में अच्छा भाव मिलता है, दूसरा फसल की उपज अवधि एक से डेढ़ माह अधिक हो जाने से कुल पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है।अत: कद्दू वर्ग की फसलों के लिये यह एक बहुत ही उपयोगी विधिहै।
इसके लिये कददू वर्ग की फसलों के बीजों को पॉलीथिन की छोटी-छोटी थैलियों में, (जिसमे मिट्टी, बालू व खाद बराबर मात्रा में मिली होती है) दिसम्बर–जनवरी में बुवाई की जाती है। थैलियों में तीन चार छोटे–छोटे छेद बना देने चाहिए जिससे कि अधिक पानी बाहर निकल सके।प्रत्येक थैली में 2-3 बीज बोने चाहिए।
पॉलीहाउस के अन्दर पौध तैयार करना
कद्दू वर्ग की सब्जियों के अलावा कुछ अन्य फसलों जैसे की टमाटर,बैगन, शिमला मिर्च आदि की पौध भी पॉलीहाउस में तैयार करके बसंत ऋतू (फरवरी-मार्च) में रोपाई के लिए तैयार की जा सकती है।इन फसलों की सीधे नर्सरी बेड में बुवाई की जा सकती है।
खुले में पौध तैयार होने में लगभग दो माह का समय लग जाता है क्योंकि दिसम्बर–जनवरी में तापमान बहुत कम होता है। जबकि पॉलीहाउस में ये पौध तीन साप्ताह में ही तैयार हो जाती है।
पॉलीहाउस में बीज अंकुरण अच्छा होने के कारण पौध की संख्या भी अधिक बनती है।पॉलीहाउस में तैयार पौध अधिक कोमल होती है‚इसलिए कठोरीकरण करना आवश्यक रहता है।
प्लग ट्रे में पौध तैयार करना:
टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, खीरे, चप्प्न कद्दू आदि की पौध पॉलीहाउस में प्लग ट्रे में आसानी से तैयार की जा सकती है। जब इन सब्जियों की पौध क्यारियों में तैयार की जाती है तो पौध को उखाड़ते समय जड़ें टूटने से खेत में प्रत्यारोपण उपरांत लगभग 10 से 15 प्रतिशत मर जाते है।
प्लग ट्रे में पौध तैयार करने पर प्रत्यारोपण उपरांत पौध के मरने की गुंजाईश नहीं रहती है। इस विधि द्वारा पौध की जड़ें अधिक विकसित व लम्बी होती है, जिसके कारण मुख्य खेत में प्रत्यारोपण पर पौधे आसनी से बहुत कम समय में स्थापित हो जाते हैं।
नर्सरी बेड की अपेक्षा प्लग ट्रे में सब्जियों के बीज की मात्रा को काफी कम किया जा सकता है क्योंकि प्लग ट्रे में प्रत्येक बीज को अलग-अलग छेद में बोया जाता हैजिससे प्रत्येक बीज अंकुरित होकर स्वस्थ पौध देता है।
अत: यह तकनीक सब्जियों के संकर किस्म केबीजों को,जो कि बहुत मंहगे होते हैं को प्राकृतिक आपदा से बचाने में सक्षम है।इस तकनीक द्वारा तैयार पौध अधिक गुणवता वाली होती है, जिससे अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। प्लग ट्रे में तैयार पौध को काफी दूर तक आसानी से भेजा जा सकता है जहाँ इसे उस मौसम में तैयार करना संभव नही होता है।
आजकल बाजार में विभिन्न आकार की प्लग ट्रे उपलब्ध है। प्लग ट्रे जिसमें छेदों का आकर 1.0 इंच व कुल 345 छेद होते है,टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, फूलगोभी, पतागोभी, ब्रोकली, मिर्च लगाने के लिये उपयुक्त होती है।
दूसरी प्लग ट्रे जिसमें छेदों का आकर 1.5 से 2.0 इंच होता है, इनमें खीरा, खरबूजा, तरबूज, लौकी, चप्प्न कददू आदि की पौध तैयार की जाती है। पहले इन प्लग ट्रे को थर्मोकोल में रखा जाता है जो कि ट्रे छिद्रों के अनुसार होतें है। इन ट्रे में कोकोपीट, वर्मीकुलाइट व परलाइट का मिश्रण 3:1:1 अनुपात के अनुसार तैयार करके भरा जाता है।
यह तीनों माध्यम कीटाणु रहित होते हैं। अब प्रत्येक छिद्र में बीज बोयाजाता है तथा बाद में बीज के ऊपर इसीमिश्रण कीपतली परत डाली जाती है। सर्दी के मौसम में प्रत्येक ट्रे को अंकुरण के लिये पॉलीहाउस में रखा जाता है। ताकि बीजों का अंकुरण जल्दी व ठीक प्रकार से हो सके।
सर्दी के मौसम में पौध तैयार करते समय पॉलीहाउस में हीटर का प्रयोग भी किया जाता है। प्लग ट्रे में पौध की बढ़वार को नियंत्रित किया जा सकता है, व बढ़वार को एक समान बनाया जा सकता है ताकि प्रत्यारोपण के बाद भी बढ़वार एक समान हो।
प्लग ट्रे में टमाटर की पौध तैयार करना
अच्छी स्वस्थ व बीमारी रहित पौध अधिक पैदावार का मुख्य आधार है। इसलिये जिन सब्जी फसलों की खेती, पौध रोपाई करके की जाती है, उनमे पौधशाला बनाने से लेकर, बीज बुवाई तथा पौध की देखरेख अच्छी प्रकार करनी चाहिये। छोटे किसान जिनके पास जमीन कम है वे पौधशाला बना विभिन्न सब्जियों की उन्नत पौध तैयार कर एक स्वतंत्र व्य्वसाय खड़ा कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं।
Authors:
रीता भाटिया*, श्याम सुंदर दे, व राजकुमार
भा॰कृ॰अनु॰प॰ - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिॡी -110012
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