राजस्थान में ग्रीष्मकालीन बाजरे की खेती
खरीफ के अलावा जायद में भी बाजरा की खेती सफलतापूर्वक की जाने लगी है, क्योंकि जायद में बाजरा के लिए अनुकूल वातावरण जहॉ इसके दाने के रूप में उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है वहीं चारे के लिए भी इसकी खेती की जा रही है।
बाजरे के दानो की पौष्टिक गुणवत्ता ज्वार से अधिक होती है इसमें लगभग 67-68 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 11-12 प्रतिशत प्रोटीन , 2.7 प्रतिशत खनिज लवण , 5 प्रतिशत वसा आदि पाए जाते है |
भूमि की चुनाव :-
बलुई दोमट या दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 6.5-8.5 हो बाजरा के लिए अच्छी रहती है। व जीवांश वाली भूमि में बाजरा की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
भूमि की तैयारी :-
पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 10–12 सेमी. गहरी एक जुताई तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से दो–तीन जुताइयॉ करके पाटा लगाकर मृदा भुरभुरी व समतल कर लेते है | भूमिगत कीटो को नष्ट करने के लिए 12 किग्रा कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत प्रति है . की दर से बुवाई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए |
प्रजातियां :-
बाजरा की उन्नतशील प्रजातियां।
प्रजाति |
पकने की अवधि (दिन) |
ऊंचाई (सेमी.) |
उपज (कु./हे.) |
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संकुल |
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दाना |
चारा |
राज -171 |
80-85 |
170-200 |
20-25 |
45-48 |
सीजेड पी – 9802 |
70-75 |
185-200 |
12-15 |
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संकर |
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एच एच बी – 67 |
65-70 |
140-195 |
15-20 |
15-20 |
एम पी एम एच – 17 |
78-80 |
175-185 |
26-28 |
60-70 |
एम पी एम एच – 21 |
72-75 |
170-175 |
24-25 |
46-50 |
जी एच बी - 538 |
70-75 |
155-165 |
22-24 |
40-45 |
बुवाई का समय व बीज दर :-
बाजरा की बुवाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च के प्रथम पखवाड़े तक की जा सकती है।
दाने के लिए 4-4.5 किलोग्राम प्रति हे. पर्याप्त होता है देरी से बुवाई एवं लवणीयता की दशा में 20-25 % अधिक बीजदर का प्रयोग करे | बीजो को 20 प्रतिशत नमक के घोल से उपचारित कर तत्पश्चात 3 ग्राम थायरम से प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे | दीमक प्रकोप होने पर फिफ्रोनिल 1 ली. सक्रिय तत्व प्रति है.
बुवाई की विधि :-
बाजरे की बुवाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. व गहराई 2-3 सेमी. रखनी चाहिए।
उर्वरक प्रबन्धन :-
संकुल प्रजातियों के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तथा संकर प्रजातियों के लिए 80 किग्रा. नत्रजन, 40 किग्रा. फास्फोरस तथा 40 किग्रा. पोटाश प्रति हे. प्रयोग करना चाहिए।
फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में बुवाई के समय तथा नत्रजन की आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में बुवाई के 35-40 दिन बाद खेत में पर्याप्त नमी होने पर प्रयोग करनी चाहिए।
बुवाई से 4 सप्ताह पूर्व 10-15 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर देने से भूमि का स्वास्थ्य भी सही रहता है तथा उपज भी अधिक प्राप्त होती है। बीज को जैव उर्वरक एजोस्पिरिलम तथा पीएसबी के द्वारा उपचारित कर बोने से भूमि के स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा उपज भी अधिक मिलती है।
विरलीकरण (थिनिंग) गैप फिलिंग :-
बुवाई के 15-20 दिन बाद सांय के समय खेत में पर्याप्त नमी होने पर घने पौधों वाले स्थान के पौधों को उखाड़ कर कम पौधे वाले स्थान पर रोपित कर देना चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. कर लेना चाहिए तथा रोपित पौधे किये गये पौधों में पानी लगा देना चाहिए।
सिंचाई :-
जायद में बाजरा की फसल में 6-8 सिंचाइयॉ पर्याप्त होती है। 10-12 दिन के अन्तराल से सिंचाई करते रहना चाहिए। कल्ले निकलते समय व फूल आने पर खेत में पर्याप्त नमी आवश्यक है।
खरपतवार नियंत्रण / निराई-गुड़ाई :-
खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के 20-30 दिन बाद निराई – गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देना चाहिए एवं खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रति हैक्टयर 0.5 किग्रा. एट्राजीन सक्रिय तत्व का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद एवं अंकुरण से पहले छिडकाव करें |
पादप सरंक्षण :-
बाजरा एक तेजी से बढ़ने वाली फसल है तथा जायद में बोने पर कीट तथा रोग का प्रभाव भी कम होता है। रोग से रोकथाम के निम्न उपाय है।
अरगट (चेपा, गुन्दिया )
लक्षण
यह रोग क्लेविसेप्स फ्युजिफोर्मिस नामक फफॅूदी से उत्पन्न होने वाला रोग है। इस रोग में सिट्टे पर गोंद जेसा चिपचिपा सा पदार्थ उत्पन होता है रोकथाम
रोग से बचाने हेतु सिट्टे निकलते समय 2 ग्राम मैन्कोजेब प्रति लीटर पानी में घोल कर दो-तीन दिन के अंतर पर 2-3 छिडकाव करने से प्रकोप कम होता है रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए | नमक के 20% घोल में बीज को डुबोकर बुवाई करनी चाहिए |
कण्डुआ
लक्षण
यह रोग टोलिपोस्पोरियम पेनिसिलेरी नामक फफॅूदी से होता है। बालियों में दाना बनते समय रोग के लक्षण दिखार्इ देते हैं। रोग ग्रसित पौधों में दानों के अन्दर काला चूर्ण भरा होता है।
रोकथाम
- रोग प्रतिरोधी किस्मो का चयन करना चाहिए जैसे – एम पी एम एच – 17
- एक ही खेत में प्रति वर्ष बाजरा की खेती नहीं करनी चाहिए।
- रोग ग्रसति बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।
- रोग की संभावना दिखते ही फफॅूदी नाशक जैसे – विटावैक्स 1.5 किग्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए |
मृदुरोमिल आसिता व हरित बाल रोग
लक्षण
यह रोग स्क्लेरोस्पोरा ग्रेमिनिकोला नामक कवक से होता है | इस रोग में सिट्टे के स्थान पर पत्तियों का गुच्छा बन जाता है तथा रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियॉ पीली पड़ जाती है
रोकथाम
- रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन किया जाय जैसे - एच एच बी - 67 , राज -171
- बीज को शोधित करके बुवाई की जाय।
- संकर बीज उत्पादन हेतु बीज को 6 ग्राम मेटालेक्सिल 35 एस. डी. से प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे फसल बुवाई के 21 दिन बाद मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिडके |
Authors
1सोहन लाल बूरी, 2राजेन्द्र जांगिड, 3सुरेश कुमार गुर्जर एव 4गोगराज ओला
1प्रयोगशाला सहायक, 3कृषि पर्यवेक्षक , कृषि अनुसंधान केंद्र (जालौर)
2,4शोध छात्र, स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (बीकानेर)
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