चारा फसल के रूप मे शहतूत की खेती

पशु आहार के पूरक के रूप में हरी पत्तियों की भूमिका का महत्व निर्विवाद है। विकासशील देशों में, अनाज फसलों के भूसे और घास को पशुओं को खिलाया जाता है, लेकिन इनके कम पोषक मान के कारण पशुओं अपनी उत्पादक क्षमता का पूर्ण प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं।

इस कारण अधिकांश स्थानों पर पशुओं को चारे के साथ रातिब (दाना)भी खिलाया जाता है, परन्तु पशु आहार, रातिब से भी संतुलित नहीं हों पाता है। अत:इन परिस्तिथियों में शहतूत की पत्तियों को पशु आहार में मिलकर आहार की दक्षता में सुधार किया जा सकता है।

बढ़ती मानव आबादी की भोजन आपूर्ति को पूरा करने के लिए कृषि योग्य भूमि पर खाद्य फसलों के उत्पादन के लिए दबाव बढ़ रहा है जिससे भविष्य के लिए चारा फसलों को लगाने के लिए कृषि योग्य भूमि कम उपलब्ध हो रहीं है। शहतूत का एक और लाभ यह भी है कि इसे इच्छा अनुसार पेड़ या झाड़ी के रूप में लगाया जा सकता है और साल में कई बार चारे के लिए काटा जा सकता है।

भारत जैसे देशों में, जहां शहतूत मुख्य रूप से सेरीकल्चर (रेशम उत्पादन) के लिए उगाया जाता है, इसकी अतिरिक्त बची हुई पत्तियाँ एवं कोमल टहनियाँ को  गाय, भेस, भेड़ और बकरियों को खिलाए जाते हैं। जहां शहतूत के पेड़ प्रचुर मात्रा में होते हैं, उनकी पत्तियों को जानवरों को खिलाया जाता है।

शहतूत की उपलब्ध विभिन्न प्रजातियों में से, मोरस अल्बा और अन्य प्रजातियां जो रेशम के कीड़ों के पालन के लिए उपयुक्त हैं, उनकी खेती मैदानी भागों और पहाड़ी मैदानों में की जाती हैं। मोरस सेराटा, मोरस लाएविगाटा और मोरस ऑस्ट्रलिस पहाड़ियों में उगाए जाते हैं।

गहरी जड़ प्रणाली के कारण, सर्दियों में छोड़कर(पत्तियों के गिरने का समय) वर्ष भर शहतूत की पत्तियाँ हरी रहती हैं। उपरोक्त लाभों के कारण, शहतूत को वर्ष के अधिकांश समय के लिए पशु आहार के लिए बहुवर्षिय चारा स्रोत के रूप में माना जा सकता है।

शहतूत का कृषि प्रबंधन

दुनिया भर में शहतूत की स्थापना मुख्यतया स्टेम कटिंग विधि से की जाती है, लेकिन कुछ जगहों पर बीज को प्राथमिकता दी जाती है। जैसा कि अन्य उष्णकटिबंधीय कट-एंड-कैरी सिस्टम वाली बहुवर्षिय चारा फसलों के अनुरुप, बीज द्वारा स्थापित पेड़ों में गहरा जड़ें तंत्र पाया जाता है जिससे पेड़ जमीन की गहराई से पानी और पोषक तत्वों को प्राप्त करने की अधिक क्षमता रखते है। जिसके परिणामस्वरूप अंततः चारे की पैदावार अधिक होती है एवं पेड़ दीर्घायु होता है।

ज्यादातर बहुवर्षिय चारा फसलों के समान शहतूत की सफल खेती के लिए भी इसके रोपण का समय एवं रोपण के लिए आने वाला खर्चा (मुख्य रूप से भूमि की तैयारी, रोपण और खरपतवार नियंत्रण के लिए) एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। शहतूत वृद्धि के लिए सभी आवश्यक पोषकतत्वों की जरुरत मिट्टी से पूरी होती है ।

अत: शहतूत की फसल की उत्पादन क्षमता स्थिर बनाये रखने के लिए फसल दवारा मिट्टी से लिए गए पोषक तत्वों की मात्रा के अनुपात में पोषक तत्व जैविक उर्वरक (पशु और वनस्पति खाद) एवं उर्वरकों के माध्यम से मिट्टी में मिलते रहना चाहिए ताकि शहतूत की फसल की उत्पादन {kerk बनी रहे ।

शहतूतकी उन्नत खेती

शहतूत एक बहुउद्देशीय बहुवर्षीय मोरासी कुल का पौधा है। यह प्रतिकूल जलवायु जैसे सूखा, गर्मी एवं सर्दी के प्रति सहिष्णु है, एवं यह विभिन्न प्रकार की मिट्टीया जैसे रेतीली मिट्टी से लेकर गहरी जलोढ़ दोमट एवं भारी काली मिट्टी जिनका पी एच मान 6.2 से 6.8 के मध्य रहता है, के लिए अनुकूलित है एवं यह मध्यम खारी मिट्टीयों के प्रति सहिष्णु है।

यह संसार के 400 से 2500 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में समुद्र तल से 1600 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है। शहतूत की वृद्धि 0 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान तक नहीं रुकती, पर इसकी वृद्धि के लिए 32 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूलतम माना जाता है। 

शहतूत की खेती के लिए उन्नत सस्य क्रियाएँ

फसल मिश्रण

फसल मिश्रण का मुख्य उद्देश्य भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखते हुए कम लागत पर प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक पैदावार प्राप्त करना है, जिसके लिए शहतूत एक उपयुक्त फसल है। क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में गहराई तक जाती एवं इसे इच्छा अनुसार पेड़ या झाड़ी के रूप में लगाया जा सकता है और साल में कई बार चारे के लिए काटा जा सकता है।

जिससे इसके साथ उगाई जाने वाली फसल के साथ यह सूर्य की रोशनी एवं जगह के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करता है। इन गुणों के कारण यह फसल चक्र एवं फसल मिश्रण के लिए उतम फसल का काम करता है।

शहतूत की खेती के लिए प्रमुख फसल मिश्रण निम्न हैः-

शहतूत +मूंग/ चना/ मटर/ चवला/ उडद/ अरहर/ ज्वार/ बाजरा/ मक्का/ धान/ नेपियर घास/ दीनानाथ घास/अंजन घास/ धामन घास/ ब्लू पेनिक घास/ गुनिया घास / सरसों/ अलसी/ गेंहूँ/ जौं/ जई/  रिजगा/ मैथी।

शहतूतकी खेती के लिए प्रमुख कृषि वानिकी प्रणाली निम्न हैः-

शहतूत +बेर/अरडु/ सेंजना/ नीम/ खेजरी

शहतूत की उन्नत किस्में

एस – 36, एम–5, एस – 54, वी-1, एस –30, विक्टोरिया -1, आरफएस-175, आरफएस-1135, एस –7999, टीआर-10, बीसी-259, चाइना वाइट

शहतूत की खेती के लिए भूमि की तैयारी

शहतूत की खेती के लिए भूमि को 30-35 सेमी की गहराई तक भारी मोल्ड बोर्ड हल से गहरी जुताई करनी चाहिए। तत्पश्चात भूमि में दो या तीन बार देशी हल से जुताई करे जिससे मिट्टी बारीक हो जाती है।

इसके बाद भूमि को समतल करना चाहिए एवं अच्छी प्रकार से विघटित हुई गोंबर की खाद 10 टन / हेक्टेयर वर्षा आधारित क्षेत्रमे एवं 20 टन / हेक्टेयर की दर सेसिंचित क्षेत्रों में  अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाना चाहिए।

पौधा रोपण की विधि

आम तौर पर, वर्षा आधारित क्षेत्रों में  शहतूत के पौधारोपण के लिए  पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी में अधिक अन्तराल की आवस्यकता होती है जिस के लिए  पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 90 सेन्टीमीटर उपयुक्त मानी गई है रोपण के लिए गड्ढे का आकार 35 सेन्टीमीटर x 35 सेन्टीमीटर x 35 सेन्टीमीटर होना चाहिए।

इन गड्ढों को मानसून की बारिश से पहले मई जून के महीने में तयार कर ले एवं इनमे अच्छी प्रकार से विघटित हुई गोंबर की खाद गड्ढे के आकार के हिसाब से मिला दे ।सिंचितक्षेत्रों में पौधारोपण के लिएरिज और फ़रो विधि उपयुक्त मानी गई है जिस के लिए  पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेन्टीमीटर एवं कतार से कतार की दूरी 50-60 सेन्टीमीटर उपयुक्त मानी गई है ।

पौधारोपणरिज के किनारे पर इस प्रकार से करे जिससे एक सिचाई की नाली से पौधो की दो कतारों को एक साथ पानी प्राप्त हों सके जिससे पानी की बचत होगी ।रोपण की सामग्रीदक्षिण भारत जेसी उष्णकटिबंधीय स्थितियों में जहा शहतूत की टहनियों से आसानी से जड़ उत्पन्न हो जाती है इन परिस्तिथियों में कटिंग के माध्यम से शहतूत का रोपण करना उपयुक्त रहता है जिससे समय और व्यय की काफी बचत हो जाती है ।

कटिंग के लिए  4-8 महीने की पुरानी शाखाए चुने जिनका से व्यास 10-12 मिलीमीटर, लम्बाई 18-20 सेन्टीमीटर, जिनमे कम से कम  तीन आंखे हो एवं इनका रंग भूरा हो उपयुक्त मानी जाती है । रोपण कटिंग तैयार करने के लिये तेज चाकू का उपयोग करे ताकि शाखा सफाई से कट सके एवं कटाई के दोरान शाखाओं की छाल छीले नहीं ।

रोपण सामग्री के चयन में अक्सर गलतियाँ की जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पौधो से जड़ उत्पन्न नहीं हो पाती और परिणामस्वरूप कतारों में पौधो की कम स्थापना के कारण लम्बें अंतराल रह जाते है।

इसका प्रमुख कारण कटिंग के लिए चयनित शाखाऐ  या तो पतली या हरे रंग की होती है जिनमें जड़ उत्पन्नकरने की शमता कम होती है। क्योंकि, केवल रोपण के लिए उपयुक्त शाखाओं में ही अंकुरित कलियों को पर्याप्त जड़ें बनने तक आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने की शमताहोती है ।

शहतूत के पत्तों की कटाई और भंडारण

जुगाली करने वाले जानवरों के लिए, पत्तियाँ सहित कोमल टहनियों की हाथ से कटाई करके खिलाना सबसे अच्छा तरीका माना गया है । इसके हरी पत्तियाँ एवं कोमल टहनियों को साइलेज बनाकर संरक्षित किया जा सकता है।

हरी पत्तियाँ सूर्य के प्रकाश में कुछ घंटों के भीतर हीपूर्ण रूप से सुख जाती है लेकिन कोमल टहनियों को सुखने में अधिक समय की आवश्यकता होती है।

हरी पत्तियाँ एवं कोमल टहनियों पर रोलर चलाने से इनमे पानी की मात्रा कम हो जाती है एवं इसके बाद सूर्य के प्रकाश में सुखानें से पत्तियाँ एवं कोमल टहनियों गुणवत्ता में कमी नहीं आती है ।

हरे चारे की पैदावार

शहतूत से प्रति हेक्टेयर हरे चारे की पैदावार क़िस्म, जलवायु (मासिक तापमान, सौर विकिरण, और वर्षा), पौधे के घनत्व, सिंचाई प्रबंधन,मिट्टी की उर्वरता उत्पादकता, उर्वरक अनुप्रयोग और कटाई की तकनीक एवं कटाई  के समय पर निर्भर होतीहै। भारतीय जलवायु स्थितियों में शहतूत से ताजा हरी पत्तियों की उपज 40 टन / हेक्टेयर / वर्ष (लगभग 10 टन शुष्क पदार्थ) दर्ज की गईहैं।

खानें योग्य शुष्क चारे (पत्तियाँ एवं कोमलटहनियाँ) एवंकुल बायोमास की अधिकतमपैदावारक्रमशः 15.5 और 45.2 टन / हेक्टेयर / वर्ष तक दर्ज की गईहैं।अगर खानें योग्य शुष्क चारे (पत्तियाँ एवं कोमल टहनियाँ) की पैदावार 10टन / हेक्टेयर / वर्ष से कम होती है तों कृषि प्रबंधन प्रणालीमें कमी के कारण हो सकता है।

शहतूत की उपज, गुणवत्ता और इसके चारे की उपलब्धता पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा देने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विकल्प का काम करता है,खासकर उन जगहों पर जहां अधिकतम चारा उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में पोषक तत्व एवं अन्ये निवेश लगाया जाता हैं।


लेखक

सरोबना सरकार1, बनवारी लाल1 एवं रंग लाल मीणा1

वैज्ञानिक, आईसीएआर-केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, राजस्थान

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